मंगलवार, अप्रैल 18, 2023

कामना पूर्ण का द्योतक है शुक्र ....


पुराणों , स्मृतियों एवं ज्योतिष ग्रंथों में शुक्र का उल्लेख मिलता है ।  सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार  ब्रह्मा जी के मानस पुत्र ऋषि भृगु  की भार्या  प्रजापति दक्ष की कन्या ख्याति से धाता,विधाता  व श्री कन्या का जन्म हुआ था । भागवत पुराण के अनुसार ऋषि भृगु  के पुत्र कवि व शुक्राचार्य  प्रसिद्ध हुए। महर्षि अंगिरा के पुत्र जीव व गुरु तथा महर्षि भृगु के पुत्र कवि यानि शुक्र को यज्ञोपवीत संस्कार के बाद ऋषि अंगिरा ने कवि और गुरु  की शिक्षा का दायित्व लिया था ।  महर्षि अंगिरा के पास कवि रह कर अंगिरानंदन जीव के साथ विद्याध्ययन करने लगा। ऋषि भृगु पुत्र  कवि ने  भेदभाव पूर्ण व्यवहार को जान कर अंगिरा से अध्ययन बीच में छोड़ कर जाने की अनुमति ले ली और गौतम ऋषि के पास पहुंच गए थे । गौतम ऋषि ने कवि की सम्पूर्ण कथा सुन कर उसे महादेव कि शरण में जाने का उपदेश दिया था । महर्षि गौतम  के उपदेशानुसार कवि ने गोदावरी के तट पर शिव की कठिन आराधना ,  स्तुति व आराधना से प्रसन्न हो कर महादेव ने कवि को मृतसंजीवनी  विद्याप्रदान की थी ।  भगवान शिव ने भृगुनन्दन कवि से  कहा कि जिस मृत व्यक्ति पर तुम इसका प्रयोग करोगे वह जीवित हो जाएगा ,  साथ ही  आकाश में तुम्हारा तेज सब नक्षत्रों से अधिक होगा। तुम्हारे उदित होने पर विवाह आदि शुभ कार्य आरम्भ किए जाएंगे। कवि ने अपनी विद्या से पूजित होकर भृगु नंदन कवि  शुक्र दैत्यों के गुरु पद पर नियुक्त हुए।  अंगिरा ऋषि ने शुक्र के साथ उपेक्षा पूर्ण व्यवहार किया था । अंगिरा ऋषि  के प्रपौत्र एवं बृहस्पति के के पौत्र जीव पुत्र कच को संजीवनी विद्या देने में शुक्र ने  संकोच नहीं किया था । शुक्राचार्य  को कवि , भार्गव , शुक्र , शुक्राचार्य , दैत्यगुरु कहा गया है।    वामन पुराण के अनुसार दानवराज अंधकासुर और महादेव के मध्य घोर युद्ध क्रम में दैत्यराज अन्धक के प्रमुख सेनानी युद्ध में मारे गए पर कवि  ने अपनी संजीवनी विद्या से उन्हें पुनर्जीवित कर  दिया। पुनः जीवित हो कर कुजम्भ आदि दैत्य फिर से युद्ध करने लगे। इस पर नंदी आदि गण महादेव से कहने लगे कि जिन दैत्यों को मेरे द्वारा मार गिराने पर  उन्हें दैत्य गुरु संजीवनी विद्या से पुनः जीवित कर देते हैं, ऐसे में हमारे बल पौरुष का क्या महत्व है। शिवगणों की प्रार्थना सुन कर महादेव ने दैत्य गुरु कवि को अपने मुख से निगल कर उदरस्थ कर लिया।  उदर में जा कर कवि ने शंकर की स्तुति आरंभ कर दी जिस से प्रसन्न हो कर शिव ने उनको बाहर निकलने की अनुमति दे दी। भार्गव कवि एक दिव्य वर्ष तक महादेव के उदर में विचरते रहे पर कोई छोर न मिलने पर पुनः शिव स्तुति करने लगे। बार-बार प्रार्थना करने पर भगवान शंकर ने हंस कर कहा कि मेरे उदर में होने के कारण तुम मेरे पुत्र हो गए हो अतः मेरे शिश्न से बाहर आने पर  जगत में कवि  तुम शुक्र के नाम से ही जाने जाओगे। शुक्रत्व पा कर भार्गव भगवान शंकर के शिश्न से निकल आए और दैत्य सेना कि और प्रस्थान कर गए। कवि से शुक्राचार्य के नाम से विख्यात हुए।  शुक्र का वैदिक नाम अग्नि एवं  भगवान शिव से दीक्षित होने के कारण शुक्र को अग्निश्वर कहा गया है। स्कंदपुराण के ज्योतिष खण्ड के ग्रह शांति अध्याय के अनुसार दैत्य हिरण्यकश्यप ने दैत्य गुरु शुक्राचार्य के आदेश पर स्वर्ण की खोज की थी। नवग्रह में शुक्र को अग्नि बताया हैं। दैत्य गुरु शुक्र वीर्य या शूक्राणु के स्वामी है। शुक्र (वीर्य) की कमी या कमजोरी से सन्तान पैदा नहीं होती। गर्भधारण या संतति निर्माण का कारक आग व शुक्र  है। विश्व  के 65  देशों में शुक्र की  समृद्धि है। स्कंदपुराण सहित ज्योतिष शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि शुक्राचार्य शिवजी की पूजा, शिवलिंग पर देशी घी से रुद्राभिषेक और ध्यान से भारी प्रसन्न होते हैं। ज्योतिष के अनुसार शुक्र ग्रह रोमांस, एक से अधिक स्त्री, कामुकता, कलात्मक कार्य, चलचित्र अभिनेता, प्रतिभा, शरीर और भौतिक जीवन की गुणवत्ता, अटूट धन, विपरीत लिंग, खुशी और प्रजनन, स्त्रैण गुण और ललित कला, संगीत, नृत्य, चित्रकला और मूर्तिकला का प्रतीक है। श्रीमद भागवत, ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक भगवान श्रीहरि वामन अवतार लेकर विष्णु ने प्रह्लाद के पौत्र राजा बलि से छद्म रूप में दान स्वरूप त्रैलोक्य ले लेने का प्रयास किया। भगवान विष्णुजी को वामन रूप में शुक्राचार्य ने उन्हें पहचान कर राजा बलि को दान हेतु मना किया। राजा बलि अपने वचन का पक्का होने से वामन देवता को मुंह मांगा दान दिया। शुक्राचार्य ने बलि के दान से दुःखी,अप्रसन्न होने पर स्वयं को सूक्ष्म बनाकर वामन विष्णु के कमण्डल की चोंच में जाकर छिप गये। कमण्डलु से जल लेकर बलि को दान का संकल्प पूर्ण करना था। तब विष्णु जी ने उन्हें पहचान कर भूमि से कुशा का एक तिनका उठाया और उसकी नोक से कमण्डलु की चोंच को खोल दिया। इस नोक से शुक्राचार्य की बायीं आंख फ़ूट गयी। तब से शुक्राचार्य काणे यानि एक आंख वाले कहलाते हैं। आंख धर्म का प्रतीक थी।  तमिलनाडु के कुम्भकोणम से 40 किलोमीटर दूर एक एकान्त गांव कंजनूर में शुक्र देव का अग्निश्वर मंदिर है। दक्षिण भारत के कंजनूर में शुक्राचार्य जी ने महादेव की घनघोर तपस्या के फलस्वरूप मृत संजीवनी मन्त्र वरदान  पाया था । भगवान श्रीकृष्ण ने शुक्र अग्निश्वर महादेव की साधनाओं, तपस्या से ऐश्वर्य होने का वरदान पाया था। अग्निऐश्वर  मंदिर में अग्निश्वर के रूप में भगवान शिव की मुख्य रूप से पूजा की जाती है। अग्निदेव ने भगवान शिव की पूजा की थी। शुक्र देव द्वारा  मंदिर में  देवताओ की पूजा की जाती है। विजयनगर और चोल वंश के समय का शिलालेख के  अनुसार  शिवकामी और नटराज की पत्थर से बनी सुन्दर मुर्तिया  है। शुक्र ग्रह  प्रेम, विवाह, आनंद और सुन्दरता , प्रेम के लिए शुक्र देव की पूजा की जाती है । संस्कृत शब्दकोश में शुक्र को सबसे शुद्ध, स्वच्छ श्वेत वर्णी, मध्यवयः, सहमति वाली मुखाकृति तथा ऊंट, घोड़े या मगरमच्छ पर है। शुक्र  स्त्रीत्व स्वभाव वाला ग्रह है। सप्तवारों में शुक्रवार का स्वामी है। दैत्यगुरू शुक्र हाथों में दण्ड, कमल, माला और  धनुष-बाण  ल हैं। श्रीमद देवी भागवत के अनुसार शुक्र की माँ काव्यमाता थीं। दैत्यदुरु शुक्राचार्य की पत्नी  द्वारजस्विनी के संग सदैव रहते हैं। शुक्राचार्य चार पुत्र में चंड, अमर्क, त्वस्त्र, धारात्र तथा देवयानी पुत्री है । दैत्यगुरु शुक्राचार्य का जन्म  पार्थिव नामक सम्वत्सर वर्ष  श्रावण मास शुक्ल  अष्टमी स्वाति नक्षत्र के उदय के समय हुआ था।  वृहद ज्योतिष सहिंता में शुक्र के प्रभाव से  सर्वाधिक लाभदाता, विदेश यात्रा का कारक ग्रह माना गया है।शुक्राचार्य के परम शिष्य राहु और  बुध-शनि से अभिन्नता है। रवि-सोम शत्रु ग्रह हैं तथा गुरु तटस्थ ग्रह माना जाता है।  शुक्र ज्येष्ठ का स्वामी एवं  कुबेर के खजाने का रक्षक  है। शुक्र के प्रिय वस्तुओं में श्वेत वर्ण, धातुओं में श्वेत स्वर्ण यानि प्लेटिनम एवं रत्नों में हीरा है। शुक्र की प्रिय दशा दक्षिण-पूर्व तथा ऋतुओं में वसंत ऋतु तत्व अग्नि है। बनारस में बाबा विश्वनाथ की गली के अंतिम छोर में शुक्रेश्वर महादेव का स्वयंभु शिवलिंग लाखों वर्ष पुराना है। ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु ऋषि का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या ख्याति से हुआ जिससे धाता,विधाता दो पुत्र व श्री नाम की कन्या का जन्म हुआ। भागवत पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के कवि नाम के पुत्र भी हुए जो कालान्तर में शुक्राचार्य नाम से प्रसिद्ध हुए! असुराचार्य, भृगु ऋषि तथा दिव्या के पुत्र शुक्राचार्य के शुक्र उशनस' है। पुराणों के अनुसार यह असुरों , दैत्य , दानव और राक्षस ) के गुरु तथा पुरोहित थे।शुक्राचार्य द्वारा  एक हजार अध्यायों वाले "बार्हस्पत्य शास्त्र" , शुक्र नीति की रचना है । गो' और 'जयन्ती' शुक्राचार्य पत्नियाँ थीं। असुरों के आचार्य होने के कारण असुराचार्य' या शुक्राचार्य कहते हैं। महर्षि शुक्राचार्य ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी और उनसे मृतसंजीवनी मंत्र प्राप्त किया था, जिस मंत्र का प्रयोग उन्होंने देवासुर संग्राम में देवताओं के विरुद्ध किया था जब असुर देवताओं द्वारा मारे जाते थे, तब शुक्राचार्य उन्हें मृतसंजीवनी विद्या का प्रयोग करके जीवित कर देते थे। यह विद्या अति गोपनीय ओर कष्टप्रद साधनाओं से सिद्ध होती है।उनकी असली समाधी बेट कोपरगाव में है। अस्य श्रीमृत्संजीवनी मंत्रस्य शुक्र ऋषि:, गायत्री छ्न्द:, मृतसंजीवनी देवता, ह्रीं बीजं, स्वाहा शक्ति:, हंस: कीलकं मृतस्य संजीवनार्थे विनियोग:। मृतसंजीवनी महामंत्र :- ॐ ह्री हंस: संजीवनी जूं हंस: कुरू कुरू कुरू सौ: सौ: हसौ: सहौ: सोsहं हंस: स्वाहा। शुक्र  पूर्व दिशा , षटकोण मंडल , 7 अंगुल , भोजकट देश , भृगुगोत्र श्वेतवर्ण और वृष एवं तुला राशि का स्वामी है । शुक्र का वाहन अश्व तथा उदुम्बर ( गूलर )  वृक्ष , हीरा ,सोना ,चांदी , सफेद फुखराज ,स्फटिक , सफेद वस्त्र , पताका ,  इत्र , सुगंध , सफेद फूल , घोड़ा ,चंदन ,मिश्री ,दूध ,चावल , मजीत जड़ प्रिय है ।  शुक्रवार को शुक्र की उपासना एवं ॐ ह्रीं श्रीं शुक्राय नमः का मंत्र लाभकारी है । शुक्र का प्रिय दिन शुक्रवार व फ्राइडे व जुम्मा और लोक शुक्र  है । दैत्यगुरु शुक्राचार्य  की पत्नी प्रियब्रत की पुत्री ऊर्जस्वात का पुत्र शंद और अमरक पुत्री देवयानी 
शुक्र की पत्नी  इन्द्र की पुत्री जयंती का  पुत्र  कामदेव ,वीनस , हार्मोनिय ,एदोनिस,थे । शुक्रचर्य का निवास राजस्थान का साम्भर झील का क्षेत्र था ।यह क्षेत्र असुर राज वृष पर्वा का साम्राज्य था । रोम में एफ्रोदैत को पूजा जता है । शुक्राचार्य का मंदिर महाराष्ट्र का गोदावरी नदी के किनारे कोपर , शाहजहाँपुर जिले का कलान प्रखंड के देवकली ,अहमदनगर ,हरियाणा का सरस्वती नदी के किनारे स्तौढा ,राजस्थान का संभद झील एवं संगली में स्थित है । शुक्राचार्य का निवास स्थान पूर्व दिशा , षटकोण मंडल , 9 अंगुल में विकसित भोजकट देश , भृगुगोत्र , श्वेतवर्ण एवं वृष और तुला राशि का स्वामी , वहां अश्व ,समिधा गूलर उदुम्बर , पौधा मजीठ , द्रव्य हीरा , सोना ,चांदी , सुगंधित श्वेतफुल वस्त्र ,मिश्री , चावल घोड़ा , चंदन , सुगंध इत्र और शुक्रवार प्रिय है ।




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