दीर्घ जीवन और आरोग्य के प्रणेता भगवान् धन्वंतरि
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारतीय संस्कृति में प्राणियों एवम् मानव का दीर्घ जीवन और आरोग्य के प्रणेता भगवान् धन्वंतरि की महत्वूर्ण उल्लेख किया गया है। वेदों, पुराणों , आर्युवेद संहिता में प्राणियों की निरोगता के लिए कई संदर्भ है। देवों और दानवों ने प्राणियों के कल्याण के लिए समुद्र मंथन किया गया था। इस समुद्र मंथन से कार्तिक मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि को भगवान् विष्णु के अवतार आर्युवेद के जनक चतुर्भुज के रूप में भगवान् धन्वंतरि शंख, चक्र, औसध तथा अमृत घट लिए प्रादुर्भाव है। इनके अवतरण के बाद निरोगता के लिए नीम वृक्ष की उत्पति हुई थी। भगवान् धन्वंतरि का अवतार पर धन्वंतरि जयंती ,धनतेरस, धन्यतेरस , ध्यानतेरस मनाने की परंपरा कायम हुई है। इनका प्रिय धातु पीतल है । इनका वाहन कमल है। भगवान् धन्वंतरि की उपासना दीर्घ जीवन आरोग्य के लिए नीम का पुष्प, कोमल पत्ते, चने की भीगी दाल, शहद, जीरा तथा हिंग को मिलाकर प्रसाद अर्पण कर ग्रहण किया जाता है। आर्युवेद के आदि आचार्य एवं भगवान् सूर्य के पुत्र अश्विनी कुमार ने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ा और इन्द्र को को आर्युवेद की शिक्षा दी और इन्द्र ने धन्वंतरि को आर्युवेद की शिक्षा देकर मानव कल्याण महत्वूर्ण कार्य किया है। काशी के राजा देवदास धन्वंतरि के अवतार थे जिन्होंने ब्रह्मऋषि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत को आर्युवेद की शिक्षा दी थी। ऋषि सुश्रुत ने धनवंतरि संप्रदाय के प्रवर्तक हुए एवं काशी में औषधालय का निर्माण किया । आत्रेय संप्रदाय के प्रवर्तक भारद्वाज थे। आर्युवेद के लिए कश्यप, सुश्रुत, भेल, भारद्वाज, चरक संहिता की रचना की है। सभी संहिता में प्राणियों की सुरक्षा एवं निरोगता के लिए मंत्र एवं यंत्र का उल्लेख किया गया है। स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान् सूर्य के पुत्र यामराज को प्रसन्न करने के लिए यम पूजन एवं संध्या काल में अपने परिवार की सुरक्षा हेतू घर के मुख्य द्वार से बाहर दीप प्रज्वलित कर दक्षिण दिशा में रखा जाता है । इस कार्य से आकाल मृत्यु नहीं होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार धन्वंतरि एवं मनशा देवी का संबंध से प्राणियों की सुरक्षा हुई । ऋग्वेद एवं अथर्ववेद की रचना में उप वेद आर्युवेद के ग्रंथाकार ऋषि वशिष्ठ हुए हैं। आर्युवेद के ग्रंथाकार 20 हुए जिसमें 500 ई. पू. मगध साम्राज्य का राजा बिम्बिसार एवं भगवान् बुद्ध के निजी चिकित्सक जीवक हुए है। यो तो आयुर्वेद की परम्परा का प्रादुर्भाव भगवान् रुद्र द्वारा हुआ है। धन्वंतरि जयंती के अवसर पर प्रत्येक वर्ष कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि को राष्ट्रीय आर्युवेद दिवस को दीर्घ जीवन और आरोग्य का पर्व के रूप में मनाया जाता है। आर्युवेद के आचार्यों में अश्विनी कुमार, धन्वंतरि, दिवोदस, सुश्रुत, अर्की, च्यवन,जनक, बुध, आत्री, अगस्त, जवाल, पैल, करथ, जावाल, अग्निवेश, भेड़, जतुकर्म, परासर, हारित, सिरपानी, चरक आदि थे। आर्युवेद के विकास के लिए रसायन विज्ञान के आचार्य नागार्जुन द्वारा ब्रह्म संप्रदाय , दक्ष सम्प्रदाय के आचार्य क्षारपाणी , भास्कर संप्रदाय के आचार्य निमी, अश्विनी संप्रदाय के आचार्य भद्रशौनक प्रवर्तक थे। आर्युवेद विज्ञान का संहिता काल 5 वीं से 6 वीं ई. पू. में आचार्य चरक ने मगध साम्राज्य में नीव डाला वहीं आचार्य वागभट्ट द्वारा 7 वीं से 14 वीं सदी तक आर्युवेद व्याख्यान काल तथा 15 वीं सदी में विवृत काल में आचार्य माधव द्वारा माधव निदान , शारंगधर की रचना कर चिकित्सा तथा आयुर्वेद विज्ञान का मूल रूप दिया गया है। 2350 ई. पू. से 1200 ई. पू. तक आचार्य शालिहोत्र द्वारा चिकित्सा क्षेत्र में महत्वूर्ण कार्य किया वहीं नकुल और सहदेव ने पशु पक्षी की निरोगता लाने के लिए आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति लागू किया। देवों के वैद्य अश्विनी कुमार द्वारा आवला वृक्ष की उत्पति की गई वहीं ऋषि च्यवन को युवा अवस्था में परिणत कर राजा शार्याती की आत्मजा सुकन्या की इच्छा पूर्ण किया । बिहार में सुश्रुत, नागार्जुन, कश्यप, च्यवन, जनक चरक द्वारा चिकित्सा एवं आयुर्वेद विज्ञान की परंपरा कायम कर मानव को निरोग एवं ऐश्वर्यवान बनने का रूप दिया । धन्वंतरि संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य सुश्रुत द्वारा चिकित्सा पद्धति की स्थापना की गई । इनके द्वारा चिकित्सा पद्धति में शल्य चिकित्सा, अनेक प्रकार की चिकित्सा की नीव रखा गया ।
अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जानेवाला पर्व दीपोत्सव
अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला पर्व दीपोत्सव कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को प्रतिवर्ष में मनाया जाता है । यह पर्व समुद्र मंथन से प्रगट माता लक्ष्मी के अवतरण को श्रद्धा पूर्वक यादगार के रूप में दीपावली मनाने की परंपरा कायम हुई है । दीपावली को दीपोत्सव , दिवाली , मोक्ष दिवस , बंडिछोड़ दिवस के रूप में हिन्दू ,जैन धर्म ,बौद्ध धर्म के लोग मानते है। त्रेता युग में भगवान् राम के 14 वर्षो के बनवास एवम् लंका विजय के बाद अयोध्या लौटने के पश्चात अयोध्या में दीपोत्सव मनाया गया वहीं द्वापर युग में पांडव के 12 वर्ष वनवास एवम् एक वर्ष बनवास के बाद इंद्रप्रस्थ लौटने पर दीपावली मनाया गया है ।भगवान् महावीर के महानिर्वाण के अवसर पर मोक्ष दिवस , सिख धर्म के10 वें गुरु गुरुगोविंद सिह की रिहाई जहांगीर द्वारा 1619 ई. में करने के पश्चात् तथा 1577 ई. में स्वर्णमंदिर का शिलान्यास के उपलक्ष्य में दिवाली मनाई जाती है।
: पावापुरी के मलराजा सृस्ति पाल के राजभवन मे भगवान महावीर का निर्वाण कार्तिक कृष्ण अमावस्या 468 ई.पू. दीवाली मे हुआ है। स्कन्द पुराण मे दीपक को सूर्य का प्रतिनिधि कहा गया है। 7वी सदी मे सम्राट हर्षबर्धन ने दीपप्रतिपादूत्सव , 9 वी सदी मे दीपमालिका , 11वी. सदी मे दीपावली , बादशाह अकबर ने 1542 - 1605 ई. मे 40 गज ऊचे बास पर आकाशदीप की परम्परा कायम किया ।स्वामी रामतीर्थ का जन्म और मोक्ष ,महर्षि दयानन्द सरस्ती का मोक्ष दिवस के रूप मे दीवाली मनाते है। नेपाल मे नेपाली सम्बत प्रारम्भ दिवस के रूप मे दीवाली मनाते है।
धन्वंतरि को पीली मिष्ठान का भोग लगाया जाता है । समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुए चौदह रत्नों में भगवान् धन्वंतरि का अवतरण हुआ था। त्रयोदशी तिथि से पाच दिवसीय पर्व में धनतेरस , नरक चतुर्दशी ( छोटी दिवाली), दीपावली ( लक्ष्मी पूजा) गौधन , तथा यमद्वितीया , चित्रपुजा , दावात पूजा होती है ।
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