पुरणों और उपनिषदों के अनुसार मागधीय संस्कृति में सनातन धर्म का शाक्त सम्प्रदाय में शक्ति की उपासना का उल्लेख किया गया है। तंत्र और मंत्र का स्थल पर माता महाकाली , माह लक्ष्मी और महासरस्वती की उपासना की जाती है । बिहार के गया जिले का बेलागंज प्रखंड के पटना गया रेल खंड और पटना गया रोड के किनारे बेला का काली मंदिर के गर्भगृह में स्थित माता विभूक्षणि की अद्भुत प्रतिमा स्थित है । दैत्य राज विरोचन के पौत्र एवं दैत्यराज बलि की पत्नी आशना के औरस पुत्र पताल लोक का स्वामी दैत्यराज बाण अपनी पत्नी अनौपन्या के साथ पाताल लोक की राजधानी शोणितपुर में रहता था । शोणितपुर को शवपुरी , लोहितपुर कहा गया है । बाण को बाणासुर , सहस्त्रबाहु ,भूतराज ,महाकाल के रूप में कहा गया है मत्स्यपुराण , ब्रह्मपुराण ,हरिवंश पुराण के विष्णुपर्व में ललितराज बाली बाली की पत्नी हंसना वायन के पुत्र बाणासुर ज्येष्ठ, शिवपार्षद, परमपराक्रमी योद्धा और पाताललोक का प्रसिद्ध असुरराज महाकाल, सहस्रबाहु तथा भूतराज कहा गया है। किरट प्रदेश की राजधानी शोणपुरी, शोणितपुर अथवा लोहितपुर राजधानी थी। असुरों के उत्पात से त्रस्त ऋषियों की रक्षा के क्रम से शंकर ने अपने तीन फलवाले बाण से असुरों की विख्यात तीनों पुरियों को बेध दिया तथा अग्निदेव ने उन्हें भस्म करना आरंभ किया । इसने पूजा से शंकर को अनुकूल कर अपनी राजधानी बचा ली थी (मत्स्य., 187-88; ह.पु., 2/116-28; पद्म., स्व., 14-15)। फिर इसने शंकरपुत्र बनने की इच्छा से घोर तपस्या की। प्रसन्न होकर शिव ने इसे कार्तिकेय के जन्मस्थान का अधिपति बनाया था (ह.पु. 2/116-22)। शिव के तांडव नृत्य में भाग लेने से शंकर ने प्रसन्न होकर इसकी रक्षा का बीड़ा उठाया था।
उषा अनिरुद्ध की पुराणप्रसिद्ध प्रेमकथा की नायिका इसी की कन्या थी। स्वप्नदर्शन द्वारा कृष्ण पुत्र प्रद्युम्न , प्रद्युम्नपुत्र अनिरुद्ध के प्रति पूर्वराम उत्पन्न होने पर इसने बाणासुर के मंत्री विभाण्ड की दिव्य योगनी चित्रलेखा की सहायता से द्वारिकाधीश श्री कृष्ण के पौत्र एवं प्रदुम्न के पुत्र अनिरुद्ध को अपने महल में उठवा मँगाया और दोनों एक साथ छिपकर रहने लगे। किंतु भेद खुल जाने पर दोनों बाण के बंदी हुए। द्वारिकाधीश कृष्ण को इसका पता चला तो इन्होंने बाण पर आक्रमण कर दिया। भीषण युद्ध हुआ, । अंत में कृष्ण ने बाण को मार डालने के लिए सुदर्शन चक्र उठाया किंतु पार्वती के हस्तक्षेप तथा आग्रह पर केवल अहंकार चूर करने के निमित दो बहु को छोड़कर सभी भुजाओं को काट डाला था । पद्म.पुराण , 3/2/50 , भागवत पुराण 10/63/49 , शिवपुराण के अनुसार उषा अनिरुद्ध का विवाह सम्मानपूर्वक द्वारका में संपन्न कराया था ।
असुरसंस्कृति के संरक्षक बाणासुर द्वारा अपनी माता वायन के नाम पर बराबर पर्वतसमुह की शृंखला को वायन पर्वत और वायन नगर एवं कुलदेवी विभूक्षणि का मंदिर का निर्माण कराया था । माता विभूक्षणि ने तंत्र मंत्र तथा दिव्य ज्ञान की ज्ञाता थी । वर्तमान में वायन पर्वत को कौवाडोल पर्वत और वायां नगर को बेला कहा जाता है । भगवान बुद्ध ने ज्ञान अर्जन के लिए माता विभूक्षणि की उपासिका माया द्वारा कौवाडोल के तराई में राह कर दिव्य ज्ञान प्राप्त किये थे । शिव पुराण रुद्र संहिता युद्ध खंड के अनुसार माता विभूक्षणि की उपासिका चित्रलेखा द्वारा उषा के लिए जेष्ठ कृष्ण चतुर्दशी श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध को बाणासुर के गृह में लायी गयी थी और बाणासुर द्वारा अनिरुद्ध को नागफास से युक्त को बंधन से मुक्त किया गया था । बेल रेलवे स्टेशन से एक मिल उत्तर पश्चिम स्थित 500 फीट उचाई कौवाडोल पर्वत एक दूसरे से समन्वय पत्थरों से जुड़ा है । 7 वी शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेनसांग ने कौवाडोल स्थित माता विभूक्षणि की उपासिका दिव्य योगनी मारा की उपासना स्थल 13 ग्रेनाइट स्तंभों से युक्त था । आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ बंगाल सर्किल 1901 - 02 के अनुसार 800 - 1200 ई . तक ब्राह्मिण धर्म और बौद्ध धर्म का केंद्र था । भगवान बुद्ध की आराध्य विभूक्षणि माता थी । कालांतर में माता की मूर्ति भूमिगत हो गयी । बेल स्थित तलाव के उत्खनन के दौरान माता विभूक्षणि की मूर्ति प्राप्ति के पश्चात ग्रामीण की आराध्या हो गयी । खाता नंबर 1619 प्लॉट नंबर 242 रकवा 4 . 08 ए. तलाव हुई थी । 1970 ई . में ग्रामीणों के सहयोग से द्वापर युगीन माता विभूक्षणि की मूर्ति को काली मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित किया गया है । पुरतन काल में बेला तंत्र मंत्र का केंद्र था । ब्राह्मण जगृति मंच के अध्यक्ष एवं काली मंदिर बेला के पुजारी राजीव नयन पांडेय द्वारा लिखित जय माँ काली पुस्तक में उल्लेख है कि माता काली सर्वमनोकामना सिद्धि दात्री है । काली मंदिर के दर्शन एवं उपासना स्थल तथा यात्रियों के निवास के लिए रामलखन भवन का निर्माण किया गया है ।
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