रविवार, जुलाई 12, 2020

अमरकंटक , सोन नदी का उद्गम स्थल ...


प्रकृति की संपदा मानवीय मूल्यों की विरासत है । भारतीय सांस्कृतिक में नदियों की प्रमुख स्थान है। नदियों का तट विभिन्न काल में मोक्ष दायक, पुण्यक्षेत्र और जल में स्नान ध्यान करना उत्तम फल की प्राप्ति कराता है। भगवान् शिव ने भू स्थल के विभिन्न क्षेत्रों में देवों और ऋषियों के माध्यम से तिर्थात्व बना कर पुण्य क्षेत्र का निर्माण किया है । प्रायद्वीप भारत की चट्टानों की उत्पति 3600 मिलियन वर्ष पुरानी है । कार्बनी काल 146 मिलियन वर्ष पूर्व ज्वालामुखियों से निकलने वाली पानी के समान तरल लावे के पठार की उत्पति विंध्य तंत्र के 3438 फीट ऊंचीे अमरकंटक पर्वत की  मैकाल पहाड़ी ( रुद्रमेरू ) की श्रृंखला सनमुंडा के 100 फीट ऊंचाई से  सोन नद झरने के रूप में गिरती है । सोन नद को  सोहन , सोन मुंडा, सोन कुंड, सोन नद, शोण और सोनभद्र के नाम से विख्यात है। मध्य प्रदेश का अनूपपुर जिले के अमरकंटक पर्वत के सोन मुंडा श्रृंखला से गिरता सोन नद का मुहाना 25 डिग्री 42 सेंटीग्रेड ईस्ट अक्षांश / 25.70 डिग्री उतर और 84.86 डिग्री इस्ट देशान्तर पर स्थित है तथा 784 किलोमीटर लम्बाई होकर बिहार के पटना जिले के मनेर प्रखंड और दानापुर के मध्य में गंगा में मिलती है। सोन नद अमरकंटक पर्वत से जलप्रपातों के रूप में निकल कर कैमूर पर्वत श्रृंखला से जाकर मिलती है और इसकी धारा उतर पूरब की ओर मोड़ कर नतिलंब घाटी में बहती हुई गढ़वा से सोन नद की चौड़ाई 5 कि.मी. हो जाती है है। बहुल नदी सिद्धांत इयोसीन युग के तहत हिमालय जल अपवाह के गंगा नदी तंत्र के अन्तर्गत सोन नद जल अपवाह का रूप धारण करता है। शिव पुराण  का अध्याय 12 के अनुसार शोण नद की 10 धाराएं है। वह धाराएं देव गुरु वृहस्पति के मकर राशि में आने पर व्यक्ति स्नान ध्यान करता है उसे अत्यंत अभीष्ट फल मिलता है। सोन नद का जल पवित्र और उसके किनारा पर उपासना स्थल है और विनायक पद की प्राप्ति स्थल है। प्राचीन काल में रूद्रमेरू के राजा मैकाल की पुत्री नर्मदा और राज पुत्र शोणभद्र का विवाह में वकावली का फूल लाने में विलम्ब के कारण नहीं हुई ।फलत : नर्मदा और सोनभद्र का विवाह नहीं हो सका था परन्तु नर्मदा और सोनभद्र एक प्रेमी और प्रेमिका के रूप में रहने लगी। विंध्य तंत्र के अमरकंटक से नर्मदा नदी और सोनभद्र नद का प्रवाह हुआ था। यहां सांख्य दर्शन के ज्ञाता कपिल मुनि का आश्रम और कपिलेश्चर शिव लिंग मंदिर तथा कपिलधारा प्रवाहित है । सोन नद का प्रवाह सवर्ण की तरह शीला पर गिरता हुआ प्रवाह है। यह स्थल भगवान् शिव और विष्णु का प्रिय स्थल है । बिहार का रोहतास जिले के डिहरी आँन सोन में सोन नद में 1874 ई. में बांध कर 296 मील लंबी नहर का निर्माण किया गया जिससे रोहतास, , बक्सर ,भोजपुर , अरवल और पटना जिले के क्षेत्र में सिंचाई सुविधा दी गई है।
[: डिस्ट्रिक्ट गजेटियर गया के अनुसार सोन नद भारत का केंद्र मैकाले हिल्स से प्रवाहित होकर 325 मील दूरी तय कर गंगा में मिलता है । यह नद मगध और भोजपुर की संस्कृति को विभक्त करता है । सोन नद का जल 2300 वर्ग मील को  सिंचित करता है साथ ही बाढ़ की विभिसका लता है। सोन नद को मेगास्थनीज ने भारत की तीसरी नदी और संस्कृत साहित्य में हिरान्याबाहू और गोल्डेन आर्म्ड कहा है। सोन रीवर ऑफ गोल्ड से विदेशी विद्वानों द्वारा कहा गया है । प्राचीन काल में सोन नद और गंगा नदी के संगम पर पाटलिपुत्र नगर का निर्माण हुआ था । सोन नद की पुरानी स्थल पर नादी था। शाहाबाद के कलेक्टर मिस्टर ट्विनिंग ने सोन बाढ़ रोकने के लिए 1801- 04 में बांध का निर्माण कराया था। सोन नद पर वरुण में 1869 ई. में 15 लाख रुपए की लागत से 12469 फीट लंबाई युक्त बांध का निर्माण कराया गया जिसे सोन नहर 1875 ई. से प्रारंभ हुआ और सोन नद की बाढ से लोगों को राहत दिलाया गया। सोन नहर का प्रारम्भ होने पर 170000 एकड़ भूमि को सिंचित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था परन्तु  166000 एकड़ भूमि सिंचित होने लागी थी। बिहार की नदियों में गया का फल्गु नदी, मोरहर नदी, अरवल , रोहतास , औरंगाबाद में सोन नद, पुनपुन नदी , औरंगाबाद का बटाने नदी, पटना  , भोजपुर, बक्सर, भागलपुर का गंगा नदी  और नवादा जिले की अनेक नदियां दक्षिण बिहार को विशेष रूप में प्रवाहित होती है।

            





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