सनातन धर्म संस्कृति में में नदियों में गंगा, यमुना, ताप्ती, गोदावरी, सरस्वती, फल्गु और पुनपुन नदी का बड़ा महत्वपूर्ण है। वेदों, पुराणों एवं इतिहास के पन्नों में पुनपुन नदी को मोक्ष नदी कहा गया है। प्राचीन काल में पुनपुन नदी को कीकट नदी, बमागधी नदी , सुमागधी , पुण्या नदी नदी कहा गया है। सृष्टि के प्रथम स्वयंभुव मनु के मनवन्तर काल में झारखंड राज्य का पलामू जिले के उत्तरी क्षेत्र से समुद्र तल से 980 फीट ऊंची स्थित पिपरा प्रखंड के सरइया पंचायत के चौराहा पहाड़ियों के मध्य में अवस्थित कुंड स्थल पर वैदिक ऋषि सनक, सनातन, कपिल, पंचशिख और सनंदन ब्रह्मा जी की लिए घोर तप किए थे। ऋषियों के घोर तप के कारण ब्रह्मा जी ने दर्शन देकर वरदान देने के क्रम में ऋषियों ने अपने स्वेद अर्थात पसीने से ब्रह्मा जी का पांव पैर पखारने लगे परन्तु ऋषियों के स्वेद युक्त कमंडल से भूमि पर गिर जाता था। इस तरह पाच ऋषियों का भूस्थल पर स्वेद गिरने से ब्रह्मा जी ने पुन:पुन: शब्द कह कर सहस्त्र धारा ऋषियों के स्वेद को पवित्र किया था जिससे वहां पाच कुंड से अविरल धारा प्रवाहित होने लगी। ब्रह्मा जी ने स्वेद युक्त सहत्र धारा की महत्ता और नदी के जल में स्नान, जल तर्पण और नदी के तट पर व्यक्ति द्वारा अपने पूर्वजों को पिंडदान जलांजलि अर्पित करेगा उनके पूर्वज मोक्ष और पितृ ऋण, मातृ ऋण और गुरु ऋण से मुक्ति तथा मनोकामनाएं पूर्ण होगी। वह स्थान कुंड ग्राम से ख्याति मिली है। पाच कुंड के स्रोतों से प्रवाहित पुनपुन नदी टंडवा के दक्षिणायन पुनपुन गोरकटी में प्रवाहित होकर सोमीचक से प्रारंभ होकर सोन नद का समानांतर होते हुए औरंगाबाद, अरवल और पटना के फतुहा के समीप गंगा में समाहित है। पुनपुन नदी छोटानगपुर पठार के पलामू जिले का पठार उतरी कोयल प्रवाह क्षेत्र के उतर से निकलकर सोन नद के समानांतर पुनपुन नदी का जल प्रवाह होता है। पुनपुन नदी की लंबाई 120 मील दूरी पर प्रवाहित होकर 3250 वर्गमील क्षेत्रफल में विकसित होकर जलसंभर आकार प्रदान करती हसि । पुनपुन नदी को पुण्या नदी , कीकट नदी , कीकट नली , बमागधी , सुमागधी , पुण्य पुण्य नदी कालांतर पुनपुन नदी कहा जाता है । पुनपुन नदी का उल्लेख वायु पुराण , पद्मपुराण , गरुड़ पुराण , गस्य महात्म्य तथा गजेटियर में किया गया है ।
ब्रह्मा जी की सहस्त्र धारा और पांच ऋषियों के स्वेद ( पसीने ) से युक्त पांच कुंड का पुनपुन की अविरल धारा पूर्वजों का मोक्ष और इंसान का सद्गुण के पथ पर चलने का मार्ग प्रशस्त करता है। कीकट प्रदेश की प्रमुख कीकट नदी और वैवस्वत मन्वंतर में मगध की पवित्र सुमागधी या बमागधी और ब्राह्मण धर्म संस्कृति में पुन: पुना: के नाम से ख्याति प्राप्त हुई हैं। त्रेता युग में इक्ष्वाकु वंश के भगवान् राम ने अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करने के लिए पटना जिले के पुनपुन में अवस्थित पुनपुन नदी के तट पर तथा वैशाली के राजा विशाल , द्वापर युग में पांडवों द्वारा अरवल जिले के पंतित अवस्थित पुनपुन नदी में स्नान कर अपने पूर्वजों की मोक्ष हेतु जलांजलि और पिंड अर्पित किया है। अरवल जिले के करपी से तीन किलोमीटर पर स्थित पुनपुन नदी के किनारे कात्यायनी माता के नाम पर कोयली घाट , पुनपुन नदी और मदार नदी के संगम पर भृगु ऋषि का आश्रम भृगुरारी तथा च्यवन ऋषि का प्रिय नदी थी। पुनपुन नदी में मोरहर, बटाने, अदरी, मदार बिखरी, धोवा एवं हिररण्यबाहु ( बह ) नदियों का जल विभिन्न स्थलों पर समाहित है।8 वीं सदी में सुमागधी को पुन:पुन: बाद में पुनपुन नाम से विख्यात है। गरुड़ पुराण पूर्व खंड अध्याय 84 में कहा गया है कि
कीकटेशु गया पुण्या ,पुण्यम राजगृहम वनम । च्यवनस्य पुण्यम नदी पुण्यों पुन: पुना:।।
1909 ई. में राजस्थान का खेतरी निवासी सुर्यमल जी, शिवप्रसाद झुनझुनवाला बहादुर ने पुनपुन में पुनपुन घाट पर धर्मशाला का निर्माण करा कर पिंडदान करने वालों के लिए कार्य किया। टंडवा में पुनपुन महोत्सव आयोजन कर पुनपुन नदी की अस्मिता की सुरक्षा और विकास प्रारंभ किया गया है। धारवाड़ तंत्र भुगर्भिक काल का छोटनगपुर पठार के मध्य और पूर्वी हिस्सों की परतदार चट्टाने 1800 मिलियन वर्ष पूर्व आग्नेय, शिफ्ट और नाईस से निर्मित है। विंध्य तंत्र की उत्पति विंध्य पर्वत से हुआ है। कृतेशस ( खड़िया या चाक ) उप महा कल्प का विस्तार 140 पूर्व झारखंड का क्षेत्र है। प्राय द्वीपीय भारत की चट्टानों की उत्पति 3600 मिलियन वर्ष पूर्व हुई है। पुनपुन नदी का उद्गम स्थल पर सनक कुंड, सनातन कुंड, कपिल कुंड, सनंदन कुंड और पंचशीख कुंड जिसे झील कहा जाता है। यह झील भू स्खलन तथा शैल पात के कारण हुआ था। झीलों का नदी के परिवर्तन होने पर कीकट नदी कहलाने लगा था बाद में पुनपुन नदी और फल्गु नदी के मध्य स्थल को किकट प्रदेश दैत्य संस्कृति के समर्थक गया सुर द्वारा निर्माण किया गया। किकट प्रदेश की राजधानी गया में रखा था। ब्रह्म पुराण के अनुसार सती साध्वी पुनियां किकट नदी के किनारे तपस्या के क्रम में इन्द्र द्वारा पुनीयां के सतीत्व की परीक्षा ली थी। इन्द्र और सभी देव पूनिया की सतीत्व पर प्रसन्न हो कर किकट नदी का नाम पुनपुन रखा और यह पूर्वजों की नदी एवं पितरों का उद्धारक और मानव संस्कृति साथ ही साथ मानव उद्धारक नदी की घोषणा की थी। पुनपुन नदी में स्नान, ध्यान, तर्पण करने वालों को कब्यवाह,सोम,यम, अर्यमा, अग्निश्वात , बहिर्षड और सोमपा पितरों को देवत्व प्राप्त तथा संतुष्टी होती है और मनोवांक्षित फल मिलता है। रुचि प्रजापति , प्रमलोचाना अप्सरा की दिव्य कन्या माननी, पितर अमूर्त, राजा विशाल, बुध , इला, वैवस्वत मनु का पवित्र नदी पुनपुन है।
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