वैदिक एवं पुरणों स्मृतियों एवं संहिताओं में भगवान सूर्य की पत्नी संज्ञा के पुत्र देव वैद्य अश्विनी कुमार का उल्लेख किया गया है । अश्विनी कुमार का अवतरण कार्तिक शुक्ल नवमी सतयुग में हुआ था । ऋग्वेद में ३९८ बार और ५० से अधिक ऋचाएँ अश्विनी कुमार को समर्पित है। अश्विनी कुमार को अश्विनी कुमार , अश्वदेव , स्वस्थ्यदेव , आयुर्वेद देव , वैद्यदेव , कुमारियों की पति , प्रभात का जुड़ाव देव , द्यौस का पुत्र ,दिवो नपाता , आशु , अश्व द्रुत , सिद्धांत, व्यवहारिक , मधुविद्या के ज्ञाता कहा गया है । भगवान सूर्य की पत्नी माता संज्ञा के गर्भ से जुड़वा पुत्र दस्त्र और नास्तय थे । दस्त्र की पत्नी मानव शरीर की देवी ज्योति तथा नासत्य की पत्नी माया की देवी मायान्द्री थी । अश्विनीकुमार के पुत्र सरन्यू , सत्यवीर ,दमराज , नकुल और सहदेव है । अश्विनी कुमार का स्वर्णरथ है । देवों के चिकित्सक और रोगमुक्त दाता , वृद्धों को तारूण्य, अन्धों को नेत्र देनेवाले कहे गए हैं। महाभारत के अनुसार नकुल और सहदेव अश्वनेय को अश्विनीकुमार के पुत्र कहा गया है । दोनों अश्विनीकुमार का वर्णन ऋग्वेद में ९९ बार नसत्यों प्रभात के समय घोड़ों या पक्षियों से जुते हुए सोने के रथ पर चढ़कर आकाश में निकलते हैं।अश्विनीकुमार के रथ पर पत्नी सूर्या विराजती हैं । ऋग्वेद ने अश्विनीकुमार का सम्बन्ध रात्रि और दिवस के संधिकाल से किया है। अश्विनीकुमार ने मधुविद्या की प्राप्ति के लिए आथर्वण दधीचि के शिर को काट कर अश्व का सिर लगाकर मधुविद्या को प्राप्त की और पुनः पहले वाला शिर लगा दिया। वृद्धावस्था के कारण क्षीण शरीर वाले च्यवन ऋषि के चर्म को बदलकर युवावस्था को प्राप्त कराना। द्रौण में विश्यला का पैर कट जाने पर लोहे का पैर लगाना, नपुंसक पतिवाली वध्रिमती को पुत्र प्राप्त कराना, अन्धे ऋजाश्व को दृष्टि प्रदान कराना, बधिर नार्षद को श्रवण शक्ति प्रदान करना, सोमक को दीर्घायु प्रदान करना, वृद्धा एवं रोगी घोषा को तरुणी बनाना, प्रसव के आयोग्य गौ को प्रसव के योग्य बनाना आदि ऐसे अनगिनत उल्लेख हैं । राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या के पातिव्रत्य से प्रसन्न होकर महर्षि च्यवन का वृद्धावस्था में कायाकल्प कर ऋषि च्यवन को चिर-यौवन प्रदान किया था। दधीचि से मधुविद्या सीखने के लिए इन्होंने उनका सिर काटकर अलग रख दिया था और उनके धड़ पर घोड़े का सिर जोड़ दिया था और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी। जब इन्द्र को पता चला कि दधीचि दूसरों को मधुविद्या की शिक्षा दे रहे हैं तो इन्द्र ने दधीचि का सिर फिर से नष्त-भ्रष्ट कर दिया। तब इन्होंने दधीचि ऋषि के सिर को फिर से जोड़ दिया था। अश्विनी कुमारों द्वारा निरोगता के लिए भूस्थल पर कार्तिक शुक्ल नवमी को आँवला वृक्ष की उत्पत्ति की थी । अक्षय नवमी को इंसान आँवला वृक्ष की छाया में दान , गुप्त दान , भोजन करने ,आँवला का सेवन करने पर निरोगता एवं सर्वार्द्ध समृध्दि प्राप्त करता है । कार्तिक शुक्ल नवमी बुधवार, श्रवण नक्षत्र, धृति योग मध्यकाल में सतयुग प्रारम्भ हुआ था । सतयुग में भगवान विष्णु का मत्स्य , कच्छप , वराह एवं नरसिंह अमानुष अवतार हुआ था । शाकद्वीप में प्रकृति के देवता नक्षत्रों के स्वामी भगवान सूर्य की पत्नी संज्ञा के पुत्र अश्विनीकुमार सौर धर्म का प्रारंभकर्ता और आयुर्वेद विज्ञान का जनक थे । शाकद्वीपीय ब्राह्मण, मग द्वारा आयुर्विज्ञान विकास किया गया है ।विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न भिन्न रूप में देव वैद्य अश्विनी कुमार की उपासना की जाती है । कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमीव आंवला नवमी के नाम से जाना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापरयुग में वृंदावन की परिक्रमा करने का विशेष महत्व है. वहीं इसे आंवला नवमी को पृथ्वी लोक में नवमी पर लक्ष्मी माता ने भगवान विष्णु और भोलेनाथ की उपासना आंवले के रूप में की थी । देव वैद्य अश्विनी कुमार द्वारा ऋषि च्यवन को युवावस्था प्रदान कर वैवस्वत मनु के पुत्र राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या को समर्पित किया गया था ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें