बुधवार, अप्रैल 19, 2023

अदृश्य शक्ति का द्योतक राहू ....


सनातन धर्म ग्रंथो एवं ज्योतिष के अनुसार दानव राज  स्वरभानु ( राहु ) का कटा हुआ सिर ग्रहण के समय सूर्य और चंद्रमा का ग्रहण करता है। स्वरभानु का बिना धड़ वाले नाग के रूप में रथ पर आरूढ़  और रथ आठ श्याम वर्णी कुत्तों द्वारा खींचा जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु को नवग्रह में स्थान दिया गया है। दानव राज वप्राचिति की पत्नी होलिका का पुत्र दानवराज स्वरभानु ( राहु ) की  पत्नी कराली के साथ राहु लोक, नक्षत्र लोक में भाला ,ढाल ,धनुष ,तीर ,और वर मुद्रा में शेर और कुत्ता पर सवार रहते हैं। राहु का मंत्र - ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः॥ है।  समुद्र मंथन के समय दानवराज स्वरभानु ने धोखे से दिव्य अमृत की  बूंदें पीने के बाद   सूर्य और चंद्र ने स्वरभानु को  पहचान करने के बाद भगवान विष्णु अवतार  मोहिनी स्थिति से अवगत कराएं थे ।  अमृत स्वरभानु के गले से नीचे उतरता भगवान , विष्णु  ने स्वरभानु का गला सुदर्शन चक्र से काट कर अलग कर दिया। दानवराज स्वरभानु का सिर अमर हो चुका था। स्वरभानु सिर राहु और धड़ केतु बनने के बाद सूर्य- चंद्रमा से  द्वेष रखने लगा है ।  द्वेष के चलते राहु  सूर्य और चंद्र को ग्रहण करने का प्रयास करता है। ग्रहण करने के पश्चात सूर्य राहु से और चंद्र केतु से,उसके कटे गले से निकल आने पर   मुक्त होते हैं। भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक होने से  पृथ्वी के सापेक्ष एक दुसरे के उल्टी दिशा में (१८० डिग्री पर) स्थित रहते हैं।  सूर्य और चंद्र के ब्रह्मांड में अपने-अपने पथ पर चलने के अनुसार राहु और केतु की स्थिति भी बदलती रहती है। , पूर्णिमा के समय यदि चाँद  केतु बिंदु पर रहने के कारण  पृथ्वी की छाया पड़ने से चंद्र ग्रहण लगता है ।  पूर्णिमा के समय चंद्रमा और सूर्य एक दुसरे के उलटी दिशा में होते हैं।  यूरोपीय विज्ञान में राहू को उत्तरी  एवं केतु को दक्षिणी लूनर नोड कहा गया  हैं। पौराणिक संदर्भों से राहु को धोखेबाजों, सुखार्थियों, विदेशी भूमि में संपदा विक्रेताओं, ड्रग विक्रेताओं, विष व्यापारियों, निष्ठाहीन और अनैतिक कृत्यों, आदि का प्रतीक रहा है। अधार्मिक व्यक्ति, निर्वासित, कठोर भाषणकर्त्ताओं, झूठी बातें करने वाले, मलिन लोगों का द्योतक राहु है। राहु के द्वारा पेट में अल्सर, हड्डियों और स्थानांतरगमन की समस्याएं आती हैं। राहु व्यक्ति के शक्तिवर्धन, शत्रुओं को मित्र बनाने में महत्वपूर्ण रूप से सहायक रहता है। बौद्ध धर्म के अनुसार  क्रोध देवताएं  राहु है। थाईलैंड में राहु मंदिर है। दैत्यराज विप्रचित्ति की पत्नी व दैत्यराज हिरण्यकश्यप की पुत्री सिंहिका के100  पुत्रों में जेष्ठ पुत्र सैहिकेय   का रंग-रूप काला रंग व भयंकर मुख , सिर पर मुकुट, गले में माला तथा शरीर पर काले रंग का वस्त्र धारण और हाथों में तलवार ,ढाल ,त्रिशूल ,और वरमुद्रा में सिंह पर सवार आसीन है। सैहिकेय राहु ने चुपके से देवताओं की पंकि में बैठकर अमृत पी लिया था। इस कृत्य की जानकारी सूर्य व चन्द्रमा ने विष्णु को दे दी और विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काट दिया। था ।समुद्र मंथन के बाद भगवान विष्णु मोहिनी रूप में देवताओं को अमृत पिलाने के समय सैहिकेय राहु देवताओं का वेष बनाकर उनके बीच में आ बैठा और देवताओं के साथ उसने भी अमृत पी लिया। परन्तु तत्क्षण चन्द्रमा और सूर्य ने उसे पहचान लिया और उसकी पोल खोल दी। अमृत पिलाते-पिलाते ही भगवान विष्णु ने अपने तीखी धार वाले सुदर्शन चक्र से उसका सिर काट डाला। किंतु अमृत का संसर्ग होने से राहु अमर हो गया और ब्रह्मा ने उसे ग्रह बना दिया। महाभारत, भीष्मपर्व के अनुसार राहु ग्रह मण्डलाकार होता है। ग्रहों के साथ राहु ब्रह्मा की सभा में बैठता है। मत्स्यपुराण के अनुसार पृथ्वी की छाया मण्डलाकार होती है। राहु इसी छाया का भ्रमण करता है। यह छाया का अधिष्ठात देवता है। ऋग्वेद के अनुसार 'असूया' (सिंहिका) पुत्र राहु जब सूर्य और चन्द्रमा को तम से आच्छन्न कर लेता है, तब इतना अधेरा छा जाता है कि लोग अपने स्थान को नहीं पहचान पाते। ग्रह बनने के बाद भी राहु बैर-भाव से पूर्णिमा को चन्द्रमा और अमावस्या को सूर्य पर आक्रमण करता है। इसे ग्रहण या 'राहु पराग' कहते हैं। मत्स्य पुराण के अनुसार राहु का रथ अन्धकार रूप है। इसे कवच आदि से सजाये हुए काले रंग के आठ घोड़े खींचते हैं। राहु के अधिदेवता काल तथा प्रत्यधि देवता सूर्य हैं। नवग्रह मण्डल में इसका प्रतीक पायव्य कोण में काला ध्वज है।
राहु की महादशा 18 वर्ष की होती है। अपवाद स्परूप कुछ परिस्थितियों को छोड़कर यह क्लेशकारी  सिद्ध होता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यदि कुण्डली में राहु की स्थिति प्रतिकूल या अशुभ होने से अनेक प्रकार की शारीरिक व्याधियाँ उत्पन्न करता है। कार्य सिद्धि में बाधा उत्पन्न करने वाला तथा दुर्घटनाओं   है। राहु के शरीर का भाग सिर और ठोड़ी ,  रंग काला , नक्षत्र आद्रा , प्रकृति चालबाज ,मक्कार ,नीच ,जालिम , गुण में डर ,शत्रुता ,सोचने की ताकत ,शक्ति में कल्पना शक्ति का स्वामी ,पुरभ्यास ,अदृश्य देखने की शक्ति  ,  पोशाक में पतलून ,पैजामा , , पशु हाथी ,काँटेदार जंगली चूहा ,वृक्ष में नारियल ,कुश ,और घास , वस्तु नीलम ,सिक्का ,गोमेद ,मित्र बुध , शनि और केतु एवं शत्रु सूर्य , चंद्र , मंगल तथा समभाव वृहस्पति , देवता सरस्वती ,  गुरु शुक्राचार्य  है । राहु की शान्ति के लिये मृत्युंजय, जप तथा फिरोजा धारण करना श्रेयस्कर है। राहु का प्रिय  अभ्रक, लोहा, तिल, नील वस्त्र, ताम्रपात्र, सप्तधान्य, उड़द, गोमेद, तेल, कम्बल, घोड़ा तथा खड्ग है ।राहु का वैदिक मन्त्र-'ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठया वृता॥' पौराणिक मन्त्र- 'अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्। सिंहिकागर्भसम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥',बीज मन्त्र- 'ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:' तथा सामान्य मन्त्र- 'ॐ रां राहवे नम:' है। इसमें से किसी एक का निश्चित संख्या में नित्य जप करना चाहिये। जप का समय रात्रि तथा कुल संख्या 18000 है। मत्स्यपुराण 1.9; 249.14 से अंत तक; अध्याय 250, 251; वायुपुराण 23.90; 52.37; 92.9; विष्णुपुराण 1.90.80.111, श्रीमद्भागवत 6।6।36 , श्रीमद्भागवत 8।9।26 , महाभारत भीष्मपर्व (12।40 , मत्स्यपुराण 28।61 और  ऋग्वेद 5।40।5 में राहु का उल्लेख है । 



राहु का जन्म शिप्रा नदी के तट पर स्थित राहु का क्षेत्र नैऋत्य कोण ,सूर्पाकार मंडल ,12 अंगुल , राठीनापुर मलय देश , पैठिनस गोत्र , कृष्ण  वर्ण , कन्या राशि का स्वामी वहां व्याघ्र एवं दूर्वा समिधा है । राहु का प्रिय द्रव्य गोमेद ,सोना ,रत्न ,सीस ,टिल सरसो का तेल ,सप्तधान्य , उरद ,कंबल ,नीला वस्त्र , तलवार ,घोड़ा ,सुप कला फूल , लोहा , , तेल ,अलसी , चना ,हड्डी प्रिय है । काला वस्त्र , झंडा प्रिय है ।राहु का मंदिर उत्तराखंड में स्थित है।

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