गुरुवार, सितंबर 16, 2021

प्रकृति पूजन करमा...


    भारतीय संस्कृति में प्रकृति पूजा करमा और एकादशी का उल्लेख है । मानवीय जीवन को चतुर्दिक विकास के लिए सनातन धर्म ग्रंथों में करमा , झार पूजा , कर्म एकादशी , परिवर्तनी एकादशी  का वर्णन है। शास्त्रों के अनुसार करमा पर्व प्रकृति , वृक्षों, पौधों, झारों का पर्व मानवीय जीवन में सर्वांगीण विकास का माध्यम है । भाद्रपद शुक्ल एकादशी को झारखण्ड, बिहार, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल , मध्यप्रदेश , उत्तरप्रदेश , छत्तीसगढ़ एवं भारत तथा विदेशों का  करमा त्यौहार है। भाद्रपद मास शुक्लपक्ष एकादशी को लोग प्रकृति की पूजा कर अच्छे फसल की कामना करते एवं बहनें अपने भाइयों की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करती हैं। करम पर उपासक ढोल और मांदर की थाप पर झूमते-गाते हैं। कर्म उपासक  उपवास के पश्चात करमवृक्ष का या उसके शाखा को घर के आंगन में रोपित करते हैं और दूसरे दिन कुल देवी-देवता को नवान्न देकर उपभोग शुरू होता है। करम नृत्य को नई फ़सल आने की खुशी में लोग नाच-गाकर मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ और झारखण्ड के आदिवासी और ग़ैर-आदिवासी  लोक मांगलिक नृत्य मानते हैं। करम पूजा नृत्य, सतपुड़ा और विंध्य की पर्वत श्रेणियों एवं गावों में प्रचलित है। शहडोल, मंडला के गोंड और बैगा एवं बालाघाट और सिवनी के कोरकू तथा परधान जातियाँ करम के  कई रूपों को आधार बना कर नाचती हैं। बैगा कर्मा, गोंड़ करम और भुंइयाँ कर्मा आदि नृत्य माना जाता है। छत्तीसगढ़ के लोक नृत्य में गोड़ के  माता ‘करमसेनी देवी’ का अवतार एवं घसिया के घर में माना गया है। कर्म उपासक   बर्तन में बालू भरकर उसे बहुत ही कलात्मक तरीके से सजाया जाता है। पर्व शुरू होने के कुछ दिनों पहले उसमें जौ डाल दिए जाते हैं, इसे 'जावा' कहा जाता है। बहनें अपने भाइयों की सलामती के लिए इस दिन व्रत रखती हैं। इनके भाई 'करम' वृक्ष की डाल लेकर घर के आंगन या खेतों में गाड़ते हैं। इसे वे प्रकृति के आराध्य देव मानकर पूजा करते हैं। पूजा समाप्त होने के बाद वे इस डाल को पूरे धार्मिक रीति‍ से तालाब, पोखर, नदी आदि में विसर्जित कर देते हैं। करम की मनौती मानने वाले दिन भर उपवास रख कर अपने सगे-सम्बंधियों व अड़ोस पड़ोसियों को निमंत्रण देता है तथा शाम को करम वृक्ष की पूजा कर टँगिये कुल्हारी के एक ही वार से कर्मा वृक्ष के डाल को काटा दिया जाता है और उसे ज़मीन पर गिरने नहीं दिया जाता। तदोपरांत उस डाल को अखरा में गाड़कर स्त्री-पुरुष बच्चे रात भर नृत्य करते हुए उत्सव मानते  हैं और सुबह पास के किसी नदी में विसर्जित कर दिया जाता हैं। बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में करमा त्योहार के अवसर पर भाई द्वारा झार और करम लाया जाता है । बहने अपने भाई की निरोगता एवं सर्वांग समृद्धि के लिए  झार की पूजा करती है । झार पूजन में करमा साग , पुष्प , खीरा आदि प्रकृति द्वारा उलब्ध कराई गई दूर्वा अर्पित करते है । महिलाएं , बहने करमा और झार समक्ष अपने भाई और स्वम सर्वांगीण विकास के लिए प्रार्थना करते हैं । करमा पर्व को मगध में करम जुड़ाई  पर्व मनाया जाता है । 
करमा को परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से दूसरे लोगों के बीच आपका वर्चस्व कायम होगा और आपके सुख सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है । भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी को पद्मा एकादशी का व्रत करने का विधान है। वहीं मध्यप्रदेश में  दोल ग्यारस कहा  जाता है। भगवान  विष्णु शयन शैय्या पर सोते हुए करवट लेने के कारण  परिवर्तिनी एकादशी  कहते हैं।  भगवान श्री विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा की जाती है । माता यशोदा ने भगवान श्री विष्णु के वस्त्र धोने से एकादशी को 'जलझूलनी एकादशी' कहा गया है। परिवर्तिनी एकादशी का व्रत करने से दूसरे लोगों के बीच आपका वर्चस्व कायम होगा और आपके सुख सौभाग्य में बढ़ोतरी होगी, साथ ही आपको अपने कार्यों में सफलता मिलेगी। परिवर्तिनी एकादशी के दिन श्री विष्णु को पालकी में बिठाकर शोभा यात्रा निकाली जाती है।  भगवान विष्णु के निमित्त व्रत करने का और विधि-पूर्वक  पूजा करने का विधान तथा  सप्त  अनाज (गेहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर ) को मिट्टी के बर्तन भरकर रखने और अगले दिन उन्हीं बर्तनों को अनाज समेत दान करने का परंपरा है । महाभारत में उल्लेख है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को एकादशी के व्रत के महामात्य के  अनुसार त्रेतायुग में बलि नाम का असुर था। असुर होने के बावजूद वे धर्म-कर्म में लीन रहता था और लोगों की काफी मदद और सेवा करता था। इस करके वो अपने तप और भक्ति भाव से बलि देवराज इंद्र के बराबर आ गया। जिसे देखकर देवराज इंद्र और अन्य देवता भी घबरा गए। उन्हें लगने लगा कि बलि कहीं स्वर्ग का राजा न बन जाए। ऐसा होने से रोकने के लिए इंद्र ने भगवान विष्णु की शरण ली और अपनी चिंता उनके सम्मुख रखी। इतना ही नहीं, इंद्र ने भगवान विष्णु से रक्षा की प्रार्थना की। इंद्र की इस समस्या के समाधान के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और राजा बलि के सम्मुख प्रकट हो गए। वामन रूप में भगवान विष्णु ने विराट रूप धारण कर एक पांव से पृथ्वी, दूसरे पांव की एड़ी से स्वर्ग और पंजे से ब्रह्मलोक को नाप लिया। अब भगवान विष्णु के पास तीसरे पांव के लिए कुछ बचा ही नहीं। तब राजा बलि ने तीसरा पैर रखने के लिए अपना सिर आगे कर दिया। भगवान वामन ने तीसरा पैर उनके सिर पर रख दिया। भगवान वामन ने  राजा बलि की दान शीलता से प्रसन्न हो कर राजा बलि को पाताल लोक का राजा बनने का वरदान दिया था । भगवान विष्णु के वामन अवतार सर्वजीत संबत्सर भाद्रपद शुक्ल द्वादशी शुक्रवार श्रवण नक्षत्र शोभन योग में हुआ था । करमा उपासक कर्म और धर्म की उपासना कर मनोवांक्षित फल की प्राप्ति करते है । 


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