शनिवार, अप्रैल 22, 2023

भौतिकीकरण का द्योतक केतु ...


 ज्योतिष में लूनर नोड अर्थात दानवराज स्वरभानु के सिर का धड़ अलग होने के कारण स्वरभानु का धड़ को केतु  कहा गया है। स्वरभानु का सिर समुद्र मन्थन के समय भगवान विष्णु का अवतार  ने काट दिया था। केतु  छाया ग्रह है। मानव जीवन एवं पूरी सृष्टि पर अत्यधिक प्रभाव एवं मनुष्यों के लिये ये ग्रह ख्याति पाने का अत्यंत सहायक केतु  रहता है। केतु को सिर पर कोई रत्न या तारा रहस्यमयी प्रकाश  होता है। छाया के देवता; दिग्पाल केतु हाथों में अस्त्र शस्त्र लिए केतु का जीवन साथी चित्रलेखा के साथ मूसल धारण कर  का निवास केतुलोक  नक्षत्र लोक में निवास करते हैं। केतु का सवारी गिद्ध है । भारतीय ज्योतिष के अनुसार राहु और केतु, सूर्य एवं चंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिन्दुओं के द्योतक  पृथ्वी के सापेक्ष एक दुसरे के उलटी दिशा में 180  डिग्री पर)स्थित  हैं। सूर्य और चंद्र के ब्रह्मांड में अपने-अपने पथ पर चलने के कारण  राहु और केतु की स्थिति भी साथ-साथ बदलती रहती है। , पूर्णिमा के समय यदि चाँद केतु बिंदु पर रहने से  पृथ्वी की छाया परने से चंद्र ग्रहण लगता है । क्योंकि पूर्णिमा के समय चंद्रमा और सूर्य एक दुसरे के उलटी दिशा में होते हैं। यूरोपीय विज्ञान में केतु को क्रमशः उत्तरी एवं दक्षिणी लूनर नोड कहते हैं। ज्योतिष में केतु अच्छी व बुरी आध्यात्मिकता एवं पराप्राकृतिक प्रभावों का कार्मिक संग्रह का द्योतक है । भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार से संबंधित केतु  है। केतु भावना भौतिकीकरण के शोधन के आध्यात्मिक प्रक्रिया का प्रतीक और हानिकर और लाभदायक है ।केतु  ग्रह तर्क, बुद्धि, ज्ञान, वैराग्य, कल्पना, अंतर्दृष्टि, मर्मज्ञता, विक्षोभ और अन्य मानसिक गुणों का कारक है।  केतु भक्त के परिवार को समृद्धि दिलाता है ।, सर्पदंश और  रोगों के प्रभाव से हुए विष के प्रभाव से मुक्ति दिलाता है। केतु भक्तों   को अच्छा स्वास्थ्य, धन-संपदा व पशु-संपदा दिलाता है। मनुष्य के शरीर में केतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। ज्योतिष गणनाओं के लिए केतु को कुछ ज्योतिषी तटस्थ अथवा नपुंसक ग्रह मानते हैं जबकि कुछ अन्य इसे नर ग्रह मानते हैं।अश्विनी, मघा एवं मूल नक्षत्र का स्वामी केतु है। केतु की पत्नी सिंहिका और विप्रचित्ति में से एक के एक सौ पुत्रों में राहू ज्येष्ठतम है ।लग्न के प्रथम भाव में अर्थात लग्न में केतु हो तो जातक चंचल, भीरू, दुराचारी होता है। इसके साथ ही यदि वृश्चिक राशि में हो तो सुखकारक, धनी एवं परिश्रमी , द्वितीय भाव में हो तो जातक राजभीरू एवं विरोधी , तृतीय भाव में केतु होने पर  जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी , चतुर्थ भाव में हो तो जातक चंचल, वाचाल, निरुत्साह , पंचम भाव में हो तो वह कुबुद्धि एवं वात रोगी , षष्टम भाव में हो तो जातक वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी , सप्तम भाव में हो तो जातक मंदमति, शत्रुसे डरने वाला एवं सुखहीन , अष्टम भाव में दुर्बुद्धि, तेजहीन, स्त्रीद्वेषी एवं चालाक , नवम भाव में  सुखभिलाषी, अपयशी , दशम भाव में पितृद्वेषी, भाग्यहीन होता है।एकादश भाव में केतु हर प्रकार का लाभदायक , जातक भाग्यवान, विद्वान, उत्तम गुणों वाला, तेजस्वी किन्तु उदर रोग से पीड़‍ित , द्वादश भाव में केतु हो तो जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की स्वभाव होता है।  वायव्य कोण , ध्वजाकार मंडल एवं 6 अंगुल में अन्तर्वेदी ( कुश )  देश का शासक जैमिनी गोत्र , धूम्र वर्ण एवं मीन राशि का स्वामी केतु है ।  केतु का वाहन कबूतर , वृक्ष शमी ,  पौधा दूर्वा , द्रव्य लहसुनिया , सोना , लोहा , लाजवर्त , असगंध वृक्ष तील ,सप्तधान्य ,कला वस्त्र , पताका , नारियल , बकरा ,कंबल धूमिल व काला  फूल  प्रिय है । व्यवसायिक में अभ्रक ,चावल , फ़िल्म और राजनीति सहायक केतु है । केतु का प्रिय देवता गणपति जी है । ओम ऐं ह्रीं केतवे नमः ।। केतु का मंत्र है ।



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