वक्त है तुम्हारा : बदल दो दुनियाँ
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सत्येन्द्र कुमार पाठक
वक्त है तुम्हारा बदल दो तमाशा ,
दुनिया कितना सख्त है हमेशा ।।
कदम कदम पर लोग टोकेंगे ।
हमें तुम्हें आगे बढ़ने से रोकेंगे ।।
खुद को बदलना मजबूरी होगी ।
अपनों आप से बहुत दूरी होगी ।।
आदत , इबादत , फुरसत नहीं ।
वक्त कहेगा हमेशा कहावत नहीं ।।
हर एक राजा , जीवन के बगल में ।
रहेगी दासीयां , जीवन के महल में ।।
चूड़ियों की खनखन से ताना सुनेगी ।
हरदम आखों से आंसू वक्त में बहेगी।।
नही बदलेगा जमाना , बदलना पड़ेगा ।
वक्त में खुद को हमेशा बदलना पड़ेगा ।।
अपनो की दूरी से वक्त मिलती रहेगी ।
अच्छाइयों के बादल बरसती रहेगी ।।
बन्द सांसो की घुटन से मत ऊब जाना ।
नही करना शिकायत न करना बहाना।।
दिल दर्द सहके सभी से छुपाना पड़ेगा ।
मां सुलाएगी सिर को सहलाकर ।
खिलाई गई है तुमको बहलाकर ।।
प्रत्येक मोड़ पर साथ पहरा मिलेगा ।
हर पल मां की ममता गहरा मिलेगा ।।
रुको नहीं चलते रहो ममता की छांव में ।
सफलता मिलेगी मां पिता की पांव में ।।
बेटी है भारत की यह सबको दिखाकर ।
पढ़ लिखकर आगे बढ़ना हुनर बनाकर ।।
सुनो सुनता हूँ अमर शहीद भगवान लाल की ।
मां भारती की सपूत का आन बान शान की ।
जन्म लिया 28 सितंबर 1912 को सरैया में ।
तिरंगा के लिए शहीद हुए तिलक मैदान में ।
14 नवंबर1930 को आजादी हेतू दी कुर्वानी ।
18 साल की उम्र में भगवान लाल की लाली ।
आजादी और तिरंगे को सींचा अपनी रक्त से ।
मां भारती हेतु युवाओं को संदेश दिया दिल से ।
मुजफ्फरपुर का शान और आन है भगवान लाल ।
याद रखेगा बिहार के वासी शहीद भगवान लाल ।
जीवन और पगडंडी
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जीवन की पगडंडियों पर सीख हमेशा मिलता है ;
सुख दुःख की आसुओं से कर्तव्य याद दिलाता है ।
रुको नही चलते रहो कर्तव्य मंजिल मिल जाएगा ;
क्या सोचते , क्या करते सब पथ में मिल पाएगा ।
सोचें नहीं , करते रहें और कर्म पथ पर चलते रहें ;
प्रेम , सौहार्द , विवेक और लक्ष्य कर्म अपनाते रहें ।
सफलता की डोर आप की ओर हमेशा साथ रहेंगे ;
बादल गरजते रहे सफलता के मेघ बरसते रहेंगें ।
धर्म का पथ पर कर्म की रेखाओं पर चलना पड़ेगा ;
सुबह शाम रात में कर्म और धर्म पर सोचना पड़ेगा ।
कर्म ही धर्म को जीवन में निरंतर अपनाना होगा ;
राह में बने कठिनाइयों को हमेशा ठुकराना होगा ।
वक्त ही वक्त की पहचान
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वक्त ही वक्त की पहचान करता है ;
भूले विखरे बाते को याद दिलाता है ।
मन में बैठी यादों को दिल टटोलता है ;
कल् क्या अब क्या स्मरण कराता है ।
दुनियां दूर नहीं जब कर्म अपनाता है ;
कर्म की परछाई हमें चलना सीखता है ।
यादों की समुंदर में इंसान गोता लगता है ;
भूले बिखरे यादों को संबल मंत्र देता है ।
इंसान की इंसानियत जब दिल में बैठा है ;
वक्त ही वक्त उसे विकास की ले जाता है ।
मैं क्या था , क्या हूँ , कब क्या रहूँगा ;
जीवन की उतार चढ़ाव होता रहेगा ।
इंशान की इन्शानियत रूबरू करेगा ;
कर्म और धर्म ही हमेशा साथ रहेगा ।
साहित्य धरा और मन धरा
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धरा पर साहित्य धरा की बूंद गिरा है ;
दिन में शब्दों की पूनम रात आई है ।
प्रेम एवं समन्वय की बरसात लाई है ;
छंद और अलंकार संग शब्द भाई है ।
जीवन संग मिलन कि रास रचाई है ;
धरा पर साहित्य धरा सौन्दर्य पाई है ।
शब्दों ने वाक्यों में चाँदनी फैलाई है ;
सोलह श्रृंगार में प्रकृति छटा फैली है ।
सजी दुल्हन-सी साहित्य धरा लगती है ;
शरद की शीतलता भरपाई करती है ।
शब्दों की कविता चरमोत्कर्ष होती है ;
सहित्यिकी रौशनी में जादू विखरती है ।
शब्दों के समुन्द्र में ज्वार भाटा उमड़ता है ;
उफानें भर-भर कर रसों में भर जाती है ।
साहित्य का शब्दों की चाँदनी हितकारी है ;
मानसिक चेतना नेत्र की ज्योति बढा़ती है ;
शब्दों की औषधि से युक्त वाक्य भरमार है ।
शब्दों कीअमृत वर्षा से इंसान पनपता है ;
वाक्यों की सौगातें से इन्शानियत लाई है ।
साहित्यकारों और कवियों में बरसात आयी है ;
शब्दों के वाक्यों से प्रेम की बरसात पायी है।
शाकद्वीप और मग
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सप्त द्वीप का भूस्थल पर जीवों का निवास निराली है ;
शाक , प्लक्ष , क्रोंच , पुष्कर , शाल्मल् , कुश , जम्बू है ।
मग , आर्यक ,कपिल ,दमी , पुष्कल ब्राह्मण कहलाते है ;
मागध ,कुरु ,अरुण ,शुष्मी पुष्कर क्षत्रीय पुकारे जाते हैं ।
मानस ,विविश्व ,पित ,स्नेह , धन्य , वैश्य वर्णों का रूप है ;
मंदक ,भावी , कृष्ण ,मंडन ,ख्यात और शुद्र कहलाते है ।
शाकद्वीप का देव भगवान सूर्य नक्षत्रों व प्रकृति के स्वामी ;
प्लक्ष द्वीप का देव चंद्रमा और शाल्मलद्वीप का देव वायु ।
कुशद्वीप का देव जनार्दन और क्रौंच द्वीप का देव रुद्रदेव ;
पुष्कर द्वीप का देव ब्रह्मा और जम्बू द्वीप का देव विष्णु ।
शाकद्वीप का भूस्थल प्रकृति के गोद में पड़ा हुआ ;
मग , मागध , मानस और मंदक मेल में जड़ा हुआ ।
सौरधर्म का रक्षक भगवान सूर्य और चंद्र अपनाया ;
संज्ञा पुत्र वैवस्वत, यम ,जमुना, दस्त्र नास्त्र कहलाया ।
छाया पुत्र सावर्णि , शनि व ताप्ती सूर्य वंश बतलाया ,
वैवस्वत और सावर्णि द्वारा मन्वन्तर प्रारम्भ किया गया ।
शाकद्वीप का सप्त वर्ष जलद , कुमार ,सुकुमार , मनिरक;
कुसुमोद , गोदाकि और महाद्रुम सात देश का निर्माण हुआ ।
उदयगिरि ,जलधार ,रैवतक, श्याम अंभोगिरी ;
अस्तोगिरि केशरी पर्वत शाकद्वीप की शान है ।
सुकुमारी ,कुमारी ,नलिनी,रेणुका , इक्षु धेनुका ;
गभस्ति नदियाँ शाकद्वीप की पाँव पखारती है ।
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