शुक्रवार, सितंबर 08, 2023

पटना की सांस्कृतिक विरासत

पटना की सांस्कृतिक विरासत 
सत्येन्द्र कुमार पाठक
बिहार राज्य की राजधानी  एवं पटना प्रमंडल और  पटना  का मुख्यालय गंगा नदी के किनारे  पटना है । पटना  डच वास्तुकला और ब्रिटिश वास्तुकला की शैली और 200 वर्षों का निर्मित कलक्ट्रिट  भवन परिसर को 2008 में, बिहार सरकार द्वारा  कलक्ट्रीयट को विरासत भवन के रूप में सूचीबद्ध  था ।  निदेशांक 25°37′17″N 85°8′53″E एवं समुद्रतल से ऊंचाई 58 मीटर (190 फीट) पर अवस्थित पटना के जिला का सृजन 1857 ई. में कलेक्टर का आवास 1867 मिर्मित हुआ थ । डच प्रथम बार 17 वीं शताब्दी में  पटना की भूमि पर इमारत का निर्माण डच ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा किया गया  और  डच काल के दौरान गोदाम के रूप में इस्तेमाल किया गया था । [ब्रिटिश राज के दौरान, ब्रिटश साम्राज्य  ने इमारत को कलेक्ट्रेट के रूप में पुन: उपयोग किया। पटना समाहरणालय  परिसर का  १८५७ से काम करना प्रारम्भ एवं 1867 ई. में भवन पूर्ण  किया । १९३८ में, जिला बोर्ड भवन 1938 ई. में   ब्रिटिश वास्तुकला में बनाया गया था ।पटना के  डच 1740-1825 ई  की कार्यशैली का भवन , . पटना विश्वविद्यालय, 1948 , पटना प्रमंडल का सृजन 1829 ई. , पटना जिला का सृजन राजस्व जिला 1770  ई. , और 22 मार्च 1972 ई. को बिहार प्रोविन्स का सृजन किया गया है।  पटना जिला का क्षेत्रफल 3202 वर्गकिमी व 1236 वर्गमील में 2011 जनगणना के अनुसार 5838564 आबादी में पुरुष 3078512 एवं महिला 2759953 लोग 1395 गाँव , 309 पंचायत 23 प्रखंड तथा पटना ,पटना साहिब ,बाढ़ ,मसौढ़ी ,दानापुर और पालीगंज अनुमंडल का साक्षरता दर 70. 68 प्रतिशत है । पटना के उत्तर गंगा नदी ,दक्षिण में  जहानाबाद , अरवल , नालंदा , पश्चिम में भोजपुर और पूरब में बेगूसराय ,लखीसराय तथा नालंदा जिले की सीमाओं से घिरा तथा गंगानदी  , सोन नद , पुनपुन नदी प्रवाहित है।
बिहार राज्य की राजधानी पटना तीन हजार वर्ष  से  गौरवशाली शहर होने का दर्जा प्राप्त है। गंगानदी के किनारे सोन  नद और   पुनपुन नदी के संगम पर लंबी पट्टी के रूप में बसा हुआ है।  पाटलीपुत्र के नाम से ख्याति प्राप्त पटना छठी सदी ई.पू. में प्रारम्भ और तीसरी सदी ई .पू . में  मगध साम्राज्य  की राजधानी पाटलिपुत्र  बना। अजातशत्रु,उदयन ,  चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त द्वितीय, समुद्रगुप्त शासक हुए। मेगास्थनिज, फाह्यान, ह्वेनसांग के आगमन का पटना  साक्षी है। महानतम कूटनीतिज्ञ कौटिल्‍यने अर्थशास्‍त्र तथा विष्णुशर्मा ने पंचतंत्र की  रचना स्थल एवं  मौर्य-गुप्तकाल, मुगलों तथा ब्रिटिश साम्राज्य शासन का वाणिज्यिक स्थल पटना शहर रहा है। बंगाल विभाजन के बाद 1912 में पटना संयुक्त बिहार-उड़ीसा तथा आजादी मिलने के बाद बिहार राज्‍य की राजधानी बना है । पटना  के  मध्य-पूर्व भाग में कुम्रहार में  मौर्य-गुप्त सम्राटाँ का महल, पूर्वी भाग में पटना सिटी के आसपास शेरशाह तथा मुगलों के काल का नगरक्षेत्र , बाँकीपुर और उसके पश्चिम में ब्रिटिश साम्राज्य का  बिहार की  राजधानी पटना है।  पटना सिटी में  सिखधर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह की जन्मभूमि , हरमंदिर, पादरी की हवेली, शेरशाह की मस्जिद, जलान म्यूजियम, अगमकुँआ, पटनदेवी; अन्नपूर्णा मंदिर , शीतला माता मंदिर ,  मध्यभाग में कुम्‍हरार परिसर, पत्थर की मस्जिद, गोलघर, पटना संग्रहालय तथा पश्चिमी भाग में जैविक उद्यान, सदाकत आश्रम , शाहिद स्मारक  आदि  स्‍थल हैं। मौर्य-गुप्तकालीन स्थल में अगम कुआँ – मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक के काल का अगम कुआँ गुलजा़रबाग स्टेशन के समीप स्थित है। अशोक शासक बनने के लिए अशोक ने अपने 99 भाईयों को मरवाकर अगम  कुएँ में डाल दिया था। राजद्रोहियों को यातना देकर अगमकुएँ में फेंक दिया जाता था। अगमकुआं स्थित शीतला मन्दिर है । पटना की गंगा नदी के तट पर स्थित महराजगंज में माता सती का पट व वस्त्र गिरने के कारण पाटन नगर का निर्माण किया गया था । पटना को विभिन्न शासकों द्वारा पाटन को पाटली , मगध साम्राज्य का राजा आजादशत्रु के पुत्र उदयन द्वारा पाटलिपुत्र , मुगलों ने अजीमाबाद , ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा पटना कहा गया था । मगध साम्राज्य का राजा चंद्रगुप्त ने पाटलिपुत्र को विस्तार , महान कुटिनीतिज्ञ अर्थशास्त्री चाणक्य की कर्म स्थली को गंगा तट के समीप चाणक्य गुफा , गुप्तकाल तक व्यापारिक केंद्र को गंगा नदी के तट पर पट्टन , पत्तन  , अशोक काल में बौद्ध संगति , जैन धर्म में अगम  , कदम और ब्रिटिश साम्राज्य ने पटना , फतेहबहादुर सिंह ने फतुहा , आयभट्ट की वेधशाला  को खगोलीय स्थल को खगोल  कहा जाता  था । 
कुम्हरार -पटना जंक्शन से 6 किलोमीटर पूर्व कंकड़बाग रोड पर स्थित कुम्भरार  600 ई.पू. से 600 ई. के मध्य में निर्मित  भवनों की चार स्तरों मे उत्खनन से प्राप्त  मगध के शासकों द्वारा प्रारम्भ  में बनवाए गए लकड़ी के महल , पत्थर से बने 80 स्तंभों का महल और कुम्‍हरार मौर्य कालीन अवशेष है। मगध साम्राज्य का चंद्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार तथा , उदयन , अशोक कालीन पाटलिपुत्र के भग्नावशेष  है।  बंगाल के शासक अलाउद्दीन शाह द्वारा 1489 ई. में निर्मित बेगुहज्जम  मस्जिद ,  बिहार के  शासक शेरशाह सूरी द्वारा 1540-1545 के मध्य में अफगान शैली में  निर्मित शेरशाह मस्जिद  पटना सिटी क्षेत्र में धवलपुरा के पश्चिम तथा पूरब-दरवाजा़ के दक्षिण-पश्चिम कोने पर अवस्थित है। 
 ईसाई मिशनरियों द्वारा पटना सिटी में सन 1713 में स्थापित संत मेरी चर्च व पादरी की हवेली  70 फीट लंबा, 40 फीट चौड़ा और 50 फीट ऊँचा चर्च सन 1772 में कलकत्ता का  इटालियन वास्तुकार तिरेतो द्वारा संत मेरी चर्च का निर्माण कराया गया था ।  मीर कासिम के सैनिकों द्वारा 25 जून 1763 ई. में  चर्च को रौंदा गया पुनः सन 1857 की क्रांति के दौरान  नुकसान पहुँचा। मदर टेरेसा ने 1948 ई. में पादरी की हवेली में रहकर नर्सिंग का प्रशिक्षण लिया और कोलकाता जाकर पीड़ितों की सेवा में लग गयीं थी । क़िला हाउस (जालान हाउस) दीवान बहादुर राधाकृष्ण जालान द्वारा शेरशाह के किले के अवशेष पर निर्मित किला हाउस व जालान हाउस में हीरे जवाहरात, चीनी पेंटिग तथा यूरोपीय कलात्मक वस्तुओं का निजी संग्रहालय है। जहाँगीर के पुत्र तथा शाहजहां के अग्रज शाह परवेज़ द्वारा 1621 में निर्मित सैफ  अलीखान व चिमनी घाट मस्जिद अशोक राजपथ पर सुलतानगंज में स्थित है। हरमंदिर साहेब, पटना सिटी में तख्त श्रीहरमंदिर पटना सिक्खों के दशवें और अंतिम गुरु गोबिन्द सिंह की जन्मस्थली है। नवम गुरु तेगबहादुर के पटना में रहने के दौरान गुरु गोविन्दसिंह ने  बचपन के  पटना सिटी में बिताए थे। सिक्खों के लिए हरमंदिर साहब पाँच प्रमुख तख्तों में  है। गुरु नानक देव की वाणी से अतिप्रभावित पटना के श्री सलिसराय जौहरी ने अपने महल को धर्मशाला बनवा दिया। भवन के हरमंदिर साहिब  हिस्से को मिलाकर गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है।  गुरु गोविंद सिंह व बालक गोविन्दराय के बचपन का पंगुरा (पालना), लोहे के चार तीर, तलवार, पादुका तथा 'हुकुमनामा' गुरुद्वारे में सुरक्षित है। यह स्‍थान दुनिया भर में फैले सिक्ख धर्मावलंबियों के लिए पवित्र है।  बाँकीपुर में  अशोक राजपथ पर स्थित पटना विश्वविद्यालय की स्थापना 1917 ई.  में स्थापित है । गाँधी घाट एन आई टी पटना व  1900 ई. में स्थापित बिहार अभियंत्रण महाविद्यालय) परिसर के पीछे गंगा नदी के तट पर निर्मित  गाँधी घाट से राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की अस्थियाँ विसर्जित की गई थी। सन 1900 में बना अभियंत्रण महाविद्यालय का प्रशासनिक भवन  है। दरभंगा हाउस इसे नवलखा भवन का निर्माण दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह ने करवाया था। गंगा के तट पर अवस्थित काली मन्दिर है। खुदाबक़्श लाइब्रेरी की स्थापना 1891 ई. में छपरा निवासी मौलवी मुहम्मद बक्श द्वारा  अशोक राजपथ स्थित स्थापित स्थापित किया गया था । पटना  के मध्यभाग में स्थित गाँधीमैदान मैदान को ब्रिटिश शासन के दौरान  पटना लॉन्स या बाँकीपुर मैदान कहा जाता था। गोलघर 1770 ईस्वी में बिहार क्षेत्र में आए भयंकर अकाल के बाद 137000 टन अनाज भंडारण के लिए बनाया गया है ।  गोलाकार का निर्माण 1786 ईस्वी में जॉन गार्स्टिन द्वारा निर्माण के बाद से 29 मीटर ऊँचा गोलघ‍र पटना शहर का प्रतीक चिह्न बन गया।  गोलघर का आधार पर 3.6 मीटर चौड़े दिवाल के शीर्ष पर दो तरफ बनी घुमावदार सीढियों से ऊपर चढकर पास ही बहनेवाली गंगा और  परिवेश का अवलोकन किया जाता है। डा• सैय्यद महमूद (बिहार के तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ. सैय्यद महमूद  के घर 1947 ई. में महात्मा गाँधी के  विश्राम करने के कारण  विश्राम घर को गाँधी संग्रहालय कहा जाता  है। गोलघर के सामने बना बाँकीपुर बालिका उच्च विद्यालय के पास ही महात्मा गाँधी की स्मृतियों से जुड़ी चीजों का नायाब संग्रह देखा जा सकता है। गाँधी मैदान के उत्तर-पश्चिम हिस्से में स्थित इस परिसर में नवस्थापित चाणक्य विधि विश्वविद्यालय का अध्ययन केंद्र भी अवलोकन योग्य है।गांधी मैदान दक्षिण पश्चिम में श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल गुम्बदाकार है। गाँधी मैदान के उत्तरी भाग में कारगिल स्मारक के साथ बना यह भवन शहर के राजनीतिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र , श्रीकृष्ण विज्ञान केंद्र , छज्जुबाग में आकाशवाणी केंद्र , दूरदर्शन केंद्र , पटना स्टेशन के समीप  1967 ई. में निर्मित हनुमान मंदिर , 1917 ई. में निर्मित पटना संग्रहालय व काशी प्रसाद जायसवाल संग्रहालय व जादूगर , न्यू मार्केट में निर्मित मस्जिद ,  1917 में निर्मित  म्यूज़ियम में मौर्य, शक, कुषाण तथा गुप्त काल के हिन्दू, जैन तथा बौद्ध धर्म की कला कीर्तियाँ   करोड़ वर्ष पुराने पेड़ के 16 मीटर लंबा तने का फॉसिल, भगवान बुद्ध की अस्थियाँ तथा दीदारगंज, पटना सिटी से प्राप्त यक्षिणी की मूर्ति धरोहर है। बिहार के पुरातत्‍वविदों द्वाराएकत्रित  मौर्य और गुप्‍त काल की मूर्तियाँ (पत्‍थर, टेराकोटा, और लोहे की बनी हुई), मुगलकाल के सिक्के, तिब्बती थंग्का चित्र आदि संरक्षित है। विधान सभा तथा हाईकोर्ट भवन बंगाल विभाजन के बाद बिहार-उड़ीसा की संयुक्त राजधानी बनने पर पटना में  प्रशासनिक तथा न्यायिक भवनों का निर्माण वास्तुविद आई•एफ•मुन्निंग के निर्देशन में 1916-1917 तक निर्मित  हुआ। भारतीय-गॉथिक शैली में बने अधिकांश भवन ब्रिटिस शासकों की शानदार पसंद का नमूना है। पटना संग्रहालय भवन की तरह ही विधान सभा तथा उच्च न्यायालय भवन पश्चिमी पटना में बेली रोड का नाम बिहार के प्रथम लेफ्टिनेंट गवर्नर चार्ल्स स्टुआर्ट बेली के नाम पर निर्मित सड़क के किनारे  अवस्थित है। शहीद स्मारक, पटना बिहार विधान सभा के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने बना स्मारक पटना के स्कूलों से आजा़दी की लड़ाई में जान देनेवाले सात शहीदों के प्रति श्रद्धांजली है। 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के समय विधान सभा भवन के ऊपर भारतीय तिरंगा फहराने के प्रयास में मारे गए पटना के इन शहीदों को याद रखने के लिए बिहार के पहले राज्यपाल जयरामदास दौलतराम ने 15 अगस्त 1947 को स्मारक की नींव रखी थी। मूर्तिकार श्री देवीप्रसाद रायचौधुरी द्वारा शहीद स्मारक  भव्य आदमकद मूर्तियों को ईटली में निर्मित होकर स्थापित की गई है। महात्मा गाँधी द्वारा बिहार रत्न मज़हरूल हक़ द्वारा दी गयी भूमि पर 03 दिसंबर 1920  को सदाक़त आश्रम की स्थापना किया गया। भारत के प्रथम राष्ट्रपति  देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद की  कर्मभूमि पश्चिमी पटना में गंगा तट पर बना है। यहाँ बापू द्वारा 06 जनवरी 1921 ई.  को स्थापित बिहार विद्यापीठ का मुख्यालय तथा भारत के प्रथम राष्ट्र्पति डा• राजेन्द्र प्रसाद की स्मृतियों से  संग्रहालय है। पटना जंक्शन से ७ किलोमीटर पश्चिम में हजरत पीर मुजीबुल्लाह कादरी द्वारा स्थापित खानकाह मुजीबिया या बड़ी खानकाह लाल पत्थर की बनी संगी मस्जिद में पैगम्बर मुहम्मद साहब की दाढी का बाल सुरक्षित है । संग्रहालय के समीप  इन्दिरा गाँधी विज्ञान परिसर में बना ताराघर है। संजय गांधी जैविक उद्यान - राज्यपाल के सरकारी निवास राजभवन के पीछे स्थित जैविक उद्यान है। कदम कुआं में आयुर्वेदिक कॉलेज , बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन , सैदपुर में संस्कृत महाविद्यालय , राजेंद्रनगर में राजेंद्रनगर टर्मिनल ,    वेली रोड व जवाहरलाल नेहरु मार्ग के किनारे इंदिरागांधी आयुर्विज्ञान संस्थान , राजवंशीनगर में हनुमानमन्दिर  , फ्रेजर रोड को मजरुलहक पथ , वेली रोड को जवाहरलाल नेहरुमार्ग कहा जाता । दानापुर में रेलवे स्टेशन जंक्शन , पाटलिपुत्र जंक्शन ,  मनेर में यहियमनेरी का मजार व मस्जिद , पुनपुन नदी के किनारे स्थित पुनपुन स्टेशन , पुनपुनघाट पर गया पिण्ड दान करने के पूर्व पिंडदानियों द्वारा पितृपक्ष में पितृश्राद्ध स्थल है ।उलार में सूर्यमंदिर में भगवान उल्यार्क़ सूर्य की प्राचीन मूर्ति स्थापित एवं सूर्यकुंड , पंडारक म सूर्यमंदिर में  भगवान  पुण्यार्क सूर्य स्थापित है ।
 पटना जिले का गंगा नदी के किनारे बाढ़ का निर्देशांक: 25°29′N 85°43′E / 25.48°N 85.72°E पर 2011 जनगणना के अनुसार 61470 आवादी है। बाढ़ शहर के 12 शताब्दी में स्थापित शिव मन्दिर ऊमानाथ को समर्पित, बाढ़ शहर के मध्य मे 18वीं सदी में निर्मित  दुर्गा मन्दिर , गंगा नदी के तट पर  अलखनाथ मंदिर में बाबा अलख नाथ और  सीढ़ी घाट में  नवनिर्मित शनि मंदिर है। मुगल और ब्रिटिश काल में  बिहार का बाढ़  व्यापारिक  शहर , पटना और कोलकाता में नदी व्यापार के बीच मध्यवर्ती शहर था।  बेरहना गाँव की  युवा विधवा, सम्पति कुएर ने अपने मृत पति के अंतिम संस्कार की चिता पर 1928 ई. में  सती हुई। ब्रिटिश सरकार ने गुंडागर्दी पर संदेह किया और 10 लोगों को जेल भेज दिया, जिसमें उनके भाई मुरलीधर पांडे  शामिल थे । ब्रिटिश सरकार ने 100 साल पहले सती प्रथा का बहिष्कार किया था। बैरहना सती स्थान प्रसिद्ध है । पटना के बर्खास्त होने के बाद, 1425 ई. में सिकंदर लोदी बंगाल की ओर बढ़ने के बाद  दिल्ली और बंगाल सेनाओं के बीच  गैर-आक्रामक समझौता के बाद बाढ़ के पूर्व का क्षेत्र बंगाल के शासक द्वारा नियंत्रित किया जाएगा और पश्चिम में स्थित दिल्ली साम्राज्य द्वारा नियंत्रित किया जाएगा । नमक व्यापार के लिए बाढ़ महत्वपूर्ण पारगमन बिंदु का व्यापक रूप से विस्फोटकों, कांच बनाने, और उर्वरकों में उपयोग किया जाता था। बाढ़ को उच्च गुणवत्ता वाले चमेली के तेल के निर्यात के लिए  जाना जाता है। गुरु तेग बहादुर 1666 में पूर्वी जिलों का  दौरे के दौरान बाढ़ का चूना खारी मुहल्ले के बड़ी संगत  में रुके थे । 934 के बाढ़ में 1934 ई. का भूकंप से इमारत को नष्ट कर दिया गया था ।  नानक पंथी उदासीन मठ से संबंधित एक पुराना कुआं और पुजारी खुले स्थान पर कायम हैं। देशी सिखों के लिए तिराहा चौक के पास बालीपुर मोहल्ले, पिपल ताल में तख्त हरिमंदर साहिब द्वारा बाढ़ में  गुरुद्वारा स्थापित किया गया था। बंगाल का नबाब अलीवर्दी खान ने 1748 ई. को  बाढ़ में डेरा डाला और बंगाल के मराठा आक्रमण के दौरान पटना को बर्खास्त करने के बाद बख्तियारपुर के निकट काला दियारा में मराठों मीर हबीब के अधीन को हरा दिया। बाढ रेलवे लाइन 10 नवंबर 1877 को बाढ़ ​​रेलवे स्टेशन को जनता के लिए खोल दिया गया । बाढ़ के पूर्व में लखीसराय जिला, पश्चिम में पटना शहर, उत्तर में गंगा नदी एवं समस्तीपुर तथा दक्षिण में नालंदा एवं बरबीघा है। पुराणों एवं स्मृति , बौद्ध , जैन ग्रंथों के अनुसार हर्यक या शिशुनाग वंश के राजाओं में  विम्बिसार ,आजातशत्रु ने गंगा नदी एवं सोन नद के संगम तट पर पाटली नगर बसाया था ।  जैन ग्रंथ एवं बौद्ध ग्रंथों के अनुसार मगध साम्राज्य के राजा अजातशत्रु की पत्नी पद्मावती के पुत्र उदयन द्वारा 460 ई.पू. में गंगा और सोन नद के संगम तट पर पाटलिपुत्र नगर नगर की स्थापना की थी । उदयन द्वारा पाटलीपुत्र के मध्य में चैत्यगृह का निर्माण कराया गया था । हर्यक वंश 544 ई.पू. से 412 ई.पू. तक का अंतिम राजा नागदशक  , शिशुनाग वंश 412 ई.पू. से 344 ई.पू. तक , नंदवंश 344 ई.पू. से 324 ई.पू. तक शासन पाटलिपुत्र से किया जाता था । नंदवंश का अंतिम राजा सुंदर स्वरूप का पुत्र घनानंद  था । मौर्य राजवंश 324 ई.पू. से 184 तक शासन किया ।  मौरिय नगर का राजा सर्वार्थ सिद्धि की पत्नी मुरा का पुत्र चंद्रगुप्त ने  तक्षशिला का महान विद्वान चाणक्य के नेतृत्व में  नंद वंश का अंतिम राजा घनानंद को समाप्त कर मगध साम्राज्य का राजा बना ।  322 ई.पू. में चंद्रगुप्त सार्वभौम सम्राट बन कर मगध साम्राज्य का विस्तार किया था । चंद्रगुप का पुत्र बिंदुसार 298 ई. पू. से 273 ई.पू . , अशोक ने 273 ई. पू. से 236 ई. पू . एवं चंद्रगुप्त मौर्य वंश का अंतिम शासक वृहद्रथ विलासी और अयोग्य होने के कारण पुष्यमित्र शुंग मगध साम्राज्य का राजा 184 ई.पू. से 30 ई. पू.  तक एवं मगध साम्राज्य का  शुंगवशीय अंतिम  राजा देवभूति था ।  पाटलिपुत्र का विकास एवं संबर्द्धन विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न राजाओं द्वारा किया गया था । पाटलिपुत्र क्षेत्रों का चतुर्दिक विकास कण्व , हर्षवर्द्धन , गुप्त , सेन वंशीय राजाओं द्वारा किया गया था । 

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