शुक्रवार, अप्रैल 07, 2023

भगवान विष्णु को समर्पित है वैशाख ...


                   सनातन धर्म के विभिन्न ग्रंथो एवं ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार वैदिक पंचांग में वर्ष का  द्वितीय माह वैशाख को विशाखा नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा होने के कारण कहा जाता है। है)। भगवान विष्णु को समर्पित और प्रिय माह वैशाख पुण्यकारी,  है | वैशाख को माधव मास  के देवता “मधुसूदन" हैं |भगवान विष्णु द्वारा दैत्यराज  मधु  का वध होने के कारण  मधुसूदन कहते हैं। विष्णुसहस्त्रनाम के अनुसार  “दुःस्वप्ने स्मर गोविन्दं संकटे मधुसूदनम्” किसी भी प्रकार के संकट में श्रीविष्णु के नाम मधुसूदन का स्मरण करना चाहिए । स्कन्दपुराणम्, वैष्णवखण्ड के अनुसार न माधवसमो मासो न कृतेन युगं समम्। न च वेदसमं शास्त्रं न तीर्थं गंगया समम्।। अर्थात वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं है, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।* पद्मपुराण, पातालखण्ड के अनुसार यथोमा सर्वनारीणां तपतां भास्करो यथा ।आरोग्यलाभो लाभानां द्विपदां ब्राह्मणो यथा।। परोपकारः पुण्यानां विद्यानां निगमो यथा।मंत्राणां प्रणवो यद्वद्ध्यानानामात्मचिंतनम् ।।सत्यं स्वधर्मवर्तित्वं तपसां च यथा वरम्।शौचानामर्थशौचं च दानानामभयं यथा ।।गुणानां च यथा लोभक्षयो मुख्यो गुणः स्मृतः।मासानां प्रवरो मासस्तथासौ माधवो मतः ।। अतएव जैसे सम्पूर्ण स्त्रियों में पार्वती, तपने वालों में सूर्य, लाभों में आरोग्यलाभ, मनुष्यों में ब्राह्मण, पुण्यों में परोपकार, विद्याओं में वेद, मन्त्रों में प्रणव, ध्यानों में आत्मचिंतन, तपस्याओं में सत्य और स्वधर्म-पालन, शुद्धियों में आत्मशुद्धि, दानों में अभयदान तथा गुणों में लोभ का त्याग ही सबसे प्रधान माना गया है, उसी प्रकार सब मासों में वैशाख मास अत्यंत श्रेष्ठ है | महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार निस्तरेदेकभक्तेन वैशाखं यो जितेन्द्रियः। नरो वा यदि वा नरी ज्ञातीनां श्रेष्ठतां व्रजेत्।।” जो स्त्री अथवा पुरूष इन्द्रिय संयम पूर्वक एक समय भोजन करके वैशाख मास को पार करता है, वह सहजातीय बन्धु-बान्धवों में श्रेष्ठता को प्राप्त होता है।। पद्मपुराण, पातालखण्ड के अनुसार दत्तं जप्तं हुतं स्नातं यद्भक्त्या मासि माधवे।तदक्षयं भवेद्भूप पुण्यं कोटिशताधिकम् ।। माधवमास में जो भक्तिपूर्वक  दान,जप, हवन और स्नान आदि शुभकर्म किये जाते हैं, उनका पुण्य अक्षय तथा सौ करोड़ गुना अधिक होता है । प्रातःस्नानं च वैशाखे यज्ञदानमुपोषणम्।हविष्यं ब्रह्मचर्यं च महापातकनाशनम् ।। वैशाख मास में सवेरे का स्नान, यज्ञ, दान, उपवास, हविष्य-भक्षण तथा ब्रह्मचर्य का पालन - ये महान पातकों का नाश करने वाले हैं । स्कन्दपुराण के अनुसार तैलाभ्यङ्गं दिवास्वापं तथा वै कांस्य भोजनम् ।। खट्वा निद्रां गृहे स्नानं निषिद्धस्य च भक्षणम् ।। वैशाख में तेल लगाना, दिन में सोना, कांस्यपात्र में भोजन करना, खाट पर सोना, घर में नहाना, निषिद्ध पदार्थ खाना दोबारा भोजन करना तथा रात में खाना - इन आठ बातों का त्याग करना चाहिए। शिवपुराण के अनुसार वैशाख में भूमि का दान करना चाहिए | ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार वैशाख मास में ब्राह्मण को सत्तू दान करने वाला पुरुष सत्तू कण के बराबर वर्षों तक विष्णु मन्दिर में प्रतिष्ठित होता है। वैशाख मास में गृह प्रवेश करने से धन, वैभव, संतान एवं आरोग्य की प्राप्ति होती हैं । देव प्रतिष्ठा के लिये वैशाख मास शुभ है। वृक्षारोपण के लिए वैशाख मास विशेष शुभ है । स्कन्द पुराण में  वैशाख मास के  भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय और  माता की भाँति सब जीवों को सदा अभीष्ट वस्तु प्रदान करने वाला है ।  वैशाख मास में सूर्योदय से पूर्व स्नान करने एवं  भगवान विष्णु निरन्तर प्रीति करने पर सभी दानों से जो पुण्य होता है और सब तीर्थों में  फल मिलते हैं। वैशाख मास में  जलदान करके प्राप्त कर लेता है। वैशाख मास में सड़क पर यात्रियों के लिए प्याऊ लगाने पर  विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है। जल दान व प्याऊ देवताओं, पितरों तथा ऋषियों को अत्यन्त प्रीति देने वाला है।  वैशाख मास में प्याऊ लगाकर थके-मांदे मनुष्यों को संतुष्ट करने से  ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि देवताओं को संतुष्ट कर लिया। जल की इच्छा रखने वाले को जल, छाया चाहने वाले को छाता और पंखे की इच्छा रखने वाले को पंखा देना , विष्णुप्रिय वैशाख में जो पादुका दान करता है, वह यमदूतों का तिरस्कार करके विष्णुलोक को प्राप्त कर लेता है । मार्ग में अनाथों के ठहरने के लिए विश्रामशाला बनवाता से पुण्य फल , अन्नदान मनुष्यों को तत्काल तृप्त करने वाला है। स्कन्दपुराण में कहा गया है “योऽर्चयेत्तुलसीपत्रैर्वैशाखे मधुसूदनम् ।। नृपो भूत्वा सार्वभौमः कोटिजन्मसु भोगवान् ।। पश्चात्कोटिकुलैर्युक्तो विष्णोः सायुज्यमाप्नुयात्” जो वैशाख मास में तुलसीदल से भगवान विष्णु की पूजा करने से भगवान  विष्णु की सामुज्य मुक्ति पाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण ब्रह्मखण्ड के अनुसार प्रतिपदा में कुष्मांड , कोहड़ा , भातुआ , पेठा कहना नही चाहिए ।
 विक्रम संवत कैलेंडर, ओडिया कैलेंडर , मैथिली कैलेंडर , पंजाबी कैलेंडर , बोहाग व असमिया कैलेंडर  और बंगाली व बोइशग कैलेंडर एवं शक पंचांग , ग्रेगोरियन कैलेंडर , चंद्र और सौर पंचांग  के अनुसार  सौर मास वैशाख संक्रांति से प्रारम्भ हैं । महाराष्ट्र में चंद्र वर्ष की प्रारंभ एवं वैशाख संक्रांति मनाकर सौर वर्ष को चिह्नित किया  है । वैदिक कैलेंडर में वैशाख को माधव और वैष्णव कैलेंडर में मधुसूदन मास  है । सौर कैलेंडर में वैशाख अप्रैल के मध्य में बंगाल , मिथिला , नेपाल और पंजाब में शुरू होता है । तमिलनाडु में  वैकाक और तमिल सौर कैलेंडर के अनुसार वैशाख को तमिल महीना चिथिरई , चंद्र कैलेंडर में, वैशाख को विशाखा नक्षत्र के पास चंद्रमा की स्थिति से  और  वैष्णव कैलेंडर में , मधुसूदन स्वामी  हैं। बैशाख के प्रतिपदा को पोहेला बोइशक या बंगला नववर्ष दिवस ,  मिथिला क्षेत्र में  जूर शीतल या मिथिला नववर्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में  व्यापारियों ने हलखाता नामक नई वित्तीय कार्य , ,  ग्राहकों के साथ मिठाइयां और उपहार  , वैसाखी का फसल उत्सव पंजाबी कैलेंडर के अनुसार पंजाबी नव वर्ष का प्रतीक है । जलियांवाला बाग हत्याकांड पंजाबी नव वर्ष के दिन हुआ था। वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या गौतम बुद्ध के जन्मदिन के रूप में दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया, तिब्बत और मंगोलिया के बौद्धों के बीच मनाया जाता है। पूर्णिमा पूर्णिमा को संदर्भित करता है। सिंहल में वेसाक के रूप , वैशाख शुक्ल पंचमी को महान दार्शनिक और धर्मशास्त्री आदि शंकराचार्य के जन्मदिन के रूप में , वैशाख पूर्णिमा को तमिलनाडु में "वैकासी विषकम" व मुरुगन जन्मोत्सव , वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को सिंहचलम में श्री वराह लक्ष्मी नरसिम्हा स्वामीवरी मंदिर में नरसिंह जयंती , मेष संक्रांति , विसुआ   मनाया जाता है । बंगाली कैलेंडर में पहला महीना बोइशाख , डोगराओं के लिए धार्मिक, फसल और पारंपरिक नए साल का त्योहार वैशाखी ,  बुद्ध के जन्म, ज्ञान और मृत्यु का प्रतीक बौद्ध त्योहार , इंडोनेशिया के बाली में प्रमुख हिंदू मंदिर बेसाकीह , नरसिंह जयंती   मनाया जाता है ।
 वैशाख माह का अक्षय तृतीया को भगवान विष्णु ने परशुराम जयंती , मोहनी एकादशी , एवं मेले परशुराम जयन्ती, नृसिंह जयंती और  'राधा माधव मंदिर' परिसर में प्रतिवर्ष 'बैशाख पूर्णिमा महोत्सव' का आयोजन किया गया है। वैशाखी पूर्णिमा को ब्रह्मा जी ने श्वेत तथा कृष्ण तिलों का निर्माण करने के कारण  तिलों से युक्त जल से व्रती स्नान , अग्नि में तिलों की आहुति , , तिल, मधु तथा तिलों से भरा हुआ पात्र दान करने का उल्लेख  विष्णुधर्म में  है। वैशाख मास में नर्मदा नदी  में  स्नान का महत्व है । मास में प्रात: स्नान  और  पवित्र सरिताओं में स्नान करने का महत्व  है।पद्म पुराण के के अनुसार  वैशाख मास में प्रात: स्नान का महत्त्व अश्वमेध यज्ञ के समान ,  शुक्ल पक्ष की सप्तमी को गंगाजी का पूजन करना चाहिए । महर्षि जह्नु ने अपने दक्षिण कर्ण से गंगा जी को बाहर गंगा जी प्रवाहित हुई थी ।वैशाख शुक्ल सप्तमी को भगवान बुद्ध का जन्म , ज्ञान और निर्वाण  हुआ था। पुष्य नक्षत्र सप्तमी से तीन दिन तक उनकी प्रतिमा का पूजन किया जाना चाहिए।वैशाख शुक्ल अष्टमी को दुर्गा जी, अपराजिता की प्रतिमा को कपूर तथा जटामासी से सुवासित जल से स्नान कराना व  आम के रस से स्नान करना चाहिए ।, मधु तथा तिलों से भरा हुआ पात्र दान में दे।भगवान बुद्ध की वैशाख पूजा 'दत्थ गामणी' (लगभग 100-77 ई. पू.) ने लंका में प्रारम्भ करायी थी।बैशाख माह के शुक्ल पक्ष की मोहिनी एकादशी व्रत रखने निंदित कार्यो से छुट्कारा मिल जाता है|  जग्दीश्वर भगवान राम और उनकी योगमाया को समर्पित है। आखातीज के मुहूर्त में महत्त्व का कारण उसका सूर्य मेष राशि में स्थित होना है। इसके साथ चंद्रमा वृषभ राशि में संचरण करते हैं। सूर्य मेष राशि में उच्च के रहने एवं चंद्रमा वृषभ राशि में उच्च के रहने से यह श्रेष्ठ समय माना जाता  है। चंद्रमा व सूर्य प्रधान ग्रह हैं, जिनकी उच्च स्थिति होने से सभी स्थितियां अनुकूल हो जाती हैं। इससे विवाहादि आदि मांगलिक कार्यों व देव प्रतिष्ठा में सूर्य-चंद्रमा का बलवान होना आवश्यक होता है। इसके कारण वार, नक्षत्र, योग, करण आदि का दोष नहीं लगता।बैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को बरुथिनी एकादशी कहते हैवैशाख मास में अवंतिका वास का विशेष पुण्य कहा गया है। चैत्र पूर्णिमा से वैशाखी पूर्णिमा पर्यन्त कल्पवास,नित्य क्षिप्रा स्नान-दान, तीर्थ के प्रधान देवताओं के दर्शन, स्वाध्याय, मनन-चिंतन,सत्संग, धर्म ग्रंथों का पाठन-श्रवण,संत-तपस्वी, विद्वान और विप्रो की सेवा, संयम,नियम, उपवास आदि के संकल्प के साथ तीर्थवास का महत्त्व है। जो आस्थावान व्यक्ति बैशाख मास में यहाँ वास करता है, वह स्वत: शिवरूप हो जाता है।बैशाख मास की संक्रांति पर स्नान का विशेष महत्त्व होता है और हर वर्ष इस पर्व में हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु महादेव का आशीर्वाद प्राप्त कर पुण्य कमाते हैं। 'निर्णय सिन्धु' में वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया में गंगा स्नान का उल्लेख मिलता है । बैशाखे शुक्लपक्षे तु तृतीयायां तथैव च । गंगातोये नर: स्नात्वा मुच्यते सर्वकिल्विषै: ।। विष्णुधर्म., 90.10 , पद्म पुराण 4.85.41-70 , विष्णुधर्म., 90.10 ,  वालपोल राहुल (कोलम्बो, 1956) द्वारा रचित 'बुद्धिज्म इन सीलोन' , पृ. 80 के अनुसार वैशाख महीने का अक्षय तृतीया · नृसिंह चतुर्दशी · मोहिनी एकादशी · वन विहार · वरूथिनी एकादशी · वैशाखी · अक्षयफलावाप्ति · अलवण तृतीया · मधुसूदन पूजा · अनन्त तृतीया · देवयात्रोत्सव · ध्वज व्रत · नरसिंह चतुर्थी · रुद्रलक्षवर्ति व्रत · बिल्वलक्ष व्रत · रुद्रलक्षवर्ति व्रत · लक्षवर्ति व्रत · निम्ब सप्तमी · पंच लांगन व्रत · पिपीतक द्वादशी · विभूति द्वादशी · पुत्रप्राप्ति व्रत · वैशाख कृत्य · विष्णुलक्षवर्ति व्रत · हरि क्रीडा शयन · श्रीप्राप्ति व्रत उत्सव वैशाखी है । वैशाख में भगवान विष्णु , सूर्य , शिव , ब्रह्मा की उपासना एवं नर्मदा नदी, ब्रह्ममुहूर्त में स्नान करने से सर्वांगीण विकास होते है । 




है ।

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