शुक्रवार, सितंबर 24, 2021

33 कोटि देवता : ब्रह्मांड का रूप ...


सनातन धर्म संस्कृति और वेदन संहिताओं एवं स्मृतियों में ब्रह्मांड की पहचान 33 कोटि देवताओं में 12 आदित्य, 8 वसु,11 रुद्र और इन्द्र व प्रजापति को कुल 33 देवता का उल्लेख  हैं। दैत्यों, दानवों, गंधर्वों, नागों है। देवताओं के ब्रह्मा जी के पौत्र  ऋषि अंगिरा के पुत्र देव गुरु बृहस्पति हैं । देव गुरु बृहस्पति के पुत्र कच ने शुक्राचार्य से संजीवनी विद्या सीखी थी । ब्रह्मा जी के पौत्र  ऋषि भृगु के पुत्र दैत्यगुरु शुक्राचार्य हैं। भृगु ऋषि तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र शुक्राचार्य की कन्या का नाम देवयानी तथा पुत्र का नाम शंद और अमर्क था। देवयानी ने ययाति से विवाह किया था। ऋषि कश्यप की पत्नी अदिति से जन्मे पुत्रों को आदित्य कहा गया है। वेदों में जहां अदिति के पुत्रों को आदित्य कहा गया है, वहीं सूर्य को आदित्य कहा गया है। वैदिक या आर्य लोग दोनों की ही स्तुति करते थे। इसका यह मतलब नहीं कि आदित्य ही सूर्य है या सूर्य ही आदित्य है। आदित्यों को सौर-देवताओं में शामिल किया गया है और उन्हें सौर मंडल का कार्य सौंपा गया है। कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति से उत्पन्न 12 पुत्र में अंशुमान, अर्यमन, इन्द्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, विवस्वान और विष्णु 12 मास समर्पित हैं। पुराणों में धाता, मित्र, अर्यमा, शुक्र, वरुण, अंश, भग, विवस्वान, पूषा, सविता, त्वष्टा एवं विष्णु आदित्य है ।
1. इन्द्र आदित्य  :यह भगवान सूर्य का प्रथम रूप  देवों के राजा के रूप में आदित्य स्वरूप हैं। इनकी शक्ति असीम है। इन्द्रियों पर इनका अधिकार है। शत्रुओं का दमन और देवों की रक्षा का भार इन्हीं पर है।इन्द्र को सभी देवताओं का राजा माना जाता है। वही वर्षा पैदा करता है और वही स्वर्ग पर शासन करता है। वह बादलों और विद्युत का देवता है। इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी थी। छल-कपट के कारण इन्द्र की प्रतिष्ठा ज्यादा नहीं रही। इसी इन्द्र के नाम पर आगे चलकर जिसने भी स्वर्ग पर शासन करने के कारण इन्द्र  कहा जता है ।  तिब्बत के पास इंद्रलोक था। कैलाश पर्वत के कई योजन उपर स्वर्ग लोक है।इन्द्र किसी साधु और धरती के राजा को अपने से शक्तिशाली नहीं बनने देते थे। इसलिए वे कभी तपस्वियों को अप्सराओं से मोहित कर पथभ्रष्ट कर देते हैं , कभी राजाओं के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े चुरा लेते हैं।
ऋग्वेद के तीसरे मंडल के वर्णनानुसार इन्द्र ने विपाशा (व्यास) तथा शतद्रु नदियों के अथाह जल को सुखा दिया जिससे भरतों की सेना आसानी से इन नदियों को पार कर गई। दशराज्य युद्ध में इन्द्र ने भरतों का साथ दिया था। सफेद हाथी पर सवार इन्द्र का अस्त्र वज्र है और वह अपार शक्ति संपन्न देव है। इन्द्र की सभा में गंधर्व संगीत से और अप्सराएं नृत्य कर देवताओं का मनोरंजन करते हैं। 2. धाताआदित्य  :धाता  आदित्य। को  श्रीविग्रह के रूप में जाना जाता है। ये प्रजापति के रूप में जाने जाते हैं। जन समुदाय की सृष्टि में इन्हीं का योगदान है। व्यक्ति सामाजिक नियमों का पालन नहीं करते और व्यक्ति धर्म का अपमान करता है उन पर इनकी नजर रहती है। इन्हें सृष्टिकर्ता भी कहा जाता है।
3. पर्जन्य आदित्य  :पर्जन्य तीसरे आदित्य  मेघों में निवास करते हैं। इनका मेघों पर नियंत्रण हैं। वर्षा के होने तथा किरणों के प्रभाव से मेघों का जल बरसता है। ये धरती के ताप को शांत करते हैं और फिर से जीवन का संचार करते हैं। इनके बगैर धरती पर जीवन संभव नहीं है । 4. त्वष्टा आदित्य :  श्रीत्वष्टा का निवास स्थान वनस्पति में है। पेड़-पौधों में यही व्याप्त हैं। औषधियों में निवास करने वाले हैं। इनके तेज से प्रकृति की वनस्पति में तेज व्याप्त है जिसके द्वारा जीवन को आधार प्राप्त होता है।त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप। विश्वरूप की माता असुर कुल की थीं अतः वे चुपचाप असुरों का  सहयोग करते रहे है । एक दिन इन्द्र ने क्रोध में आकर वेदाध्ययन करते विश्वरूप का सिर काट दिया। इससे इन्द्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा। इधर, त्वष्टा ऋषि ने पुत्रहत्या से क्रुद्ध होकर अपने तप के प्रभाव से महापराक्रमी वृत्तासुर नामक एक भयंकर असुर को प्रकट करके इन्द्र के पीछे लगा दिया। ब्रह्माजी ने कहा कि यदि नैमिषारण्य में तपस्यारत महर्षि दधीचि अपनी अस्थियां उन्हें दान में दें दें तो वे उनसे वज्र का निर्माण कर वृत्तासुर को मार सकते हैं। ब्रह्माजी से वृत्तासुर को मारने का उपाय जानकर देवराज इन्द्र देवताओं सहित नैमिषारण्य की ओर दौड़ पड़े थे । 5. पूषा आदित्य :  आदित्य पूषा का निवास अन्न में  है। समस्त प्रकार के धान्यों में ये विराजमान हैं। इन्हीं के द्वारा अन्न में पौष्टिकता एवं ऊर्जा आती है। अनाज में  स्वाद और रस मौजूद होता है वह इन्हीं के तेज से आता है। 6. अर्यमन आदित्य :  अर्यमा आदित्य  सौर-देवताओं में अर्यमन या अर्यमा को पितरों का देवता  कहा जाता है। आकाश में आकाशगंगा उन्हीं के मार्ग का सूचक है। सूर्य से संबंधित  देवता का अधिकार प्रात: और रात्रि के चक्र पर है।आदित्य का छठा रूप अर्यमा नाम से जाना जाता है। ये वायु रूप में प्राणशक्ति का संचार करते हैं। चराचर जगत की जीवन शक्ति हैं। प्रकृति की आत्मा रूप में निवास करते हैं। 7. भग आदित्य  : भग आदित्य  प्राणियों की देह में अंग रूप में विद्यमान हैं। ये भग देव शरीर में चेतना, ऊर्जा शक्ति, काम शक्ति तथा जीवंतता की अभिव्यक्ति करते हैं। 8. विवस्वान आदित्य : आदित्य विवस्वान अग्निदेव में भगवान सूर्य से   तेज व ऊष्मा व्याप्त है । कृषि और फलों का पाचन, प्राणियों द्वारा खाए गए भोजन का पाचन अग्नि द्वारा होता है। विवस्वान आदित्य के पुत्र  वैवस्वत मनु द्वारा वैवस्वत मन्वन्तर की स्थापना किया गया है । 9. विष्णु आदित्य  : विष्णु आदित्य द्वारा देवताओं के शत्रुओं का संहार करने वाले  हैं। वे संसार के समस्त कष्टों से मुक्ति कराने वाले हैं। विष्णु  आदित्य के रूप में विष्णु ने त्रिविक्रम के रूप में जन्म लिया था। त्रिविक्रम को विष्णु का वामन अवतार  दैत्यराज बलि के काल में हुए थे। विष्णु  आदित्य पत्नी  लक्ष्मी हैं । विष्णु आदित्य को पालनहार  व , क्योंकि प्रार्थना करने से  समस्याओं का निदान होता है। भगवान  विष्णु द्वारा  मानव या अन्य रूप में अवतार लेकर धर्म और न्याय की रक्षा किया जाता  हैं। विष्णु की पत्नी लक्ष्मी सुख, शांति और समृद्धि देती हैं। विष्णु आदित्य  ब्रह्मांड  का अणु है । 10. अंशुमान : अंशुमान आदित्य वायु रूप में  प्राण तत्व बनकर देह में विराजमान से जीवन सजग और तेज पूर्ण रहता है। 11. वरुण आदित्य : वरुण आदित्य जल तत्व का प्रतीक व  मनुष्य में विराजमान हैं । जीवन बनकर समस्त प्रकृति के जीवन का आधार हैं। जल के अभाव में जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। वरुण को असुर समर्थक कहा जाता है। वरुण देवलोक में सभी सितारों का मार्ग निर्धारित करते हैं। वरुण आदित्य देवताओं और असुरों को  सहायता करते हैं। ये समुद्र के देवता और विश्व के नियामक और शासक, सत्य का प्रतीक, ऋतु परिवर्तन एवं दिन-रात के कर्ता-धर्ता, आकाश, पृथ्वी एवं सूर्य के निर्माता है एवं  जादुई शक्ति माया है ।  वरुण  पारसी धर्म में ‘अहुरा मज़्दा’ कहलाए है । 12. मित्र आदित्य :  मित्र आदित्य द्वारा विश्व के कल्याण हेतु तपस्या करने वाले, साधुओं का कल्याण करने की क्षमता रखने वाले मित्र देवता और 12 आदित्य सृष्टि के विकास क्रम में महत्वपूर्ण समन्वय स्थापित करते हैं।
शाकद्वीप का स्वामी  महात्मा भव्य द्वारा शाकद्वीप को जलद ,कुमार ,सुकुमार ,मनिरक ,कुसुमोद ,गेदकी और महाद्रुम वर्ष अर्थात देश की स्थापना कर उदयगिरि , जलधार ,रैवतक ,श्याम ,अमभोगिरि ,आस्तिकेय  एवं केसरी पर्वत को शामिल किया गया था । शाकद्वीप में सुकुमारी , कुमारी ,नलिनी , रेणुका , इक्षु , धेनुका और गभस्ति नदियाँ प्रविहित है ।शाकद्वीप के निवासी भगवान सूर्य के 12 आदित्यों की उपासना करते है । शाकद्वीप में मग , मागध। , मानस और मंदग वर्ण द्वारा भगवान विष्णु आदित्य की उपासना करते है । शाकद्वीप में सौर धर्म का प्रारंभ मग ( ब्राह्मण ) द्वारा किया एवं भगवान सूर्य की उपासना के लिए 12 आदित्यों की उपासना स्थल की स्थापना की गई तथा आयुर्वेद का विकास भगवान सूर्य की पत्नी संज्ञा के पुत्र  देव वैद्य अश्विनी कुमार द्वारा  चिकित्सीय कार्यो को विस्तृत रूप में स्थापना की गयी थी । ऋग्वेद में अश्विनी कुमारों का उल्लेख है ।


   


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