मंगलवार, जुलाई 14, 2020

संक्रमण मुक्त करता है विल्व वृक्ष

: बेलपत्र अनेक गुणों से परिपूर्ण
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारतीय संस्कृति और आर्युवेद शास्त्र में बेल पत्र अनेक गुणों से परिपूर्ण होने की चर्चा की वहीं भगवान् शिव का प्रिय कहा है। शास्त्रों, पुराणों में स्कांदपुरण, शिव पुराण, लिंग पुराण में रोगान विलत्ती मनत्ती विल्व कहा है। ग्रंथों में माता पार्वती ने अपनी उंगलियों से अपनी ललाट पर आया पसीने को पोछ कर उसे फेक दी थी जिसमे कुछ पसीने की बूंदें मंदराचल पर्वत पर गिरने से बेलपत्र की उत्पति हुई । बेल की जड़ में भगवान् शिव एवं माता गिरजा, तना में माहेश्वरी शाखाओं में दक्षिनायनी , पत्तों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में माता कात्यायनी का वास है। वेल को श्रीवृक्ष,शिव द्रूम , विलवाष्टक, वेलपत्तर, शांडलू, शांडिली, सदाफल, वल्व कर्कटी, बैल गिरि, ओडियोस्पैमो, एक बीजपत्री नाम से ख्याति है। बेल वृक्ष हिमालय की तराई , सुखी पहाड़ी क्षेत्रों में 4000 फीट की ऊंचाई पर पाए जाते है। भारत, नेपाल, वियतनाम, श्रीलंका, तिब्बत, भूटान, थाईलैंड आदि देशों म 30 फीट ऊंचाई व्यास 7 सेंटीमीटर युक्त कटिला झाड़ीनुमा बेल वृक्ष पाए जाते है। बेल वृक्ष के सबंध में आयुर्वेद, बंगसेन, भवाप्रकाश, चरक संहिता सुश्रुत संहिता में महत्वपूर्ण की है। बेल की तीन और चार तथा पांच पत्तियां होती हैं जिसमें तीन पत्तियां सरल उपलब्ध परन्तु चार और पांच पत्तियां दुर्लभ है। प्रत्येक मास का चतुर्थी, अष्ठमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथि और सोमवार बेलपत्र को  तोड़ना शास्त्र सम्मत नहीं है। महाभारत वन पर्व के 18 वें अध्याय में विल्व पत्र की महत्ता पर प्रमुखता से व्याख्यान है।
: विल्व वृक्ष जहां रहते है वहां सांप नहीं आते और उसकी छाया से शव ले कर गुजरता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। बेल वृक्ष  वायुमंडल में व्याप्त प्रदूषण और अशुद्ध वतातावरण तथा संक्रमण को रोकने का क्षमता, सुख, समृद्धि और चतुर्दिक विकास करता है बेल वृक्ष लगाने से वंश की वृद्धि, दर्शन से पापों का नाश, सींचने से पितरों की तृप्ति, तथा रोपने से लक्ष्मी और ऐश्वर्य प्राप्ति होती है। प्राचीन काल में विल्व पत्र और तांबे धातु से सवर्ण धातु का उत्पादन ऋषियों द्वारा किया जाता था। भगवान् शिव का प्रिय विल्व पत्र है। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार बेल वृक्ष की पत्तियों, फल, फूल से कब्ज, पेट दर्द, बवासीर, लू, पीरियड , गैस, जुकाम, बुखार आंतों में, किडनी की समस्याओं से निजात दिलाता है।शास्त्रों में कहा गया है कि जहां बेलवृक्ष है वहां सर्वार्थ सिद्धि और चतुर्दिक विकास होते है। वेल वृक्ष का रोपण, पोषण तथा संवर्धन करने से भगवान् शिव प्रसन्न रहते है और मनोवांक्षित फल की प्राप्ति होती है। भगवान् शिव पर चावल अर्पण से धन की प्राप्ति , तिल अर्पण से पापों का नाश, जौ अर्पण से सुख की वृद्धि, गेहूं अर्पण से संतान वृद्धि, जल धारा अर्पण से सुख संतान मिलता है और ज्वर समाप्त होता है। भगवान् शिव पर घी अर्पण से नपुंसकता दूर होते है ,सोमवार को ब्रत करने से सर्वार्थ , शक्कर और दूध अर्पण से बुद्धि, विद्या, सुगंधित पुष्प चढ़ाने से समृद्धि, गन्ना चढ़ाने से आनंदो की प्राप्ति, मधु चढ़ाने से राज यक्ष्मा से मुक्ति, लाल और सफेद फूल चढ़ाने से भोग एवं मोक्ष मिलता मिलता है और चमेली का फूल से वाहन, दूर्वा से आयु, धाथुर के फूल से सुयोग्य पुत्र, बेला का फूल से सुयोग्य पत्नी और पति, जूही का फूल से अन्न की प्राप्ति, कनेर के फूल से वस्त्र, हरसिंगार के फूल से सुख संपति, शमी के फूल से मोक्ष प्राप्ति होती है।

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