वेदों पुरणों एवं संहिताओं में भगवान शिव की उपासना का उल्लेख किया गया है।भगवान शिव की उपासना आराधना पूजन विश्व के विभिन्न देशों में शिव की पूजा का प्रचलन हैं। इस्लामिक स्टेट द्वारा नेस्तनाबूद कर दिए गए प्राचीन शहर पलमायरा, नीमरूद आदि नगरों में भी शिव की पूजा के प्रचलन के अवशेष मिले हैं।इटली का शहर रोम के रोमनों द्वारा शिवलिंग की पूजा 'प्रयापस' के रूप में की जाती थी। रोम के वेटिकन शहर में उत्खनन के दौरान शिवलिंग प्राप्त होने के पश्चात ग्रिगोरीअन एट्रुस्कैन म्यूजियम में रखा गया है। इटली के रोम में स्थित वेटिकन सिटी का आकार स्वरूप शिवलिंग की तरह है । पुरातात्विक निष्कर्षों के अनुसार प्राचीन शहर मेसोपोटेमिया और बेबीलोन में शिवलिंग की पूजा किए जाने के सबूत मिले हैं। मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा की विकसित संस्कृति में शिवलिंग की पूजा किए जाने के पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हैं। मानव सभ्यता के आरंभ में लोगों का जीवन पशुओं और प्रकृति पर निर्भर रहने के कारण पशुओं के संरक्षक देवता के रूप में पशुपति की पूजा करते थे। सैंधव सभ्यता से प्राप्त सील पर तीन मुंह वाले एक पुरुष को दिखाया गया है जिसके आस-पास कई पशु हैं। 2300-2150 ई. पू . सुमेरिया, 2000-400 ई. पू. , बेबीलोनिया, 2000-250 ई .पू . , ईरान में 2000-150 ई . पू . , मिस्र (इजिप्ट) में 1450-500 ई. पू . असीरिया में 1450-150 ई . पू . , ग्रीस (यूनान) में 800-500 ई . पू . रोम की सभ्यताएं विद्यमान थीं। 3500 ई . पू . भारत में शैव सभ्यता थी। आयरलैंड के तारा हिल में स्थित एक लंबा अंडाकार रहस्यमय पत्थर शिवलिंग को लिअ फ़ैल स्टोन ऑफ डेस्टिनी अर्थात भाग्यशाली शिवलिंग पत्थर को फ्रांसीसी भिक्षुओं द्वारा 1632-1636 ई . के मध्य में लिखित दस्तावेज के अनुसार 4 अलौकिक लोगों द्वारा स्थापित किया गया था। विक्रम संवत के सहस्राब्दी पूर्व संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ। आदिमानव को रुद्र (शिव) का आविर्भाव दिखा। जहां-जहां उल्का पिंड गिरे, वहां-वहां 108 ज्योतिर्लिंग पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मंदिर बना दिए गए। शिवपुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। मक्का का संग-ए-असवद आकाश से गिरा था। साउथ अफ्रीका की सुद्वारा गुफा में महादेव की 6,000 वर्ष पुरानी शिवलिंग की मूर्ति कठोर ग्रेनाइट पत्थर से बनाया गया है। शिवलिंग के 3 हिस्से में पहला हिस्सा नीचे चारों ओर भूमिगत भगवान ब्रह्मा , मध्य भाग में आठों ओर एक समान बैठक भगवान विष्णु और अंत में शीर्ष भाग अंडाकार भगवान शिव की पूजा की जाती है। शिवलिंग की ऊंचाई संपूर्ण मंडल या परिधि की एक तिहाई होती है। शिव के माथे पर 3 रेखाएं (त्रिपुंड) और 1 बिन्दु होती हैं । शिव मंदिरों के गर्भगृह में गोलाकार आधार के बीच रखा गया एक घुमावदार और अंडाकार शिवलिंग है। ऋषि और मुनियों , महर्षियों द्वारा ब्रह्मांड के वैज्ञानिक रहस्य को समझकर सत्य को प्रकट करने के लिए विविध रूप में शिवलिंग को उल्लेख किया गया है। शिव का अर्थ 'परम कल्याणकारी शुभ' और 'लिंग' का अर्थ है- 'सृजन ज्योति'। वेदों और वेदांत में 'लिंग' शब्द सूक्ष्म शरीर के लिए आता है। यह सूक्ष्म शरीर 17 तत्वों से बना होता है। 1. मन, 2. बुद्धि, 3. पांच ज्ञानेन्द्रियां, 4. पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु , भृकुटी के बीच स्थित आत्मा बिंदु रूप है । शिवलिंग भगवान शिव की रचनात्मक और विनाशकारी पवित्र शक्तियों को प्रदर्शित करता है। शिवपुराण के अनुसार ज्योति का प्रतीक शिवलिंग है। शिव का अर्थ शुभ और लिंग' का अर्थ ज्योति को भगवान शिव का आदि-अनादि स्वरूप शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक शिव 'लिंग' है। स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि शिवलिंग को अनंत ब्रह्म रूप में शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्रह्मांड में घूम रही आकाशगंगा की तरह है। शिवलिंग ब्रह्मांड में घूम रहे पिंडों का प्रतीक है। वेदानुसार ज्योतिर्लिंग व्यापक प्रकाश है । शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड है। स्कंदपुराण के अनुसार आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार और सबके अनंत शून्य से पैदा होकर उसी में लय होने के कारण इसे 'लिंग' कहा गया है। वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनंत ब्रह्मांड , ब्रह्मांड गतिमान का अक्स/धुरी लिंग है। शिवलिंग को नाद और बिंदु का प्रतीक , पुराणों में ज्योतिर्बिंदु , प्रकाश स्तंभ लिंग, अग्नि स्तंभ लिंग, ऊर्जा स्तंभ लिंग, ब्रह्मांडीय स्तंभ लिंग है । शिवलिंग ब्रह्मांड और ब्रह्मांड की समग्रता का प्रतिनिधित्व करता है। शिवलिंग का पहला आकाशीय या उल्का पिण्ड कला अंडाकार लिए हुए मक्का के काबा में शिवलिंग स्थापित एवं भारत में ज्योतिर्लिंग है । मानव द्वारा निर्मित दूसरा पारे से निर्मित पारद शिवलिंग है । पारद शिवलिंग पारद विज्ञान पुरातन वैदिक विज्ञान है । शिवपुराण , लिंगपुराण , वासव पुराण के अनुसार शिवलिंग 6 प्रकार है ।
1. देव लिंग : - जिस शिवलिंग को देवताओं या अन्य प्राणियों द्वारा स्थापित किया गया हो, उसे देवलिंग कहते हैं। धरती पर मूल पारंपरिक रूप से यह देवताओं के लिए पूजित है। गया स्थित पितमहेश्वर में ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित शिव लिंग को पितमहेश्वर कहा गया है । 2. असुर लिंग : - असुरों , दैत्यों , राक्षसों द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा एवं उपासना की जाती वह असुर शिव लिंग है । राक्षस राज रावण ने लंका एवं झारखंड के देवघर में शिवलिंग स्थापित किया था । देवताओं से द्वेष रखने वाले असुर , दैत्य एवं राक्षस द्वारा भगवान शिव की उपासना किया गया है । 3. अर्श लिंग : - प्राचीनकाल में ऋषियों , महर्षियों , मुनियों द्वारा स्थापित शिवलिंग को अर्श शिवलिंग है । भृगु ऋषि , च्यवन ऋषि , मार्कण्डेय ऋषि , भारद्वाज ऋषि , दधीचि ऋषि ,अगस्त्य मुनि संतों द्वारा स्थापित अर्श शिव लिंग की पूजा की जाती थी। 4. पुराण लिंग :- पौराणिक काल के मानव द्वारा स्थापित शिवलिंग को पुराण शिवलिंग है। इस लिंग की पूजा पुराणिकों द्वारा की जाती है। बिहार के औरंगाबाद जिले का देवकुण्ड स्थित बाबा दुग्धेश्वर नातन आदि जगहों पर शिव लिंग स्थापित है ।नागों द्वारा स्थापित शिवलिंग को नागेश्वर कहा गया है । 5. मनुष्य लिंग : - प्राचीनकाल , मध्यकाल में महापुरुषों, अमीरों, राजा-महाराजाओं द्वारा स्थापित किए गए लिंग को मनुष्य शिवलिंग कहा गया है। 6. स्वयंभू लिंग : - भगवान शिव स्वयं शिवलिंग के रूप में प्रकट होने के कारण शिवलिंग को स्वयंभू शिवलिंग कहते हैं। भारत में स्वयंभू शिवलिंग उत्तराखण्ड का केदारनाथ , नेपाल का पशुपति नाथ , झारखंड के रांची स्थित पहाड़ी मंदिर के स्थित शिवलिंग , बिहार के बराबर पर्वत समूह के सूर्यान्क गिरी पर स्थित सिद्धेश्वर नाथ , उत्तरप्रदेश के काशी का बाबा विश्वनाथ , उज्जैन में स्थित महाकाल , रामेश्वर , मल्लिकार्जुन , भीमशंकर , आदि ज्योतिर्लिंग , नाथ के रूप में शिवलिंग स्थानों पर स्थापित है । शिवलिंग को पंचामृत से स्नानादि कराकर भस्म से 3 आड़ी लकीरों वाला तिलक लगाएं जलाधारी पर हल्दी चढ़ाई जाती है।शिवलिंग पर दूध, जल, काले तिल चढ़ाने के बाद बेलपत्र , कनेर, धतूरे, आक, चमेली, जूही के फूल चढ़ाते हैं। शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ प्रसाद ग्रहण नहीं किया जाता वल्कि रखा गया प्रसाद अवश्य लेते हैं।शिव मंदिर की आधी परिक्रमा की जाती है । शिवलिंग के पूजन से पूर्व पार्वतीजी का पूजन करना है। शिवपुराण का विशेश्वर संहिता के अनुसार शिवलिंग की स्थापना नदी आदि के तट पर आर्याणि चाहिए ।पार्थिव द्रव्य से ,जलमय द्रव्य से , छोटा शिवलिंग की पूजा श्रेष्ठकर है । शिवलिंग का पीठ ऑल , चौकोर ,तरीकों,ऊपर नीचे मोटा और बीच में पतला शिवलिंग यहां फलदेनेवाला होता है । शिवलिंग की लंबाई स्थापना करनेवाले के 12 अंगुल बराबर होना चाहिए । शिव मंदिर का द्वार पूर्व या पश्चिम आवश्यक है । मिट्टी , आटा , गाय गोबर , फूल ,कनेर पुष्प ,फल, गुड़ , मक्खन , भष्म अथवा अन्न से शिवलिंग निर्माण कर शिव की उपासना करने से अभीष्ट फल मिलता है । भगवान शिव की प्रातः काल को उपासना शास्त्र विहित नित्यकर्म के अनुष्ठान का समय , मध्यकाल में सकाम कर्म ,सायं काल में शांति कर्म , रात्रि के निशीथ काल में भगवान की उपासना , पूजा करने वालों को अभीष्ट फल मिलता है । नागों द्वारा स्थापित शिव लिंग में नाग का चिह्न तथा एक मुखी , द्विमुखी , चतुर्मुखी ,एवं पंचमुखी शिवलिंग प्राचीन काल की शिव लिंग है ।
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