बुधवार, जुलाई 08, 2020

मोक्ष और ज्ञान भूमि गया...



        भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता का उद्भव और विकास का प्राचीन रूप है गया। वेदों, पुराणों, उपनिषद और इतिहास के पन्नों में गया महान् स्थल के रूप में चर्चा की है। मानव संस्कृति और प्रथम मन्वन्तर की नीव स्वयंभू मनु और शतरूपा द्वारा की गई थी। उसी काल में दैत्य और दानव असुर की संस्कृति का विकास प्रारंभ हुआ। कीकट प्रदेश का राजा गयासुर ने गया नगर का निर्माण किया था। देव संस्कृति और मानवीय जीवन को विपरीत दिशा में ले जाने का प्रयत्न करने वाला कीकट प्रदेश का राजा गया सुर को भगवान् विष्णु द्वारा मार गिराया और देव संस्कृति का विकास किया। वैवस्वत मनु के मनवन्तर काल में चंद्रमा और तारा के पुत्र गय ने पुन: कीकट प्रदेश का राजा बन कर गया का विकास किया। अंग वांशीय राजा पृथु के द्वारा ब्रह्मेष्ठी यज्ञ किया गया जिसमें मागध ने किकट प्रदेश का नाम परिवर्तन कर मगध साम्राज्य की नीव डाल कर गया में अपनी राजाधनी बनाया था। गया में भगवान् विष्णु द्वारा गयासुर के वक्ष स्थल पर अपने पैर से शापोद्धारं किया गय। यह स्थल फलगुनदी के तट पर विष्णु पर्वत की चोटी पर भगवान् विष्णु का पद विराजमान है। आठ खंभों और 30 मीटर ऊंचाई युक्त ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित  विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में भगवान् विष्णु का 40 सेंटीमीटर लंबाई युक्त चरण स्थापित है।1787 ई. में विष्णुपद मंदिर का पुनर्निर्माण होलकर वंश के बुंदेलखंड की साम्राज्य की रानी अहिल्याबाई द्वारा की गई। ब्रह्मा जी द्वारा भगवान् शिव लिंग की स्थापना फल्गु नदी के किनारे की वह स्थल पितामहेशवर, सृष्टि का रूप योनि और पुरुष का जन्म दिया वह स्थल ब्रह्मयोनि पर्वत और तलाव का निर्माण को ब्रह्म सरोवर के नाम से ख्याति प्राप्त हुआ।ब्रह्म योनि पर्वत की चोटी पर 440 सीढ़ियों के माध्यम से बना प्रकृति (योनि) और ब्रह्मा जी का मंदिर है। त्रेता युग में भगवान् राम द्वारा अपने पूर्वजों के उद्धार और मोक्ष प्राप्ति के लिए गया आए। उन्होंने रामसागर का निर्माण और पर्वत का रामशीला भगवान् राम का ठहरने का स्थान रहा है। सीता द्वारा अपने पूर्वजों को पिंड देने के क्रम में दशरथ जी ने स्वयं अपने हाथ पर पिंड लेकर मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा की। यह स्थल सीताकुंड के नाम से जाना जाता है। धर्मराज और यमराज का स्थल प्रेतशिला पहाड़ के रूप में स्थित है। भष्मकुट पर्वत पर माता सती का स्तन पतन होने से मंगला सिद्ध पीठ हुए। यह स्थल मंगला गौरी के नाम से विख्यात है। गया में माता बांग्ला, बागेश्वरी मंदिर, मार्कण्डेय ऋषि द्वारा मारकंडेश्वर शिव लिंग विराजमान है। रामशिला की चोटी पर भगवान् राम द्वारा रामेश्वर शिवलिंग विराजमान है।1014 ई. में पतालेश्चर शिव मंदिर की स्थापना की गई है। द्वापर युग में पांडव ने अपने पूर्वजों को गया में पिंड दान कर मोक्ष प्राप्ति कराया गया। जिसे गया को धर्मारण्य के नाम से ख्याति मिला था। गया में विभिन्न राजाओं ने सरोवर का निर्माण कराया जिसमें कठोटर तलाव, रामसागर, ब्रह्मसरोवर, यम सरोवर, धर्मसरोवर , गया सुर ने भगवान् सूर्य का उतरायण और दक्षिणायन गयार्क की मूर्ति स्थापित और सूर्यकुण्ड का निर्माण कराया। फल्गु नदी को गुप्त गंगा कहा गया है। गया के विकास के लिए 5122 वर्ष पूर्व पांडव, महापद्म नंद, मोर्य वंश, शुंग वंश, गुप्त वंश हर्षवर्धन, कनिष्क, सेन वंश और पाल वंश के राजाओं द्वारा सक्रियता रही थी।1764 ई. के बाद गया ब्रिटिश शासन में आ गया। 03 अक्टूबर 1865 ई. में गया जिले का दर्जा दिया गया है।4976 वर्ग किलमीटर क्षेत्रफल में फैला गया जिले का 2011 जनगणना के अनुसार 4379382 आवादी वाले गया जिले में 24 प्रखंड, गया सदर, शेरघाटी, टिकारी और बथानी अनुमंडल है। गया के उतर में जहानाबाद, नालंदा, दक्षिण में चतरा, पलामू, पूरब में नवादा, कोडरमा जिलों की सीमाओं से घीरा है। गया 24 डिग्री 45 सेंटीग्रेड उतर 85 डिग्री 01 सेंटीग्रेड पश्चिम अक्षांश और 24.75 डिग्री उतर और 85.01 पश्चिम देशान्तर पर फल्गु नदी के किनारे गाय की अवादी 470839 है। प्राचीन काल में गया 5 कोश में विकसित था। बोधगया के निरंजना नदी के तट पर बोधगया में भगवान् बुद्ध की ज्ञान स्थली, बौद्धिमंदिर, बौद्धिवृक्ष , बेलागंज का काली मंदिर, कौवाकोल पहाड़ पर ब्राह्मण धर्म और बुद्ध की भुस्पर्श मूर्ति, बाणासुर द्वारा बसाई सोनपुर प्रसिद्ध है। टिकारी राज का किला प्राचीन धरोहर है। पितरों की तृप्ति और निवास गया में रही है। यहां पितरों का अमुर्त्या है जहां आश्विन कृष्ण पक्ष से अमावाया तक पितृपक्ष के रूप में समर्पित है। प्रतिवर्ष गया में पितृपक्ष में देश, विदेशो के हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा अपने पूर्वजों, पितरों को मोक्ष पिंड देकर पितृ ऋण से मुक्त होते है।
: ब्रिटिश शासन द्वारा गया को 03 अक्टूबर 1865 ई. को जिला का दर्जा प्राप्त हुआ। गया जिले का प्रथम डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट फ्रेंसिस हेनरी बैनेट आई सी एस हुए ।1857 का महान् योद्धा जीवधर सिंह ने लेबर फोर्स का गठन किया। गया का ऐतिहासिक स्थलों को विदेशी विद्वानों में फहाइन, ह्वेंसंग, विलियम बुकानन, विलियम टेलर, ग्रियर्शन , ओ मॉली ने अपनी पुस्तक में चर्चा की वहीं विलियम बुकानन ने वेस्टर्न इंडियन गजेटियर, , गया टू डे के लेखक विलियम ग्रियर्सन और  ओ मॉली ने गया गजेटियर 1906 तथा आर सी चौधरी ने 1957 में गया डिस्ट्रिक्ट गजेटियर में गया जिले के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, आर्थिक, ऐतिहासिक, धार्मिक स्थलों की महत्वपूर्ण  उल्लेख किया है। गया में 1879 ई. में रेलवे स्टेशन,1900 ई. में पटना- गया रेलवे लाइन 1907 ई. में गया जक्शन, ग्रैंड ग्रंट लाइन 06 अक्टूबर 1906 ई. में स्थापित हुई है। गया का करीम अली ने 1857 में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन हुए उन्हीं के नाम पर गया का एक मुहल्ले का नाम करीमगंज है। गया जिले के टिकरी स्टेट और मकसूदपुर स्टेट द्वारा गया के विभिन्न क्षेत्रों का विकास किया गया। कोच के कोचेश्चर शिव मंदिर वास्तुकला तथा मागधीय सभ्यता की कला का पहचान है। गया जिले के नदियों में फल्गु, मोलहर , सोरहर , निरंजना ऐतिहासिक है वहीं भ्रूणहा भूरहा नदी और भुरहा में बौद्ध काल की मूर्तियां प्राचीन है।

            




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