सोमवार, अक्तूबर 11, 2021

शक्तिस्थल पटनदेवी पटना ...


शाक्त सम्प्रदाय एवं सनातन धर्म संहिताओं में शक्ति पीठों का उल्लेख किया गया है । बिहार की राजधानी का नाम प्राचीन काल में पाटन पतन , पाटन ,पटन , पाटलिपुत्र , कुसुमपुर , पटना  माता पाटन देवी , पटन देवी के नाम पर है । पटना में माता बड़ी पटन देवी और छोटी पटनदेवी पाटली ग्राम की रक्षिका थी ।  पटना की सिद्ध शक्तिपीठ मां पाटेश्वरी का मंदिर देवी 51 शक्तिपीठों में स्थान  है ।  प्रजापति दक्ष के यज्ञ में अपने पति महादेव का स्थान नही  देखकर नाराज माता  सती ने अपमान से क्रोधित होकर अपने प्राण त्याग दिये।  माता सती की आहुति  से क्षुब्ध होकर शिव दक्ष-यज्ञ को नष्ट कर सती के शव को अपने कंधे पर रखकर तीनों लोक में घूमने लगे, तो संसार-चक्र में व्यवधान उत्पन्न हो गया। तब विष्णु ने सती-शव के विभिन्न अंगों को सुदर्शन-चक्र से काट-काटकर भारत के भिन्न-भिन्न स्थानों पर गिरा दिया। पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ सती के शव के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हुए। सती का वाम स्कन्ध पाटम्बर अंग पटना गंगा के तट पर  आकर गिरनके के कारण  देवी पाटन के नाम से प्रसिद्ध है । देवी पाटन की देवी का प्राचीन नाम पातालेश्वरी देवी के रूप में प्राप्त होता है। मगध साम्राज्य का राजा आजातशत्रु के पुत्र उदयन द्वारा पाटन को पाटलिपुत्र नगर की स्थापना बाद में ब्रिटिश शासन ने पाटन को पटना 1912 ई. में बिहार की राजधानी पटना रख दिया गया था।पटना शहर में पटन देवी मंदिर स्थित है, इसको 51 शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है। पटन देवी को बड़ी पटन देवी मंदिर व पाटन देवी मंदिर के नाम से  जाना जाता है। बिहार की राजधानी का नाम पटना बताया जाता है कि जब साल 1912 में बिहार एवं उड़ीसा की राजधानी पटना  हुई है । पटन देवी मंदिर मंदिर पौराणिक काल से प्रसिद्ध है और यहां पर दर्शन के लिए हजारों श्रद्धालु आते है। पटन मंदिर का पौराणिक महत्व पौराणिक कथाओं के मुताबिक, माता सती के पिता दक्ष प्रजापति एक यज्ञ का आयोजन किया था। उसी यज्ञ में राजा दक्ष प्रजापति ने अपनी बेटी सती के पति यानी शिव भगवान का अपमान कर दिया। जिससे देवी सती बेहद नाराज हो गईं और देवी सती ने इसी यज्ञ के अग्नि कुंड में कूद कर अपना जीवन समाप्त कर लिया था। जब इस बारे में भगवान शिव को पता चला तो वो काफी क्रोधित हो गए थे। क्रोध में आकर महादेव ने सती के मृत शरीर को अपने हाथों में लिया व घमासान तांडव करने लगे। महादेव के तांडव से पूरा संसार कांप गया था। तब भगवान विष्णु ने अपना चक्र उठाया, जिससे माता सती का मृतक शरीर 51 टुकड़ों में विभाजित हो गया था। जो टुकड़े विभिन्न स्थानों पर जाकर गिरे।  जिस स्थान पर देवी सती का दाहिना जांघ गिरा था।  इस वजह से यह यह शक्तिपीठ पटन देवी मंदिर के रुप में प्रख्यात हो गई।  चंद्रगुप्त का महामात्य चाणक्य की आराध्य देवी पाटन तथा रक्षिका भगवती पटनेश्वरी के नाम से पहचाना जाता है ।  मंदिर जानकारी के अनुसार पटना में पटन देवी मंदिर के दो स्वरूप हैं। एक छोटी पटन देवी व दूसरी बड़ी पटन देवी  मंदिर पटना शहर की रक्षा करता है। पटनेश्वरी  मंदिर में महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती की मूर्तियां  स्थापित हैं।
 राजा पत्रक की आराध्य देवी पटना स्थित महराजगंज की भूमि पर माता पाटन के नाम पर  पटन नगर की स्थापना की कालांतर पाटन को पटना के नाम से ख्याति प्राप्त हुई । पाटन के राजा पत्रक की भर्या पाटली द्वारा जादू से  पटली नगर का निर्माण किया। रानी पाटली द्वारा  पाटलिग्राम की स्थापना की थी । बादमें पाटली ग्राम को पाटलिपुत्र कहा गया । पाटलिपुत्र में मगध साम्राज्य का राजा अशोक का पुत्र महेंद्र के नाम पर गंगा के किनारे महेंद्रू पाटन पतन ( बंदरगाह ) था । कालांतर में गंगा के किनारा को महेन्द्रू घाट के नाम से ख्याति है ।
पुरातात्विक अनुसंधानो के अनुसार पटना का इतिहास 490 ई. पू . मगध साम्राज्य का राजा हर्यक वंशीय  आजातशत्रु के पुत्र उदयन  ने मगध की राजधानी राजगृह से बदलकर पाटलिपुत्र में  स्थापित की थी ।उदयन द्वारा  गंगा के किनारे दुर्ग स्थापित किया गया था । बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध अन्तिम दिनों में पाटलिपुत्र  से गुजरे थे। मगध साम्राज्य का राजा  चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य बंगाल की खाड़ी से अफ़ग़ानिस्तान तक फैल गया था। पाटलिपुत्र लकड़ियों से निर्मित भवन को  सम्राट अशोक ने नगर को शिलाओं की संरचना में तब्दील किया। चीन के फाहियान ने सन् 399-414 तक भारत यात्रा-वृतांत में पाटलिपुत्र  के शैल संरचनाओं का जीवन्त वर्णन किया है। यूनानी इतिहासकार मेगास्थनीज़, चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में पाटलिपुत्र नगर का प्रथम लिखित विवरण दिया। ज्ञान की खोज में चीनी यात्री यहां आए और उन्होने भी यहां के बारे में, अपने यात्रा-वृतांतों  उल्लेख किया है । गुप्त वंश के शासनकाल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है। 12 वीं सदी में बख़्तियार खिलजी ने बिहार पर अपना अधिपत्य जमा लिया और कई आध्यात्मिक प्रतिष्ठानों को ध्वस्त कर डाला। पटना देश का सांस्कृतिक और राजनैतिक केन्द्र नहीं रहा।मुगलकाल में दिल्ली के सत्ताधारियों ने यहां अपना नियंत्रण बनाए रखा। इस काल में सबसे उत्कृष्ठ समय तब आया जब शेरसाह सूरी ने नगर को पुनर्जीवित करने की कोशिश की। उसने गंगा के तीर पर एक किला बनाने की सोची। उसका बनाया कोई दुर्ग तो अभी नहीं है, पर अफ़ग़ान शैली में बना एक मस्जिद अभी भी है।मुगल बादशाह अकबर 1574 में अफ़गान सरगना दाउद ख़ान को कुचलने पटना आया। अकबर के राज्य सचिव एवं आइने अकबरी के लेखक  अबुल फ़जल ने इस जगह को कागज, पत्थर तथा शीशे का सम्पन्न औद्योगिक केन्द्र के रूप में वर्णित किया है। पटना राइस के नाम से यूरोप में प्रसिद्ध चावल के विभिन्न नस्लों की गुणवत्ता का उल्लेख भी इन विवरणों में मिलता है । मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपने पोते मुहम्मद अज़ीम के अनुरोध पर 1704 में, शहर का नाम अजीमाबाद कर दिया। अज़ीम उस समय पटना का सूबेदार था।  मुगल साम्राज्य के पतन के साथ ही पटना बंगाल के नबाबों के शासनाधीन हो गया जिन्होंने इस क्षेत्र पर भारी कर लगाया पर इसे वाणिज्यिक केन्द्र बने रहने की छूट दी। १७वीं शताब्दी में पटना अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र बन गया। अंग्रेज़ों ने 1620 में यहां रेशम तथा कैलिको के व्यापार के लिये यहां फैक्ट्री खोली। जल्द ही यह सॉल्ट पीटर (पोटेशियम नाइट्रेट) के व्यापार का केन्द्र बन गया जिसके कारण फ्रेंच और डच लोग से प्रतिस्पर्धा तेज हुई। बक्सर के निर्णायक युद्ध के बाद नगर इस्ट इंडिया कंपनी के अधीन चला गया और वाणिज्य का केन्द्र बना रहा। 1912, में बंगाल के विभाजन के बाद, पटना उड़ीसा तथा बिहार की राजधानी बना। पटना शहर का ऐतिहासिक महत्व है। पटना संसार के गिने-चुने उन विशेष प्राचीन नगरों में से एक है जो अति प्राचीन काल से आज तक आबाद है। ईसा पूर्व मेगास्थनीज(350 ईपू-290 ईपू) ने अपने भारत भ्रमण के पश्चात लिखी अपनी पुस्तक इंडिका में इस नगर का उल्लेख किया है। पलिबोथ्रा (पाटलिपुत्र) गंगा और अरेन्नोवास (सोनभद्र-हिरण्यवाह) , पुनपुन नदी  के संगम पर बसा था। प्राचीन पटना पलिबोथा 9 मील (14.5 कि॰मी॰) लम्बा तथा 1.75 मील (2.8 कि॰मी॰) चौड़ा था।  पटना 15 कि॰मी॰ लम्बा और 7 कि॰मी॰ चौड़ा है। सिक्खों के 10वें तथा अंतिम गुरु गुरू गोविन्द सिंह का जन्म पटना में  हुआ था। प्रति वर्ष देश-विदेश से लाखों सिक्ख श्रद्धालु पटना में हरमन्दिर साहब के दर्शन करने आते हैं तथा मत्था टेकते हैं। पटना एवं इसके आसपास के प्राचीन भग्नावशेष/खंडहर नगर के ऐतिहासिक गौरव के मौन गवाह हैं तथा नगर की प्राचीन गरिमा को प्रदर्शित करते हैं। दिवारों से घीरा पटना  नगर का पुराना क्षेत्र, पटना सिटी  जाना जाता है। । पटना नाम पटन देवी  से प्रचलित हुआ है। एक अन्य मत के अनुसार यह नाम संस्कृत के पत्तन से आया है जिसका अर्थ बन्दरगाह होता है। मौर्यकाल के यूनानी इतिहासकार मेगस्थनीज ने इस शहर को पालिबोथरा तथा चीनीयात्री फाहियान ने पालिनफू के नाम से संबोधित किया है। पटना को , पाटन , पत्रक , पाटली , पाटलिग्राम, पालिवोथरा , पालिवोथा ,  पाटलिपुत्र, पालिनफू , पुष्पपुर, कुसुमपुर, अजीमाबाद , पैठना , और पटना कहा गया है । शेरशाह ने पैठना' रखा था ।  शेर शाह के मृत्यु के पश्चात् अंतिम हिन्दु सम्राट हेमचंद्र विक्रमादित्य ने पटना कर दिया। प्राचीन पटना पाटलिग्राम सोन और गंगा नदी के संगम पर स्थित था। सोन नदी  दो हजार वर्ष पूर्व अगमकुँआ से आगे गंगा में मिलती थी। पाटलिग्राम में गुलाब (पाटली का फूल) काफी मात्रा में उपजाया जाता था। गुलाब के फूल से तरह-तरह के इत्र, दवा आदि बनाकर उनका व्यापार किया जाता था । 

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