रविवार, सितंबर 12, 2021

सांस्कृतिक समन्वय चेतना का माध्यम हिंदी...


भारत में हिन्दी एवं देवनागरी को विविध सामाजिक क्षेत्रों में आगे लाने के लिये  हिंदी  आन्दोलन में साहित्यकारों, समाजसेवियों नवीन चन्द्र राय, श्रद्धाराम फिल्लौरी, स्वामी दयानन्द सरस्वती,पंडित सत्यनारायण शास्त्री, पंडित गौरीदत्त,भारतेंदु , निराला जी , मैथिलीशरण गुप्त , महावीर प्रसाद द्विवेदी ,  पत्रकारों एवं स्वतंत्रतता संग्राम-सेनानियों महात्मा गांधी, मदनमोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन आदि का विशेष योगदान था। युगान्तकारी ने देश के सांस्कृतिक आवश्यकताओं को पहचान कर  हिन्दी के लिये संघर्ष ,  सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में उसका व्यवहार सुदृढ और  मतरूकात का सिलसिला खत्म करके  हिन्दी को उसी मार्ग बढ़ने की प्रेरणा दी जिस पर बंगला, मराठी, तेलुगू आदि पहले से बढ़ रहीं थीं। हिन्दी का विकास हमारे राष्ट्रीय जीवन के लिये आवश्यक और अपरिहार्य था। विशाल हिन्दी प्रदेश का सांस्कृतिक विकास उर्दू के माध्यम से सम्भव न था। तुलसी , सुर , कवीर , रसखान , जायसी , विहारी आदि ने हिंदी के विकास में श्रेय है । सन् १९२८ में ख्वाजा हसन निजामी ने कुरान का हिन्दी अनुवाद कराया था । 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा के निर्णयानुसर   हिन्दी  केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा  गयी ।  भारत मे क्षेत्रों में  हिंदी भाषा बोले जाने से   हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का निर्णय लिया और इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, हजारीप्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्ददास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर  राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किए थे। वर्ष 1918 में गांधी जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने को कहा था। गांधी जी ने हिंदी को  जनमानस की भाषा कहा था।स्वतंत्र भारत की राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर 14 सितम्बर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया है । भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की अनुच्छेद 343(1) में  संघ की राष्ट्रभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी तथा संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।यह निर्णय 14 सितम्बर को लिया गया ।  हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार राजेन्द्र सिंहा का 14 सितंबर को  50-वां जन्मदिन होने के कारण हिन्दी दिवस के लिए श्रेष्ठ माना गया था। हालांकि जब राष्ट्रभाषा के रूप में इसे चुना गया और लागू किया गया । अंग्रेजी और चीनी भाषा के बाद हिन्दी भाषा विश्व  में तीसरी बड़ी भाषा है। हिन्दी को 177 देशों का समर्थन मिला है ।भारत की पहचान , जीवन मूल्यों, संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक हिंदी   है।  सरल,  सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिंदी विश्व की संभवतः सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में समझने,  बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। यह विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है जो हमारे पारम्‍परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्‍यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिंदी भारत संघ की राजभाषा होने के साथ ही ग्यारह राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल इक्कीस भाषाओं के साथ हिंदी का एक विशेष स्थान है। हिन्दी दिवस के मौके पर राजभाषा विभाग द्वारा सी डैक के सहयोग से तैयार किये गये लर्निंग इंडियन लैंग्‍वेज विद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (लीला) के मोबाइल ऐप का लोकार्पण भी किया गया। इस ऐप से देश भर में विभिन्‍न भाषाओं के माध्‍यम से जन सामान्‍य को हिंदी सीखने में सुविधा और सरलता होगी तथा हिंदी भाषा को समझना, सीखना तथा कार्य करना संभव हो सकेगा।  विदेश मंत्रालय द्वारा ‘‘विश्व हिंदी सम्मेलन’’ और अन्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के माध्यम से हिंदी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाने का कार्य किया जा रहा है । विश्‍वभर में करोड़ों की संख्‍या में भारतीय समुदाय के लोग एक संपर्क भाषा के रूप में हिन्‍दी का इस्‍तेमाल कर रहे हैं। इससे अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर हिन्‍दी को एक नई पहचान मिली है। यूनेस्‍को की सात भाषाओं में हिंदी को भी मान्‍यता मिली है। भारतीय विचार और संस्‍कृति का वाहक होने का श्रेय हिन्‍दी को ही जाता है। संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं में हिंदी की गूंज सुनाई देने लगी है।  सितंबर माह में  प्रधानमंत्री द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में ही अभिभाषण दिया गया था। विश्व हिंदी सचिवालय विदेशों में हिंदी का प्रचार-प्रसार करने और संयुक्त राष्ट्र में हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने के लिए कार्यरत है। हिंदी आम आदमी की भाषा के रूप में देश की एकता का सूत्र है ।  हिंदी के महत्त्व को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था, ‘भारतीय भाषाएं नदियां हैं और हिंदी महानदी’। हिंदी के इसी महत्व को देखते हुए तकनीकी कंपनियां इस भाषा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं । सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्‍दी का इस्‍तेमाल बढ़ रहा है । विश्व  में 175  विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा पढ़ाई जा रही है। ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें बड़े पैमाने पर हिंदी में लिखी जा रही है। सोशल मीडिया और संचार माध्यमों में हिंदी का प्रयोग निरंतर बढ़ रहा है। तकनीकी के युग में वि‍ज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हिंदी में काम को बढ़ावा और देश की प्रगति में ग्रामीण जनसंख्‍या सहित सबकी भागीदारी सुनिश्चित कर रहा है । भाषा रूपी नदियाँ प्रवाहित होकर हिंदी रूपी सागर में समाहित है । भाषा निर्पेक्ष और समन्वय की भाषा हिंदी है । जान संस्कृति नवचेतना का स्तम्भ  हिंदी है । 
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी के प्रति जागरुकता पैदा करने, समय-समय पर हिन्दी की विकास यात्रा का आकलन करने, लेखक व पाठक दोनों के स्तर पर हिन्दी साहित्य के प्रति सरोकारों को और दृढ़ करने, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहन देने तथा हिन्दी के प्रति प्रवासी भारतीयों के भावुकतापूर्ण व महत्त्वपूर्ण रिश्तों को और अधिक गहराई व मान्यता प्रदान करने के उद्देश्य से 1975 में विश्व हिन्दी सम्मेलनआरम्भ की गयी। तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गान्धी द्वारा उद्घाटन पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के सहयोग से नागपुर में सम्पन्न हुआ था । भोपाल में आयोजित दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन का उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मति इंदिरा गांधी द्वारा  10 अक्टूबर  1975 किया गया था । विश्व हिन्दी सम्मेलन  का सम्मेलन मारीशस, नई दिल्ली, पुन: मारीशस, त्रिनिडाड व टोबेगो, लन्दन, सूरीनाम न्यूयार्क और जोहांसबर्ग और २०१५ में भोपाल में आयोजित हुआ। २०१८ में इसका आयोजन मॉरीशस में प्रस्तावित है। 14 जनवरी 1975 नागपुर ,  भारत , 30 अगस्त 1976 पोर्ट लुई , मारीशस , 30  अक्टूबर 1983  नई दिल्ली ,  भारत , 2 -4 दिसम्बर 1993 पोर्ट लुई ,  मारीशस , 8 अप्रैल 1996 त्रिनिडाड-टोबेगो त्रिनिदाद और टोबैगो , 18  सितम्बर 1999 लंदन , यूनाइटेड किंगडम , 9  जून 2003 ,पारामरिब , सूरीनाम , 15 जुलाई 2007 यूयार्क संयुक्त राज्य अमेरिका , सितम्बर 2012 , जोहांसबर् , दक्षिण अफ्रीका , 10 -12 सितम्बर 2015 भोपाल् , भारत , 18-20  अगस्त 2018  पोर्ट लुई मॉरिशस तथा 12 वां विश्व हिंदी सम्मेलन फिजी के सुअवा सिटी में हुआ था ।प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10  जनवरी से 14  जनवरी 1975 तक नागपुर में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा  द्वारा  आयोजित किया गया।  सम्मेलन से सम्बन्धित राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष महामहिम उपराष्ट्रपति श्री बी डी जत्ती थे। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अध्यक्ष श्री मधुकर राव चौधरी उस समय महाराष्ट्र के वित्त, नियोजन व अल्पबचत मन्त्री थे। पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन का बोधवाक्य था - वसुधैव कुटुम्बकम। सम्मेलन के मुख्य अतिथि थे मॉरीशस के प्रधानमन्त्री श्री शिवसागर रामगुलाम, जिनकी अध्यक्षता में मॉरीशस से आये एक प्रतिनिधिमण्डल ने भी सम्मेलन में भाग लिया था। इस सम्मेलन में  30  देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना 1 मई 1910 ई. में नागरी प्रचारिणी सभा के तत्वावधान में हुआ। 1 मई सन् 1910 को काशी नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी की एक बैठक में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का एक आयोजन करने का निश्चय किया गया है । सम्मेलन रूपी इस विशाल वटवृक्ष की प्रशाखाएँ पूरे देश में हिन्दी प्रचार में लगी हुई हैं। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के माध्यम से जुड़ी हैं। उत्तरप्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन; मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल; हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, गुड़गाँव; बम्बई प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, बम्बई; दिल्ली प्रान्तीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, दिल्ली; विन्ध्य प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, रीवा; ग्रामोत्थान विद्यापीठ, सँगरिया, राजस्थान; मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद्, बैंगलूर; मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति, इंदौर; भारतेन्दु समिति कोटा, राजस्थान तथा साहित्य सदन, अबोहर , बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन पटना हैं। स्थापना वर्ष सन् 1910 से  प्रत्येक वर्ष हिन्दी साहित्य सम्मेलन अधिवेशन की गौरवमयी परंपरा 1910 से निरंतर चलती आ रही है । काशी , प्रयाग ,कलकत्ता,भागलपुर , लखनऊ, जबलपुर, इंदौर, बंबई, लाहौर, कानपुर, दिल्ली, देहरादून, वृंदावन, भरतपुर, मुजफ्फरपुर, गोरखपुर, झाँसी, ग्वालियर, नागपुर, मद्रास, शिमला, पूना, अबोहर, हरिद्वार, जयपुर, उदयपुर, करांची, मेरठ, हैदराबाद और कोटा आदि में अधिवेशन हुए। हिन्दी साहित्य सम्मलेन के सभापति में 01 . महामना पंडित मदनमोहन मालवीय (सन् 1910) , 02 .पंडित गोविन्दनारायण मिश्र (सन् 1911) ,03 . उपाध्याय पंडित बद्रीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' (सन् 1912) ,04 . महात्मा मुंशीराम (स्वामी श्रद्धानंद) (सन् 1913) ,05  श्रीधर पाठक (सन् 1914) ,06  राय बहादुर बाबू श्यामसुंदर दास बी०ए० (सन् 1915) ,07. महामना महामहोपाध्याय पंडित रामावतार शर्मा (सन् 1916) , 08  कर्मवीर मोहनदास करमचंद गाँधी (सन् 1918) , 09 महामना पंडित मदन मोहन मालवीय (सन् 1919) ,10 . राय बहादुर पंडित विष्णु दत्त शुक्ल (सन् 1920) ,11 . डॉ० भगवान दास एम० ए० डी० लिट् (सन् 1921) ,12  पंडित जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी (सन् 1922) ,13  पुरुषोत्तम दास टंडन (सन् 1923) ,14 . पंडित अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (सन् 1924) ,15  पंडित माधवराव सप्रे (सन् 1924) ,16 . श्री अमृतलाल चक्रवर्ती (सन् 1925) ,17.  म०म०रा०ब० पंडित गौरीशंकर हीराचन्द ओझा (सन् 1926) ,18 . पंडित पद्मसिंह शर्मा (सन् 1928) ,19 . श्री गणेश शंकर विद्यार्थी (सन् 1930) ,20  बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर बी०ए० (सन् 1931) ,21 पंडित किशोरीलाल गोस्वामी (सन् 1932) ,22. राव राजा डॉ० श्याम बिहारी मिश्र एम०ए० (सन् 1933) ,23 . महाराजा सर सयाजीराव गायकवाड़ (वडोदरा) (सन् 1934) ,24  महात्मा मोहनदास करमचंद गाँधी (सन् 1935) ,25 . डॉ० राजेंद्र प्रसाद (सन् 1936) ,26 . सेठ जमनालाल बजाज (सन् 1937) ,27 . पंडित बाबूराव विष्णु पराडकर (सन् 1938) ,28 . पंडित अम्बिका प्रसाद वाजपेयी (सन् 1939) ,29  श्री संपूर्णानंद (सन् 1940) ,30 . डॉ० अमरनाथ झा (सन् 1941) ,31 . पंडित माखनलाल चतुर्वेदी (सन् 1943) हुए है ।  बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना मुजफ्फरपुर के हिन्दू भवन में 19 अक्टूबर 1919 को, श्रीयुत जगन्नाथ प्रसाद एम॰ ए॰ बी॰ एल॰ काव्यतीर्थ के सभापतित्व में, हिन्दी सेवियों और हिन्दी प्रेमियों की एक सार्वजनिक सभा हुई ।  1920 में सम्मेलन का 10वां अधिवेशन बिहार में सुनिश्चित हुआ और इसी के साथ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की सुगबुगाहट भी शुरू हुई थी । डॉ राजेंद्र प्रसाद के विशेष पहल व लक्ष्मी नारायण सिंह, मथुरा प्रसाद दीक्षित, बाबू वैद्यनाथ प्रसाद सिंह, पीर मोहम्मद यूनिस, लतीफ हुसैन नटवर और पंडित दर्शन केशरी पांडेय जी के प्रयास से मुजफ्फरपुर के हिन्दू भवन में 19 अक्टूबर 1919 को जगन्नाथ प्रसाद के सभापतित्व में सार्वजनिक सभा हुई जिसमें बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन की स्थापना का निर्णय हुआ। 1919 में साहित्य सम्मेलन की स्थापना के बाद 1920 में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का 10वां सम्मेलन पटना में आयोजित करने की घोषणा हुई थी। जिसको लेकर ही पटना में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना की गई। शुरू में ज़मीन उपलब्ध न होने के चलते किराए की भूमि पर इसके कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था। पहले इसका मुख्यालय मुजफ्फरपुर में हुआ करता था फिर 1935 में इस मुख्यालय को पटना में लाया गया और 1937 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के लिए कदमकुआं में अपनी ज़मीन मिली। साहित्य सम्मेलन प्रारंभ से ही हिन्दी साहित्य जगत की बड़ी विभूतियों और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े सारे बड़े नेताओं का केन्द्र हुआ करता था। डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद सहित हिंदी विभूतियां द्वारा बिहार  साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष पद को सुशोभित करते रहे। हिंदी के विकास का श्रय पूर्व प्रधान मंत्री अटलबिहारी बाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी का रूप दिया वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा हिंदी को विश्व स्तरीय मंच पर संयुक्त राष्ट्र में हिंदी की गरिमा बढ़ाई गई है । बिहार में बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन , बिहार हिंदी ग्रंथ अकादमी , बिहार राष्ट्रभाषा परिषद और राजभाषा विभाग बिहार सरकार हिंदी के विकास में सक्रिय है।

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