गुरुवार, अप्रैल 13, 2023

ज्ञान , सम्पति और यज्ञ के देव है वृहस्पति ....


 सनातन धर्म ग्रंथों में देवगुरु बृहस्पति का  उल्लेख  है। देवगुरु वृहस्पति को  धनुष बाण और सोने का परशु अस्त्र  और ताम्र रंग के घोड़े इनके रथ में सवार होने के कारण तिक्षणश्रृंग कहे जाते थे। देवराज इन्द्र को पराजित कर वृहस्पति  ने इंद्र से गायों को छुड़ाया था। युद्ध में अजय होने के कारण योद्धा  प्रार्थना करते थे। अत्यंत परोपकारी ,  शुद्धाचारणवाले व्यक्ति को संकटों से छुड़ाते , यज्ञ करने में वृहस्पति को गृहपुरोहित कहा गया है । ब्रह्मा जी का पौत्र एवं ऋषि अंगिरा की भार्या सुरुपा के पुत्र बृहस्पति ग्रह  एवं शिक्षा के स्वामी और देवताओं के गुरु तथा ब्रह्मा का अवतार वृहस्पति का जीवन साथी शुभा ,तारा और ममता , सवारी हाथी एवं आठ घोड़े वाला रथ है। बृहस्पति का मंत्र ॐ बृं बृहस्पतये नमः॥ है। वेदोत्तर साहित्य में बृहस्पति को देवताओं का पुरोहित और अंगिरा ऋषि की सुरूपा नाम की पत्नी से पैदा हुए थे। तारा और शुभा  पत्नियाँ थीं। सोम द्वारा तारा को उठा लेने पर  बृहस्पति और सोम में युद्ध ठन गया।  ब्रह्मा जी  के हस्तक्षेप करने पर सोम ने बृहस्पति की पत्नी को लौटाया। तारा ने बुध को जन्म दिया था । महाभारत के अनुसार बृहस्पति के संवर्त और उतथ्य भाई थे। संवर्त के साथ बृहस्पति का हमेशा झगड़ा रहता था। पद्मपुराण के अनुसार देवों और दानवों के युद्ध में देव पराजित होने के बाद  दानव देवों को कष्ट देने लगे थे ।  बृहस्पति ने शुक्राचार्य का रूप धारणकर दानवों का मर्दन किया और नास्तिक मत का प्रचार कर दानवों  धर्मभ्रष्ट किया था । बृहस्पति ने धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और वास्तुशास्त्र पर ग्रंथ , वृहस्पति स्मृति है। बृहस्पति को देवताओं के गुरु वृहस्पति स्वर्ण मुकुट तथा गले में सुंदर माला धारण किये ,  पीले वस्त्र पहने हुए कमल आसन पर आसीन तथा चार हाथों में स्वर्ण निर्मित दण्ड, रुद्राक्ष माला, पात्र और वरदमुद्रा शोभा पाती है।  ऋग्वेद में उल्लेखनीय  है कि बृहस्पति  सुंदर और सोने से बने महल में निवास करते है। इनका वाहन स्वर्ण निर्मित रथ सूर्य के समान दीप्तिमान  एवं जिसमें सभी सुख सुविधाएं संपन्न हैं। उस रथ में वायु वेग वाले पीतवर्णी आठ घोड़े तत्पर रहते हैं । देवगुरु बृहस्पति की  पत्नियाँ में से ज्येष्ठ पत्नी शुभा और कनिष्ठ का तारा या तारका तथा तीसरी ममता है। शुभा से कन्याएं में  भानुमती, राका, अर्चिष्मती, महामती, महिष्मती, सिनीवाली और हविष्मती एवं तारा से सात पुत्र और एक कन्या उत्पन्न हुईं तथा  तीसरी पत्नी से भारद्वाज और कच पुत्र उत्पन्न हुए थे । बृहस्पति के अधिदेवता इंद्र और प्रत्यधि देवता ब्रह्मा हैं। महाभारत के आदिपर्व में उल्लेख के अनुसार, बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र तथा देवताओं के पुरोहित हैं। ये अपने प्रकृष्ट ज्ञान से देवताओं को उनका यज्ञ भाग या हवि प्राप्त करा देते हैं। असुर एवं दैत्य यज्ञ में विघ्न डालकर देवताओं को क्षीण कर हराने का प्रयास करते रहते हैं।  देवगुरु बृहस्पति रक्षोघ्र मंत्रों का प्रयोग कर देवताओं का पोषण एवं रक्षण करने में करते तथा दैत्यों से देवताओं की रक्षा करते हैं। संपत्ति और बुद्धि के देवता हैं देवगुरु बृहस्पति द्वारा बार्हस्पत्य सूत्र के रचयिता है । वृहस्पति उत्तर दिशा, दीर्घ चतुरस्र ,अंगुल  06 , सिन्धुदेश ,अत्रिगोत्र , पीत वर्ण , धनु और मीन राशि  का स्वामी , वाहन हाथी और पीपल वृक्ष , पिला वस्त्र , पिला झंडा , पीला फल , हल्दी , फूल ,घोड़ा , चने की दाल प्रिय है । पुखराज , सोना कासा रत्न , वृहस्पति दिन प्रिय है । व्यापारियों , वकालत , व्याज का रकम , विद्यार्थियों का अध्ययन , शादी विवाह में सफलता केलिए देवगुरु  वृहस्पति है। वृहस्पति को गुरुदेव , वृहस्पति , वीरवार , गुरुवार , देव गुरु , तिक्षणश्रृंग कहा जाता है । वृहस्पति मंदिरों में राजस्थान का जयपुर , उत्तरप्रदेश के वाराणसी के काशी उत्तराखंड का विकास खंड के ओखलकांडा  , महाराष्ट्र का नागपुर जिले के ढींगना , नैनीताल के मांडा  और तमिलनाडु के अलंगुड़ी प्रसिद्ध है ।रोमन गणराज्य के रोम कैपिटोलियन हिल की श्रंखला पर जुपिटर ऑप्टिमस मैक्सिमस मंदिर ,टॉर्किवनियस प्रिस्क्स द्वारा 616 से 578 ई. पू. निर्मित जूनो और मिनर्वा टेम्पल ,लेबनान के बलबेक परिसर में जुपिटर मंदिर अर्थात वृहस्पति मंदिर है ।

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