तंत्र शास्त्र , पुरणों में काल भैरव का उल्लेख है । शास्त्र के अनुसार भैरव की संख्या 64 को 8 भागो में विभक्त है । काल भैरव की उपासना भारत एवं नेपाल के विभिन्न स्थानों में होती है । कार्तिक कृष्ण अष्टमी को भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न कालभैरव काला रंग, विशाल प्रलंब, स्थूल शरीर, अंगारकाय त्रिनेत्र, काले डरावने चोगेनुमा वस्त्र, रूद्राक्ष की कण्ठमाला, हाथों में लोहे का भयानक दण्ड और काले कुत्ते की सवारी है । उपासना की दृष्टि से भैरव तमस देवता को बलि दी जाती है । भैरव उग्र कापालिक सम्प्रदाय के देवता और तंत्रशास्त्र में भैरव की आराधना किया जाता है। तंत्र साधक का भैरव है। शास्त्रीय संगीत में भैरव राग है। कालभैरव की उपासना महाराष्ट्र में खण्डोबा , दक्षिण भारत में शास्ता है। भूत, प्रेत, पिशाच, पूतना, कोटरा और रेवती आदि की गणना भगवान शिव के अन्यतम गणों में की जाती है।
भैरव विविध रोगों और आपत्तियों विपत्तियों के मुक्ति का
अधिदेवता भैरव हैं। शिव प्रलय के देवता हैं, अत: विपत्ति, रोग एवं मृत्यु के समस्त दूत है । माह भैरव सेनापति बीमारी, विपत्ति और विनाश के पार्श्व में उनके संचालक के रूप में सर्वत्र ही उपस्थित दिखायी देता है। शिवपुराण’ के अनुसार कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को मध्यान्ह में भगवान शंकर के अंश से भैरव की उत्पत्ति होने के कारण काल-भैरवाष्टमी जाना जाता है। पुरणो के अनुसार दैत्यराज अंधकासुर के कृत्यों से अनीति व अत्याचार की सीमाएं पार तथा घमंड में चूर होकर अंधकासुर भगवान शिव तक के ऊपर आक्रमण करने का दुस्साहस कर बैठा था । अंधकासुर के संहार के लिए भगवान शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई थी । पुराणों के अनुसार शिव के अपमान-स्वरूप भैरव की उत्पत्ति हुई थी। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भगवान शंकर की वेशभूषा और उनके गणों की रूपसज्जा देख कर शिव को तिरस्कारयुक्त वचन कहे। अपने इस अपमान पर स्वयं शिव ने तो कोई ध्यान नहीं दिया, किन्तु उनके शरीर से उसी समय क्रोध से कम्पायमान और विशाल दण्डधारी एक प्रचण्डकाय काया प्रकट हुई और वह ब्रह्मा का संहार करने के लिये आगे बढ़ आयी। भगवान शंकर द्वारा मध्यस्थता करने के कारण ब्रह्मा जी की शांति मिली थी ।रूद्र के शरीर से उत्पन्न महाभैरव को काशी का नगरपाल नियुक्त कर दिया। भगवान शंकर ने कार्तिक कृष्ण अष्टमी को ब्रह्मा के अहंकार को नष्ट किया था । भैरव अष्टमी 'काल' , मृत्यु के भय के निवारण हेतु कालभैरव की उपासना करते हैं। ,ब्रह्मा जी के पांचवे वेद की भी रचना करने के कारण सभी देवो के कहने पर महाकाल भगवान शिव ने जब ब्रह्मा जी से वार्तालाप की परन्तु ना समझने पर महाकाल से उग्र,प्रचंड रूप भैरव ने नाख़ून के प्रहार से ब्रह्मा जी की का पांचवा मुख काट दिया । भैरव-उपासना के लिए बटुक भैरव तथा काल भैरव के रूप में प्रसिद्ध हुईं। बटुक भैरव अपने भक्तों को अभय देने वाले सौम्य स्वरूप एवं काल भैरव आपराधिक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण करने वाले दंडनायक है । कालिका पुराण के अनुसार असितांग-भैरव,रुद्र-भैरव,चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव,भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव है । भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का गण का श्वान , कुकुर, कुत्ता वाहन है । ब्रह्मवैवर्तपुराण में ,महाभैरव,,संहार भैरव,असितांग भैरव,रुद्र भैरव,कालभैरव,क्रोध भैरव ताम्रचूड़ भैरव तथा चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का उल्लेख है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का पूर्णरूप है - भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥श्री बटुक भैरव जी के ध्यान हेतु इनके सात्विक, राजस व तामस रूपों का वर्णन अनेक शास्त्रों में है। सात्विक ध्यान - अपमृत्यु का निवारक, आयु-आरोग्य व मोक्षफल की प्राप्ति कराता है, वहीं धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि के लिए राजस ध्यान की उपादेयता है, इसी प्रकार कृत्या, भूत, ग्रहादि के द्वारा शत्रु का शमन करने वाला तामस ध्यान कहा गया है। उत्तरप्रदेश के काशी से 2 कि . मि . की दूरी पर स्थित काल भैरव मंदिर है। नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर , उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि तांत्रिक , नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर गोलू देव भैरव की प्रसिद्धि है। शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिर है। जयगढ़ के प्रसिद्ध किले में काल-भैरव मंदिर , मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के अदेगाव में श्री काल भैरव मंदिर है ।औरंगजेब के शासन काल में जब काशी के भारत-विख्यात विश्वनाथ मंदिर का ध्वंस किया गया, तब भी कालभैरव का मंदिर पूरी तरह अछूता बना रहा था। कालभैरव का मंदिर तोड़ने के लिये जब औरंगज़ेब के सैनिक वहाँ पहुँचे तभी अचानक पागल कुत्तों का एक पूरा समूह कहीं से निकल पड़ा था। कुत्तों ने जिन सैनिकों को काटा वे तुरंत पागल हो गये और फिर स्वयं अपने ही साथियों को उन्होंने काटना शुरू कर दिया। औरंगज़ेब बादशाह को जान बचा कर भागने के लिये विवश हो जाना पड़ा। औरंगजेब के अंगरक्षकों द्वारा कुत्ते से घयल सैनिको को मरवा दिया गया था । बिहार के गया , मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज मंदिर के परिसर में भैरव मंदिर एवं झारखंड के देवी स्थलों के समीप भैरव स्थापित है ।
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