वेदों , पुरणों , स्मृतियों के अनुसार शिल्प के प्रणेता भगवान विश्वकर्मा निर्माण एवं सृजन का देवता है। भगवान विश्वकर्मा की पुत्री ऋद्धि एवं सिद्धि का विवाह भगवान शिव की भर्या माता पार्वती के पुत्र गणेश जी के साथ और माता संज्ञा का विवाह ऋषि कश्यप की भर्या अदिति पुत्र भगवान सूर्य के साथ हुआ था । भगवान सूर्य की भर्या संज्ञा के पुत्र वैवस्वतमनु , यमराज , यमुना , कालिंदी और अश्वनीकुमार हैं। विश्वकर्मा सृजन, निर्माण, वास्तुकला , शिल्प कला और संसारिक वस्तुओं के अधिष्ठात्र देव है । भगवान विश्वकर्मा को विश्वकर्मा, देव शिल्पी, जगतकर्ता और शिल्पेश्वर के रूप में उपासना की जाती है । विश्वकर्मा का निवास लोअस्त्रक मंडल है । ऋग्वेद मे विश्वकर्मा सुक्त 11 ऋचा में ऋषि विश्वकर्मा भौवन देवता, और यजुर्वेद अध्याय 17, सुक्त मन्त्र 16 से 31 तक 16 मन्त्रो में उल्लेख है । ऋग्वेद मे विश्वकर्मा शब्द का एक बार इन्द्र व सुर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है। प्रजापति विश्वकर्मा विसुचित। महाभारत के खिल भाग , पुराणकार प्रभात पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानतें हैं। स्कंद पुराण प्रभात खण्ड के अनुसार बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च।विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापतिः॥ महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन ब्रह्मविद्या ज्ञानी भुवना को अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी से शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ था । पुराणों में भुवना को योगसिद्धा, वरस्त्री बृहस्पति की बहन का उल्लेख है। शिल्प शास्त्र कर्ता विश्वकर्मा देवताओं का आचार्य और सम्पूर्ण सिद्धियों का जनक है, वह प्रभास ऋषि का पुत्र और महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र का भानजा है। भारत मे विश्वकर्मा को शिल्पशस्त्र का अविष्कार करने वाला देवता, चीन मे लु पान को बदइयों का देवता है। भगवान विश्वकर्मा का अवतरण भाद्रपद शुक्ला प्रतिपदा कन्या की संक्राति (17 सितम्बर) को हुआ था ।आन्ध्रप्रदेश के मछलीपट्टनम में विश्वकर्मा मन्दिर है । शिलांग और पूर्वी बंगला मे मुख्य तौर पर मनाया जाता है। मई दिवस, विदेशी त्योहार का प्रतीक है। रुसी क्रांति श्रमिक वर्ग कि जीत का नाम ही मई मास के रुसी श्रम दिवस के रूप मे मनाया जाता है। भगवान विश्वकर्मा जी की जन्म तिथि माघ मास त्रयोदशी शुक्ल पक्ष दिन रविवार का ही साक्षत रूप से सुर्य की ज्योति है। ब्राहाण हेली को यजो से प्रसन हो कर माघ मास मे साक्षात रूप मे भगवान विश्वकर्मा ने दर्शन दिये। श्री विश्वकर्मा जी का वर्णन मदरहने वृध्द वशीष्ट पुराण मे है। माघे शुकले त्रयोदश्यां दिवापुष्पे पुनर्वसौ।अष्टा र्विशति में जातो विशवकमॉ भवनि च॥ धर्मशास्त्र माघ शुक्ल त्रयोदशी को ही विश्वकर्मा जयंति का उल्लेख है। प्रभास पुत्र विश्वकर्मा, भुवन पुत्र विश्वकर्मा तथा त्वष्ठापुत्र विश्वकर्मा आदि अनेकों विश्वकर्मा हुए हैं। विश्वकर्मा ने सत्ययुग में स्वर्गलोक का निर्माण , त्रेता युग में लंका , द्वापर में द्वारका और कलियुग के आरम्भ के हस्तिनापुर और इन्द्रप्रस्थ का निर्माण , जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ मन्दिर में स्थित विशाल मूर्तियों (कृष्ण, सुभद्रा और बलराम) का निर्माण किया । भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिव मण्डलपुरी आदि का निर्माण , पुष्पक विमान का निर्माण तथा देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोगी होनेवाले वस्तुएं बनाया गया है। कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशुल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया है।भगवान विराट विश्वकर्मा ने 84 लाख योनियों को उत्पन्न किया।श्री विष्णु भगवान को प्रजा का ठीक सुचारु रूप से पालन और हुकुमत करने के लिये एक अत्यंत शक्तिशाली तिव्रगामी सुदर्शन चक्र प्रदान किया। बाबा भोलेनाथ को डमरु, कमण्डल, त्रिशुल आदि प्रदान कर उनके ललाट पर प्रलयकारी तिसरा नेत्र भी प्रदान कर उन्हे प्रलय की शक्ति देकर शक्तिशाली बनाया। माँ लक्ष्मी राग-रागिनी वाली वीणावादिनी माँ सरस्वती और माँ गौरी को देकर देंवों को सुशोभित किया। विश्वकर्मा के पाँच स्वरुपों और अवतारों में विराट विश्वकर्मा - सृष्टि के रचेता , धर्मवंशी विश्वकर्मा - महान शिल्प विज्ञान विधाता प्रभात पुत्र , अंगिरावंशी विश्वकर्मा - आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र , सुधन्वा विश्वकर्म - महान शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता ऋशि अथवी के पात्र , भृंगुवंशी शुक्राचार्य के पौत्र उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य विश्वकर्मा है। महाभारत में महर्षि विश्वकर्मा और सन्तति की यन्त्रकला,काष्ठ कला , वस्तुशास्र एवं उनके द्वारा निर्मित प्रलयंकारी अस्त्र-शस्त्रों का वर्णन है । महाभारत -आदि पर्व अ. ३६मंत्र ३५ और ३६ ।अर्थ- त्वष्टा की पुत्री संज्ञा भगवान सूर्य की धर्मपत्नी है। वे परम्प सौभाग्यवती है, उन्होने अश्विनी का रुप धारण कर अन्तरिक्ष मे दोनों अश्विनी कुमारों को जन्म दिया। सूर्य के इन्द्र आदि बारह पुत्र है। उनमे भगवान विष्णु सबसे छोटे है। जिनमे ये सम्पूर्ण लोक प्रतिष्ठित है।आदि पर्व अ. ७६ मंत्र ५ से ८ तक मे वर्णित है- एक समय चराचर प्राणियों सहित समस्त त्रिलोकी के ऎश्वर्य के लिये देवताओं और असुरों मे परस्पर बडा भारी संघर्ष हुआ। देवताओं ने अंगिरा मुनि के पुत्र बृहस्पति को पुरोहित के पद पर वरण और दैत्यों ने शुक्राचार्य को पुरोहित बनाया गया है । स्कन्द पुराण प्रभास खंड सोमनाथ माहात्म्य सोम पुत्र संवाद में विश्वकर्मा के दूसरे अवतार का वर्णन इस भातिं मिलता है। ईश्वर उचावः शिल्पोत्पत्तिं प्रवक्ष्यामि श्रृणु षण्मुख यत्नतः। विश्वकर्माSभवत्पूर्व शिल्पिनां शिव कर्मणाम्।। मदंगेषु च सभूंताः पुत्रा पंच जटाधराः। हस्त कौशल संपूर्णाः पंच ब्रह्मरताः सदा।। शिल्प के प्रवर्त्तक विश्वकर्मा पांच मुखों से पांच जटाधरी पुत्र उत्पन्न हुए जिन के नाम मनु, मय, शिल्प, त्वष्टा, दैवेज्ञ थे। तीसरा अवतार आर्दव वसु प्रभास को अंगिरा की पुत्री बृहस्पति जी की बहन योगसिद्ध विवाही गई और अष्टम वसु प्रभाव से जो पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम विश्वकर्मा हुआ जो शिल्प प्रजापति कहलाया इसका वर्णन वायुपुराण अ.22 उत्तर भाग के अनुसार बृहस्पतेस्तु भगिनो वरस्त्री ब्रह्मचारिणी। योगसिद्धा जगत्कृत्स्नमसक्ता चरते सदा।। प्रभासस्य तु सा भार्या वसु नामष्ट मस्य तु। विश्वकर्मा सुत स्तस्यां जातः शिल्प प्रजापतिः।। मत्स्य पुराण अ.5 में भी लिखा हैःविश्वकर्मा प्रभासस्य पुत्रः शिल्प प्रजापतिः। प्रसाद भवनोद्यान प्रतिमा भूषणादिषु। तडागा राम कूप्रेषु स्मृतः सोमSवर्धकी।। अर्थः प्रभास का पुत्र शिल्प प्रजापति विश्वकर्मा देव, मन्दिर, भवन, देवमूर्ति, जेवर, तालाब, बावडी और कुएं निर्माण करने देव आचार्य थे। आदित्य पुराण में भी कहा है किः विश्वकर्मा प्रभासस्य धर्मस्थः पातु स ततः।। पुरणों के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी का प्रपौत्र धर्म की पत्नी वस्तु के पौत्र वास्तु की पत्नी अंगिरशि भुवना के पुत्र विश्वकर्मा का जन्म भाद्रपद शुक्ल एकादशी , कन्या संक्रांति को हुआ था । आंग्ल कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा एवं उपासना की जाती है । भगवान विश्वकर्मा की पत्नी आकृति ,रति ,प्राप्ति और नंदी और पुत्रों में मनु , मय , त्वष्टा ,शिल्पी , दैवज्ञ है ।
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