सनातन धर्म का शाक्त सम्प्रदाय के ग्रंथों में माता तारा का उल्लेख है । शाक्त धर्म के अनुसार शक्ति की उपासना स्थल शक्ति पिंड के रूप में शैल पुत्री , ब्रह्मचारिणी , चंद्रघंटा , कुष्माण्डा ,स्कंदमाता , कत्यायनि , कालरात्रि ,गौरी तथा सिद्धदात्री माता को स्थापित करते है । नौ देवियों से साकारात्मक उर्जा प्राप्ति के लिए स्थापित देवी पिंडी तथा मंदिर को शीतल जल से पखार कर दीप प्रज्ज्वलित कर उपासना करते है और नीम पेड तथा समी पेड नाकारात्मक उर्जा को समाप्त करता है। प्राचीन काल में देवीकी उपासना देवी पिंड स्थापित की जाती थी । मानव सभ्यता का विकास के बाद नौ दवी की मूर्तियां की स्थापना कर उपासना का स्थल का रूप हुआ है ।गया जिले का के टिकारी अनुमंडल के केसपा गाँव मे स्थित माँ तारा देवी की मंदिर है । मां तारा स्थल को लोक आस्था तथा शक्तिपीठ माना जाता है । केसपा गाँव महर्षि कश्यप मुनि का साधना और कर्म स्थल और कश्यप ऋषि के अराध्य देवी माता तारा थी । महर्षि कश्यप मुनि के द्वारा ही माता तारा का मंदिर बनवाया गया है । केसपा स्थल महर्षि कश्यप से जुड़ाव है । केसपा गांव का प्राचीन नाम कश्यप पुरी , कश्यपा रहा है । गया जिला से लगभग 37 किमी और टिकारी शहर से 12 किमी. उतर अवस्थित प्रसिद्ध मां तारा देवी के मंदिर अवस्थित है ।ब्रह्माण्ड कल्याण के लिए समुद्र मंथन आरम्भ हुआ था । भगवान कच्छप के एक लाख योजन चौड़ी पीठ पर मन्दराचल पर्वत घूमने लगा । समुद्र मंथन से हलाहल विष निकला था । विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे, उनकी कान्ति फीकी पड़ने लगी और मूर्क्षित होने लगे थे । हलाहल को रोकने के लिए देव तथा दानवों द्वारा भगवान शंकर की प्रार्थना कीगई थी । उनकी प्रार्थना पर महादेव जी उस विष को हथेली पर रख कर उसे पी गये किन्तु उन्होंने उस विष को कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया । उस विष के प्रभाव से शिव जी का कण्ठ नीला पड़ गया और वह अर्ध निद्रा में हो गए ।अब क्या होगा. उस समय पुरे जगत में चारों ओर हाहाकार मच गया की महादेव को क्या हो गया है मानव ,दानव देव , जीव , जंतु विह्वल थे । तभी मां तारा प्रकट हुईं. माता आईं और छोटे बालक की तरह महादेव को गोद में उठा लिया । फिर मां तारा ने महादेव को अपना दूध पिलाया । दूध पीते ही महादेव की अर्ध निद्रा टूट गई और महादेव ने मां तारा को प्रणाम किया. इस तरह मां तारा महादेव शिव शंकर की मां हो गईं । पौराणिक अख्यान के अनुसार देव गुरू व्टहस्पति की भार्या तारा तथा चंद्रमा के पुत्र बुध मगध के राजा थे । मगध के राजा बुध की भार्या तथा वैवस्वत मनु की पुत्री इला से पुरूरवा ,गय , उत्कल तथा विशाल हुए । मगध देश का राजा ग्रहों के राजकुमार बुध की पूजनीया
माता तारा थी । कपिलवस्तु के राजा सुद्धोदन की पत्नी महामाया के पुत्र भगवान बुद्ध की आराध्या देवी माता तारा थी । केसपा मंदिर में मां तारा की पौराणिक मूर्ति आठ फीट से भी ऊंची है । इस मूर्ति के सामने खड़े होकर नवरात्र में जो हाथ जोड़ लेता है, माता उसके सारे दुख हर लेती हैं। पुरातत्वविदों को मंदिर की दीवारें भी बहुत कुछ बता सकती हैं. यहां की दीवारें चार फीट से ज्यादा चौड़ी हैं ।कच्ची मिट्टी और गदहिया ईट से निर्मित मंदिर के गर्भ गृह की दीवार 4-5 फीट मोटी है । गर्भ गृह की सुन्दर नक्काशिया मंदिर में प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है. गर्भ गृह में विराजमान मां तारा देवी की वरद हस्त मुद्रा में उतर विमुख 8 फीट उंची आदमकद प्रतिमा काले पत्थर की बनी है । मां तारा के दोनों ओर दो योगिनी खड़ी है ।मंदिर के चारों ओर एक बड़ा चबूतरा है ।सन 1812 में स्कॉटलैंड के मि. फ्रांसिस बुचनन- भूगोलिक, जीव विज्ञानी और वनस्पति-विज्ञानिक,मि. फ्रांसिस बुकनन केसपा और मां के मंदिर में 4 फरबरी 1812 आये थे. वह लिखते है की उस समय मंदिर मिटटी, ब्रिक्स और स्टोन की बनी हुई थी. मंदिर में बहुत से चित्र दिवार पर बनी हुई थी और मंदिर के दरवाज़े के पास बहुत सी चित्र नष्ट है । मंदिर के दीवार पर प्लास्टर नहीं किया हुआ था. उस समय वहां पर तीन पुजारी पूजा कर रहे थे ।फ्रांसिस बुचनन के अनुसार मंदिर के बीच में मानव आकृति में माँ तारा की प्रतिमा सर से लेकर पैर तक एक साड़ी में ढकी हुई खडी थी । सन 1872 में अमेरिकन-भारतीय इंजिनियर, पुरातत्ववेत्ता मि. जोसेफ डेविड बेलगर, माँ के मंदिर आये.बेलगर के अनुसार यह मंदिर मध्यकालीन युग 9 वीं, 10 वीं शताब्दी में बना गांव के चारो तरफ मंदिर है जो की प्राचीनतम है भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी गांव के बिच मे स्थित है । गाँव में बहुत से प्रतिमा जगह जगह दिखाई पड़े है । डेनमार्क के पुरातत्ववेत्ता मि. थिओडोर बलोच द्वारा 1992 ई. में केसपा तारा मंदिर को पुरातात्विक सर्वे कर चुके है । थिओडोर द्वारा मां तारा को आस्था और धार्मिक का केंद्र माना गया है । माँ तारा द्वारा मगध के विदूषक देवन मिश्र को आशिर्वचन दिया गया था । टिकारी राज सात आना के दरबारी विदुषक देवन मिश्र को माँ ने साक्षात् प्रकट होकर आशिर्वचन दी थी । शाक्त धर्म का प्राचीन स्थल में जहानाबाद जिले का बराबर पर्वत समूह की सूर्यांक श्रीखला पर माता सिद्धेश्वरी , वगेश्वरी , मैना मठ के चरूई एवं बेला का का काली स्थान तथा मां मंगला गौरी प्राचीन है ।
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