बुधवार, जुलाई 22, 2020

कीकट प्रदेश और सभ्यता संस्कृति ...


        मानवीय मूल्यों का प्रारंभिक क्षेत्र कीकट है।वेदों और पुराणों तथा इतिहास के पन्नो में प्राचीन कीकट प्रदेश का नाम मगध है।फल्गु और पुनपुन के मध्य स्थल कीकट प्रदेश ख्याति प्राप्त थी।इस प्रदेश में भगवान विष्णु द्वारा सनत, सनंदन, सनत कुमार के रूप में मानव की संरचना और ब्रह्मा जी ने उत्तरी छोटानागपुर पठार का जल पठार के उत्तरी भाग में ब्रह्मा जी के लिए सनत, सनंदन, सनत कुमार, गौतम ने कठिन तपस्या करने के बाद ब्रह्मा जी प्रगट हुए थे।ऋषियों ने ब्रह्मा जीका पद धोने के लिए अपने पसीने युक्त कमंडल धोना चाह रहे थे परन्तुं पसीने पठार भूमि पर गिर जाने से पांच कुंड झील के रूप म उत्तर दिशा में प्रवाहित हो गया था ।उसी कुंड में ब्रह्मा जी ने अपनी कमंडल से सहस्त्र धारा प्रवाहित की जिससे पुनः पुना: कीकट नदी के नाम से ख्याति मिली थी । कीकट प्रदेश की पवित्र पुनपुन नदी हुई। कीकट प्रदेश का राजा सनत कुमार हुए।सनंदन ने रसायन और योग माया की उत्पत्ति पद्मिनी ,सनातन ने सनातन संस्कृति,गौतम ऋषि ने सांख्य का ज्ञान फैलाए थे।कीकट प्रदेश भगवान विष्णु, शिव तथा ब्रह्मा का प्रिय था ।सनत कुमार द्वारा विंध्य पर्वत माला के उत्तरी क्षेत्र का गया के पांच पहाडियों से युक्त ब्रह्म योनि, विष्णु पर्वत, भस्मगिरि, धर्म पर्वत , कटारी पर्वत, राम पर्वत और बणावर्त के मैदानी क्षेत्रों में साम्राज्य स्थापित किया गया था।उत्तरी छोटानागपुर पठार के चतरा जिले का हंटरगंज प्रखंड का इटखोरी में स्थित कोरम्बे पहाड़ का झरना से मोहनी कुंड से मोहाना नदी और बेंदी के समीप दामोदर पहाड़ के झरने से लिलांजन नदी समानांतर उत्तर दिशा की ओर प्रवाहित होते हुए दिव्य योगनी  फाल्गुनी के आश्रम के समीप विलय होने के पश्चात फलगुश्व फल्गु नदी प्रवाहित हुई थी।बाद में फाल्गुनी क्षेत्र उरुवेला वर्तमान में बोधगया के नाम से ख्याति प्राप्त की वहीँ विष्णु पर्वत के समीप से गुजरते हुए बराबर पर्वत सिद्धेश्वर नाथ का स्पर्श कर फल्गु नदी पटना जिले के गंगा नदी द्वारा बनाई गई टाल में समाहित हो गयी है।फल्गु नदी की लंबाई दक्षिण से उतर 125 की.मी . प्रवाहित होती है।19 करोड वर्ष पूर्व विंध्य पर्वत माला में जलवायु परिवर्तन के कारण उच्च भूमि की वर्फ़ पिघल कर जल प्रवाह के रूप में फल्गु प्रवाहित होने के बाद गया की पृष्ठभूमि बना था।गया में पितरों में अमूर्त्या  का निवास बना।: विंध्य पर्वत माला के ऋक्ष पर्वत पठार से निकली बालुका वाहिनी नदी पिशाचिका ( फल्गु ) नदी है।गौतम ऋषि के पुत्र बुध कीकट प्रदेश का राजा बना। ।कीकट में भगवान विष्णु अमूर्त रूप में है।प्राचीन काल में कीकट प्रदेश में मग ब्राह्मण कुल में बुध का जन्म हुआ था ।वह नीति का महान ज्ञाता और सूर्य तथा शिव विष्णु का भक्त था।बाद में बुध कीकट प्रदेश का राजा बना।ब्रह्मा जी द्वारा अपने अंग से स्वायम्भू मनु और शतरूपा की उत्पत्ति कर सृष्टि की रचना की।स्वायम्भुव मनु ने प्रथम मन्वंतर की स्थापना की थी।14 मनु ने अपने नाम पर मन्वंतर प्रारम्भ किया जिसमें7 वाँ मनु वैवस्वत मनु हुए है। कीकट का राजा बुध के शासन काल म ब्रह्मा जी द्वारा गया में ऋत्विक यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें कीकट प्रदेश के 365 पिंड वेदी का निर्माण किया गया।यज्ञ कराने वाले मग ब्राह्मण को गया और फल्गु नदी दान दे दी तथा प्रकृति और पुरुष के रूप में ब्रह्म पर्वत पर प्राकृतिक योनि का निर्माण किया गया जिसे ब्रह्मयोनि पहाड़ के नाम से ख्याति मिली है।बुध काल मे यहां मग ब्राह्मण, मागध क्षत्रिय, मगद वैश्य तथा मंदग शुद्र के रूप में रहते थे।वैवस्वत मन्वंतर में चंद्रमाऔर तारा के समागम से बुध का जन्म हुआ था । बुध न श्रवण वन में तपस्या के दौरान वैवस्वत मनु की पुत्री इला के समागम से गय, उत्कल और विनिताश्व का जन्म हुआ ।चद्रमा ने बुध के साथ रोहाणी और कृतिका के साथ विवाह किया था।बुध ने अपने पुत्र गय को कीकट प्रदेश का राजा बनाया।गय ने अपने नाम पर गया नगर की स्थापना की तथा राहु और शनि की मित्रता और दैत्य गुरु शुक्राचार्य के परामर्श से सूर्य की आराधना किया।फलतः असुर संस्कृति के पोषक बन कर गयासुर के नाम से विख्यात हुआ ।बुध को ग्रह के रूप में भगवान सूर्य के समीप रहने लगा।बुध मिथुन और कन्या राशि का स्वामी तथा भगवान विष्णु ने वैदिक कलाये प्रदान की।बुध को उत्तर दिशा का राजा, हरे रंग और रत्न में पन्ना, ऋतु में शरद और पृथ्वी तल के रूप में श्रवण वन ( गया ) प्राप्त हुआ था।
: कीकट प्रदेश में गौतमऋषि का पुत्र बुध थे।उहोंने कीकट प्रदेश की स्थापना की थी।इन्होंने प्रकृति पूजन में भगवान सूर्य प्रधान देव तथा शिव आराध्य देव एवं ब्रह्मा और विष्णु की आराधना की।एक बार देव गुरु वृहपति ने ब्रह्मा जी से स्त्री बनने की इच्छा प्रकट की थी ।ब्रह्मा जी ने उनकी मनोकामना पूर्ण कर स्त्री बन कर बृहपति रोहाणी रूप में कीकट प्रदेश में भ्रमण करने लगे।रोहाणी पर चंद्रमा की नजर पड़ने से कामासक्त हो गए।चंद्रमा ने रोहणी के साथ समागम किया जिससे बुध का जन्म हुआ था। बुध का लालन पालन शनि और राहु करने लगे। शुक्राचार्य ने भगवान सूर्य की आराधना का युक्ति बताया जिससे सूर्य के प्रिय पात्र बन कर सौर धर्म की स्थापना की।शिव ने शिक्षा दी।बुध दैत्य संस्कृति का पोषक हुए। उन्होंने कीकट प्रदेश का विस्तार किया।वैवस्वत मन्वंतर में वृहस्पति की पत्नी तारा को चंद्रमा ने मोहनी मंत्र से अपनी ओर आकृष्ट किया था।चंद्रमा ने तारा के साथ समागम करने के पश्चात तारा को बुध पुत्र जन्म लिया।बुध का लालन पालन चंद्रमा करने लगे !बुध भगवान शिव की उपासना में तपस्या में लीन हुए उसी समय वैवस्वत मनु ने इला स्त्री रूप धारण कर कीकट प्रदेश में विचरने लगे उसी समय बुध की नजर इला पर पड़ने के बाद उन्होंने इला के साथ समागम करने के बाद पुरुरवा का का जन्म हुआ साथ ही वैवस्वत मनु पुनः पुरुषत्व रूप में हो गए। पुरुषत्व प्राप्त होने के बाद उन्हें सुद्युम्न हुए परन्तु शापित होने के कारण 9 माह स्त्रीत्व रूप में मित्रावरुण यज्ञ से बुध का समागम से गय, उत्कल, विनिताश्व पुत्र का जन्म दे देकर पुनः सुद्युम्न अपने पुत्र गय को कीकट , उत्कल को कलिंग, तथा विनिताश्व को वैशाली का राज दे कर सुद्युम्न वन में तपस्या के लिए चले गए।गय असुर संस्कृति के पोषक हुए जिससे उनका नाम गयासुर के नाम से ख्याति मिला। बुध का जन्म शरद ऋतु का आश्विन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को होने के कारण बुधाष्टमी ब्रत प्रारम्भ हुआ ।
ब्रह्म पुराण के अनुसार चाक्षुस मन्वंतर में चाक्षुस मनु की पत्नी और वैराज प्रजापति की पुत्री नडवला के गर्भ से 10 पुत्रों में पुरु की पत्नी आग्रेयी के गर्भ से छः पुत्रों का जन्म हुआ था ।पुरु के छः पुत्रों में अंग का विवाह मृत्यु कन्या सुनीथा के गर्भ से वेन पुत्र हुआ था ।अंग ने अंग साम्राज्य की स्थापना की।वेन अंग राज बने।वेन के अत्याचार से ऋषियों को क्रोध हुआ एवं जनता त्राहिमाम हो गयी थी।प्रजाजनों की रक्षा के लिए ऋषियों ने अंग राज वेन के शरीर का मंथन करने के बाद पृथु प्रकट हुए थे।पृथु के प्रकट होने से जनता में खुशी और भूमि पर देवों, ऋषियों, पितरों, दानवों, गंधर्वों, तथा अप्सराओं आदि के साथ विकास होने लगा था।राजा पृथु ने ब्रह्मेष्टि यज्ञ करने पर विद्वान मागध तथा सुत का प्रादुर्भाव हुआ। राजा पृथु ने मागध को कीकट प्रदेश और सूत को अनूप देश का राजा बनाया था । मागध ने कीकट साम्राज्य का नाम बदल कर मगध साम्राज्य की स्थापना की ।मागध ने अपनी राजधानी गया में स्थापित कर विकास किया। ब्रह्मा। जी के प्रपौत्र और अत्रि ऋषि का पौत्र देव गुरु वृहस्पति का पुत्र बुध बाणाकार मंडल से युक्त मगध देश का राजा बने।बुध का प्रिय वस्त्र हरा, झंडे हरा, वाहन सिंह, समिधा अपामार्ग ,,रत्न पन्ना, सोना, चांदी, कासा, मूंगा, सफेद फूल, हाथी के दांत, शस्त्र, फल, कपूर प्रिय है।बुध द्वारा सूर्योपासना ,शिव उपासना, चंद्रमा उपासना तथा तारा उपासना तथा पितरो के उपासना किया जाता था।बुध कन्या और मिथुन राशि का स्वामी बने है।बुध के राज्यों का विस्तार मागध ने मगध साम्राज्य के रूप में किया है।
मगध साम्राज्य के क्षेत्रों में धर्मारण्य, मगधारण्य, गया, भृगुतुंग, कोकामुख,सोम शैल, देवह्र्द, देवकुंड, विष्णुपद, दुर्वासिक , पितामह, सिद्धेश्वर, पंचतीर्थ, सूर्यतीर्थ, मधुवट (अक्षयवट ),ब्रह्मयोनि, मार्कण्डेय, प्रेताधार, पितृवन, रामतीर्थ, पितृ कूप, गया शीर्ष, शमशनस्तम्भ तीर्थ, श्रृंग तीर्थ, देव हृद मंगला गौरी शिखर तीर्थ प्रसिद्ध है। गया में दैत्य, पिशाच, राक्षस किंपुरुष, विद्याधर, सिद्धधर्म ऋषि धर्म, मानव धर्म गुह्य धर्म, गंधर्व धर्म शाश्वत धर्म कुल 12 संस्कृति का अपने अपने क्षेत्र में विकसित थे।सिद्ध धर्म की संस्कृति बाणावर्त में थी वहीं ऋषि धर्म की संस्कृति उरुवेला ( बोधगया ) ,पिशाच धर्म की संस्कृति प्रेतशिला ,गुह्य धर्म की संस्कृति ब्रह्मयोनि पर्वत पर थी।सभी धर्मों का समान प्रतिष्ठा थी।पितर धर्म के अनुयायी ब्रह्मचर्य, अमानित्व, योगाभ्यास, इक्षानुसार भ्रमण करते थे वहीं सिद्ध धर्म के अनुयाई योग साधन ,वेदाध्ययन, ब्रह्मविज्ञान के ज्ञाता और शिव और विष्णु के भक्त है।देव गुण प्राप्त करने वाले विष्णुभक्त, यज्ञादि, स्वाध्याय, वेदज्ञान और आदित्य के उपासक थे।दैत्य ,दानव और राक्षस संस्कृति के अनुयायी बाहुबल, ईर्ष्याभाव, युद्ध, नीति शास्त्र और शिव भक्त थे।
: राक्षस राज विद्युतकेशी का पुत्र सुकेशी ने मगधरण्य के ऋषिगण से धर्मोपदेश, देवादि धर्म, भू कोश, नरक और पुण्य पाप की जानकारी प्राप्त की थी। अथर्वेद में मगध, ऋग्वेद में कीकट प्रदेश की चर्चा है वहीं चिंतामणि में कीकट प्रदेश का महत्वपूर्ण वर्णन है।चिंतामणि के अनुसार कीकट प्रदेश के उतर में गंगा दक्षिण में विन्ध्यपर्वत, पूरब में चम्पा और पश्चिम में सोन नद है। अथर्वेद 5,22,14 ,विष्णुपुराण अध्याय 4,24,61,वाल्मीकि रामायण सर्ग 8,9,32 के अनुसार कीकट को कीकट, व्रात्य, प्राच्य, कीरात और मगध का महत्वपूर्ण व्याख्यान किया है। कीकट की राजधानी गया में विश्व स्फटिक राजा ने वर्ण व्यवस्था प्रारम्भ की वहीं पाचवां रैवत मनवंतर में आभूतर्जा और प्रकृति देव ,और सप्तर्षियों में सोमनन्दन उर्ध्ववाहू तथा सत्यनेत्र थे और राजा आरण्य हुए।वामन पुराण के अध्याय 17  में वृक्षों की उत्पति का उल्लेख कर राक्षस राज सुकेशी को पर्यावरण और प्रकृति का संरक्षण के प्रति शिक्षा दी गयी थी। आश्विन मास में भगवान विष्णु की नाभि से कमल ,कामदेव ने कदम्ब, यक्षों के राजा मणिभद्र ने वटवृक्ष, भगवान शिव ने धतूर वृक्ष ,ब्रह्मा जी ने खैर वृक्ष, विश्वकर्मा ने कटैया, वृक्ष, भगवान सूर्य ने पीपल, लक्ष्मी ने विल्ववृक्ष, यमराज ने पलाश और गूलर वृक्ष, गणपति ने सिंदुवार माता पार्वती ने कुंद लता, रुद्र ने औषधि, कात्यायनी ने शमी, वासुकीनाथ ने श्वेत और कृष्ण दूर्वा ,शेषनाग ने सरपत,, और सिद्धों ने हरिचंदन वृक्ष की उत्पत्ति की है। प्राचीन काल में मगध में 365 वेदियां थी परंतु 45 वेदियां पर अपने पूर्वजों की याद में पिंडदान और जलांजलि देकर पितरी ऋण से उद्धार होते है।मनुस्मृति 8,14 तथा जातिभास्कर में अंग ( भागलपुर ), मगध  ( गया ), भार्गव ( औरंगाबाद ) ,विदेह ( मिथिला ), मुद्गरव (  मुंगेर ), वांगेय ( बंगाल ) केश वरवर ( बाणावर्त ) वहिग्रिर ( राजगीर ) ,अन्तरगिरि (नवादा )  आदि जनपद थे।कीकट प्रदेश में मगध, केश वरवर,वाहिगिर, अन्तरगिरि, पाटल, भार्गव, मुद्गरव का क्षेत्र शामिल था।
 फल्गु नदी के किनारे गया में स्थित  विष्णु पर्वत पर गयासुर के उद्धार करने के लिए गयासुर के वक्षस्थल पर भगवान विष्णु के दोनों चरण मूल नक्षत्र के रूप में विराजमान हैं और फल्गु नदी के उगम स्थल गुह्यप्रदेश ( बोधगया ) में फाल्गुनी नक्षत्र के रूप में नीलांजन( लिलांजन ) नदी उतरा फाल्गुनी और मोहनी ( मोहाना ,मोहानी ) नदी पूर्वा फाल्गुनी के रूप में एक जुट होकर फाल्गुनी (फल्गु )नदी के रूप में प्रवाहित है। त्रेतायुग में मद्र देश का शाकल के सुशर्मा ने अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए सौराष्ट्र जाने के क्रम में मरुभूमि पर रात्रि में दस्युओं द्वारा असहनीय आक्रमण किया गया था । पीड़ित सुशर्मा असहाय मरुभूमि पर पागल की तरह वन में में भटकने के बाद समी वृक्ष के समीप सोगया।सोने के बाद जागने के पश्चात सैकड़ों प्रेतों से घीरे अपने प्रेतनायक को लेकर प्रेत गण विचरण कर रहा है।वन में विचरते हुए प्रेतनायक ने समी वृक्ष की छाया में ठहरे वणिक पुत्र सुशर्मा के समीप जा कर उसे उदासी का कारण पूछने के बाद सारी जानकारी प्राप्त कर प्रेतनायक ने सारी समस्या का समाधान किया था।


वणिक पुत्र सुशर्मा ने गया के प्रेतशीला के समीप समी वृक्ष की छया में उपस्थित प्रेतराज सोमश्रमा के संबंध में वृतांत जानने के लिए उत्सुक हुआ था ।प्रेतराज सोमश्रमा ने कहा कि पूर्व में उत्तम शाकल नगर के बहुला के गर्भ से उत्पन्न सोम शर्मा ब्राह्मण था ।सोम शर्मा के समीप वणिक सोमश्रवा विष्णु भक्त था।मैं नास्तिक और कृपण भी था परंतु सोमश्रवा के साथ इरावती और नडवला के संगम पर स्नान कर छाता और जूते और संगम का जल से भरा जलपात्र तथा दही, ओदन से परिपूर्ण वर्तन सहित ब्राह्मण को प्रदान किया था।70वर्ष की आयु में दान देने के पश्च्यात मृत्यु प्रेत योनि में हो गया हूँ।मैंने छाता दान किया था वह समी वृक्ष जूते दान के कारण वाहन बना है।वणिक पुत्र सुधर्मा ने प्रेतराज सोमश्रवा एवं अपने पितरों का प्रेतयोनि से मुक्ति हेतु गया शीर्ष स्थल पर पिंड दान ,महाबोध्य तील सहित पिंड दान कर प्रेतयोनि से मुक्ति दिलाई थी।प्रेतराज सोमश्रवा को प्रेतयोनि से मुक्ति प्राप्त कर ब्रह्मलोक चले गए और वणिक पुत्र सोमशर्मा गंधर्व लोक में चिरकाल तक भोगों का उपभोग करने के बाद मानव जन्म प्राप्त कर शाकल पूरी का सम्राट बना। सोमश्रवा ने मृत्यु लोक ब्राह्मण के रूप में कामदेव के समान पुरुरवा का जन्म कीकट प्रदेश का राजा बना।

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