मंगलवार, जुलाई 28, 2020

मगधारण्य की सांस्कृतिक विरासत...


मानवीय जीवन का द्योत्तक मागधीय संस्कृति और सभ्यता है।ब्रह्मेष्टि यज्ञ से उत्पन्न मागध ने मागध देश की स्थापना कर गया में अपनी राजधानी बनाया था । प्राचीन काल में मगध को कीकट, व्रात्य ,प्राच्य और मगधरण्य कहा जाता था।मगध की राजधानी गौतम ऋषि के पुत्र बुध ने गया और नाग वंसज वसु ने राजगीर और उदयन ने पाटलिपुत्र में राजधानी बनाया था।मगध के उत्तर में गंगा ,दक्षिण में विंध्य ,पूर्व में चम्पा और पश्चिम में सोन नद था ,अथर्वेद 5,22,14, विष्णुपुराण 4,24,61 ,वाल्मीकि रामायण 8,9,32 ,वाजपेयी संहिता, काकभुसुंडी द्वारा प्रणीत आध्यात्म रामायण के अनुसार मगध को कीकट, किरात व्रात्य कहा और मगध का राजा विश्वसफटिक ने मागध, मग ,मगद और मंदग अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय ,वैश्य तथा शूद्र वर्ण की नींव डाल कर वर्ण व्यवस्था कायम किया था।वैवस्वत मनु काल में वृहस्पति ,चंद्रमा का पुत्र बुध ने 12 संस्कृतियों की स्थापना की।बुध और इला के समन्वय से गय का जन्म हुआ था। राजा बुध काल मे कीकट देश को इलावृत वर्ष बना ।इलावृत वर्ष के पूरब भद्राश्व वर्ष ,पश्चिम में रम्यक वर्ष, उत्तर में कुरुवर्ष, दक्षिण में भारतवर्ष, पूरब उत्तर कोण में हिरण्यवर्ष, पूरब दक्षिण कोण में किन्नर वर्ष ,दक्षिण पश्चिम में हरिवर्ष ,पश्चिम उत्तर में रम्यक वर्ष था।विंध्य पर्वतमाला से घिरा हुआ था।काल क्रम से स्थलों का नाम परिवर्तन हुआ है।वेदों,पुराणों ,उपनिषदों और इतिहास के पन्नों में मगध साम्राज्य की महत्वपूर्ण चर्चा है।राजा पृथु द्वारा  ब्रह्मेष्टि यज्ञ से उत्पन्न मागध ने मगध साम्राज्य की स्थापना कर गया में राजधानी कायम किया ।यहाँ का राजा बुध हुए जिन्होंने मगध साम्राज्य का विस्तार किया था।मगध के ऋषियों में अग्नि के उद्भव करने वाले महर्षि भृगु, दैत्य गुरु शुक्राचार्य ,लोमष ,च्यवन, और्व, गौतम,, सनक,सनातन, सनत,कुमार ,श्रृंगी, ध्रुव,,और खगोल शास्त्र के ज्ञाता आर्यभट्ट, ज्योतिष शास्त्र के मयूर भट्ट, वराह मिहिर हर्ष काल के संस्कृत साहित्य के विद्वान बाण भट्टका कर्म और जन्म भूमि रही है।बोधगया में भगवानबुद्ध की ज्ञान स्थल और पावापुरी में भगवान महावीर का मोक्ष स्थल तथा पितरों का पितृभूमि है। वायु ,अग्नि, विष्णु,गरुड़,वामन,भागवत,पुराणों के अनुसार मगधारण्य में ब्रह्मयोनि ,बराबर ,जेठीयन, हड़िया,महेर,चिरकी ,परहा, रामशिला,कटारी ,प्रेतशीला,कौवाडोल, द्वारपर, रानीडीह, मुर्गा ,सतघरवा,बाजारी, लोमष, लोहारवा, सुंग, हरला, थारी, गिद्धा, चारकहि, श्रृंगी, ध्रुवा, पवई, दुग्गल, पचार, राजगीर की पहाड़ियां ,महावर, द्वारपर,उमगा पहाड़ हिल प्राचीन काल में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक स्थल तथा नदियों में फल्गु, पुनपुन, गंगा ,सोन ,मोरहर, लिलांजन, मोहरा, आद्री, मदार, धावा, जमुना, दरधा, पैमार ,धड़कर, तिलैया, फानर्जी, जोबा , औरंगा, आड़ी, बटाने, चानन,पंचाने, पंचानन ,पैमार, धरंजे नदियां और ककोलत का शीतल झरना ,राजगीर का गर्म ब्रह्म झरना प्रसिद्ध है।मगध की प्रथम राजधानी गया का अक्षांश 24 डिग्री 17 सेंटीग्रेड - 25 डिग्री 19 सेंटीग्रेड उत्तरी देशांतर 84 डिग्री - 86 डिग्री नार्थ  लैटिच्यूड पर स्थित तथा 4766 वर्गमील में फैला है ।                   गया ,औरंगाबाद,नवादा ,जहानाबाद ,अरवल ,पटना तथा नालंदा जिला था और मगध के उत्तर में गंगा ,पश्चिम में       मुंगेर ,दक्षिण में हजारीबाग, पलामू, पूरब में सोन नद है। गया को 03 अक्टूबर 18 65 ई में जिला स्थापित हुई है।मगधरण्य के ऋषियों में भृगु ऋषि, गौतम, लोमष, श्रृंगी, च्यवन, और्व, ध्रुव, वसुमति, मार्कण्डेय, दत्तात्रय, कश्यप,ऋचीक,, गग्यावान ,मधुश्रवा, आदि ऋषि का कर्म भूमि रही है । 10 लाख ई . पू. पूर्व ऐतिहासिक चरण तथा मध्यवर्ती और परवर्ती पूर्व प्रस्तर युगीन 40हजार से 10 हजार ई. पू .तथा मध्य प्रस्तर युग 9 हजार से 4 हजार ई. पू. नव प्रस्तर युग 2500 से 1500 ई. पू. तथा उत्तर वैदिक काल 1500 से 600 ई. पू. मगध शक्तिशाली और आध्यात्मिक केंद्र था।ऋग्वेद के अनुसार दक्ष प्रजापति की कन्या और धर्म की पत्नी के गर्भ से वसु का जन्म हुआ था ।वसु ने पंच पहाड़ियों के मध्य में बाजपेयी यज्ञ में 33 कोटि के देवों यथा 12 आदित्य, 8 वसु में आप,ध्रुव, सोम,धर ,अनिल, अनल,प्रत्युष और प्रभाष शामिल हुए साथ ही 11 रुद्र, इंद्र एवं प्रजापति ब्रह्मा शामिल हो कर वाजपेयी यज्ञ को पूर्ण किया।वाजपेयी यज्ञ पुरुषोत्तम मास के देवता भगवान विष्णु थे।33 कोटि के देवता पुरुषोत्तम मास में शामिल होकर भगवान विष्णु को पुरुषोत्तम मास, अधिकमास, मलमास के प्रधान बनाए।तथा मगध की राजधानी गया से राजगीर में स्थापित की यज्ञ में वसु द्वारा 33 अग्निकुंड,52 जल धारा का निर्माण कराया था यज्ञ में लोमष ऋषि के शिष्य और आध्यात्म रामायण के रचयिता काकभुसुंडी का निमंत्रण नहीं मिलने से वाजपेयी यज्ञ में शामिल नहीं हुए थे ।पुरुषोत्तम मास में वाजपेयी यज्ञ में आत्म शोधन काल कहा गया जिसमें भगवान सूर्य आत्मा और ब्रह्म जी मुक्ति के रूप में रहते है।।वाल्मीकि रामायण में बालकांड ,अयोध्याकांड, में गिरिव्रज ,मगधपुर, वसुमति तथा कैकय देश की राजधानी गिरिब्रज थी ।हरिवंश पुराण 17,36,37 के अनुसार चेदि राष्ट्र के संस्थापक अभयचन्द्र की पत्नी से वसु का जन्म हुआ था ,चेदि राज ने मगध का राजा वसु को बनाया था ।महाभारत सभा पर्व 14 ,63 विष्णुपुराण अध्याय 10 के अनुसार मगधका राजा वृहद्रथ के पुत्र जरासंध ने अपनी पुत्री  अस्ति और प्राप्ति केसाथ मथुरा के राजकुमार कंश से विवाह किया था।द्वापर युग में मगध राज जरासंध को भगवान कृष्ण ने भीम के साथ मल्ल युद्ध करने के लिए प्रेरित किया।जरासंध और भीम का मलयुद्ध राजगीर में प्रारम्भ हुआ।मल्लयुद्ध में जरासंध मारा गया और भगवान कृष्ण ने जरासंध के पुत्र सहदेव को मगध देश का राजतिलक किया ।मगघ का राजा सहदेव ,सोमापी, श्रुतश्रवा, आयुतशु आदि 21 पीढ़ी का अंतिम वृहद्रथ वंशी रिपुंजय को उसके मंत्री सुनिक ने मार कर अपने पुत्र प्रद्योत को मगध देश का राजा बनाया था ।प्रद्योत वंश द्वारा मगध पर 148 वर्ष शासन किया।प्रद्योत वंश में विन्दुसार ,आजातशत्रु, अर्भक, उदयन नंदिवर्धन और महानन्दी राजा बने।उदयन ने 461ई. पू. मगध की राजधानी राजगीर से गंगा सोन और गंडक नदी के संगम पर पाटल पर मगध की सैन्य छावनी में राजधानी का निर्माण किया ।
मगध में कलि संबत 5122 वर्ष पूर्व वैभवपूर्ण और शक्ति शाली साम्राज्य था । मगध देश पर शासन करने वालों में शिशुनगवंशिय 362 वर्ष ,महापद्म वंशीय 100 वर्ष ,मौर्य वंश 173 वर्ष , शुंग वंश 112 वर्ष, कण्व वंश 45 वर्ष   आंध्रभृत्य का शासन 446 वर्ष जिसमें 7 अभीर ,10 गर्द्भिल,16 शक,8 यवन,14 तुर्क 13 मुंड शासन किया।बौद्ध ग्रंथों के अनुसार 544 ई. पू. हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार मगध राजा बन कर अंग राजा ब्रह्मदत्त को हरा कर मगध साम्राज्य में मिला लिया और 52 वर्षो तक शासन किया ।बिम्बिसार ने कोसल नरेश प्रसेनजित की बहन महाकोशला ,वैशाली राजा चेटक की पुत्री चेलहना, मद्र देश की राजकुमारी क्षेमा से विवाह किया । 493 ई. पू. बिम्बिसार का पुत्र और जैन धर्म के अनुयायी आजातशत्रु ने 32 वर्षों तक मगध का शासक रहा वही आजातशत्रु के पुत्र उदयन ने 461 ई. पू. मगध साम्राज्य का शासक बन कर मगध की राजधानी पाटली ग्राम में बनाई।उदयन का पुत्र नागदशक को उसके अमात्य शिशुनाग ने 412 ई पू. में अपदस्त कर मगध पर शिशुनाग वंश की स्थापना की ।इसका उत्तराधिकारी कालाशोक का पुत्र नंदिवर्द्धन था ।महापद्म नंद वंश का अंतिम शासक घनानंद को मार कर चाणक्य की सहायता से 322 ई. पू. चंद्रगुप्त  चंद्रगुप्त मगध का राजा बना । चंद्रगुप्त ने सेल्युकस निर्केटर की पुत्री कार्नेलिया से विवाह से विवाह किया था ।चंद्रगुप्त का पुत्र विन्दुसार मगध साम्राज्य का राजा 298 ई . पू. में बन कर 16 साम्राज्यों पर अधिकार किया।विन्दुसार की पत्नी सुभद्रांगी का पुत्रअवंति का राजपाल अशोक ने 269 ई. पू. मगध की राजगदी पर बैठाऔर 261 ई. पू. किलिंग साम्राज्य को मगध में मिलाया और बौद्ध अनुयायी उप गुप्त से शिक्षा प्राप्त कर अशोक बौद्ध धर्म अनुयायी हो गया। मगध देश का प्रान्त उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला ,अवंति की राजधानी उज्जैयिनी ,कलिंग की राजधानी तोसलि दक्षिणापथ की राजधानी सुवर्णगिरि तथा प्राशि की राजधानी पाटलिपुत्र में मौर्य साम्राज्य ने बनाया था ।मौर्य वंश का अंतिम शासक वृहद्रथ को 185 ई पू. इसके सेनापति पुष्यमित्र सुंग ने मार कर मगध की सिहासन पर सुंग वंश की नींव डाला है।:शुंग बंश का अंतिम शासक देवभूति को कण्व वंश का वासुदेव ने हत्या 73 ई. पू. और  कण्व वंश के अंतिम शासक राजा सुशर्मा को सातवाहन वंश के शिमुक ने 60 ई. पुमें हत्या कर मगध का राजा बना तथा मगध की राजधानी प्रतिष्ठनपुर में रखा था ।वर्तमान में प्रतिष्ठनपुर आंध्रप्रदेश में है।भगवान महावीर  - जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म ज्ञातृक कुल के सिद्धार्थ की पत्नी लिक्ष्वी राजा चेटक की बहन त्रिशला के गर्भ से  540 ई. पू .में कुंड ग्राम वैशाली में हुआ था।इनकी पत्नी यशोदा और पुत्री उनोजज प्रियदर्शनी थी।जैन धर्म के अनुयायी मगध का राजा उदयभद्र ( उदयन ) ,चंद्रगुप्त मौर्य , कलिंग राजा खारवेल तथा राष्ट्रकूट के राजा अमोधवर्ष थे ।72 वर्ष की आयु  में भगवान महावीर का निर्वाण नालंदा जिले का पावापुरी में कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या 468 ई. पू. मल्लराजा सृष्टिपाल के राज महल में प्राप्त हुआ था।महावीर सप्तभंगी ज्ञान का स्याद्वाद और अनेकतावाद। ,पुनर्जन्म ,कर्मवाद में विश्वास का मंत्र दिया था। जैन धर्म की जैन संगतियों का स्थल प्रथम जैन धर्म संगति  322 ई. पू . स्थूलभद्र की अध्यक्षता में पाटलिपुत्र तथा द्वितीय जैन धर्म संगति क्षमा श्रवण की अध्यक्षता में गुजरात का बल्लभी स्थल पर 312 ई. में हुई थी।
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध  - नेपाल का कपिलवस्तु की राजधानी लुम्बनी में शाक्य गण राजा शुदोद्धन की पत्नी माया देवी के गर्भ से सिद्धार्थ का जन्म 563 ई. पू. हुआ था । राजकुमार सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल थे। सिद्धार्थ के गृह त्यागने के बादवैशाली के सांख्य दर्शन के ज्ञाता  आलरकलाम से शिक्षा लेने के बाद राजगीर में रुद्रकराम पूरा से ,उरुवेला ( बोधगया )में कौण्डिन्य,बाप्पा ,भादिया, महानामा तथा अस्सागी साधक से शिक्षा प्राप्त कर निरंजना नदी के तट पा स्थित पीपल की छाया में वैशाख शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को ज्ञान प्राप्त कर सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध हुए।गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद कौशल,वैशाली कौशाम्बी में उपदेश दिए तथा मगध का राजा बिम्बिसार ,प्रसेनजित अनुयायी हुए।80 वर्षीय गौतम बुद्ध का महानिर्वाण 463 ई. पू. उत्तरप्रदेश के देवरिया जिला का कुशीनगर में हुआ था ।483 ई. पू प्रथम बौद्ध संगति आजातशत्रु ने महाकश्यप द्वारा राजगीर ,363 ई. पू. द्वितीय बौद्ध संगति कालाशोक ने सबकामि द्वारा वैशाली, तृतीय बौद्ध संगति 255 ई. पू. अशोक ने मोग्गलिपुत द्वारा पाटलिपुत्र तथा चतुर्थ बौद्ध संगति कनिष्क ने वसुमित्र द्वारा कुंडल वन में प्रथम शताब्दी में कराई है। 
मगधरण्य के राजाओं में इक्ष्वाकु वंशीय राजा विकुक्षि पुत्र वाणासुर की राजधानी बराबर पर्वत समूह एवं फल्गु नदी के तट पर स्थित मैदानी भाग तथा दैत्यराज बलि पुत्र बाणासुर ने गया जिले का सोनपुर , वैवस्वत मनु के पुत्र राजा शर्याति ने सोनप्रदेश, राजा करूष ने हिरन्यबाहु प्रदेश बाद में कारूष प्रदेश , राजा वसु ने गांगेय प्रदेश ,गया सुर ने फल्गु प्रदेश ,राजा ध्रुव ने ध्रुव प्रदेश वर्तमान में नवादा जिले का ध्रुवा पर्वत के मैदानी भाग ,औरवा प्रदेश का राजा और्व थे। मगध में    अर्थ शास्त्र एवं कूटनीतिज्ञ मौर्य काल मे चाणक्य , आयुर्वेद के ज्ञाता चरक , राज कवि अश्वघोष ने बुद्धचरित तथा वसुमित्र ने विश्वकोश की रचना रचा चंद्रगुप्त द्वितीय काल मे आर्यभट्ट ,वराहमिहिर ,धनवंतरी, ब्रह्मगु ,कालिदास हर्ष काल  बाण भट्ट ,मयूर भट्ट विद्वान थे ।पुष्यमित्र शासन काल मे पतंजलि द्वारा अश्वमेघ यज्ञ कराया गया था। विष्णुपुराण की रचना मौर्यवंश ,मत्स्यपुराण की रचना आंध्रसतवाहन और वायु पुराण की रचना गुप्त वंश में लोमहर्ष तथा उनके पुत्र उग्रश्रवा द्वारा संस्कृत भाषा मे की है।: 58 ई. पू. उज्जैन का राजा विक्रमादित्य ने विक्रम संबत और कनिष्क ने 78 ई. में शक संबत चलाया था ।240 से 280 ई. तक गुप्त साम्राज्य कौशाम्बी। से प्रारंभ हुआ।गुप्त वंश के प्रथम सम्राट चंद्रगुप्त प्रथम का विवाह लिक्ष्वी की राजकुमारी कुमार देवी के साथ हुआ । चंद्रगुप्त प्रथम ने 320 ई. में मगध साम्राज्य का राजा बना और गुप्त संबत की शुरुआत किया ।चंद्रगुप्त के उत्तराधिकारी समुद्रगुप्त 335 ई. में राजगद्दी हासिल कर आर्यावर्त के 9शासकों ,दक्षिणावर्त के 12 शासकों को पराजित किया था।  चंद्रगुप्त द्वितीय के पुत्र कुमार गुप्त ने 415 से 454 ई. तक मगध क्षेत्र में नालंदा विश्व विद्यालय की स्थापना की।गुप्त वंश विष्णु के अनुयायी थे।750 ई. में गोपाल ने पल वंश की स्थापना कर मुंगेर में राजधानी बनाया ।धर्मपाल ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की साथ ही देवपाल ने बिहारशरीफ में ओदवंतपुरी में बौद्ध मठ का निर्माण किया । सेन वंश के शासक शैव धर्म का अनुयायी था।मगध साम्राज्य की चर्चा मेगस्तनिज ने इंडिका ईरान का राजवैद्य टेसियस,5वी सदी ईसा पूर्व हेरोटोडस ने हिस्टोरिका, सीरियन का राजदूत डायमेकस,टॉलमी ने  दूसरी शताब्दी में भारत का भूगोल ,प्रथम शताब्दी में प्लिनी ने नेचुरल हिस्ट्री, चंद्रगुप्त द्वितीय शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान , 518 ई. में संयुगन ,हर्षवर्द्धन काल मे 629 ई . में चीनी राजकुमार हुएनसांग नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने आया और 645 ई .में चीन लौट गया । हुएनसांग( ह्वेनसांग ) ने सि - यू- की पुस्तक ,इतसिंग 7वी सदी में आकर मगध की महत्वपूर्ण चर्चा की है। बराबर समूह की गुहा लेखन में मगध साम्राज्य के उत्थान और विकास का रूप है।

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