गुरुवार, जुलाई 02, 2020

सहस्त्र धारा से युक्त भृगु क्षेत्र का देवकुंड...


    भारतीय संस्कृति और ऋग्वेद के रचयिता और अग्नि एवं मंत्र द्रष्ठा महर्षि भृगु द्वारा विश्व को ज्ञान , अग्नि, आयुर्वेद की स्थापना की गतशीलता का रूप दिया गया। पुरातन काल में किकट बाद में मगध साम्राज्य के वैदिक नदी हिरण्यबाहू के मैदानी क्षेत्रों में भृगु क्षेत्र का महान् भूमि था जहां महर्षि भृगु, च्यवन, दधीच , पिपल्लाद, मधुश्रवा की तपो भूमि और वैवस्वत मनु के पुत्र शार्याती, करूष का शासन सोन प्रदेश और करूष प्रदेश की स्थापना हुई थी। प्राकृतिक आपदा के कारण वैदिक  हिरण्यवाहू नदी का परिवर्तित रूप बह के रूप में अवशेष है। सोन नद और पुनपुन नदी के मध्य में हिरण्यबाहु नदी का अवशेष 15 विभिन्न धाराओं में विकसित है। वर्तमान में अरवल, औरंगाबाद, जहानाबाद तथा पटना जिले के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित है।
स्वारोचिष मन्वंतर में च्यवन सप्तर्षि तथा स्वारोचिष मनु के 9 पुत्र थे।6 ठें चक्षुष मन्वन्तर में भृगु सप्तर्षि और चक्षुष मनु के 10 पुत्रों में नाड़वलेय पुत्र थे। सातवें मनु वैवस्वत मनु ने वैवस्वत मन्वंतर में आदित्य, अश्विनी कुमार ,वसु , रुद्र , विश्वेडेव , साध्य और मरुदगन सप्तर्षि तथा उनके 9 पुत्रों में इक्ष्वाकु, नभग, धृष्ट, शार्याति, नरिष्यंत, प्रांशु, अरिष्ट, करूष और पृषध्र है। ब्रह्म पुराण एवं अन्य पुराणों के अनुसार शर्याति ने सोन प्रदेश और करूष ने करूष प्रदेश की नीव डाला । चाक्षुस मनु के नाड़वलेय ने नाडव प्रदेश तथा रैवत मन्वन्तर काल में देवबाहू और हिरण्यरोमा सप्तर्षि के नाम पर हिरण्याबाहू नदी का नाम हुआ था। वैवस्वत मन्वंतर में अत्रि, वसिष्ट , कश्यप, गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र तथा जमदग्नि सप्तर्षि थे। वैवस्वत मनु पुत्र की इच्छा के लिए मैत्रावरुण यज्ञ से इला नमक कन्या उत्पन्न हुई थी जिसका विवाह सोम नंदन बुध से होने के पश्चात पुरुरवा का जन्म हुआ साथ ही सुद्युम ने उत्कल, गय और विनितास्व पुत्र हुए । उत्कल ने उड़ीसा, गय ने गया तथा विनताष्व ने पश्चिम सम्राज्य की स्थापना की थी। वैवस्वत मन्वंतर के करूष प्रदेश का राजा करूष के पुत्र कारुश हुए वहीं सोन प्रदेश का राजा शर्याति के पुत्र अनर्त पुत्र तथा सुकन्या पुत्री थी। अनर्त के पुत्र रैव ने अनर्त साम्राज्य की स्थापना कर कुशस्थली नगर का निर्माण कर अनर्त साम्राज्य की राजधानी बनाया जिसे द्वारिका कहा गया है। रैव के पुत्र रैवत थे। प्राचीन काल में भृगु क्षेत्र ज्ञान, आयुर्वेद, योग एवं शैव धर्म, सौर धर्म, वैष्णव तथा शा धर्म के अनुयाई हिरण्यवाहू नदी के मैदानी भाग में रहते थे। भृगु क्षेत्र में स्थित उजैन के ज्योतिर्लिंग का उप लिंग दुग्धेश्वर शिव लिंग की हिरन्याबाहू के तट पर स्थापित कर  सभी पापों से छुटकारा दिलाने और मनोवांक्षित फल प्राप्ति के लिए किया गया है। पशुपात  संप्रदाय और लिंगायत संप्रदाय का प्रमुख केन्द्र बना। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बिहार राज्य का औरंगाबाद जिले के गाेह प्रखंड और अरवल जिले के करपी प्रखंड की सीमा पर देवकुंड स्थित बाबा दुग्धेश्वर शिवलिंग स्थापित है । पुराणों और वेदों तथा इतिहास के पन्नों में वर्णित ब्रह्मा जी के मानस पुत्र महर्षि भृगु की प्रथम पत्नी दक्ष प्रजपति की पुत्री ख्याति से धाता और विधाता पुत्र और लक्ष्मी ( भर्गवी ) पुत्री का जन्म हुआ था। महर्षि भृगु ने ऋग्वेद के मंत्रों के रचयिता, भृगु संहिता, भृगु गीता, अग्नि की रचना, तथा संजीवनी विद्या की। ब्रह्मा की पत्नी विरणी के गर्भ से उत्पन्न महर्षि भृगु की दूसरी पत्नी 7500 ई. पू. अर्थात 9520 वर्ष पूर्व दानव राज पुलोम की पुत्री पौलमी से च्यवन ऋषि का जन्म हुआ था। तीसरी पत्नी दिव्या से शुक्राचार्य और चौथी पत्नी त्वस्टा से विश्वकर्मा का जन्म हुआ है।9153 विक्रम संवत पूर्व अर्थात 11230 वर्ष पूर्व वरुण की पत्नी चार्विनी के गर्भ से भृगु तथा वाल्मीकि का जन्म हुआ था। भृगु क्षेत्र में दानव राज पूलोम की पुत्री  गर्भावस्था में पौलमी का अपहरण दैत्य राज दंश ने किया था परन्तु योगमाया के कारण पौलमी के गर्भपात से च्यवन का जन्म के पश्चात दैत्यराज दंस मरा गया। च्यवन को पौलमी ने भृगु के आश्रम में लेकर आने के बाद रहने लगी। च्यवन ने भगवान् दुग्धेश्वर नाथ की तपस्या में लीन हो गए। सोन प्रदेश का राजा शार्याति की पुत्री सुकन्या का का वरण महर्षि भृगु के पुत्र ऋषि च्यवन के साथ किया गया। सुकन्या ने अपने पति च्यवन की युवास्था में लाने के लिए देव वैद्य अश्विनी कुमार का आह्वान और चिकत्सा से ऋषि च्यवन का शरीर युवास्था प्राप्त कर रुद्र यज्ञ कराया। यज्ञ में आने वाले ऋषियों ने बाबा दुग्धेश्वर नाथ के समीप जल कुंड में सहस्त्र जल का ठहराव देकर जलाभिषेक किया था । आज वह सरोवर देवसरोवर, देवकुंड के नाम से ख्याति प्राप्त है । ऋषि च्यवन की पत्नी सुकन्या से अप्रुवान और आत्मवान पुत्र हुए। ये सभी भगवान् शिव के भक्त हैं।आदि शंकराचार्य द्वारा मठों की स्थापना का प्रारंभ किया। उनके द्वारा अरण्य संप्रदाय के तहत गोवर्धन मठ का क्षेत्र मगध, अंग, बंग, उत्कल और बर्बर तक फैलाया गया था। यह स्थान वेदों में ऋग्वेद , महावाक्य में प्रज्ञानम ब्रह्म गोत्र में भोगवर, और ब्रह्मचारी को प्रकाश का रूप दिया गया था।52 दशनामियों में 27 गिरियों,16 पूरियों,4 भारतीयों,4 वनों तथा एक लमा बने। अरण्य संप्रदाय के पद्मापद चार्य के समय देवकुंड में 2625 वर्ष पूर्व मठ का निर्माण कर मठाधीश पूरी हुए। देवकुंड मठाधीश पूरी द्वारा बाबा दुग्धेश्वर नाथ की उपासना एवं देवकुंड ( देवसरोवर ) का संरक्षक, विश्वकर्मा द्वारा निर्मित देवकुंड  स्थित दुग्धेश्वर नाथ मंदिर की सुरक्षा आदि सकारात्मक कार्य प्रारंभ किया गया। यहां फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तथा श्रवण मास में बाबा दूधेश्वर नाथ को हरिद्वार, काशी का जल का अभिषेक करने की परंपरा कायम की गई थी वर्तमान में पटना के गाय घाट स्थित गंगा जल को कावरियों द्वारा गंगा जल से अभिषेक करने की परंपरा प्रारंभ की गई है।2018 ई. में देवकुंड स्थित मंदिर के समीप खुदाई में प्राचीन शिव लिंग की प्राप्ति हुई है। यह शिव लिंग पाल काल की है। डिस्ट्रिक्ट गजेटियर गया 1906 ,1957 के अनुसार देवकुंड ऐतिहासिक स्थल है। यहां पर प्राचीन काल से मंदिर और तलाव है। पुरातन काल का आश्रम को मठ का रूप दिया गया है। यहां च्यवन ऋषि का आश्रम था । भगवान् शिव का पवित्र शिव लिंग को दूधेश्वर नाथ के नाम से ख्याति प्राप्त है। प्रत्येक वर्ष फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी माघ कृष्ण पक्ष तक शिवरात्रि त्योहार में पशु मेला, बड़े पैमाने पर लगता है। यहां का शिव मंदिर का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा में है।

                        





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