बुजुर्ग गण नयी पीढियों के लिए अमूल्य विरासत है। इस विरासत को वचाने के लिए सावधानी रखना आवश्यक है । साहित्यकार एवं इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि बुजुर्ग भावी पीढिये के लिए प्रेरणा श्रोत है । संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रत्येक वर्ष 1 अक्टूबर को अन्तर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाने की घोषणा की गयी थी । संयुक्त राष्ट्र संघ ने 14 दिसम्बर 1990 में सदस्य राष्ट्रों की सहमति से 1 अक्टूबर को प्रतिवर्ष अन्तर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाने के लिए निर्णय लिया है ।इस महत्वपूर्ण दिवस में विश्व भर में वृद्धजनों से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए सक्रिय है ।तथापि उनके ज्ञान एवं अनुभव का अधिक से अधिक लाभ समाज हित में लेने के लिए योजनायें बनायी जाती है। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, दो राष्ट्रों के बीच तथा विश्व युद्धों से सबसे अधिक संकट बच्चों तथा वृद्धजनों के लिए सामाजिक असुरक्षा के संकट के रूप में आता है। वर्तमान समय में लाखों बच्चे, महिलायें तथा वृद्धजन युद्धों की विभीषिका से बुरी तरह पीड़ित हो रहे हैं। युद्धों की तैयारी तथा आतंकवाद से निपटने में काफी धनराशि व्यय हो रही है जिससे गरीब तथा विकासशील देशों की आर्थिक, पारिवारिक एवं सामाजिक व्यवस्था चरमराती जा रही है। एक न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था का गठन करके इन विश्वव्यापी समस्याओं पर प्रभावशाली कानून बनाकर अंकुश लगाया जा सकता है। युद्धों पर होने वाले व्यय को बचाकर उस धनराशि तथा मानव संसाधन से वृद्धजनों को सम्मान, स्वस्थ तथा सुरक्षित सामाजिक सुरक्षा से परिपूर्ण जीवन प्रदान किया जा सकता है। वृद्धावस्था में व्यक्ति अपने पारिवारिक दायित्वों से मुक्त हो जाता है। वृद्धावस्था में व्यक्ति को अपने परिवार के साथ ही सारे विश्व को अपने परिवार के रूप में मानना चाहिए। जीवन सारे विश्व को विश्व एकता का मार्गदर्शन, मानवाधिकारों के संरक्षण, वसुधैव कुटुम्बकम् के विचारों, सेवाभावी कार्यों, योग, शिक्षा तथा जीवन जीने की कला का ज्ञान देने के लिए होना चाहिए। तथापि अपनी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता के अनुसार योगदान देना चाहिए।
पारिवारिक एकता का ज्ञान देने की जिम्मेदारी परिवार में विश्व में बुजुर्गों का परम स्थान है लेकिन तेजी से बदलते पारिवारिक तथा सामाजिक परिवेश में लगातार नीचे गिरता जा रहा है। विश्व भर में बढ़ रही घोर प्रतिस्पर्धा से नैतिक तथा एकता के मूल्यों का पतन होता जा रहा है। बुजुर्गों पर इसका प्रभाव ज्यादा है। जीवन के अंतिम पड़ाव में वह बेटे व परिवार के सुख से वंचित हो रहे हैं। इस पर जल्द नियंत्रण नहीं किया गया तो स्थिति भयावह हो जाएगी। बच्चों में बुजुर्गो के प्रति स्नेह व लगाव पैदा करना बहुत जरूरी है। विदेशों में पढ़ने व अधिक धन कमाने के लिए, वहीं नौकरी करने तथा वहाँ स्थायी रूप से बसने वाले युवाओं की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती जा रही है। आधुनिक सुख-सुविधाओं की चाह में वे स्वयं तो विकसित देशों के बड़े शहरों में रहना चाहते हैं लेकिन अपने मां-बाप को ओल्ड ऐज होम तथा गांव-कस्बे में रखना चाहते हैं। बेटा जब अपने बूढ़े मां-बाप को अपने से दूर रखेगा तो उनकी सेवा कैसे हो सकती है? बच्चों को यह बताया जाए कि बुजुर्गों की सेवा से ही जीवन सफल हो सकता है। इसके लिए मानवीय सूझबूझ से भरी व्यापक योजना बनाने की जरूरत है। सिटी मोन्टेसरी स्कूल ने वृद्धजनों को सम्मान देने के लिए प्रतिवर्ष ग्रेण्ड पेरेन्ट डे मनाने की शुरूआत की है। जिसमें दादा-दादी तथा नाना-नानी को विशेष रूप से आमंत्रित होते है ।बुजुर्ग पारिवारिक एकता विश्व एकता की आधारशिला है। संयुक्त परिवार में रहते हुए बचपन के वे दिन हमें आज भी याद आते हैं, जब हम दादा-दादी या नाना-नानी की गोद में सिर रखकर उनकी मीठी कहानियां सुनते-सुनते सो जाते थे। बाल्यावस्था का समय ऐसा होता है, जिसमें बच्चों में जिस तरह के संस्कार डाल दिये जाते हैं, वैसा ही उनका व्यक्तित्व निर्मित हो जाता है। और फिर जिन्दगी भर वही व्यक्तित्व उनकी सफलता व असफलता का माप है। वृद्धजनों को सम्मानजनक जीवन जीने के लिए पेन्शन सरकार की ओर से दी जाती है। हमारे देश में वृद्धजनों के लिए ओल्ड ऐज होम की सुविधायें नहीं हैं। सीनियर सिटीजन को दी जाने वाली पेन्शन की राशि भी बहुत कम है। इस दिशा में सरकार तथा कॉरपोरेट जगत को सार्थक कदम उठाकर वृद्धजनों को सम्मानजनक जीवन जीने के अवसर उपलब्ध कराने के लिए आगे आना चाहिए। वृद्धजनों के अनुभव का लाभ उनके ज्ञान एवं रूचि के अनुसार समाज के विकास में लेने के लिए योजना बनानी चाहिए। ताकि वे नौकरी तथा व्यवसाय से अवकाश प्राप्त करने के बाद भी सक्रिय, प्रसन्न, उत्साही, सुरक्षित एवं स्वस्थ रह सके। क्योंकि कहा गया है कि गति में ही शक्ति है।
प्राचीन काल में संयुक्त परिवारों में वृद्धजनों को पूरा सम्मान, सुरक्षा तथा देखभाल मिलती थी। लेकिन उद्देश्यहीन शिक्षा तथा भौतिकता की अंधी दौड़ ने हमारे देश में भी संयुक्त परिवारों की श्रेष्ठ परम्परा को बुरी तरह बिखेर दिया है। विशेषकर शहरों में एकल परिवार का रिवाज तेजी से बढ़ रहा है। माँ की ममता तथा करूणा से भरी बचपन की एक बड़ी ही मार्मिक कहानी मुझे याद आ रही है - सांसारिक स्वार्थ में डूबा एक व्यक्ति अपनी बूढ़ी माँ का दिल निकालने के लिए हाथ में छुरी लेकर गया और माँ को मारकर उसका दिल हाथ में लेकर खुशी-खुशी चला। पिता और माता सदैव अपने बच्चों पर जीवन की सारी पूँजी लुटाने के लिए लालयित रहती है।
वेदों पुराणों उपनिषदों, सभी धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि अगर धरती पर कहीं जन्नत है तो वह माता और पिता के कदमों में है। धरती पर हमारे भौतिक शरीर के जन्मदाता माता-पिता संसार में सर्वोपरि हैं। उनका सम्मान करना चाहिए। जिन मां-बाप ने अपना सब कुछ लगाकर अपनी संतानों को योग्य बनाया वे संतानें जब बड़े होकर अपने वृद्ध मां-बाप की उपेक्षा करती हैं तो उन पर क्या बीतती है?इस पीड़ा की अभिव्यक्ति कोई भुग्तभोगी ही भली प्रकार कर सकता है। वृद्धजनों का मूल्यांकन केवल भौतिक दृष्टि से करना सबसे बड़ी नासमझी है। वृद्धजन अनुभव तथा ज्ञान की पूंजी होते हैं। बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह का कहना है कि जब हमारे सामने माता-पिता तथा परमात्मा में से किसी एक का चयन करने का प्रश्न आये तो हमें माता-पिता को चुनना चाहिए। माता-पिता की सच्चे हृदय से सेवा करना परमात्मा की नजदीकी प्राप्त करने का सबसे सरल तथा सीधा मार्ग है। साथ ही मानव जीवन का परम लक्ष्य अपनी आत्मा का विकास करने का श्रेष्ठ मार्ग भी है। वृद्धावस्था तो उम्र का वह दौर होता है जिस तक आते-आते व्यक्ति अपनी पूरी जिंदगी का सार या निचोड़ अपने पास संजोकर रख चुका होता है। यह तो खुशी और संतुष्टि का दुर्लभ दौर है। वृद्धावस्था लंबी प्रतीक्षा के बाद संतोष का मीठा फल चखने का दौर है। उम्र भर की स्मृतियों, अनुभवों, सुख-दुख, सफलता-असफलता आदि की अमूल्य और अकूत पंँूजी का नाम ही वृद्धावस्था है अतः इसे किसी भी प्रकार निरर्थक नहीं कहा जा सकता। बुढ़ापा अभिशाप नहीं बल्कि यह
मानव जाति के लिए एक वरदान है। अतः हमें अपने बढ़े-बुढ़ों की उपेक्षा नही करें वल्किे उनका सम्मान करना चाहिए। वुजुर्ग हमारे स्नेह, सम्मान, श्रद्धा, अनुभव और ज्ञान की पूँजी है । बुजुर्गों द्वारा रचा गया शब्दजाल नहीं होते, बल्कि उनके अथाह अनुभव भंडार से मिले कुछ अनमोल मोती है, उन्होंने जीवन को स्वीकार तथा समझकर अपने अनुभवों को भावी पीढ़ियों के लिए सहेज कर रखे होते हैं। जिस घर में बुजुर्ग है वहॉ जन्नतहै तथा उनका विचार उन्नति तथा विकास का मार्ग प्रशस्त करता है । कहा जाता है ओल्ड इज गोल्ड ।
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