गोपालगंज की विरासत
सत्येन्द्र कुमार पाठक
सारन प्रमंडल अंतर्गत गंडक नदी के पश्चिमी तट पर बसा भोजपुरी एवं हिंदी भाषी जिला ईंख उत्पादन के लिए प्रसिद्ध गोपालगंज जिला का मुख्यालय गोपालगंज है। मध्यकाल में चेरों राजाओं तथा ब्रिटिश साम्राज्य काल में हथुवा राज का केंद्र गोपालगंज रहा है। थावे दुर्गा मंदिर , नेचुआ जलालपुर दुर्गा मंदिर, रामबृक्ष धाम,बुद्ध मंदिर, बेलवनवा हनुमान मंदिर,दिधवादुबौली सिंहासनी मंदिर,बहुरहवा शिव धाम(हथुआ),पुरानी किला(हथुआ),गोपाल मंदिर(हथुआ) प्रमुख दर्शनीय स्थल है। गोपालगंज जिला मेंं 14 प्रखण्ड एव 234 पंचायत 1534 गाँव , 5 कस्बा के लोगों में 67.04 प्रतिशत साक्षर है । वैदिक एवं विभिन्न ग्रंथों के अनुसार आर्यों की विदेह शाखा ने अग्नि के संरक्षण में सरस्वती तट से पूरब में सदानीरा (गंडक) की ओर प्रस्थान किया था । आर्यों ने सारन की स्थापना किया था । सारन प्रदेश कोशल गणराज्य का अंग बनने के पश्चात शक्तिशाली मगध के मौर्य, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा था । गोपालगंज क्षेत्र के भिन्न भिन्न स्थलों में 3000 ई. पू. शाक्त , सौर , शैव और वैष्णव अनुयायियों के उपासना स्थली थी । ३००० ईसा पूर्व में भी इस हिस्से में आबादी कायम थी। 13 वीं सदी में मुगल शासक के पूर्व चेरों साम्राज्य के चेरो वंशीय राजाओं की सत्ता कायम थी । 1765 ई. में यूरोपियन व्यापारी डच द्वारा श0 अपना आधिपत्य कायम कर लिया। गोपालगंज अनुमंडल का दर्जा 1875 ई. में प्राप्त करने के बाद 02 अक्टूबर 1972 ई. में गोपालगंज को सारन जिला से स्वतंत्र जिला बना है।
गोपालगंज जिले का २५० १२ से २६०३९ उत्तरी अक्षांश तथा ८३०५४ से ८४०५५ पूर्वी देशांतर के बीच गोपालगंज जिला के उत्तर में पूर्वी एवं पश्चिमी चंपारन, दक्षिण में सिवान एवं छपरा, पूर्व में मुजफ्फरपुर एवं पूर्वी चंपारन तथा पश्चिम में उत्तर प्रदेश का कुशीनगर जिला की सीमाओं से घिरा गोपालगंज जिले का क्षेत्रफल २०३३ वर्ग किमि में 2011 जनगणना के अनुसार 2562012 आवादी में महिला 1294346 एवं पुरुष 1267666 लोग गोपालगंज और हथुआ अनुमंडल , नदियाँ में गंडक, झरही, दाहा, खनुआ, घाघरा , सरयू तथा सारन नदियाँ , प्रखंड - गोपालगंज, भोरे, माझा, उचकागाँव, कुचायकोट, कटेया, विजयपुर, बरौली, हथुआ, बैकुंठपुर, फुलवरिया, थावे, पंचदेवरी, एवं सिधवलिया है ।
गोपालगंज जिला का समतल एवं उपजाऊ भूक्षेत्र गंडक नहर एवं इससे निकलने वाली वितरिकाएँ सिंचाई का स्रोत है। चावल, गेहूँ, ईंख तथा मूंगफली जिले की प्रमुख फसलें हैं। गोपालगंज में कृषि आधरित उद्योग मे चीनी मिल तथा दाल मिल , कुटीर उद्योग , गोपालगंज, सिधवलिया, सासामुसा एवं हथुवा प्रमुख औद्योगिक केंद्र है। शिक्षा के क्षेत्र में प्राथमिक विद्यालय- 290 ,माध्यमिक विद्यालय- 100 ,उच्चतर माध्यमिक विद्यालय- 8 , डिग्री महाविद्यालय:- सभी 5 अंगीभूत महाविद्यालय , व्यवसायिक शिक्षा:- पॉलिटेक्निक कॉलेज, औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र, एक्युप्रेशर काउंसिल, सैनिक स्कूल है । पर्यटन स्थल में हथुवा राजा द्वारा थावे में निर्मित दुर्गा मन्दिर , सबसे महत्वपूर्ण स्थल है। गोपालगंज से 40 किलोमीटर दक्षिण-पूरब तथा छपरा मशरख रेल लाईन पर 56 किलोमीटर उत्तर में दिघवा-दुबौली का पिरामिड के आकार के दो टीले चेरों राजा द्वारा बनवाए गए थे । हुसेपुर: गोपालगंज से २४ किलोमीटर उत्तर-पचिम में झरनी नदी के किनारे हथुआ महाराजा का हुसेपुर में निर्मित किला का खंडहर , किले के चारों तरफ बने खड्ड , किले के सामने निर्मित टीला हथुवा राजा की पत्नी का सती स्थान है। पटना के मुस्लिम संत शाह अर्जन के दरगाह पर लकड़ी दरगाह है। कुचायकोट प्रखण्ड का बेलवनवा हनुमान मन्दिर, नेचुआ जलालपुर रामबृक्ष धाम ,बुद्ध मंदिर,दुर्गा मंंदिर, कुचायकोट बंगलामुखी माँ मन्दिर,सूर्य मंदिर, बंगरा शिवं मंंदिर है। भोरे गोपाल गंज जिला का एक प्रखण्ड है। भोरे से 2 किलोमीटर दक्षिण में शिवाला और रामगढ़वा डीह स्थित है। शिवाला में शिव का मंदिर , रामगढ़वा डीह के बारे में महाभारत काल के राजा भुरिश्वा की राजधानी रामगढ़वा की महलों के खण्डहरों के भग्नावशेष हैं । भोरे राजा भुरिश्वा महाभारत के युद्ध में कौरवों के चौदहवें सेनापति थे। महाराज भुरिश्वा के नाम पर भोरे है । हथुआ में स्थित गोपालमंदिर , पोखरा और संगीत महाविद्यालय हैं । और एक मैरिज हॉल भी हैं। गोपेश्वर महाविद्यालय सैनिक स्कूल तथा डॉ राजेंद्र प्रसाद हाई स्कूल+2 तथा इंपीरियल स्कूल हथुआ के राजा के अधीन था । गली मंडी के समीप किला , बोरावा शिव धाम कोईरोली में स्थित , महाइचा में स्थित बेलवती धाम में अनेक देवी देवताओं के मंदिर तथा मूर्तियां हैं। हथवा पैलेस 300 कमरें है ।रूम है । गोपालगंज में 41 डाकघर तथा 11 टेलिग्राफ केंद्र है जहाँ से सभी प्रकार की डाक सेवाएँ , भारतीय स्टेट बैंक तथा केनरा बैंक, पंजाब नैशनल बैंक एटीएम,द गोपालगंज सेन्ट्रल कोऑपरेटिव बैंक,एचडीएफसी बैंक,तथा युको बैंक है। थावे दुर्गा मंदिर का निर्माण हथुआ का राजा शाही बहादुर द्वारा 1714 ई. में कराया था। चेरो वंशीय राजा मदन सिंह ने शाक्त स्थल पर सिंहवाहिनी ,राशु भवानी , थावेवाली की स्थापना एवं थावे माता के उपासक शाक्त तांत्रिक संत रहसु थे । लौह युगीन संस्कृति प्रमुख स्थल 1700 ई. पू. शाक्त उपासना का केंद्र था । आर्यों का आदि स्थान में थावे को थाव , ठाव , ठाँव , ठहराव शाक्त उपासकों एवं अग्नि को दर्शन देने के लिए कामाख्या माता प्रकट हुई थी । ऋग्वैदिक। एवं पूर्व वैदिक काल में द्वारिकाधीश के गपाल को समर्पित गोपालनगर बाद में गोपालगंज कहा गया है । वैदिक काल में थावे तंत्र मंत्र , जादू टोना का स्थल था । बंगाल का पाल राजवंशों ने 637 ई. के बाद पल वंश के संस्थापक एवं विद्वान दयित विष्णु का पौत्र तथा सैनिक वाप्यट पुत्र गोपाल द्वारा गोपाल नगर का विकास और समृद्धि करायी और थावेवाली माता को शाक्त स्थल के रूप में विकसित किया था । विग्रह पाल द्वितीय का शासन काल 988 ई. तक , चोल वंशीय 1023 ई. , महिपाल , राजपाल 1120 ई. तक गोपालनगर प्रसिद्ध था । बल्ललसेन द्वारा 179 ई. में शैव एवं शाक्त स्थलों को विकसित किया था । उचायकटउचायकोट में सूर्य मंदिर एवं सूर्यकुंड है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें