विश्व संस्कृति में विभिन्न धर्मो में माह का महत्व दिया गया है । भारतीय संस्कृति में विभिन्न मौसम, नक्षत्रों, ऋतुओं, माह तथा दिनों का अलग अलग महत्व है। वर्षा ऋतु का श्रावण मास श्रावण नक्षत्र सोमवार दिन भगवान् शिव को समर्पित है। सावन मास सतोगुण और एकाग्रता के लिए है। प्रकृति और पुरुष का समन्वय और जीव जंतुओं और इंसानों की सात्विक विचारों का दर्पण है। जल संरक्षण और संवर्धन के लिए महत्वपूर्ण है। सावन मास में भगवान् शिव की आराधना, नाग पंचमी पूजन, महिलाओं, युवतियों का झूला झूलने का प्रचलन, मयूर का नृत्य, विहार, कजरी विभिन्न क्षेत्रों में मनाने के लिए इंसान प्रफुल्लित रहते है।ऋग्वेद में रुद्र, अथर्ववेद में भव, शर्व , पशुपति,, भूपति, मत्स्य पुराण में लिंग पूजा, वामन पुराण, शिव पुराण, लिंगपुरण में शैव धर्म में शिव लिंग पूजा का महत्व बतलाया गया है। शेव धर्म में ऋषि लवकुलिश द्वारा पशुपत संप्रदाय की स्थापना कर भगवान् शिव की 18 अवतारों का रूप दिया है। पाशुपत संप्रदाय के अनुयाई को पंचार्थिक कहा गया है। पशुपत संप्रदाय ने नेपाल के काठमांडू में पशुपति नाथ में चतुर्मुखी शिवलिंग और मध्यप्रदेश का मदसौर में आठ मुखी शिवलिंग पशुपति नाथ मंदिर में स्थापित कर शिव उपासना का केंद्र बनाया है। यह 10 वीं शताब्दी ई. पू. की बताई गई है। कापालिक संप्रदाय शैल स्थान पर भैरव इष्ट है, काला मुख संप्रदाय, लिंगायत संप्रदाय की स्थापना 12 वीं शताब्दी में बसवण्णा है और इसके प्रवर्तक बल्लभ प्रभु और शिष्य वासव है।10 वीं शताब्दी में मत्स्येंद्र नाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना की तथा गोरखनाथ द्वारा नाथ संप्रदाय का विकास किया गया है। इनके अनुयाई नाथ, अघोरी, अवधूत, बाबा, औघड़, योगी, सिद्ध है।3500 से 2300 ई. पू. सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान कालीबंगा एवं अन्य स्थानों से प्राप्त शिव लिंग की पूजा करने का प्रमाण है।2 री शताब्दी पूर्व आंध्र प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में शिवलिंग पर प्रतिंमा मिला है। विश्व में प्राकृतिक शिवलिंग में हिमालय के अमरनाथ, कदबुल का तीन फीट ऊंचाई युक्त स्फटिक शिव लिंग, अरुणाचल प्रदेश का सिद्धेश्वर नाथ शिवलिंग प्राकृतिक है वहीं दस्सरम के एरावतेश्चर मंदिर में 10 वीं शताब्दी ई.पू. लिंगोद्भव शिवलिंग है। बिहार के जहानाबाद जिले के जहानाबाद ठाकुरवाड़ी में पंचलिंगी शिवलिंग, भेलावार में एकमुखी शिवलिंग, अरवल जिले के तेरा में सहस्त्रलिंगी शिव लिंग, रामपुर चाय में पञ्चलिंगी शिव लिंग है। श्रावण प्रकृति और पुरुष का समन्वय रूप है।2020 का पवित्र सावन का प्रथम सोमवार ब्रह्माण्ड द्वितीय सोमवार को जल, तृतीय सोमवार को पावक (हवा) , चौथी सोमवार को आकाश ( गगन) तथा पांचवीं सोमवार को अग्नि को भगवान् शिव पर जल का अभिषेक और विल्व पत्र चढ़ाने से सर्वर्थसिद्धि की प्राप्ति होती है। प्राचीन धर्म ग्रंथों में सावन का प्रथम प्रतिपदा को भगवान् सूर्य मिथुन राशि से कर्क राशि श्रावण नक्षत्र में प्रवेश कर सूर्य दक्षिणायन में आने पर चातुर्मास का ब्रतों का समावेश होता है। चातुर्मास में सावन, भादो, आश्विन और कार्तिक शामिल है। भगवान् शिव स्वयं क्षिती, जल, पावक, गगन और समीर शिवलिंग में समाहित है। सावन माह इंसानों का प्रायश्चित संकल्प, संस्कार, स्वध्याय और सत्संग करने का मार्ग प्रशस्त करता है। इस मास को चंद्रमास, अमांत, पुर्णमात साथ ही उजैन महाकाल का महोत्सव के रूप में उपासक श्रृद्धान्वित होते है। सावन में कजरी और झुलाओं तथा मेंहदी का महत्व महत्व पूर्ण है वहीं जीवजंतुओं और इंसानों का सात्विक है। हरियाली तीज प्रकृति का सौन्दर्य का प्रतीक है।
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