मंगलवार, अक्तूबर 05, 2021

भष्म सनातन संस्कृति...


पुरातन में हैंड सैनिटाइजर के रूप में राख थी । साबुन , सर्फ का उत्पादन के पूर्व में नही होने के कारण  हाथ धोने के लिए चूल्हे की लकड़ी तथा गोबर के उपलों के जलाये जाने वाले राख का प्रयोग किया जाता था । वैज्ञानिको के अनुसार राख में सभी तत्व पौधों में उपलब्ध मोजोर , मिनॉर एलिमेंट पौधे, या  मिट्टी से ग्रहण करते है । राख में कॉलसिम , पोटॉसिम ,एल्मुनियम, मोगनेसिम आयरन , फॉस्फोरस मोगनेसिम, सोडियम ,और नाइट्रोजन के साथ जिंक , बॉर्न ,क्रोमियम , निकेल , कॉपर ,लीड , मोलयोडेनम ,आर्सेनिक , कॉडमिम , मरकरी ,सेलेनियम सबसे अधिक मात्रा में  है । राख में मौजूद कॉलसिम और पोटेसियम  के कारण पी एच 9 से 13.5 तक होती है। पी एच  के कारण जब व्यक्ति हाथ में राख  तथा पानी डालकर रगड़ने के कारण साबुन की तरह रगड़ने पर जीवाणुओं और विषाणुओं का खात्म कर देता है । सनातन धर्म के राख तथ्य की विशेषता के प्रति  विश्व अपनाने पर विवश है। सनातन धर्म में भष्म को  भष्म , राख , भभूत , भवभूत एवं विभूति कहा गया है । देवों , देवियों , यज्ञों में हवन , धूप अर्पित किए जाने वाले को भभूत , भोजन पकाने वाले उपला  , लकड़ी को जलाने  पर अवशिष्ट को राख और मृत देह को  जलाने वाले  लकड़ी , उपला के अवशिष्ट को भष्म , अगजा में होलिका दहन में जलने पर बचे राख को भष्म कहा जाता है ।  मृत व्यक्ति की देह की राख को पानी में मिलाने से वह पंचतत्वों में समाहित हो जाती है। मृत देह को अग्नि तत्व के हवाले करते समय उसके साथ लकड़ियाँ, घी और उपले भी जलाये जाते हैं और अंततः जो राख पैदा होती है उसे जल में प्रवाहित किया जाता है।जल में प्रवाहित की गई राख जल के लिए डिसइंफैकटेन्ट का काम करती है। इस राख के कारण मोस्ट प्रोबेबिल नम्बर ऑफ कोलीफॉर्म एम पी एन में कमी आती है और साथ ही डिजोल्वड ऑक्सीजन डी ओ  की मात्रा में बढ़ोत्तरी होती है।
वैज्ञानिक अध्ययनों में यह स्पष्ट हो चुका है कि गाय के गोबर से बनी राख डिसइन्फेक्शन पर्पज के लिए लो कोस्ट एकोफ़्रेंडली विकल्प है जिसका उपयोग सीवेज वाटर ट्रीटमेंट  के लिए भी किया जा सकता है। वेदों एवं संहिताओं के अनुसार देवदार , गुगुल , चंदन , चावल , गुड़ , नारियल , मखाना , कला तील , जटामासी , अगर , तगड , घी , जव को मिलाकर जलाने से नकारात्मक ऊर्जा की समाप्ति , वायु प्रदूषण से मुक्ति , मैन की शांति ,सकारात्मक ऊर्जा का संचार होते है । हवन में जल हुए भवभूत को ललाट पर लगाने से मानसिक शांति एवं शारिरिक क्षमता का विकास तथा सकारात्मक ऊर्जा का समावेश होता है । उज्जैन स्थित बाबा महाकाल का भष्म प्रिय है । सभी पूजन  कार्यो में धूप जलाने की महत्वपूर्ण  परंपरा है । धूम जलाने से राख होने के बाद विभूति कोभक्त गैन उपासक ललाट पर लगाते है । भस्म का इस्तेमाल वसावसंप्रदाय के अनुयायी करते है । यज्ञ में दी गयी आहुति से वायुमंडल में फैले विशाणु नष्ट कर शुद्ध होते है। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार स्वर्ण भस्म , चांदी भस्म , लौह भष्म , ताम्रभस्म ,  पारा भष्म  मानव जीवन में निरोगता , स्वास्थ्य , मानसिक , शारीरिक विकास करता  है ।




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