शनिवार, सितंबर 16, 2023

देव शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा


सृष्टिकर्ता है  देव शिल्पी विश्वकर्मा 
सत्येन्द्र कुमार पाठक 
 विश्वकर्मा पुराण उपनिषद एवं पुराण आदि काल से देव शिल्पी  विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण मानवों गंधर्व द्वारा  पूजित और वंदित है। भगवान विश्वकर्मा के निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी पुष्पक विमान का निर्माण तथा  देवों के भवन और  दैनिक उपयोगी होनेवाले देव शिल्पी द्वारा  बनाया गया है। कर्ण का कुण्डल, दिव्य रथों और द्वारिकापुरी के भवनों का निर्माण विश्वकर्मा देव ने ही किया है। विश्वकर्मा देव जी को अन्य देवताओं की तरह ब्रम्हाजी ने उत्पन किया और उन्हे देवलोक और पृथ्वी लोक में भवन निर्माण हेतु नियुक्त किया। वह देवराज इंद्र की सभा में बैठते हैं। वेदों और पुराणों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा का अवतार में   विराट विश्वकर्मा - सृष्टि के रचेता  , धर्म वंशी- महान शिल्प विज्ञान विधाता प्रभात पुत्र , अंगिरावंशी - आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र ,  सुधन्वा - महान शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता ऋशि अथवी के पात्र,  भृंगुवंशी- उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र) देव विश्वकर्मा से विशाल विश्वकर्मा समाज का विस्तार हुआ है। शिल्पशास्त्रो के प्रणेता विश्वकर्मा  आचार्य शिल्पी ने पदार्थ के आधार पर शिल्प विज्ञान को पाँच प्रमुख धाराओं में विभाजित करते हुए तथा मानव समाज को ज्ञान से लाभान्वित करने के निर्मित पाणच  शिल्पायार्च पुत्र ने अयस, काष्ट, ताम्र, शिला एंव हिरण्य शिल्प के अधिषश्ठाता मय, त्वष्ठा, शिल्पी एंव दैवज्ञा के रूप में जाने गये।  स्कन्दपुराण  नागर खण्ड में विश्वकर्मा देव के वशंजों की चर्चा है। विश्वकर्मा पंचमुख है। विश्वकर्मा जी का पंचमुख  पुर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऋषियों को मत्रों व्दारा में मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ। ऋषि मनु विष्वकर्मा "सानग गोत्र"  लोहे के कर्म के उध्दगाता होने के कारण  लोहकार , सनातन ऋषि मय  सनातन गोत्र को बढई के कर्म के उद्धगाता के वंशंज काष्टकार , अहभून ऋषि त्वष्ठा - इनका दूसरा नाम त्वष्ठा गोत्र अहंभन के वंशज ताम्रक है। प्रयत्न ऋषि शिल्पी का गोत्र प्रयत्न के वशंज शिल्पकला के अधिष्ठाता संगतराश को  मुर्तिकार हैं। देवज्ञ ऋषि  गोत्र सुर्पण के वशंज स्वर्णकार के द्वारा  रजत, स्वर्ण धातु के शिल्पकर्म करते है,। विश्वकर्मा देव के  पुत्रं, मनु, मय, त्वष्ठा, शिल्पी और देवज्ञ शस्त्रादिक निर्माण करते है।विश्वकर्मा जी के कुल में अग्निगर्भ, सर्वतोमुख, ब्रम्ह आदथे ।। विश्वकर्मा के पुत्र मय का विवाह कन्या सौम्या देवी के साथ हुआ था। मय ने इन्द्रजाल सृष्टि की रचना किया है। मय के कुल में विष्णुवर्धन, सूर्यतन्त्री, तंखपान, ओज, महोज महर्षि प है। विश्वकर्मा के  पुत्र महर्षि त्वष्ठा का विवाह कौषिक की कन्या जयन्ती के साथ हुआ था। त्वष्टा के कुल में लोक त्वष्ठा, तन्तु, वर्धन, हिरण्यगर्भ शुल्पी अमलायन ऋषि है। त्वष्टा  देवताओं में  ऋषि थे। विश्वकर्मा के  महर्षि शिल्पी का विवाह करूणाके साथ हुआ था। ऋषि शिल्पी के कुल में बृध्दि, ध्रुन, हरितावश्व, मेधवाह नल, वस्तोष्यति, शवमुन्यु आदि ऋषि की कलाओं का वर्णन मानव जाति क्या देवगण  नहीं कर पाये है। विश्वकर्मा के पुत्र महर्षि दैवज्ञ का विवाह चंद्रिका के साथ हुआ था। दैवज्ञ के कुल में सहस्त्रातु, हिरण्यम, सूर्यगोविन्द, लोकबान्धव, अर्कषली  शिल्पी हुये। विश्वकर्मा जी के  पुत्रो ने  छीनी, हथौडी, कील, रंदा और अपनी उँगलीयों से निर्मित कलाये विकासित किया था ।
 वास्तु के 18 उपदेष्टाओं में विश्वकर्मा  प्रमुख है।  मय ग्रंथों एवं वराहमिहिर ,  विष्णुपुराण के पहले अंश में विश्वकर्मा को देवताओं का वर्धकी देव तथा शिल्पावतार तथा  शिल्प के ग्रंथों में सृष्टिकर्ता विश्वकर्मा हैं। स्कंदपुराण में  देवायतनों का सृष्टा  है।  शिल्पदेव विश्वकर्मा द्वारा  जल पर चल सकनेवाला  खड़ाऊ , सूर्य की मानव जीवन संहारक रश्मियों के ताप से रक्षा,  वावास्तुकल थी। राजवल्लभ वास्तुशास्त्र में उनका ज़िक्र मिलता है। विश्वकर्मीयम ग्रंथ में  वास्तुविद्या, बल्कि रथादि वाहन व रत्नों ,  विश्वकर्माप्रकाश,  वास्तुतंत्र है ।,विश्वकर्मा द्वारा साढ़े सात हज़ार श्लोकों में 239 सूत्रों तक उपलब्ध  है।  विश्वकर्मा ने  पुत्रों जय, विजय और सिद्धार्थ को ज्ञान दिया।स्कन्द पुराण  काशी खंड में भगवान शिव ने माता पार्वती जी से कहा है कि हे पार्वती मैं आप से पाप नाशक कथा कहता हूं। इसी कथा में महादेव जी ने पार्वती जी को विश्वकर्मा उत्पन्न करने की कथा कहते हुए कहा कि देव शिल्पी  त्वष्टा प्रजापति के पुत्र विश्वकर्मा  के रूप मे उत्पत्ति हुयी है।त्वष्टा प्रजापति का पुत्र प्रत्यक्ष आदि विश्वकर्मा  प्रथम अवतार  , स्कन्द पुराण प्रभास खंड सोमनाथ माहात्म्य सोम का  पुत्र   विश्वकर्मा के द्वितीय अवतार है। शिल्पोत्पत्तिं प्रवक्ष्यामि श्रृणु षण्मुख यत्नतः। विश्वकर्माSभवत्पूर्व शिल्पिनां शिव कर्मणाम्।। मदंगेषु च सभूंताः पुत्रा पंच जटाधराः। हस्त कौशल संपूर्णाः पंच ब्रह्मरताः सदा।। शिल्प के प्रवर्त्तक विश्वकर्मा विभिन्न रूपों मे मनु, मय, शिल्प, त्वष्टा, दैवेज्ञ थे। वायुपुराण अध्याय 22 उत्तर भाग के अनुसार आर्दव वसु प्रभास की योगसिद्ध से विवाही गई और अष्टम वसु प्रभाव पुत्र उत्पन्न विश्वकर्मा हुआ जो शिल्प प्रजापति कहलाया है।बृहस्पतेस्तु भगिनो वरस्त्री ब्रह्मचारिणी। योगसिद्धा जगत्कृत्स्नमसक्ता चरते सदा।। प्रभासस्य तु सा भार्या वसु नामष्ट मस्य तु। विश्वकर्मा सुत स्तस्यां जातः शिल्प प्रजापतिः।।मत्स्य पुराण अध्याय 5 के अनुसार विश्वकर्मा प्रभासस्य पुत्रः शिल्प प्रजापतिः। प्रसाद भवनोद्यान प्रतिमा भूषणादिषु। तडागा राम कूप्रेषु स्मृतः सोमSवर्धकी।। प्रभास का पुत्र शिल्प प्रजापति विश्वकर्मा देव, मन्दिर, भवन, देवमूर्ति, जेवर, तालाब, बावडी और कुएं निर्माण करने देव आचार्य थे।आदित्य पुराण मे उल्लेख मिलता है कि विश्वकर्मा प्रभासस्य धर्मस्थः पातु स ततः।।ऋग्वेद का  विश्वकर्मा सूक्त  में 14 ऋचायें के  सूक्त का देवता विश्वकर्मा और मंत्र दृष्टा ऋषि विश्वकर्मा है। विश्वकर्मा सूक्त 14 उल्लेख इसी ग्रन्थ विश्वकर्मा-विजय प्रकाश में दिया है। 14 सूक्त मंत्र औ यजुर्वेद 4/3/4/3 विश्वकर्मा ते ऋषि   विश्वकर्मा है । 
रथकार शिल्पी का  अष्टाध्यायी पाणिनि सूत्र पाठ सूत्र - शिल्पिनि चा कुत्रः 6/2/76 सज्ञांयांच 6/2/77 सिद्धांत कौमुदी वृतिः- शिल्पि वाचिनि समासे अष्णते। परे पूर्व माद्युदात्तं, स चेदण कृत्रः परो न भवति। ततुंवायः शिल्पिनि किम- काडंलाव, अकृत्रः किं-कुम्भकारः। सज्ञां यांच अणयते परे तंतुवायो नाम कृमिः। अकृत्रः इत्येव रथकारों नाम शिल्पीः।।पाणिनिसूत्र 4/1-151 कृर्वादिभ्योण्यः। देव शिल्पी विश्वकर्मा ने ब्राम्हण ऋषियों में  कुरू, गर्ग, मगुंष, अजमार, ऱथकार, बाबदूक, कवि, मति, काधिजल इत्यादि, कौरव्यां, ब्राह्मणा, मार्ग्य, मांगुयाः आजमार्याः राथकार्याः वावद्क्याः कात्या मात्याः कापिजल्याः ब्राह्मणाः इति सर्वत्र है। वराह पुराण ,  शैवागम , वास्तु शास्त्र , पुष्टि कोष , स्थापत्य शास्त्र , भागवत स्कन्द 3 , वायुपुराण अध्याय 4 , में पांचाल एवं भगवान विश्वकर्मा को भृगु ऋषि कुल में उत्पन्न होने का उल्लेख  है  वायु पुराण अध्याय 4 के अनुसार भार्ये भृगोर प्रतिमे उत्तमेSभिजाते शुभे।। हिरण्य कशिपोः कन्या दिव्यनाम्नी परिश्रुता।। पुलोम्नश्चापि पौलोमि दुहिता वर वर्णिनी।। भृगोस्त्वजनयद्विव्या काव्यवेदविंदा वरं।। देवा सुराणामाचार्य शुक्रं कविसुंत ग्रहं।। पितृंणा मानसी कन्या सोमपाना य़शस्विनी।। शुक्रस्य भार्यागीराम विजये चतुरः सुतान्।। अर्थत  हिरण्यकश्यप की बेटी दिव्या और पुलोमी की बेटी पौलीमी उत्तम कुलीन, यह दोनों मृग ऋषि को विवाही गई। दिव्या नाम वाली स्त्री के गर्भ से शुक्राचार्य पैदा हुए। सोम्य पितरों की मानसी कन्या अगीं नाम वाली शुक्राचार्य को विवाही गई। शुक्राचार्य जी के सूर्य के समान तेज वाले त्वष्टा, वस्त्र, शंड और अर्मक यह पुत्र पैदा हुए। त्रिशिरा विश्वरूपस्तु त्वष्टाः पुत्राय भवताम्।। विस्वरूपानुजश्चापि विश्वकर्मा प्रजापतिः।। अर्थः त्वष्टा प्रजापति के त्रिशिरा जिसका नाम विश्वरूप था बडा पराक्रमी औऱ उसका भाई विस्वकर्मा प्रपति यह दो पुत्र इसी विश्वकर्मा प्रजपति के विषय में स्कन्द पुराण प्रभास खंड में  है। ग्रन्थकार बोधयन  सूत्रकार ने वरिष्ठ शुनक अत्रि, भृगु, कण्व, वाध्न्यश्वा, वाधूल, यह गोत्र  नाराशंस पांचालों के आर्षेय गोत्र  है । ब्रह्मा जी , के मुख से अंगिरा ऋषि उत्पन्न हुय़े। इनका वर्णन वेद, ब्राह्मण ग्रथं, श्रुति, स्मृति, रामायण, महाभारत और सभी पुराणों में ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि अंगों व अंगिरा उल्लेख है। अंगिरा ऋषि का  मत्स्य पुराण, भागवत, वायु पुराण महाभारत और भारतवर्षीय प्राचीन ऐतिहासिक कोष में वर्णन किया गया है। मत्स्य पुराण में अंगिरा ऋषि की उत्पत्ति अग्नि से कही गई है।   ब्रह्मा के मुख से यज्ञ हेतु अंगिरा उत्पन्न हुए। महाभारत अनु पर्व अध्याय 83 में कहा गया है कि अग्नि से अंगिरा भृगु आदि प्रजापति ब्रह्मदेव है। ऋग्वेद 10-14-6 मेउल्लेख है किःअर्थः जिसके कुल में भरद्वाज, गौतम और अनेक महापुरूष उत्पन्न हुए । अग्नि के पुत्र महर्षि अंगिरा  के पुत्र  अंगिरस देव धनुष और बाण धारी थे । अंगिरस  को ऋषि मारीच की बेटी सुरूपा व कर्दम ऋषि की बेटी स्वराट् और मनु ऋषि कन्या पथ्या व्याही  गई।
 सुरूमा के गर्भ से बृहस्पति, स्वराट् से गौतम, प्रबंध, वामदेव उतथ्य और उशिर यह पांछ पुत्र जन्में, पथ्या के गर्भ से विष्णु संवर्त, विचित, अयास्य असिज, दीर्घतमा, सुधन्वा यह सात पुत्र उत्पन्न हुए। उतथ्य ऋषि से शरद्वान, वामदेव से बृहदुकथ्य उत्पन्न हुए। महर्षि सुधन्वा के ऋषि विभ्मा और बाज पुत्र हुए। यह ऋषि पुत्र हुए। महर्षि सुधन्वा के ऋषि विभ्मा और बाज ऋषि पुत्र ऱथकार में  देवता थे । , तो भी इनकी गणना ऋषियों में की गई है। शिल्प के निर्माण वाले रथकार थे । 
ब्रह्मा जी के प्रपौत्र धर्म के पौत्र वास्तुदेव की पत्नीएवं ऋषि अंगिरा की पुत्री अगिरसी के गर्भ से विश्वकर्मा का जन्म सनातन धर्म पंचांग भद्र शुक्ल कन्या संक्रांति सतयुग , आंग्ल पंचांग के अनुसार  17 सितंबर को हुआ था । समुद्र मंथन के तहत विश्वकर्मा का अवतरण हुआ था। भगवान विश्वकर्मा की पत्नी आकृति ,रति , प्रप्ति और नंदी से चाक्षुष मनु , माया ,त्वस्तार ,शिल्पी, विश्वजना , शाम ,काम हर्ष , विश्वरूप ,वृतासुर। पुत्री में बहिंर्मति का विवाह राजा प्रियब्रत  , रिद्धि एवं सिद्धि का विवाह भगवान शिव की भार्या माता पार्वती के पुत्र गणेश जी से हुआ था । शुभ और लाभ पुत्र हुए । चाक्षुष मन्वंतर में विश्वकर्मा के पुत्र मय द्वारा मय संस्कृति की स्थापना कर दैत्य शिल्पिकार और त्वष्टा द्वारा देवा संस्कृति की स्थापना कर देवशिल्पिकार थे । भगवान विश्वकर्मा की उपासना एवं मंदिर गुवाहाटी असम , मुम्बई का मीरारोड , खैराने , आंध्रप्रदेश के मछलीपट्टनम ,झारखंड के रांची ,में 1930 ई. में स्थापित विश्वकर्मा मंदिर है। एलोरा में विश्वकर्मा गुफा ,पाताल भुवनेश्वर गुफा ,छत्तीसगढ़ का रायपुर में  राजीव लोचन मंदिर , नांदवेल ,उत्तराखंड का ऋषिकेश में मायाकुंड , दक्षिण भारत के भृगु क्षेत्र बलिया नगर , हृदप्रसार में विश्वकर्मा मंदिर है । 
9472987491


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