: कलि की उत्पत्ति और प्रभाव
सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारतीय तथा विश्व ज्योतिष गणना सूर्य और चन्द्र के आधार पर की गयी है । मानव और वेदों , पुराणों तथा ज्योतिष शास्त्र के गणना के आधार पर कलियुग का आगमन भाद्रपद क्टष्ण त्रयोदशी रविवार श्लेशा ,व्याति योगमें अर्ध्द रात्रि द्वापर के अंतिम में कलियुग 5121ई.पू. हुआ है। कलियुग की आयु 432000 वर्ष है। कलियुग में मानव की आयु 100 , 60 तथा 30 वर्ष मना गया है। मनुष्य की ऊचाई 6, 5,4 तथा 3 फीट रहेगी ।ईस युग में मिट्टी ,लौह पात्र , ताम्र तथा लौह द्रव्य रहेगा।धर्म के प्रति निरादर , मिथ्या वचन को सत्य मनेगें ,वर्ण अपने कर्म से रहीत ,गाय अल्प दूध देने वाली ,भूमि बीजरहित ,औषधियां रसविहिन , नीच लोग संन्यसी का रूप धारण कर संन्यास को बदनाम तथा राजा या समज को नोत्टत्व करने वाले अपने धर्म को त्याग करेगे , स्त्रियां पति विरोधी होगी ,पुत्र , पुत्रियां माता पिता का विरोधी होगे , भूमि गंगा विहिन हो जायगी ,लोग भूत , पिशाच, तथा नाकारात्मक लोगों की मान्यता देगे । राजा विना नीति के चलेगा ,लूट, मार ,चोरी ,बेइमानी ,धांधली ,दागाबाजी , फरजी आकडा , ,फरजी जॉच और न्याय की अधिकता रहेगी ।नेता और नौकरशाह जनता को चुसेगी ।अन्याय का बोलवाला रहेगा ।कलियुग में पाप 15 तथा पूण्य 5 रहेगा । 14 मनुमय स्टष्टि के 1955885121 कल्पारंभ स कलियुग के 5121 वर्ष व्यतीत होकर 426879वर्ष कलिकाल शेष रहेगा । वर्तमान में सातवें वैवश्वत मनु का मन्वनतर के सतयुग , त्रेता और द्वापर युग समाु्त होकर कलियुग प्रारंभ है। युधिष्ठिर संबत 3044 वर्ष के बाद उजैन का राजा विक्रमादित्य द्वारा विक्रम संवत प्रारंभ किया गया है । वर्तमान में कलिसंवत 5121 , विक्रम संवत 2077 ईस्वी संवत 2020 , ,शालिवाहन संवत 1941 , फसली संवत 1427 , बॉग्ला संबत 1426 , इस्लामिक संबत 1441 , नेपाली संबत 1140 है। कलियुग में भगवान गौतमबुद्ध ,महावीर , ईसा और हजरत द्वारा मानव कल्याण किए गये है । कलियुग को तिष्य युग कहा गया है । वर्ण एवं आश्रम का सांकर्य, वेद एवं अच्छे चरित्र का ह्रास, सर्वप्रकार के पापों का उदय, मनुष्यों में नानाव्याधियों की व्याप्ति, आयुका क्रमश: क्षीण एवं अनिश्चित होना, बर्बरों द्वारा पृथ्वी पर अधिकार, मनुष्यों एवं जातियों का एक-दूसरे से संघर्ष आदि इसके गुण हैं। इस युग में धर्म एकपाद, अधर्म चतुष्पाद होता है, आयु सौ वर्ष की। युग के अन्त में पापियों के नाश के लिए भगवान कल्कि-अवतार धारण करेंगे।कलि कल्पना के साथ एक नैतिक कल्पना है, ऐतरेय ब्राह्मण तथा महाभारत में पायी जाती है-
कलि: शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापर:।
उत्तिष्ठंस्त्रेता भवति कृत: सम्पद्यते चरन्।।
कल्किपुराण (प्रथम अध्याय) में कलियुग की उत्पत्ति लोकपितामह ब्रह्मा ने प्रलय के अन्त में घोर मलिन पापयुक्त अधर्म को अपने पृष्ठ भाग से प्रकट किया है । अधर्म नाम से प्रसिद्ध हुआ, उसके वंशानुकीर्तन, श्रवण और स्मरण से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। अधर्म की सुन्दर विडालाक्षी भार्या मिथ्या नाम की थी। उसका परमकोपन पुत्र दम्भ नामक हुआ। उसने अपनी बहिन माया से लोभ नामक पुत्र और निकृति नामक पुत्री को उत्पन्न किया। उन दोनों से क्रोध नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसने अपनी हिंसा नामक बहिन से कलि को उत्पन्न किया। कलि के दाहिने हाथ से जिह्वा और वाम हस्त से उपस्थ (शिश्न) पकड़े हुए, अंजन के समान वर्णवाला, काकोदर, कराल मुखवाला और भयानक था। उससे सड़ी दुर्गन्ध आती थी और वह द्यूत, मद्य, स्त्री तथा सुवर्ण का सेवन करने वाला था। उसने अपनी दुरुक्ति नामक बहिन से भय नामक पुत्र और मृत्यु नामक पुत्री उत्पन्न किए। उन दोनों का पुत्र निरय हुआ। उसने अपनी यातना नामक बहिन से सहस्रों रूपों वाला लोभ नामक पुत्र उत्पन्न किया। इस प्रकार कलि के वंश में असंख्य धर्मनिन्दक सन्तान ।: कल्कि पुराण हिन्दुओं के विभिन्न धार्मिक एवं पौराणिक ग्रंथों में से एक हैं यह एक उपपुराण है। इस पुराण में भगवान विष्णु के दसवें तथा अन्तिम अवतार की भविष्यवाणी की गयी है और कहा गया है कि विष्णु का अगला अवतार है। कल्कि पुराण में मार्कण्डेय जी और शुक्रदेव जी के संवाद का वर्णन है। कलयुग का प्रारम्भ हो चुका है जिसके कारण पृथ्वी देवताओं के साथ, विष्णु के सम्मुख जाकर उनसे अवतार की बात कहत है। भगवान विष्णु के अंश रूप में ही सम्भल गांव में कल्कि भगवान का जन्म होता है। उसके आगे कल्कि भगवान की दैवीय गतिविधियों का सुन्दर वर्णन मन को बहुत सुन्दर अनुभव कराता है। भगवान् कल्कि विवाह के उद्देश्य से सिंहल द्वीप जाते हैं। वहां जलक्रीड़ा के दौरान राजकुमारी पद्यावती से परिचय होता है। देवी पद्यिनी का विवाह कल्कि भगवान के साथ ही होगा। अन्य कोई भी उसका पात्र नहीं होगा। प्रयास करने पर वह स्त्री रूप में परिणत हो जाएगा। अंत में कल्कि व पद्यिनी का विवाह सम्पन्न हुआ और विवाह के पश्चात् स्त्रीत्व को प्राप्त हुए राजगण पुन: पूर्व रूप में लौट आए। कल्कि भगवान पद्यिनी को साथ लेकर सम्भल गांव में लौट आए। विश्वकर्मा के द्वारा उसका अलौकिक तथा दिव्य नगरी के रूप में निर्माण हुआ।हरिद्वार में कल्कि जी ने मुनियों से मिलकर सूर्यवंश का और भगवान राम का चरित्र वर्णन किया। बाद में शशिध्वज का कल्कि से युद्ध और उन्हें अपने घर ले जाने का वर्णन है, जहां वह अपनी प्राणप्रिय पुत्री रमा का विवाह कल्कि भगवान से करते हैं।उसके बाद इसमें नारद जी, आगमन् विष्णुयश का नारद जी से मोक्ष विषयक प्रश्न, रुक्मिणी व्रत का प्रसंग और अंत में लोक में सतयुग की स्थापना के प्रसंग को वर्णित किया गया है। वह शुकदेव जी की कथा का गान करते हैं। अंत में दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और शर्मिष्ठा की कथा है। पुराण में मुनियों द्वारा कथित श्री भगवती गंगा स्तव का वर्णन भी किया गया है। पांच लक्षणों से युक्त यह पुराण संसार को आनन्द प्रदान करने वाला है। भगवान कल्कि के अत्यन्त अद्भुत क्रियाकलापों का सुन्दर व प्रभावपूर्ण चित्रण है। जो कल्कि पुराण का अध्ययन व पठन करते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं है । भगवान विष्णुजी का दशम अवतार कल्कि है।: पुराणों में कलयुग का वर्णन किया गया है। कलयुग का कालखंड सबसे छोटा माना गया है और माना जाता है कि कलयुग में भगवान विष्णु का दसवां अवतार होगा, जिसका नाम होगा कल्कि। वर्तमान समय में कलयुग ही चल रहा है। विष्णु पुराण कलियुग के वर्णन करते हुए कहा गया है कि कलियुग पाप इतना अधिक होता कि सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा। कन्याएं 12 साल में ही गर्भवती होने लगेंगी, मनुष्य की आयु औसतन 20 वर्ष हो जाएगी। लोग जीवन भर की कमाई एक घर बनाने में लगा देंगे। इन सबके बावजूद जब पराशर ऋषि से सभी देवताओं ने पूछा कि सभी युगों में कौन सबसे बढ़िया है तो ऋषि ने वेदव्यासजी के कथनों का जिक्र करते हुे समझाया कि सबसे उत्तम कलियुग है। आइए जानें व्यासजी ने विष्णु पुराण में क्यों कहा है कलियुग को धन्य और सबसे उत्तम। श्री क्टष्ण द्वैपायन वेदव्यासजी ने वेदों का वाचन किया और भगवान गणपति ने उनके अनुग्रह पर उन वचनों को लिखित रूप में प्रस्तुत किया। श्रीवेदव्यास जी को ही वेदों का रचनाकार माना जाता है। वेदव्यास जी से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, वेदव्यास जी ने सभी युगों में कलयुग को श्रेष्ठ युग कहा है। यह चौंकाने वाली बात जरूर है क्योंकि कलयुग में तो सबसे अधिक पाप और अत्याचार होगा, वेदों और धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है। विष्णुपुराण के अनुसार, मुनिजनों और ऋषियों के साथ चर्चा करते हुए वेदव्यास जी कहते हैं, हे मुनिजन सभी युगों में कलयुग ही सबसे श्रेष्ठ युग है। क्योंकि दस वर्ष में जितना व्रत और तप करके कोई मनुष्य सतयुग में पुण्य प्राप्त करता है, त्रेतायुग में वही पुण्य एक साल के तप द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। ठीक इसी प्रकार उतना ही पुण्य द्वापर युग में एक महीने के तप से प्राप्त किया जा सकता है तो कलयुग में इतना ही बड़ा पुण्य मात्र एक दिन के तप से प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह व्रत और तप के फल की प्राप्ति के लिए कलयुग ही सबसे श्रेष्ठ समय है।: पुराणों के अनुसार कलयुग का कालखंड मे भगवान विष्णु का दसवां अवतार कल्कि होगें ।, 5122 वर्ष पूर्व से कलयुग प्रारंभ है। विष्णु पुराण के अनुसार कलियुग पाप अधिक होगा जिससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा। कन्याएं 12 साल में ही गर्भवती होने लगेंगी, मनुष्य की आयु औसतन 20 वर्ष हो जाएगी। लोग जीवन भर की कमाई एक घर बनाने में लगा देंगे। पराशर ऋषि से सभी देवताओं ने पूछा कि सभी युगों में कौन सबसे बढ़िया है तो ऋषि ने वेदव्यासजी के कथनों का जिक्र करते हुे समझाया कि सबसे उत्तम कलियुग है। व्यासजी ने विष्णु पुराण में कहा है कलियुग को धन और सबसे उत्तमवाचाल की बतें रहेगी । श्री वेदव्यासजी ने वेदों का वाचन किया और भगवान गणपति ने उनके अनुग्रह पर उन वचनों को लिखित रूप में प्रस्तुत किया। श्रीवेदव्यास जी को ही वेदों का रचनाकार माना जाता है। वेदव्यास जी से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, वेदव्यास जी ने सभी युगों में कलयुग को श्रेष्ठ युग कहा है। यह चौंकाने वाली बात जरूर है क्योंकि कलयुग में तो सबसे अधिक पाप और अत्याचार होगा, वेदों और धार्मिक ग्रंथों में ऐसा कहा गया है। विष्णुपुराण में वर्णित एक घटना के अनुसार, मुनिजनों और ऋषियों के साथ चर्चा करते हुए वेदव्यास जी कहते हैं, हे मुनिजन सभी युगों में कलयुग ही सबसे श्रेष्ठ युग है। क्योंकि दस वर्ष में जितना व्रत और तप करके कोई मनुष्य सतयुग में पुण्य प्राप्त करता है, त्रेतायुग में वही पुण्य एक साल के तप द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। ठीक इसी प्रकार उतना ही पुण्य द्वापर युग में एक महीने के तप से प्राप्त किया जा सकता है तो कलयुग में इतना ही बड़ा पुण्य मात्र एक दिन के तप से प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह व्रत और तप के फल की प्राप्ति के लिए कलयुग ही सबसे श्रेष्ठ समय है।पुराणों के अनुसार कलयुग का कालखंड मे भगवान विष्णु का दसवां अवतार कल्कि होगें ।, 5122 वर्ष पूर्व से कलयुग प्रारंभ है। विष्णु पुराण के अनुसार कलियुग पाप अधिक होगा जिससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा। कन्याएं 12 साल में ही गर्भवती होने लगेंगी, मनुष्य की आयु औसतन 20 वर्ष हो जाएगी। लोग जीवन भर की कमाई एक घर बनाने में लगा देंगे। पराशर ऋषि से सभी देवताओं ने पूछा कि सभी युगों में कौन सबसे बढ़िया है तो ऋषि ने वेदव्यासजी के कथनों का जिक्र करते हुे समझाया कि सबसे उत्तम कलियुग है। व्यासजी ने विष्णु पुराण में कहा है कलियुग को धन और सबसे उत्तम वाचाल की प्रमुखता रेगी । अर्ध सत्य , असत्य का बोलवाला रहेगा । शिछा का ह्रास, कम पढे लिखों की प्रतिष्ठा मिलेगी । हंस की मर्यादा नही रहेगी वल्कि कौवों की पूछ प्रतिष्ठा होगी । श्री वेदव्यासजी ने वेदों का वाचन किया और भगवान गणपति ने उनके अनुग्रह पर उन वचनों को लिखित रूप में प्रस्तुत किया। श्रीवेदव्यास जी को ही वेदों का रचनाकार माना जाता है। वेदव्यास जी से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, वेदव्यास जी ने सभी युगों में कलयुग को श्रेष्ठ युग कहा है। यह चौंकाने वाली बात जरूर है क्योंकि कलयुग में तो सबसे अधिक पाप और अत्याचार होगा, वेदों और धार्मिक ग्रंथों में ऐसा कहा गया है। विष्णुपुराण में वर्णित एक घटना के अनुसार, मुनिजनों और ऋषियों के साथ चर्चा करते हुए वेदव्यास जी कहते हैं, हे मुनिजन सभी युगों में कलयुग ही सबसे श्रेष्ठ युग है। क्योंकि दस वर्ष में जितना व्रत और तप करके कोई मनुष्य सतयुग में पुण्य प्राप्त करता है, त्रेतायुग में वही पुण्य एक साल के तप द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। ठीक इसी प्रकार उतना ही पुण्य द्वापर युग में एक महीने के तप से प्राप्त किया जा सकता है तो कलयुग में इतना ही बड़ा पुण्य मात्र एक दिन के तप से प्राप्त किया जा सकता है। इस तरह व्रत और तप के फल की प्राप्ति के लिए कलयुग ही सबसे श्रेष्ठ समय है।कलियुग वंशावली पुराणों पर आधारित विभिन्न राजाओं की वंशावली है। भारत के इतिहास को प्राचीन वंशावली, द्वापर के अन्त तक ही सीमित थी, से आगे महाभारत के युग के पश्चात के कलियुग में आती है।
कुरु वंश - वंशावली - हर्णदेव , रामदेव ,व्यासदेव , द्रौनदेव ,सिंहदेव , गोपालदेव , विजयनन्द , सुखदेव रामन्देव
सन्धिमन् , मरहन्देव , चन्द्रदेव , आनन्ददेव , द्रुपददेव ,हर्नामदेव , सुल्कन्देव ,जनमेजय ,| शतानीक ,अश्वमेधदत्त ,
अधिसीमकृष्ण , निचक्षु , उष्ण , चित्ररथ , शुचिद्रथ, वृष्णिमत् , सुषेण , सुनीथ , रुच ,नृचक्षुस् ,सुखीबल ,परिप्लव , सुनय , मेधाविन् , नृपञ्जय , ध्रुव, मधु|तिग्म्ज्योती ,बृहद्रथ , वसुदान , शत्निक ,उदयन , अहेनर , निरमित्र (खान्दपनी ) , क्षेमक ,ब्रहाद्रथ वंश - मगध में राजाओं में सोमाधि , श्रुतश्रवा ,अयुतायु , निरमित्र , सुकृत्त , बृहत्कर्मन् , सेनाजित् , विभु , शुचिक्षेम , सुव्रत , निवृति ,महासेन , सुमति , अचल , सुनेत्र , सत्यजित् ,| वीरजित् , अरिञ्जय ,क्षेमधर्म ६३९-६०३ ,क्षेमजित् ६०३-५७९ , बिम्बसार ५७९-५५१ ,अजात्शत्रु ५५१-५२४ , दर्शक ५२४-५०० , उदायि ५००-४६७ शिशुनाग ४६७-४४४ , काकवर्ण ४४४-४२४ ई. पू. , नन्द वंश - उग्रसेन ४२४-४०४ , पण्डुक ४०४-३९४ , पण्डुगति ३९४-३८४ ,भूतपाल ३८४-३७२ ,राष्ट्रपाल ३७२-३६० ,देवानन्द ३६०-३४८ ,यज्ञभङ्ग ३४८-३४२ ,मौर्यानन्द ३४२-३३६ , महानन्द ३३६-३२४ ई.पू . मगध राज्य का उत्सर्ग के बाद कलियुग में हर्यक वंश के संस्थापक विम्बिसार मगध की गद्दी पर 544 ई.पू. में बैठा था। बिम्बिसार ने मगध की राजधानी राजगीर में रखा । अंग राजा ब्रह्मदत्त को हरा कर अंग को मगध में में मिला लिया था ।मगध का राजा बिंबिसार का पुत्र अजातशत्रु ने 493 ई.पू . , उदयन 461ई.पू. , नागदंशक 412 ई. तक मगध का राजा हुए । शिशुनाग वंश के राजाओं में कालाशोक ने मगध की राजधानी वैशाली में स्थापित किया था । तथा शिशुनाग ने मगध की राजधानी पटलिपुत्र में स्थापित किया था , नंदिवर्द्धन , नंदवंश के संस्थापक महापद्मनंद , घनानंद को हरा कर मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मगध का राजा था । मगध के शासक घनानंद को हराकर विष्णु गुप्त ( कौटिल्य , चाणक्य ) द्वारा चंद्रगुप्त को मगध की राजगद्दी पर 322 ई.पू. बैठाया गया । मगध का संराष्ट्र चंद्रगुप्त के उतराधिकारी विंदुसार को 298 ई.पू. मगध का राजा बनाया गया । 269 ई.पू . को विंदुसार का उतराधिकरी अशोक मगध की राजगद्दी पर बैठा था । मगध का राजा अशोक के पौत्र दशरथ , प्रपौत्र व्टहद्रथ मगध का शासक रहा है । मगध का सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने शुंग वंश की नींव डाली और मगध का शासक 185 ई.पू . में बन गया और मगध की राजधानी विदिशा में स्थापित किया । शुंग वंश का अंतिम शासक 73 ई.पू . देवभूति को ह्त्या कर वासुदेव ने मगध का राजा बन कर कण्व वंश की स्थापना की । कण्व वंश का अंतिम शासक सुशर्मा को 60 ई.पू. म हत्या कर आंध्रवंश के सतवाहन ने मगध की सत्ता हासिल किया । सतवाहन द्वारा मगध की राजधानी आंध्रप्रदेश के प्रतिष्ठानपुर मे राजधानी स्थापित की । शतवाहन वंश के शासकों में सिमुक ,शातकर्णि ,गौतमी पुत्र शातकर्णि , वशिष्ठि पुत्र पुलुमावी , यग्य श्री शाकर्णि था। मगध पर यवन राज्य हिंद यूनानी , शक ,पहल्व , कुषाण ने सता हासिल किया परंतु 58 ई. पू . उजैन का राजा विक्रमादित्य द्वारा यवन शासकों पर विजय प्राप्त की । विक्रमादित्य ने विक्रम संवत प्रारंभ किया है । कुषाण के कनिष्क ने शक संबत प्रारंभ किया ।गुप्त साम्राज्य की संस्थापक श्रीगुप्त 240 - 280 ई. , घटोत्कच 280- 320 ई. , चंद्रगुप्त प्रथम द्वारा गुप्तसंबत 319- 320 ई. में प्रारंभ किया गया है । समुद्रगुप्त 335 ई. , चंद्रगुप्त द्वितीय 380 ई. , कुमार गुप्त 415-454 ई. , स्कंदगुप्त 455-467 ई. , राष्ट्रकुट राजवंश के संस्थापक दंतिदूर्ग 752 ई. , चालुक्यवंश , चोल वंश के संस्थापक विजयालय 850 - 887 ई. , यादव वंश के संस्थापक भिल्लम पंचम ने देवगिरि में की तथा यादव वंश प्रतापी राजा सिंहण 1210 -1246 ई. में था।यादव वंश की शाखा होयसल वंश के संस्थापक विष्णुवर्ध्रऩ , पाल वंश के संस्थापक गोपाल ने मुंगेर में 750 ई. में किया , सेन वंश की स्थापना सामंत सेन ने राढ में किया था । काश्मीर का शासकों मे कार्कोट वंश के दुर्लभवर्द्धन ने 627 ई. में हिंदू वंश की स्थापना की । हिंदू वंश के शासकों में ललितादित्य मुक्तापीड , उत्पल वंश का शासक अवंतिवर्मन ,980 ई. में रानी दीद्दा , लोहार वंश के संस्थापक संग्रामराज थे ।लोहार वंश के अंतिम शासक जय सिंह द्वारा 1128 - 1155 ई. तक शासन किया था ।द्वापर युग और कलियुग के संधिकाल द्वापर युग में मगध का राजा व्टहद्रथ वंश के जरासंध के पुत्र सहदेव मगध का शासक हुआ था । सहदेव का पौत्र सोमापि के पुत्र श्रुतश्रवा हुआ। व्टहदवंश के आयुतायु , निरमित्र ,सुनेत्र , व्टहत्कर्मा ,, सेन जीत , श्रुतंजय,, विप्र , छेम्य ,सुव्रत ,, धर्म , सुश्रवा , द्टढसेन ,सुबल , सुनीत ,,सत्यजीत , विश्वजीत और रिपुंजय हुआ ।
: विष्णु पुराण अध्याय 24 के अनुसार मगध के राजा रिपुंजय को मगध का मंत्री सुनिक द्वारा मार कर सुनित ने अपने पुत्र प्रद्योत को मगध का राजा बनाया था । प्रद्योत वंश के राजाओं ने बलक, विशाखयूप ,, जनक , नंदिवर्द्धन , तथा नंदी द्वारा मगध पर 148 वर्ष तक शासन किया ।नंदी का पुत्र शिशुनाभ ने शिशुनभ वंश या हर्यक वंश की नींव डाल कर मगध पर काक वर्ण , छेमधर्मा , छतौजा , विधिसार ( विम्बिसार ) ,आजातशत्रु , अर्भक , उदयन ,नन्दिवर्द्धन ,महानंदी द्वारा 362. वर्ष तक मगध का राजा हुआ था । महानंदी की शूद्रा से महापद्मनंद मगध का राजा बना और नंदवंश की स्थापना की । नंद वंश के राजाओं में सुमाली सहित आठ पुत्रो द्वारा मगध पर 100 वर्षों तक शासन किया ।नंदवंश के शासक के अत्याचार से जनता त्रस्त थी । नंद वंश का अंतिम शासक घनानंद को कौटिल्य ब्राह्मण द्वारा समाप्त कर मगध का राजा चंद्रगुप्त मौर्य को पदस्थापित किया गया । चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश की स्थापना की । मौर्य वंश के राजाओं में विंदुसार , अशोक ,सुयशा , दशरथ ,संयुत, शालिशूक , सोमशर्मा , शतधन्वा ,और व्टहद्रथ ने 173 वर्ष मगध पर शासन किया । शुंगवंशीय राजाओं द्वारा मगध पर 112 वर्ष , कण्व वंशीय राजाओं द्वारा 45 वर्ष ,आंध्रभ्टत्य राजाओं द्वारा 456 वर्ष , सात अभीर ,दस गर्द भील ,सोलह शक , आठ यवन , चौदह तुर्क , तेरह गुरूण्ड और 11 मौन जातीय राजा लोग 1090 वर्ष शासन किया है। कलियुग में व्रत्य ,म्लेछ , शूद्र का सता रहेगा । जैसा राजा होगा वैसी प्रजा होगी ।राजा की अमानवीय आचरण से प्रजा भ्रष्ट ,नष्ट , बल ही धर्म , स्त्री की जातिकूल नही रहेगा , मिथ्या भाषण , व्यवहार , बेकारी ,संस्कारविहीन , अधिक संताने , न्याय का ह्रास , जातिवाद , भ्रष्टवाद , मिथ्यावाद , अन्यायवाद का वर्चस्व रहेगा । जल , नदियां प्रदुषित होगी । पेड , नदियों का जल अवरूद्ध , मानव में लोलूपता का वर्चस्व रहेगा । भाई भाई का रिस्ता , बहन भाई का रिस्ता , पति पत्नी का रिस्ता केवल देखावटी रहेगी । लोग अर्द्ध नग्न रहेगे । विश्व में नये नये संक्रमण होंगे , जल प्रलय, अग्नि प्रलय, भूकंप ,, युद्ध , होंगे। अकाशीय पिंड गिरेंगे , वर्षा , गर्मी नियमित नही होगी । भू और पर्वत का स्खलन होगा , ,मानव अपनी स्वार्थलोलूपता के कारण नदियों के किनारे , पर्वतों को अतिक्रमित कर ग्टह बनाएगे, खेती बाडी के तरफ झुकाव कम रहेगा वल्कि विल्डर बनने की होड में रहेगा । माता पिता के प्रति झुकाव कम रखेगा। लौह उद्योग , रसायण उद्योग की प्रधानता रहेगी , खेती बाडी से विमुख हो जएगा । जनता त्रस्त रहेगी । कल ,बल और छल की प्रधानता से परिपूर्ण रहेगा कलियुग ।
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