बुधवार, जुलाई 15, 2020

माया संस्कृति का द्योत्तक कोहबर...


        मानवीय माया संस्कृति में कोहबर की प्रधानता रही है।पुरातन काल में वर और वधु का प्रेम एवं सौहार्द का मिलन कोहबर से प्रारंभ होता है।यह कोहबर परंपरा मगध , मिथिला ,अवध ,अंग , कौशल ,करूष साम्राज्य में फैला था।पाषाण युग 30000 वर्ष पूर्व कोहबर संस्कृति प्राचीन शैल चित्र, पहाड़ियों की गुफाओं में चित्र और अन्य प्राचीन संकेतक चित्र संकेतक मिलते है।एकहरिया ,डमकच ,झूमर, फगुआ, विरसरेन ,झिका, फिलसांझा,अधरतिया, डोड, असडी ,झूमती, धुरिया की परंपरा कोहबर की संस्कृति से उत्पन्न हुई है।सोहराई चित्र, अंगुलिचित्र, कोहबर कला, दीवार चित्रित, सोहराई चित्र, रंगोली, अल्पना, ऐपन, रंगाबाली, कोल्लम और माउना का रूप कोहबर है।कोहबर की परंपरा बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान ,नेपाल , ज्वातेमाला, मैक्सिको, होंडुरास, यूकाटन और सैल्वाडोर में विभिन्न नामों से कोहबर संस्कृति प्रचलित है।अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता मैक्सिको में 1500 ई. पू.से प्रारंभ हुई और 900 ई. तक उन्नत थी। माया सभ्यता में गणेश और सूर्य की मूर्ति का चित्र एक कमरे की पूर्वी दीवार पर अंकित कर वर वधु के लिए किया जाता था परंतु 1600 ई. से माया सभ्यता लुप्त हो गयी है।ग्रंथो में प्राचीन पश्चमी गोलार्द्ध को पाताल लोक कहा जाता था।बाद में माया सभ्यता को पश्चमी सभ्यता का रूप हो गया है। भारतीय संस्कृति में कोहबर को कौतुक गृह, कोष्टवर, वरवधू की प्रेम और सौहार्द कक्ष, मिथिला में कन केस्त शैली की परंपरा कही गयी है। त्रेता युग में भगवान राम का विवाह माता सीता के साथ संपन्न होने के पश्चात मिथिला साम्राज्य की राजधानी जनकपुर में महल के पूर्वी कमरे की दीवार पर चित्र कला से सुशोभित कोहबर कमरे में गये थे जहाँ पर मिथिला की नारियां कोहबर गीत प्रस्तुत कर राम और सीता का स्वागत की थी।मगध साम्राज्य के नवादा के महावर पर्वत की गुफा में 5000 वर्ष पूर्व तथा हजारीबाग। जिले के बड़कागांव की पर्वत की गुफा में राजा रानी की प्रथम मिलन कोहबर गुफा में हुई थी।नवादा जिले के कौआकोल प्रखंड के चल्ह्वा पर्वत पर कोहबरवाँ गुफा में भीति चित्र है।यह भिति चित्र कोहबर संस्कृति की पहचान है।प्राचीन काल में यह क्षेत अनार्य राजा  चिल्हर का निवास था और चल्ह्वा वन के नाम से जाना जाता था।मध्य प्रदेश के बुन्देल खंड में कोहबर संस्कृति कायम है।विवाह के रस्म के समय पूरब कमरे की दीवार पर महिलाएं गोबर का लेप ,हल्दी और चावल का लेप और चित्र बना कर नवविवाहिता वर वधु को विवाह रस्म के बाद कोहबर में ले जाया जाता है ।यह कक्ष मगध साम्राज्य की प्राचीन संस्कृति में शादी के अवसर पर घर को लाल, पिले, उजले, काले रंग से चित्रकारी कर मोर, गणेश, सूर्य, वरवधू काचित्रांकन कर सजाते है और वर वधू को कोहबर कक्ष में प्रवेश करा कर कोहबर गीत गा कर स्वागत करती है।बौद्ध ग्रंथ विनय पटिक में 300 ई. पू. में कोहबर संस्कृति की महत्वपूर्ण उल्लेख है।

 


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