पुरणों एवं संहिताओं में जम्बूद्वीप का वर्णन किया गया है ।जम्बूद्वीप के मध्य भाग में 84 हजार योजन ऊँचाई और शिखर की चौड़ाई 32 हजार योजन तथा 16 हजार योजन विस्तारित युक्त मेरुपर्वत के दक्षिण में हिमवान , हेमकूट , निषध पर्वत , उत्तर में नीलश्वेत श्रृंगवान गिरि है । मेरु के दक्षिण में भारतवर्ष , उत्तर में किंपुरुष वर्ष , हरिवर्ष रम्यक वर्ष ,दक्षिण में हिरण्यवर्ष ,उत्तरकुरु वर्ष के मध्य में इला वर्ष है । मेरु पर्वत के चारो ओर वर्ष और पूर्व में मंदराचल , दक्षिण में गंधमादन पश्चिम में विपुल एवं उत्तर में सुपार्श्व पर्वत है । जम्बूद्वीप में भारत ,केतुमाल ,भद्राश्व ,और कुरु वर्ष है । केतुमाल वर्ष में वराह , भद्राश्व वर्ष में हयग्रीव ,भारतवर्ष में कच्छप और उत्तर कुरु में मत्स्य भगवान विष्णु का अवतार की उपासना करते है ।भारतवर्ष में महेंद्र , मलय ,सहय , शुक्तिमान ,ऋक्ष , विंध्य और पारियात्र कुल पर्वत है । भारतवर्ष के राजा भरत की संतान रहते है । भारतवर्ष में इंद्र द्वीप ,कसेतु द्वीप ,ताम्र द्वीप ,गभस्ति द्वीप ,नागद्वीप ,सौम्य द्वीप ,गंधर्व द्वीप ,वरुण द्वीप है । जम्बूद्वप के देशों में हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष का स्थान को चीन , नेपाल और तिब्बत शामिल है । 1934 में हुई उत्खनन में चीन के समुद्र के किनारे बसे प्राचीन शहर च्वानजो में 1000 वर्ष से प्राचीन हिन्दू मंदिरों के दर्जन से अधिक खंडहर मिले हैं। चीन , नेपाल , तिब्बत , भूटान , भारत का अरुणाचल , सिक्कम , लद्दाख , लेह और वर्मा का क्षेत्र प्राचीन काल में हरिवर्ष कहलाता था । हजार वर्ष पूर्व सुंग राजवंश के दौरान दक्षिण चीन के फूच्यान प्रांत में मंदिर थे । त्रिविष्टप ( तिब्बत ) में देवलोक और गंधर्वलोक था। 500 से 700 ई . पू . चीन को महाचीन एवं प्राग्यज्योतिष कहा जाता था । आर्य काल में संपूर्ण क्षेत्र हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष नाम से प्रसिद्ध था। महाभारत के सभापर्व में भारतवर्ष के प्राग्यज्योतिष पुर प्रांत का उल्लेख है। इतिहासकार के अनुसार प्राग्यज्योतिष को असम को कहा जाता था। प्राग्ज्योतिषपुर का असुर राजा नरका सुर था । रामायण बालकांड (30/6) में प्राग्यज्योतिष की स्थापना का उल्लेख है। विष्णु पुराण में प्राग्ज्योतिषपुर को कामरूप , किंपुरुष है। रामायण काल से महाभारत कालपर्यंत असम से चीन के सिचुआन प्रांत तक के क्षेत्र को प्राग्यज्योतिष था। जिसे कामरूप कहा गया था । चीनी यात्री ह्वेनसांग और अलबरूनी के समय तक कभी कामरूप को महाचीन कहा जाता था। अर्थशास्त्र के रचयिता कौटिल्य ने 'चीन' शब्द का प्रयोग कामरूप के लिए किया है। कामरूप या प्राग्यज्योतिष प्रांत प्राचीनकाल में असम से बर्मा, सिंगापुर, कम्बोडिया, चीन, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा में 5123 वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण प्रवास किये थे । महाभारत 68, 15 के अनुसार कृष्ण काल में प्राग्ज्योतिषपुर का राजा शिशुपाल ने द्वारिका को जलाया था । चीनी यात्री ह्वेनसांग (629 ई.) के अनुसार कामरूप पर कुल-वंश के 1,000 राजाओं का 25,000 वर्ष तक का शासन किया। महाचीन चीन और प्राग्यज्योतिषपुर कामरूप है । यह कामरूप भी अब कई देशों में विभक्त हो गया। मंगोल, तातार और चीनी लोग चंद्रवंशी हैं। कर्नल टॉड की पुस्तक राजस्थान का इतिहास। एवं पंडित यदुनंदन शर्मा की पुस्तक वैदिक संपति और हिंदी शब्द कोष के अनुसार तातार के लोग अपने को अय का वंशज कहते हैं ।राजा पुरुरवा की पत्नी उर्वशी का पुत्र आयु था। पुरुरवा कुल में कुरु और कुरु से कौरव हुए है । आयु के वंश में सम्राट यदु और उनका पौत्र हय था। चीनी लोग हय को हयु को पूर्वज मानते हैं। चीन वालों के पास 'यू' की उत्पत्ति इस प्रकार लिखी है कि एक तारे (तातार) का समागम यू की माता के साथ होने से यू हुआ। सोम एवं वृहस्पति और तारा पुत्र बुध और इला के समागम है। चीन ग्रंथों के अनुसार तातारों का अय, यू और आयु का आदिपुरुष चंद्रमा था ।
शाकद्वीप और भगवान सूर्य - वेदों , पुरणों , संहिताओं में भगवान शाकद्वीप के आदिदेव भगवान सूर्य का उल्लेख किया गया है ।शाकद्वीप का स्वामी महात्मा भव्य के पुत्रों द्वारा जलद वर्ष ,कुमार वर्ष , सुकुमार वर्ष मनिरक वर्ष कुसुमोद वर्ष गोदाकि वर्ष और महाद्रुम वर्ष की स्थापना की गई थी । शाकद्वीप में उदयगिरि, जलधार , ,रैवतक ,श्याम ,अंभोगिरी , आस्तिकेय और केशरी पर्वत तथा नदियों में सुकुमारी ,कुमारी ,नलिनी ,रेणुका इक्षु , धेनुका तथा गभस्ति नदियाँ प्रवाहित है । शाकद्वीप में मग को मागि ,मगी , सकलदीपी शाकद्वीपीय ब्राह्मण , मागध को क्षत्रिय , मानस को वैश्य तथा मंदग को शुद्र कहा जाता है । शाकद्वीप का क्षेत्र भगवान सूर्य के अधीन है और यहां के निवासियों द्वारा भगवान सूर्य की उपासना की जाती है । मगों द्वारा सौर धर्म के तहत चिकित्सा , आयुर्वेद ,ज्योतिष शास्त्र का उदय एवं प्राकृतिक संरक्षण एवं उपासना पर बल दिया गया । सौर गणना से दिन तथा चंद्र गणना से रात की चर्चा की है । कालांतर सौर धर्म में सौर धर्म और चंद्र धर्म का विकास हुआ था । शाकद्वीप का प्रथम उदयगिरि पर्वत पर भगवान सूर्य उदित हो कर भारतीय उपमहाद्वीप में अनेक स्थानों पर प्रकाशमान हैं। उदयगिरि गुफाओं में मध्य प्रदेश में विदिशा के समीप २० प्राचीन गुफाएँ , उदयगिरि, ओड़ीसा में प्राचीन बौद्ध विहार और स्तूप , उदयगिरि, आन्ध्र प्रदेश -- श्रीकृष्ण देवराय की राजधानी, पहाड़ियों और प्राचीन भवनों के लिए प्रसिद्ध , उदयगिरि और खंडगिरि -- भुवनेश्वर के पास , उदयगिरि, नेल्लोर , उदयगिरि,केरल का कन्नूर , तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिला का उदयगिरि दुर्ग , आंध्रप्रदेश के नेल्लोर जिला ,उड़ीसा के उदयगिरि में श्रीलंका के प्राचीन बौद्ध विहार , मन्दिर है । शाकद्वीप का उदयगिरि पर्वत उड़ीसा , आंध्रप्रदेश , केरल और तमिलनाडु क्षेत्र में विकसित है । शाकद्वीप का गुजरात के जूनागढ़ के समीप रैवतक पर्वत को 'गिरनार' गिरि कहते हैं। रैवतक पर्वत के समीप पांडव पुत्र अर्जुन ने बलराम की बहन रोहाणी की पुत्री तथा अभिमन्यु की माता सुभद्रा का हरण किया था। महाभारत सभा पर्व के अनुसार 'रैवतक पर्वत कुशस्थली द्वारिका के पूर्व की ओर रैवतक पर्वत स्थित था सौराष्ट्र, काठियावाड़ का गिरनार नामक पर्वत ही महाभारत का रैवतक है। 'महाभारत' और 'हरिवंशपुराण के अनुसार रैवतक पर्वत सौराष्ट्र , काठियावाड़ का गिरनार पर्वत है । जैन ग्रंथ 'अंतकृत दशांग' में रैवतक को द्वारवर्ती के उत्तर-पूर्व में स्थित म है तथा पर्वत के शिखर पर 'नंदनवन' नामक एक उद्यानहै।'विष्णुपुराण' के अनुसार आनर्त का पुत्र रैवत ने कुशस्थली में रहकर राज्य किया था । राजा रैवत ने रैवतक पर्वत प्रसिद्ध हुआ था। रैवत की पुत्री 'रेवती' बलराम की पत्नी थी। महाकवि माघ ने 'शिशुपालवध'में रैवतक का सविस्तार काव्यमय वर्णन किया है। जैन ग्रंथ 'विविधतीर्थकल्प' में रैवतक तीर्थ में 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ ने 'छत्रशिला' स्थान के पास दीक्षा ली थी। 'अवलोकन' के शिखर पर उन्हें 'कैवल्य ज्ञान' की प्राप्ति हुई थी। कृष्ण ने 'सिद्ध विनायक मंदिर' की स्थापना की थी। 'कालमेघ', 'मेघनाद', 'गिरिविदारण', 'कपाट', 'सिंहनाद', 'खोड़िक' और 'रेवया' नामक सात क्षेत्रपालों का यहीं जन्म हुआ था। रैवतक पर्वत में 24 पवित्र गुफ़ाएँ जैन सिद्धों से संबंध रहा है। रैवताद्रि का 'जैनस्रोत' 'तीर्थमाला चैत्यवंदनम' में उल्लेख है ।'विष्णुपुराण' के अनुसार रैवतक शाकद्वीप का पर्वत था । भागवत पुराण 9.22.29, 33; ब्रह्माण्ड पुराण 3.71.154, 178; विष्णु पुराण 4.44.35, 20, 30; वायु पुराण 12.17-24; 35.28 में शाकद्वीप का रैवतक पर्वत की चर्चा की गई है ।और 'रेवया' नामक सात क्षेत्रपालों का यहीं जन्म हुआ था। रैवतक पर्वत में 24 पवित्र गुफ़ाएँ जैन सिद्धों से संबंध रहा है। रैवताद्रि का 'जैनस्रोत' 'तीर्थमाला चैत्यवंदनम' में उल्लेख है ।'विष्णुपुराण' के अनुसार रैवतक शाकद्वीप का पर्वत था । भागवत पुराण 9.22.29, 33; ब्रह्माण्ड पुराण 3.71.154, 178; विष्णु पुराण 4.44.35, 20, 30; वायु पुराण 12.17-24; 35.28 में शाकद्वीप का रैवतक पर्वत की चर्चा की गई है । शाकद्वीप में मगध , अंग , कीकट , मिथिला , अवध , कौशल , तथा नेपाल , भारत के बिहार , उड़ीसा , झारखंड , गुजरात , सिंध का क्षेत्र सूर्योपासना का प्रधान है । सौर धर्म द्वारा भारत , नेपाल बर्मा , श्याम ,कंबोडिया ,जावा ,सुमात्रा ईरान ,इराक ,मिश्र , चीन , मेशोपोटेनियाँ में चौथी शती गुप्त काल मे विकसित थी । ऋग्वेद के 1 /19/13 में भगवान सूर्य को चक्षो:सूर्यो अजायत कहा गया है ।
प्लक्ष द्वीप और चंद्रमा - पुरणों एवं संहिताओं के अनुसार पृथ्वी को जम्बू द्वीप , प्लक्ष द्वीप शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंच द्वीप , शाकद्वीप और पुष्कर द्वीप में विभक्त किया गया है । सातों द्वीप के चारों आर् खारे पानी, इक्षुरस, मदिरा, घृत, दधि, दुग्ध और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे हैं। सभी द्वीप एक के बाद एक दूसरे को घेरे हुए है ।इक्षुरस सागर से घीरा हुआ प्लक्ष द्वीप के स्वामी मेघातिथि के पुत्रों में शान्तहय, शिशिर, सुखोदय, आनंद, शिव, क्षेमक एवं , ध्रुव द्वारा शांतहयवर्ष , पुरणों एवं संहिताओं के अनुसार पृथ्वी को जम्बू द्वीप , प्लक्ष द्वीप शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंच द्वीप , शाकद्वीप और पुष्कर द्वीप में विभक्त किया गया है । सातों द्वीप के चारों आर् खारे पानी, इक्षुरस, मदिरा, घृत, दधि, दुग्ध और मीठे जल के सात समुद्रों से घिरे हैं। सभी द्वीप एक के बाद एक दूसरे को घेरे हुए है ।इक्षुरस सागर से घीरा हुआ प्लक्ष द्वीप के स्वामी मेघातिथि के पुत्रों में शान्तहय, शिशिर, सुखोदय, आनंद, शिव, क्षेमक एवं , ध्रुव द्वारा शांतहयवर्ष , शिशिरवर्ष ,सुखोदेववर्ष ,आनंद वर्ष ,शिववर्ष ,क्षेमकवर्ष ,और धुर्ववर्ष की स्थापना की थी । प्लक्ष द्वीप का मर्यादापर्वत में गोमेद, चंद्र, नारद, दुन्दुभि, सोमक, सुमना और वैभ्राज और समुद्रगामिनी नदियों में अनुतप्ता, शिखि, विपाशा, त्रिदिवा, अक्लमा, अमृता और सुकृता के अलावा सहस्रों छोटे छोटे पर्वत और नदियां हैं। प्लक्षद्वीप के वर्णों में आर्यक, कुरुर, विदिश्य और भावी क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हैं।शिशिरवर्ष ,सुखोदेववर्ष ,आनंद वर्ष ,शिववर्ष ,क्षेमकवर्ष ,और धुर्ववर्ष की स्थापना की थी । प्लक्ष द्वीप का मर्यादापर्वत में गोमेद, चंद्र, नारद, दुन्दुभि, सोमक, सुमना और वैभ्राज और समुद्रगामिनी नदियों में अनुतप्ता, शिखि, विपाशा, त्रिदिवा, अक्लमा, अमृता और सुकृता के अलावा सहस्रों छोटे छोटे पर्वत और नदियां हैं। प्लक्षद्वीप के वर्णों में आर्यक, कुरुर, विदिश्य और भावी क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हैं। प्लक्ष द्वीप के निवासियों द्वारा चंद्रमा की पूजा एवं उपासना की जाती है । प्लक्ष द्वीप का प्लक्ष , पाकड़ , पलास वृक्ष प्रसिद्ध है ।
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