गणतंत्र भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शहीदों और साहित्य सेवियों में मुजफ्फरपुर के कलाम के जादूगर रामवृक्ष वेनिपुरी और शहीद भगवानलाल का योगदान का उल्लेख है । मुजफ्फरपुर काप्रथम शहीद भगवानलाल - मां भारती के सपूत भगवान लाल का जन्म 28 सितंबर 1912 ई . को सरैयागंज में जन्म लेनेवाले ब्रिटिश साम्राज्य अधीन भारत की आजादी एवं तिरंगे की रक्षा हेतु 14 नवंबर 1930 ई. में शहीद हो गए थे । तिलक मैदान से सरैयागंज नगर में धारा 144 लगने के वावजूद तिलक मैदान में राष्ट्रीय तिरंगा ध्वज फहराने के लिए आजादी के दीवानों का कारवां बढ़ता द्वारा झंडा फहाराया गया था । अंग्रेज अफसरों ने अपमान समझकर तिरंगा झंडा उतारने के लिए लाठीचार्ज किया। अंग्रेज झंडा उतारने लगे, भगवानलाल मंच पर चढ़ घ्वज स्तम्भ से लिपट गए। अफसरों की एक नहीं चली और गुस्साए मुजफ्फरपुर का सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस हिचकॉक ने गोली चलाने का आदेश दे दिया जिससे भगवान लाल को तीन गोली लगी। भारत माता की जय बोलते हुए भगवाल लाल गिर पड़े। 14 नवम्बर 1930 का 18 साल की उम्र में शहीद हो गए । भारत मां के सपूत भगवान लाल के शहीद होने के कारण दो दिन शहर में कर्फ्यू रहा था । 16 नवम्बर को चंदवारा शमशान घाट पर शहीद भगवान लाल का अंतिम-संस्कार पूरे सम्मान के साथ किया गया। अमर शहीद भगवान लाल के सम्मान में देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने शहीद स्मारक एवं घंटा घर का निर्माण कराया। इसमें अंकित जिले के 100 शहीदों में है । नवयुवक समिति ने 1954 में सरैयागंज में शहीद भगवानलाल स्मारक पुस्तकालय भवन की स्थापना एवं 1984 में पुस्तकालय के सामने उनकी प्रतिमा स्थापित की गई। भगवानलाल जब चौथी कक्षा में पढ़ते थे, तभी से वे अंग्रजी शासन के विरुद्ध सभा में भाग लेने लगे थे। तिरंगे की शान में कुर्बान होने वाले शहीद की यादगार पुस्तकालय है। देश रत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने शहीद स्मारक एवं घंटा घर का निर्माण कराया। इसमें अंकित जिले के 100 शहीदों में है । नवयुवक समिति ने 1954 में सरैयागंज में शहीद भगवानलाल स्मारक पुस्तकालय भवन की स्थापना एवं 1984 में पुस्तकालय के सामने उनकी प्रतिमा स्थापित की गई। भगवानलाल जब चौथी कक्षा में पढ़ते थे, तभी से वे अंग्रजी शासन के विरुद्ध सभा में भाग लेने लगे थे। तिरंगे की शान में कुर्बान होने वाले शहीद की यादगार पुस्तकालय है। नागरिक मोर्चा , अखिल भारतीय आदित्य परिषद एवं श्री नवयुवक समिति ट्रस्ट मुजफ्फरपुर द्वारा अमर शहीद भगवान लाल की जयंती पर राष्ट्र की रक्षा , समाजसेवा एवं कोरोना काल में उत्कृष्ट योगदान हेतु सत्येन्द्र कुमार पाठक को शहीद भगत सिंह एवं भगवान लाल सम्मान पत्र 2021 से सम्मानित किया गया है ।
कलम के जादूगर रामवृक्ष वेनिपुरी - शुक्लोत्तर युग के महान साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म मुजफ्फरपुर ( बिहार ) जिले के बेनीपुर में 23 दिसंबर, 1899 ई. तथा निधन 07 सितंबर, 1968 ई . हुआ था । बेनीपुरी जी भारत के विचारक, चिन्तक, क्रान्तिकारी साहित्यकार, पत्रकार, संपादक और गद्य-लेखक, शैलीकार, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी, समाज-सेवी की अमिट छाप छोड़ी है। राष्ट्र-निर्माण, समाज-संगठन और मानवता को बेनीपुरी जी ने ललित निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, नाटक, उपन्यास, कहानी, बाल साहित्य आदि विविध गद्य-विधाओं में जो महान रचनाएँ प्रस्तुत की हैं । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आठ वर्ष जेल में बिताया और हिन्दी साहित्य के समाचारपत्र युवक (१९२९) आदि प्रकाशित की थी ।मैट्रिक की परीक्षा पास करने से पहले 1920 ई. में वे महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े । भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सेनानी के रूप में आपको 1930 ई. से 1942 ई. तक का समय जेल में व्यतीत करना पड़ा।पत्रकारिता एवं साहित्य-सर्जना में जुड़ कर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन को खड़ा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। स्वाधीनता-प्राप्ति के पश्चात् आपने साहित्य-साधना के साथ-साथ देश और समाज के नवनिर्माण कार्य में अपने को जोड़े रखा। रामवृक्ष बेनीपुरी की आत्मा में राष्ट्रीय भावना लहू के संग लहू के रूप में बहती थी जिसके कारण आजीवन वह चैन की साँस न ले सके। उनके फुटकर लेखों से और उनके साथियों के संस्मरणों से ज्ञात होता है कि जीवन के प्रारंभ काल से ही क्रान्तिकारी रचनाओं के कारण बार-बार उन्हें कारावास भोगना पड़ा। सन् १९४२ में अगस्त क्रांति आंदोलन के कारण उन्हें हजारीबाग जेल में रहना पड़ा था । जेलवास में आग भड़काने वाली रचनायें लिखते थे । बेनीपुरी जी जेल से बाहर आते उनके हाथ में दो-चार ग्रन्थों की पाण्डुलिपियाँ साहित्य की अमूल्य निधि बन गईं हैं। सन् १९३० के कारावास काल के अनुभव के आधार पर पतितों के देश में उपन्यास का सृजन हुआ। सन् १९४६ में अंग्रेज भारत छोड़ने पर विवश हुए तो सभी राजनैतिक एवं देशभक्त नेताओं को रिहा कर दिया गया। कारागार से मुक्ति की पावन पवन के साथ साहित्य की उत्कृष्ट रचना माटी की मूरतें रेखाचित्र और आम्रपाली उपन्यास की पाण्डुलिपियाँ उनके उत्कृष्ट विचारों को अपने अन्दर समा चुकी थीं। उनकी अनेक रचनायें जो यश कलगी के समान हैं उनमें जय प्रकाश, नेत्रदान, सीता की माँ, 'विजेता', 'मील के पत्थर', 'गेहूँ और गुलाब' शामिल हैं। 'शेक्सपीयर के गाँव में' और 'नींव की ईंट'; इन लेखों में रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपने देश प्रेम, साहित्य प्रेम, त्याग की महत्ता, साहित्यकारों के प्रति सम्मान भाव दर्शाया है । बेनीपुरी जी पत्रकारिता जगत से साहित्य-साधना के संसार में आए। छोटी उम्र से ही आप पत्र-पत्रिकाओं में लिखने लगे थे। आगे चलकर आपने 'तरुण भारत', 'किसान मित्र', 'बालक', 'युवक', 'कैदी', 'कर्मवीर', 'जनता', 'तूफान', 'हिमालय' और 'नई धारा' नामक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। आपकी साहित्यिक रचनाओं की संख्या लगभग सौ है, जिनमें से अधिक रचनाएँ 'बेनीपुरी ग्रंथावली' नाम से प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कृतियों में से 'गेहूँ और गुलाब' (निबन्ध और रेखाचित्र), 'वन्दे वाणी विनायकौ (ललित गद्य), 'पतितों के देश में (उपन्यास), 'चिता के फूल' (कहानी संग्रह), 'माटी की मूरतें (रेखाचित्र), 'अंबपाली (नाटक) विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। बेनीपूरी जी की रचनाओं में नाटक - अम्बपाली -1941-46 ,सीता की माँ -1948-50 ,संघमित्रा -1948-50 ,अमर ज्योति -1951 ,तथागत ,सिंहलविजय ,शकुन्तला ,रामराज्य ,नेत्रदान -1948-50 ,गाँव के देवता , नया समाज ,विजेता -1953. बैजू मामा, नेशनल बुक ट्र्स्ट, 1994 ,शमशान में अकेली अन्धी लड़की के हाथ में अगरबत्ती - 2012 , - सम्पादन एवं आलोचन ,विद्यापति की पदावली ,बिहारी सतसई की सुबोध टीका , जीवनी - जयप्रकाश नारायण , संस्मरण तथा निबन्ध - पतितों के देश में -1930-33 , चिता के फूल -1930-32 ,लाल तारा -1937-39 , कैदी की पत्नी -1940 ,माटी -1941-45 ,गेहूँ और गुलाब - 1948–50 ,जंजीरें और दीवारें ,उड़ते चलो, उड़ते चलो ,मील के पत्थर , -ललित गद्य ,वन्दे वाणी विनायक −1953-54. है । 1999 ई. में भारतीय डाक सेवा द्वारा बेनीपुरी जी के सम्मान में भारत का भाषायी सौहार्द मनाने हेतु भारतीय संघ के हिन्दी को राष्ट्र-भाषा अपनाने की अर्ध-शती वर्ष में डाक-टिकटों का एक सेट जारी किया।[ उनके सम्मान में बिहार सरकार द्वारा वार्षिक अखिल भारतीय रामवृक्ष बेनीपुरी पुरस्कार दिया जाता है। मुजफ्फरपुर में नागरिक मोर्चा , अखिल भारतीय आदित्य पार्षद एवं श्री नवयुवक समिति ट्रस्ट द्वारा हिंदी साहित्य के मूर्धन्य विद्वान रामवृक्ष वेनीपुरी के स्मृति सम्मान समारोह में हिंदी को बढ़ावा देने , साहित्यजगत में सराहनीय योगदान एवं उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित किया जाता है । हिंदी को बढ़ावा देने , साहित्य जगत में सराहनीय योगदान एवं उत्कृष्ट कार्य हेतु सत्येन्द्र कुमार पाठक को हिंदी दिवस के अवसर पर कलाम के जादूगर महान साहित्यकार एवं स्वतंत्रता सेनानी रामवृक्ष वेनीपुरी सम्मान पत्र 2021 से सम्मानित किया गया है ।
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