विश्व की सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक और मानव जीवन की रक्षा तथा विकास का सशक्त रूप भगवान् शिव की आराधना है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति और मनुष्य का रूप शिव लिंग का रूप दिया गया है। भगवान् शिव के उपासक देव, दैत्य, दानव, राक्षस, गंधर्व सभी के लिए उपसनीय है। वेदों में रुद्र और पुरणों में शिव की आराधना का रूप प्रदर्शित किया है । शैवधर्म द्वारा भगवान् शिव को आराध्य और सृष्टि के रक्षक मानते है । शैवधर्म ने कई संप्रदाय का संचालन प्रारंभ किया है। भगवान् शिव की आराधना और पूजन करने वालों को शैव, तथा शैवधर्म कहा जाता है। शिवलिंग उपासना का प्रारंभिक काल मानव सृष्टि से प्रारंभ है। ऋग्वेद में रुद्र, अथर्ववेद में भव, शर्व , पशुपति भूपति और मत्स्यपुराण, महाभारत के अनुशासन पर्व, शिवपुराण, लिंगपुरान , वामन पुराण तथा रामायण में लिंग पूजन की प्रधानता है। शैवधर्म में पाशुपत संप्रदाय के संस्थापक लकुलिश थे । उन्होंने भगवान् शिव को 18 अवतारों में माना गया है पाशुपत संप्रदाय के अनुयाई को पञ्चार्थिक तथा आचार्य श्रीकर ने पाशुपत सूत्र ग्रंथ की रचना की थी। पाशुपत संप्रदाय ने नेपाल के काठमांडू का बागमती नदी के तट पर पशुपति नाथ की स्थापना कर पाशुपत संप्रदाय का संचालन प्रारंभ किया है। कापालिक संप्रदाय के इष्ट भैरव है जिसकी स्थापना श्री शैल स्थान पर हुई थी। शिव पुराण में महाब्रतधर का रूप कलामुख संप्रदाय की स्थापना की गई। कला मुख संप्रदाय के अनुयाई नर कपाल में भोजन, पानी सुरापान करते है तथा ललाट और शरीर पर चिता भष्म लगते है जिन्हे औघड़ कहा जाता है। लिंगायत संप्रदाय को जंगम कहा गया है। लिंगायत संप्रदाय की स्थापना अल्लभ प्रभु और उनके शिष्य वासव ने की जिसे दक्षिण भारत में प्रचलित किया था। यह संप्रदाय के अनुयाई शिवलिंग की उपासना करते है । वासव पुराण में लिंगायत संप्रदाय को वीरशिव संप्रदाय कहा गया है। दक्षिण भारत में राजा चालुक्य, राष्ट्रकूट, पल्लव, चोलों, कुषाण शासकों द्वारा शैवधर्म का प्रचार किया गया । पल्लव काल में 63 नायनार संतोंं द्वारा अप्पार, तिरुझन, संबदर, सुंदर मूर्ति की स्थापना की गई थी। एलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूटवंश, चोल शासक रजाराज प्रथम ने तंजीर में रजाराजशेखर शैवमंदिर जिसे वृहदिश्वर मंदिर कहा गया का निर्माण कराया वहीं कुषाण शासकों ने अपनी सिक्का पर शिव और नंदी का एक साथ अंकन कराया था। शैवधर्म में सिद्ध संप्रदाय ने शिव लिंग पूजन की प्रथा बिहार के जहानाबाद जिले का मखदुमपुर प्रखंड के भैख़ पंचायत में स्थित बराबर पर्वत समूह के सुर्यांक गिरि की चोटी पर सिद्धेश्वर नाथ की स्थापना कर शैवधर्म का प्रचार एवं प्रसार किया। प्राचीन काल में बराबर पर्वत समूह दानव राज सुकेशी का ईश्वर गीता का संदेश भगवान् शिव द्वारा दी गई थी। बाद में इक्ष्वाकु वंश के बाणासुर की राजधानी थी। दैत्य राज बली पुत्र बाणासुर ने बराबर पर्वत समूह का विकास किया था। बराबर पर्वत समूह में गुफा निर्माण, मूर्ति कला, भितिचित्र , वास्तु शास्त्र का विकास स्थली रहा है।10 वीं शताब्दी में शैवधर्म के मत्स्येंद्र नाथ ने नाथ संप्रदाय की स्थापना कर शिवलिंग पूजन का रूप दिया और उनके शिष्य बाबा गोरख नाथ ने नाथ संप्रदाय का व्यापक प्रचार किया है।: बराबर पर्वत समूह के विभिन्न श्रृंखलाओं पर विभिन्न क्षेत्रों में सप्तऋषि गुफा है। गुफाओं में लोमष ऋषि गुफा, सुदामा गुफा, कर्ण गुफा, गोपी गुफा, वाह्वक गुफा विश्वामित्र गुफा और योगेन्द्र गुफा वैदिक ऋषि और जैन तथा बुद्ध धर्म के मुनि, भिख्खु नाम से ख्याति मिला है। वैदिक धर्म द्वारा यज्ञ स्थल, भितिचित्र में दुर्गा, गणेश, शिवलिंग, सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिकेय का शिलाचित्र अर्थात भितिचित्र निर्मित है वहीं गुहा लेखन में ब्राह्मी लिपि और प्राकृत मागधी भाषा में अंकित है। सुर्यांक गिरि की चोटी पर प्राकृतिक गुफा में सिद्धेश्वर नाथ शिवलिंग है और सिद्धेश्वरी, बागेश्वरी माता की भव्य मूर्ति तथा दत्तात्रेय, अनेक देवियों की मूर्तियां है। बराबर पर्वत समूह की नागार्जुन श्रृंखला छत्तीसगढ़ का महासमुद जिले के श्रीपुर की बौद्ध भिख्खुणी गौतमी पुत्र महायान के दार्शनिक नागार्जुन का कर्मभूमि और रसायन एवं धातु शास्त्री के नाम पर नागार्जुन पहाड़ी है। नागार्जुन का प्राचीन नाम सिद्ध धर्म के अनुयाई नित्यानंद सिद्ध का परिवर्तित नाम है। नित्यानंद सिद्ध का जन्म 50 ई., पू. हुआ था। 9 31ई. में गुजरात के सोमनाथ का दैहक स्थान में जन्म लिए नागार्जुन द्वारा जीव सूत्र,योग शतक,योग रत्नमाला और दक्षिण भारत के विदर्भ का शुन्यवाद के संचालक नागार्जुन 150 ई., पू. से 250 ई., पू. बर्बर अर्थात बराबर के मैदानी क्षेत्रों में रह कर कर्म भूमि बनाया था। नागार्जुन पहाड़ी के समीप खगोल विद्या का केंद्र है। यहां पर पत्थर नुमा चांद और लम्बा स्तंभ है जिससे खगोल विद्या का अध्ययन किया जाता था। प्राचीन काल में बराबर को मगध का हिमालय के नाम से संबोधित था। इस पहाड़ को सिलटिका , सिलाटिका कहा जाता है तथा मिश्र शैली में गुफाएं है। विश्व में 9 नाथों में सिद्धेश्वर नाथ शिवलिंग प्रथम है। महाभारत वन पर्व में सिद्धेश्वर नाथ को बानेश्चर शिव लिंग कहा गया है।
सांख्य दर्शन के ज्ञाता लोमष ऋषि को समर्पित लोमष गुफा प्रसिद्ध है। गया से 30 कि. मी. उतर और जहानाबाद से 30 कि. मी. पर अवस्थित बराबर के लोमष गुफा झोपड़ी शैली, मगध शैली, चैत्य आर्क चन्द्र मला शैली से युक्त तथा हाथी, स्तूप तथा फूलों की लरियों से संयुक्त से जुड़ाव का रूप लक्ष्मी, शांति और ऐश्वर्य का संदेश देता गुफा का मुख्य द्वार है। जिसे ग्रीट्टो कहा गया है। स्कन्द पुराण और महाभारत के वन पर्व के अनुसार लोमष ऋषि हिमाचल प्रदेश के रिवालसर के राजा ईश ( हृद्यालेश ) के क्षेत्र में तप करने के बाद गया स्थित ब्रह्म योनि पर्वत पर 100 वर्षों तक भगवान् शिव की उपासना की तथा सिद्धनाथ एवं सिद्धेश्वरी और बागेश्वरी माता की आराधना के पश्चात शिव ने एक कल्प रहने का वरदान दिया था। वरदान में उल्लेख किया गया कि जब तक आप के शरीर पर रोएं रहेंगे तब तक आप भू पर ज्ञान का प्रकाश है। उन्होंने बाबा सिद्धनाथ को कमल पुष्प से उपासना करते थे। उन्होंने राजा दादूर्भ को देवी भागवत की पाच बार कथा सुना कर रैवत पुत्र तथा नर्मदा नदी में स्नान करने के बाद गंधर्वों की कन्याओं का उद्धार किया वहीं बराबर में काकभुसुंडि को राम कथा और काक भूसुंडी ने गरुड़ को राम कथा सुनाई थी। बराबर की एक श्रृंखला कौवाडोल के नाम से ख्याति प्राप्त है। लोमष ऋषि ने त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ और द्वापर युग में युधिष्ठिर को आख्यान दे कर मानव कल्याण का मंत्र दिया था। लोमष ऋषि ने लोमश संहिता,लोमस शिक्षा, लोमस रामायण की रचना की।
: बराबर पर्वत समूह पर मोनोलिथिक ग्रेनाइट रॉक है। मगध साम्राज्य के विभिन्न सम्राटों ने मेगलिथ प्रतीक चिन्ह के रूप में रखा है। इतिहासकार प्रिया बैकेसियो ने पश्चिमी डेक्कन की सुदामा गुफा एवं अन्य गुफाओं को बौद्ध गुफाएं के लिए प्रोटोटाइप कहा है। बौद्ध दर्शन के विद्वान गोशाल ने आजीवक और परिव्रजक संप्रदाय का शरणस्थली तथा विभिन्न ग्रंथो में सिद्ध संप्रदाय का आध्यात्मिक स्थल है। काशी स्थित बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का उप ज्योतिर्लिंग बाबा सिद्धेश्वर नाथ शिवलिंग और 9 नाथों में समाहित है। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित दशानमियों का गिरि द्वारा मंदिर का पुजारी के रूप में स्थापित किया गया है। यहां के प्रधान को गिरि कहा गया है। बराबर के मुरली, संदागीरी, और सिद्धेश्वर गिरि पर प्रकृति की सुंदरता वीखरी हुई है। सिद्धेश्वर नाथ मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी में किया गया है वहीं गुफाएं तीसरी शताब्दी ई. पू. निर्मित है। मुरली पहाड़ी पर 500 फीट लंबा और 120 फीट और 35 फीट ऊंचाई युक्त ग्रेनाइट पत्थर में कर्ण गुफा, सुदामा गुफा और लोमष ऋषि गुफा निर्मित है। यह स्थल मौर्य काल में खालतिका पर्वत, खालातिका हिल के रूप में पतंजलि महाभाश में चर्चा की गई है। यह स्थल कलिंग, राजगृह और पाटलिपुत्र का समन्वय स्थल के रूप में ख्याति प्राप्त थी। मगध सम्राट अशोक ने 231 ई. पू. और उसके पौत्र दशरथ,5 वीं शताब्दी में कलिंग का राजा शार्दूल विक्रम और अनंत वर्मन के द्वारा विकास किया गया वहीं नागार्जुन पर्वत की गोपी गुफा के समीप मुगल काल में इदगाह का निर्माण किया गया था। खगोल विज्ञान के ज्ञाता नागार्जुन द्वारा लंबा युक्त ग्रेनाइट पत्थर में सूर्य और गोलाकार ग्रेनाइट पत्थर युक्त चांद खगोलीय अध्ययन शाला का निर्माण किया गया था।185 ई., पू. मगध साम्राज्य का राजा पुष्पमित्र शुंग ने बराबर के मुरली पहाड़ी पर कर्ण गुफा के समीप पतंजलि द्वारा यज्ञ कराया था जिसका अवशेष चट्टानों पर अंकित है। गुप्त साम्राज्य 240 से 467 ई. तक और चन्द्रगुप्त प्रथम द्वारा संवत् का प्रारंभ। 319-320 ई. में की।380 ई. में चन्द्रगुप्त द्वितीय शासन काल में चीनी बौद्ध यात्री फह्यान तथा शशांक शैवधर्म का प्रचार और संरक्षक था। हर्षवर्धन द्वारा शैवधर्म के लिए 641 ई. में संरक्षण के लिए मठ का निर्माण कराया था। बराबर पर्वत समूह में शामिल प्राचीन धरोहरों की चर्चा हवेनसंग, विलियम बुकानन, ग्रियर्सन ने की है वहीं बुकानन ने मैदानी भाग को राम गया की उल्लेख किया है। फल्गु नदी के किनारे बराबर पर्वत है।1895 ई. में आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया वॉल्यूम 1 पेज 40, अंसिएंट मॉन्यूमेंट्स इन बंगाल 1855 में, डिस्ट्रिक्ट गजेटियर गया 1906और 1957 में बराबर की महत्वपूर्ण चर्चा की है। बराबर पर्वत समूह भारतीय और बिहारी संस्कृति के इतिहास के भूले बिसरे पन्नों की अत्यंत दुर्लभ झलक है और मगध की सांस्कृतिक विरासत का धरोहर है। यहां सावन माह अनंत चतुर्दशी को भगवान् सिद्धनाथ पर जलाभिषेक करते है और पातालगंगा का जल में स्नान कर भक्त श्रद्धालु सिद्धेश्वर नाथ पर जलाभिषेक कर अपनी मनोवांक्षित फल के लिए उपासना करते है। बिहार सरकार ने 2013 ई. से पर्यटन विभाग द्वारा एकदिवसीय वाणावर महोत्सव प्रारंभ की है। बराबर पर्वत और उसके मैदानी भागों का विभिन्न क्षेत्रों का विकास मगध साम्राज्य के अशोक, गुप्त वंश पाल काल, सेन काल , मुगल काल, ब्रिटिश काल में हुआ था। यह स्थल शैवधर्म, सिद्ध संप्रदाय, आजिवक संप्रदाय, अरण्य संप्रदाय, जैन धर्म, बौद्ध धर्म का महान् सिद्ध भूमि थी। भगवान् राम और कृष्ण का प्रिय स्थल, दैत्य राज बाणासुर का कर्म भूमि और उषा और अनुरुद्ध का प्रेम स्थल तथा मया योगनी चित्रारेखा की ज्ञान भूमि से पवित्र है। बुद्घ की पवित्र स्थल कौवाड़ोल ब्राह्मण धर्म और बुद्ध की कार्य भूमि और सिद्ध भूमि है।
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