भाद्रपद शुक्ल पंचमी को सप्त ऋषियों के प्रति समर्पित एवं मानवीय जीवन के विकास का माध्यम ऋषि पंचमी व ऋषि दिवस है । आकाश में सात तारे मंडल को सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है। वेदों में सप्तऋषि मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा है। 14 मनवंतर में विभिन्न सात सात ऋषि हुए हैं। वेदों के रचयिता ऋषि द्वारा ऋग्वेद में एक हजार सूक्त एवं दस हजार मन्त्र है । विष्णु पुराण अनुसार मन्वन्तर के सप्तऋषि है :- वशिष्ठकाश्यपो यात्रिर्जमदग्निस्सगौत। विश्वामित्रभारद्वजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।। सातवें वैवस्वतमनु का मन्वन्तर में सप्तऋषि में वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज है । पुराणों में केतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरा, वशिष्ट तथा मारीचि का उल्लेख है। महाभारत में सप्तर्षियों में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ का वर्णन हैं ।
1. वशिष्ठ : त्रेतायुग में राजा दशरथ के कुलगुरु तथा दशरथ के चारों पुत्रों के वशिष्ट गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध हुआ था। वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया था । वैवस्वतमनु के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया था।
2.विश्वामित्र : ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए युद्ध किया था, लेकिन विश्वामित्र पराजित हो गए थे । विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा तपस्या भंग का उल्लेख है । विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। हरिद्वार में शांतिकुंज स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इंद्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी। विश्वामित्र ने वेदों को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मन्त्र की रचना की थी।
3. कण्व : यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। कण्व आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी एवं विश्वामित्र और मेनका के संगम से उत्पन्न पुत्री शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था।
4. भारद्वाज : वैदिक ऋषियों में देव गुरु वृहस्पति की पत्नी ममता के पुत्र भारद्वाज-ऋषि का उच्च स्थान है। वनवास के समय श्रीराम त्रेतायुग में भारद्वाज आश्रम में गए थे । भरद्वाज वंशीय भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुए मन्त्र रचना जारी रखी थी । ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा और एक पुत्री 'रात्रि' द्वारा रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा की रचना की गई हैं। ॠग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भारद्वाज ऋषि की मण्डल में भारद्वाज के 765 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में भी भारद्वाज के 23 मन्त्र हैं। 'भारद्वाज-स्मृति' एवं 'भारद्वाज-संहिता' के रचनाकार ऋषि भारद्वाज थे। ऋषि भारद्वाज ने 'यन्त्र-सर्वस्व' नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना थी। यंत्रसर्वस्व ग्रन्थ का भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने 'विमान-शास्त्र' के नाम से प्रकाशित करा कर ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन है।
5. अत्रि : ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा मांगने लगे और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे ।अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था। अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था। अत्रि वंशीय सिन्धु पार करके पारस में यज्ञ का प्रचार किया। अत्रि वंशीय द्वारा अग्निपूजकों के पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ। अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था। ऋषि अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे। ऋषि अत्रि पर देवों के वैद्य और भगवान सूर्य की पत्नी संज्ञा के पुत्र अश्विनीकुमारों की कृपा थी।
6. वामदेव : गौतम ऋषि के पुत्र वामदेव वामदेव ने सामगान संगीत विद्या दे द्रष्टा थे । वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता हैं।
7. शौनक : ऋषि सुनक के पुत्र शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को सृष्टा थे । कूर्म पुराण के अनुसार मानवीय जीवन के विकासशील करने वाले प्रथम व्यास स्वायम्भुव मनु , द्वितीय व्यास प्रजापति , तृतीय व्यास शुक्राचार्य , चतुर्थ व्यास वृहस्पति ,पाचवें व्यास सूर्य ,सातवें व्यास इंद्र , आठवें व्यास वशिष्ट , नावें व्यास सारस्वत , दसवे व्यास त्रिधाम ,बारहवें व्यास शततेजा , तेरहवें व्यास धर्म , पंद्रहवें व्यास त्र्यारुणि , सोलहवें व्यास धनंजय ,सत्रहवें। व्यास कृतंजय ,अठारहवें व्यास ऋतंजय ,उन्नीसवें व्यास भारद्वाज ,बीसवें व्यास गौतम ,इक्कीसवें व्यास राजश्रवा , बीसवें व्यास शुष्मायन ,तेइसवें व्यास तृणविंदु, चौविसवें व्यास वाल्मीकि ,पच्चीसवें व्यास शक्ति ,छब्बीसवें व्यास परासर ,सत्ताइसवें व्यास जातुकर्ण और अठाइसवें व्यास कृष्ण द्वैपायन हुए थे ।
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