सनातन धर्म का विभिन्न ग्रंथों एवं ज्योतिष शास्त्र में मंगल का उल्लेख मिलता है । मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी , भगवान शिव एवं भूमि के पुत्र लाल वर्णधारी मंगल का शस्त्र में त्रिशूल ,गदा ,पद्म ,और भाला एवं वाहन भेड़ है । युद्ध का देवता सप्तवारों का स्वामी मंगलदेव का जीवन साथी ज्वालिनी देवी के साथ मंगल ग्रह पर निवास करते हैं । मंगल को मंगल , भौम , अंगारक , कुजा और चेवाई कहा गया है । मंगल का मंत्र ॐ भौम भौमाय नमः ।। है । मंगल के सौतेले भाई बहन में नरकासुर , गणेश , कार्तिकेय , अशोकसुंदरी , मनसा , ज्योति , अय्यप्पा , जालंधर, अंधकासुर , सुकेश है । कैलाश पर्वत पर भगवान शिव समाधि में ध्यान लगाये बैठेने के फलस्वरूप उनके के ललाट से तीन पसीने की बूंदें पृथ्वी पर गिरने से पृथ्वी ने चार भुजाएं और वय रक्त वर्ण का मंगल का जन्म मध्यप्रदेश के शिप्रा नदी के तट पर स्थित अवंति व उज्जैन हुआ था । पृथ्वी ने मंगल का पालन पोषण करने के कारण भूमि पुत्र एवं भौम नामकरण किया गया है । भूमिपुत्र मंगल गंगा तट पर स्थित काशी में भगवान शिव की तपस्या करने के बाद भगवान शिव ने प्रसन्न होकर मंगल लोक प्रदान किया था । भौम सूर्य के परिक्रमा करते ग्रहों में मंगल ग्रह के स्थाण पर सुशोभित हुआ था। ज्योतिष में मंगल ग्रह मेष राशि एवं वृश्चिक राशि का स्वामी है। मंगल मकर राशि में उच्च भाव में तथा कर्क राशि में नीच भाव में कहलाता है। सूर्य, चंद्र एवं बृहस्पति के मित्र या शुभकारक ग्रह मंगल हैं । शारीरिक ऊर्जा, आत्मविश्वास और अहंकार, ताकत, क्रोध, आवेग, वीरता और साहसिक प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता मंगल है। मंगल रक्त, मांसपेशियों और अस्थि मज्जा पर शासन एवं युद्ध और सैनिकों के साथ है। मृगशिरा, चित्रा एवं श्राविष्ठा या धनिष्ठा का स्वामी और राक्त वर्ण, पीतल धातु, मूंगा, तत्त्व अग्नि होता है एवं दक्षिण दिशा और ग्रीष्म काल से संबंधित मंगल है। शिवपुराण अध्याय 2 /71 , सर् रॉल्फ लिल्ली की पुस्तक टर्नर 1962 अंगयार्क 126 में मंगल को ह्यपोथेटिकल , पाली भाषा में अंगारका , मार्स , ट्यूजडे , अनारी कहा जाता है ।
मंगल देव का क्षेत्र दक्षिण दिशा त्रिकोण मंडल आंगुल 03 ,अवंति देश भारद्वाज गोत्र रक्त वर्ण मेष वृश्चिक राशि का स्वामी , वाहन भेड़ ,समिधा ( वृक्ष ) खदिर व खैर है । मंगलदेव का प्रिय वस्त्र एवं पताका रक्त व लाल ,द्रव्य मूंगा , ताम्बा , खाद्य पदार्थ गुड़ , गेहूँ , घी ,लालवस्त्र लालफूल ,कस्तूरी, केशर ,रक्त चंदन उर लाल बैल प्रिय है । अनंतमूल वृक्ष की जड़ प्रिय मंगलदेव का प्रिय वृक्ष अनंतमूल है । मंगलदेव मंदिर - मध्य प्रदेश की शिप्रा नदी के तट पर अवस्थित उज्जैन में मंगलदेव की जन्म भूमि है। श्री मंगलनाथ मंदिर का पुनर्निमाण सिंधिया राजघराने द्वारा 1173 ई. में कराया गया है। दैत्यराज अंधकासुर को भगवान शिवजी ने वरदान दिया था कि उसके रक्त से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे। वरदान के बाद दैत्य राज अंधकासुर ने अवंतिका में तबाही मचा दी थी । भक्तों के संकट दूर करने के लिए स्वयं शंभु ने अंधकासुर से युद्ध करने के दौरान भगवान शिवजी के पसीने की बूँद की गर्मी से उज्जैन की धरती फटकर दो भागों में विभक्त हो गई और मंगल का जन्म हुआ। था । स्कन्द पुराण ,अवंतिका खंड के अनुसार भगवान शिवजी ने दैत्य का संहार किया और दैत्यराज अंधकासुर की रक्त की बूँदों को नव उत्पन्न मंगल ने अपने अंदर समाहित होने के कारण मंगल की धरती लाल रंग है। रोम में मंगल, कांस्य प्रतिमा, इट्रस्केन; म्यूजियो आर्कियोलॉजिको, फ्लोरेंस में मंगल की मूर्ति है। मंगल , प्राचीन रोमन देवता मंगल रोम सम्प्रदाय में युद्ध के देवता की उपासना की जाती है । रोमन साहित्य में मंगल रोम का रक्षक था । रोम में मंगल के त्यौहार बसंत और पतझड़ में होते थे । ऑगस्टस के समय रोम में मंगल मंदिर कैंपस मार्टियस में सेना का व्यायाम स्थल और पोर्टा कैपेना के बाहर था। रेजिया में मंगल ग्रह का धर्मस्थल राजा का घर में मंगल के पवित्र भाले रखे जाते थे । ; युद्ध के प्रकोप पर कौंसल को " मार्स विजिला " "मार्स, वेक!" कहते हुए भाले को हिलाना पड़ता है। ऑगस्टस के तहत रोम में मंगल की पूजा एवं रोमन राज्य के सैन्य मामलों का पारंपरिक संरक्षक था, बल्कि मार्स अल्टोर ("मार्स द एवेंजर") के रूप में, वह सीज़र के बदला लेने वाले के रूप में अपनी भूमिका में सम्राट का निजी संरक्षक बन गया। मंगल की पूजा कैपिटोलिन ज्यूपिटर की प्रतिद्वंद्विता करती थी, और 250 ई . में मंगल रोमन सेनाओं द्वारा पूजे जाने वाले दि मिलिटर्स या "सैन्य देवताओं में मंगलदेव प्रमुख था । मंगल ग्रह के संबंध में रोमन , हेरा ने उसे ज़ीउस के बिना , फ्लोरा द्वारा दी गई जादुई जड़ी-बूटी के स्पर्श से जन्म दिया था । वेस्टल वर्जिन, रिया सिल्विया द्वारा रोमुलस और रेमस के पिता थे । ओविड , फास्टी में , मिनर्वा को लुभाने के लिए मंगल है ।
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