मंगलवार, अक्तूबर 13, 2020

बिहार : परमार्थ , उद्धार और विहार की धरती...


        प्राचीन बिहारी इतिहास के सवंध में वेदों , पुराणों उपनिषद् , इतिहास के पन्नो , पुरातात्विक विरासत से प्राप्त होते है ।मानवीय जीवन की प्रत्येक पहलुओं पर बिहार की धरती पर मिलता है।  धार्मिक ग्रंथों के अनुसार प्थम स्वायंभुव मनु के स्वायंभु मन्वन्तर काल मे स्वायंभुव मनु तथा शतरूपा के गर्भ से प्रियव्रत और उतानपाद का जन्म हुआ था । प्रिय व्रत की पत्नि महर्षि कदर्म की पुत्री से सात पुत्र का जन्म हुआ था जिसमें आग्रीध्र को जंबुद्वीप का अधिपति हुए । जंबु अधिपति आग्रीध्र के पुत्र नौ थे ।जंबूद्वीप के रााजा आग्रीध्र ने बडे पुत्र नाभि को हिम वर्ष के राजा तथा मेरूदेवी के साथ विवाह किया  । हिम वर्ष का राजा नाभि की पत्नी मेरूदेवी के गर्भ से रीषभदेव के सौ पुत्रों में भरत हुए ।हिमवर्ष के राजा भरत के पौत्र सुमती के पुत्र इंद्रद्युम्न हुए ।इंद्रद्युम्न के वंशज में परमेष्ठी ,, प्रतिहार ,प्रतिहर्ता , भव, उद्गीथ ,, प्रस्ताव , प्टथु , ,नक्त  का पुत्र गय था । गय ने गया नगर की स्थापना किया था । प्टथु के पौत्र नक्त के पुत्र गया द्वारा गया प्रदेश का निर्माण कर गया नगर मे राजधानी रखा था । गया प्रदेश का राजा गय का पौत्र नर का पुत्र विराट द्वारा विराट नगर की स्थापना कर विराट प्रदेश की निर्माण किया था । विराट प्देश का राजा विराट का पौत्र महावीर्य के पुत्र धीमान थे। विराट प्रदेश का राजा धीमान के वंश में महांत , मनस्यु ,त्वष्टा  ,विरज  , रज ,शतजीत  के 100 पुत्रों में विश्वज्योति द्वारा सतयुग तथा 71 युगपर्यंत तक विश्व के 9 भागों में राजा हुए थे । मन्वराधिप स्वायंभुव मनु के वंश विश्व में व्याप्त थे । विष्णु पुराण के तीसरा अध्याय श्लोक 16 ,   23,24 वें अध्याय में मगध के राजवंशों की चर्चा की गई है । मगध राजा अजात शत्रु द्वारा सोन नद तथा गंगा के संगम पर पत्तन का निर्माण कराया था तथा व्यापारिक केंद्र स्थापित की । 1628 ई. में पादरियों द्वारा पत्तन को पट्टन का रूप दिया गया था । पटना का प्रचीन नाम पत्तन , पत्तनम , पाटल , पाटलिपुत्र , पट्टन , पट्टना तथा पटना कहा गया । बिहार को सुबा , प्रांत , राजय में मगध , वैशाली , मिथिला , अंग देश समाहित है ।
 बिहार का क्षेत्रफल  94,163 किमी²  में ज़िले - 38 ,  विधान परिषद (75 सीटें) , विधान सभा (243 सीटें) , भारतीय संसद राज्य सभा (16 सीटें) ,लोक सभा (40 सीटें) तथा उच्च न्यायालय पटना उच्च न्यायालय है । बिहर  प्रसिद्ध ऐतिहासिक राज्य और जिसकी राजधानी पटना है। बिहार  का प्रादुर्भाव बौद्ध सन्यासियों के ठहरने के स्थान विहार शब्द से हुआ, जिसे विहार के स्थान पर इसके अपभ्रंश रूप बिहार से संबोधित किया जाता है। बिहार के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में झारखण्ड, पूर्व में पश्चिम बंगाल, और पश्चिम में उत्तर प्रदेश स्थित है। यह क्षेत्र गंगा नदी तथा उसकी सहायक नदियों के उपजाऊ मैदानों में बसा है। प्राचीन काल में विशाल साम्राज्यों का गढ़ रहा यह प्रदेश, अर्थव्यवस्था के आकार के आधार पर भारत के राज्य के सामान्य योगदाताओं में से एक बनकर रह गया है। भारत में क्षेत्रफल की दृष्टि से बिहार वर्तमान में 13 वाँ राज्य है। सन् 1936 ई• में ओडिशा और सन् 2000 ई॰ में झारखण्ड के अलग हो जाने से बिहार ने कृषि के दम पर और अपने मेधा को लेकर उन्नति की है।  मिथिला को पहली बार इंडो-आर्यन लोगों ने विदेह साम्राज्य की स्थापना के बाद प्रतिष्ठा प्राप्त की। वैदिक काल ( 1600-1100 ईसा पूर्व) के दौरान, विदेह् दक्षिण एशिया के प्रमुख राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र कुरु और पंचाल् के साथ था । सतयुग में वेदह साम्राज्य के राजा जनक थे। त्रेता युग में  मिथिला के जनक की पुत्री सीता थी । जिसका वाल्मीकिय रामायण में भगवान राम की पत्नी के रूप में वर्णित है। विदेह राज्य के वाजिशि शहर में अपनी राजधानी था जो वज्जि समझौता में शामिल हो गया, मिथिला में  है। वज्जि में गणतंत्र शासन था जहां राजा राजाओं की संख्या से चुने गए थे। जैन धर्म और बौद्ध धर्म से संबंधित ग्रंथों के  आधार पर, वज्जि को 6 ठी शताब्दी ईसा पूर्व से गणराज्य के रूप में स्थापित किया गया था, गौतम बुद्ध के जन्म से पहले 563 ईसा पूर्व में, यह दुनिया का पहला गणतंत्र था। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली में हुआ था। पश्चिमी पश्चिमी बिहार के क्षेत्र में मगध 1000 वर्षों के लिए भारत में शक्ति, शिक्षा और संस्कृति का केंद्र बने। ऋग्वेदिक् काल मे यह ब्रिहद्रत वंश का शासन था।सन् 684 ईसा पूर्व में स्थापित हरयंक वंश, राजगृह (आधुनिक राजगीर) के शहर से मगध पर शासन किया। इस वंश के दो प्रसिद्ध राजा बिंबिसार और उनके बेटे अजातशत्रु थे, जिन्होंने अपने पिता को सिंहासन पर चढ़ने के लिए कैद कर दिया था। अजातशत्रु ने पाटलिपुत्र शहर की स्थापना की जो बाद में मगध की राजधानी बन गई। उन्होंने युद्ध की घोषणा की और बाजी को जीत लिया। हिरुआँ वंश के बाद शिशुनाग वंश का पीछा किया गया था। बाद में नंद वंश ने बंगाल से पंजाब तक फैले विशाल साम्राज्य पर शासन किया। भारत की पहली साम्राज्य, मौर्य साम्राज्य द्वारा नंद वंश को बदल दिया गया था। मौर्य साम्राज्य और बौद्ध धर्म का इस क्षेत्र में उभार रहा है जो अब आधुनिक बिहार को बना देता है। 325 ईसा पूर्व में मगध से उत्पन्न मौर्य साम्राज्य, चंद्रगुप्त मौर्य ने स्थापित किया था, जो मगध में पैदा हुआ था। इसकी पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) में इसकी राजधानी थी। मौर्य सम्राट, अशोक, जो पाटलीपुत्र (पटना) में पैदा हुए थे, को दुनिया के इतिहास में सबसे बड़ा शासक माना जाता है। मौर्य सम्राजय भारत की आजतक की सबसे बड़ी सम्राजय थी ये पश्चिम मे ईरान से लेकर पूर्व मे बर्मा तक और उत्तर मे मध्य-एशिया से लेकर दक्षिण मे श्रीलंका तक पूरा भारतवर्ष मे फैला था। इस सम्राजय के पहले राजा चंद्रगुप्त मौर्य ने कै ग्रीक् सतराप् को हराकर अफ़ग़ानिस्तां के हिस्से को जीता। इनकी सबसे बड़ी विजय ग्रीस से पश्चिम-एशिय थक के यूनानी राजा सेलेक्यूज़ निकेटर को हराकर पर्शिया का बड़ा हिस्सा जीत लिया था और संधि मे यूनानी राजकुमारी हेलेन से विवाह किये जो कि सेलेक्यूज़ निकटोर कि पुत्री थी और हमेसा के लिए यूनाननियो को भारत से बाहर रखा। इनके प्रधानमंत्री चाणक्य ने अर्थशास्त्र कि रचना कि जो इनके गुरु और मार्गदर्शक थे। इनके पुत्र बिन्दुसार ने इस सम्राजय को और दूर थक फैलाया व दक्षिण तक स्थापित किया। सम्रात् अशोक इस सम्राजय के सबसे बड़े राजा थे। इनका पूरा राज नाम देवानामप्रिय प्रियादर्शी एवं राजा महान सम्रात् अशोक था। इन्होंने अपने उपदेश स्तंभ, पहाद्, शीलालेख पे लिखाया जो भारत इतिहास के लिया बहुत महातवपूर्ण है। येे लेख् ब्राह्मी, ग्रीक, अरमिक् मे पूरे अपने सम्राजय मे अंकित् किया। इनके मृत्या के बाद मौर्य सम्राजय को इनके पुत्रोने दो हिस्से मे बात कर पूर्व और पश्चिम मौर्य रज्या कि तरह रज्या किया। इस सम्राजय कि अंतिम शासक ब्रिहद्रथ को उनके ब्राह्मीण सेनापति पुष्यमित्र शूंग ने मारकर वे मगध पे अपना शासन स्थापित किया।
सन् 240 ई. में मगध में उत्पन्न गुप्त साम्राज्य को विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान, वाणिज्य, धर्म और भारतीय दर्शन में भारत का स्वर्ण युग कहा गया। इस वंश के महान राजा समुद्रगुप्त ने इस सम्राजय को पूरे दक्षिण एशिय मे स्थापित किया। इनके पुत्र चँद्रगुप्त विक्रमादित्य ने भारत के सारे विदेशी घुसपैट्या को हरा कर देश से बाहर किया इसीलिए इन्हे सकारी की उपादि दी गई। इन्ही गुप्त राजाओं मे से प्रमुख स्कंदगुप्त ने भारत मे हूणों का आक्रमं रोका और उनेे भारत से बाहर भगाया और देश की बाहरी लोगो से रक्षा की। उस समय गुप्त सम्राजय दुनिया कि सबसे बड़ी शक्ती साली राजया था। इसका राज पशिम मे पर्शिया या बग़दाद से पूर्व मे बर्मा तक और उत्तर मे मध्य एशिया से लेकर दक्षिण मे कांचीपुरम तक फैला था। इसकी राजधानी पटलीपुत्र था। मगध सम्राजय का प्रभाव पूरी विश्व मे था रोम, ग्रीस, अरब से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिय तक था। मगध में बौद्ध धर्म मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी के आक्रमण की वजह से गिरावट में पड़ गया, जिसके दौरान कई विहार और नालंदा और विक्रमशिला के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों को नष्ट कर दिया गया। यह दावा किया गया कि 12 वीं शताब्दी के दौरान हजारों बौद्ध भिक्षुओं की हत्या हुई थी। डी.एन. झा सुझाव देते हैं, इसके बजाय, ये घटनाएं सर्वोच्चता के लिए लड़ाई में बौद्ध ब्राह्मण की झड़पों का परिणाम थीं। 1540 में, महान पस्तीस के मुखिया, सासाराम के शेर शाह सूरी, सम्राट हुमायूं की मुगल सेना को हराकर मुगलों से उत्तरी भारत ले गए थे। शेर शाह ने अपनी राजधानी दिल्ली की घोषणा की और 11 वीं शताब्दी से लेकर 20 वीं शताब्दी तक, मिथिला पर विभिन्न स्वदेशीय राजवंशों ने शासन किया था। इनमें से पहला, जहां कर्नाट, अनवर राजवंश, रघुवंशी और अंततः राज दरभंगा के बाद। इस अवधि के दौरान मिथिला की राजधानी दरभंगा में स्थानांतरित की गई थी। 1857 के प्रथम सिपाही विद्रोह में बिहार के बाबू कुंवर सिंह तथा खभैनी अरवल का जीवधर सिंह  ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1905 में बंगाल का विभाजन के फलस्वरूप 22 मार्च 1912 ई. में बिहार नाम का राज्य अस्तित्व में आया। 01अप्रैल 1936 में उड़ीसा इससे अलग कर दिया गया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहार में चंपारण के विद्रोह को, अंग्रेजों के खिलाफ बग़ावत फैलाने में अग्रगण्य घटनाओं में से एक गिना जाता है। स्वतंत्रता के बाद बिहार का एक और विभाजन हुआ और 15 नवंबर 2000 में झारखंड राज्य को इससे अलग कर दिया गया। भारत छोड़ो आंदोलन में भी बिहार की गहन भूमिका रही। 24°20'10" ~ 27°31'15" उत्तरी अक्षांश तथा 83°19'50" ~ 88°17'40" पूर्वी देशांतर के बीच बिहार एक हिंदी भाषी राज्य है। राज्य का कुल क्षेत्रफल 94,163 वर्ग किलोमीटर है जिसमें 92,257.51 वर्ग किलोमीटर ग्रामीण क्षेत्र है। झारखंड के अलग हो जाने के बाद बिहार की भूमि मुख्यतः नदियों के मैदान एवं कृषियोग्य समतल भूभाग है। गंगा के पूर्वी मैदान में स्थित इस राज्य की औसत ऊँचाई १७३ फीट है। भौगोलिक तौर पर बिहार को तीन प्राकृतिक विभागो में बाँटा जाता है- उत्तर का पर्वतीय एवं तराई भाग, मध्य का विशाल मैदान तथा दक्षिण का पहाड़ी किनारा है । उत्तर का पर्वतीय प्रदेश सोमेश्वर श्रेणी का हिस्सा है। इस श्रेणी की औसत उचाई 455 मीटर है परन्तु इसका सर्वोच्च शिखर 874 मीटर उँचा है। सोमेश्वर श्रेणी के दक्षिण में तराई क्षेत्र है। यह दलदली क्षेत्र है जहाँ साल वॄक्ष के घने जंगल हैं। इन जंगलों में प्रदेश का इकलौता बाघ अभयारण्य वाल्मिकीनगर में स्थित है।मध्यवर्ती विशाल मैदान बिहार के 95% भाग को समेटे हुए हैं। भौगोलिक तौर पर इसे चार भागों में बाँटा जा सकता है:-  तराई क्षेत्र यह सोमेश्वर श्रेणी के तराई में लगभग 10 किलोमीटर चौ़ड़ा कंकर-बालू का निक्षेप है। इसके दक्षिण में तराई उपक्षेत्र है जो प्रायः दलदली है। भांगर क्षेत्र यह पुराना जलोढ़ क्षेत्र है। समान्यतः यह आस पास के क्षेत्रों से 7-8 मीटर ऊँचा रहता है।खादर क्षेत्र इसका विस्तार गंडक से कोसी नदी के क्षेत्र तक सारे उत्तरी बिहार में है। प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ के कारण यह क्षेत्र बहुत उपजाऊ है। परन्तु इसी बाढ़ के कारण यह क्षेत्र तबाही के कगार पर खड़ा है। गंगा नदी राज्य के लगभग बीचों-बीच बहती है। उत्तरी बिहार बागमती, कोशी, बूढी गंडक, गंडक, घाघरा और उनकी सहायक नदियों का समतल मैदान है। सोन, पुनपुन, फल्गू तथा किऊल नदी बिहार में दक्षिण से गंगा में मिलनेवाली सहायक नदियाँ है। बिहार के दक्षिण भाग में छोटानागपुर का पठार, जिसका अधिकांश हिस्सा अब झारखंड है, तथा उत्तर में हिमालय पर्वत की नेपाल श्रेणी है। हिमालय से उतरने वाली कई नदियाँ तथा जलधाराएँ बिहार होकर प्रवाहित होती है और गंगा में विसर्जित होती हैं। वर्षा के दिनों में इन नदियों में बाढ़ की एक बड़ी समस्या है। राज्य का औसत तापमान गृष्म ऋतु में 35-45 डिग्री सेल्सियस तथा जाड़े में 5-15 डिग्री सेल्सियस रहता है। जाड़े का मौसम नवंबर से मध्य फरवरी तक रहता है। अप्रैल में गृष्म ऋतु का आरंभ होता है जो जुलाई के मध्य तक रहता है। जुलाई-अगस्त में वर्षा ऋतु का आगमन होता है जिसका अवसान अक्टूबर में होने के साथ ही ऋतु चक्र पूरा हो जाता है। औसतन 1205 मिलीमीटर वर्षा का का वार्षिक वितरण लगभग 52 दिनों तक रहता है जिसका अधिकांश भाग मानसून से होनेवाला वर्षण है।उत्तर में भूमि प्रायः सर्वत्र उपजाऊ एवं कृषियोग्य है। धान, गेंहूँ, दलहन, मक्का, तिलहन, तम्बाकू,सब्जी तथा केला, आम और लीची जैसे कुछ फलों की खेती की जाती है। हाजीपुर का केला एवं मुजफ्फरपुर की लीची बहुत ही प्रसिद्ध है। बिहार की राजभाषा हिंदी और उर्दू द्वितीय राजभाषा है। मैथिली भारतीय संविधान के अष्टम अनुसूची में सम्मिलित एकमात्र बिहारी भाषा है । भोजपुरी, मगही, अंगिका तथा बज्जिका बिहार में बोली जाने वाली अन्य प्रमुख भाषाओं और बोलियों में सम्मिलित हैं।प्रमुख पर्वों में छठ, होली, दीपावली, दशहरा, महाशिवरात्रि, नागपंचमी, श्री पंचमी, मुहर्रम, ईद,तथा क्रिसमस हैं। सिक्खों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म स्थान होने के कारण पटना सिटी (पटना) में उनकी जयन्ती पर भी भारी श्रद्धार्पण देखने को मिलता है। 
    प्राचीन एवं मध्यकालीन इमारतें: कुम्रहार परिसर, अगमकुआँ, महेन्द्रूघाट, शेरशाह के द्वारा बनवाए गए किले का अवशेष
ब्रिटिश कालीन भवन: जालान म्यूजियम, गोलघर, पटना संग्रहालय, विधान सभा भवन, हाईकोर्ट भवन, सदाकत आश्रम
धार्मिक स्थल : महावीर मंदिर,बड़ी पटनदेवी,छोटी पटनदेवी,शीतला माता मंदिर,इस्कॉन मंदिर,हरमंदिर(पटना), महाबोधि मंदिर(गया), में है ।माता सीता की जन्मस्थली(सीतामढ़ी), कवि विद्यापति सह उगना महादेव मंदिर(मधुबनी), द•भारत स्थापत्यकला विष्णु मंदिर(सुपौल), सिहेश्वरनाथ मंदिर(मधेपुरा), सबसे ऊँची काली मंदिर(अररिया), नृसिंह अवतार स्थल(पूर्णियाँ), सूर्य मंदिर,नवलख्खा मंदिर,थावे(गोपालगंज)माँ दुर्गा माता मंदिर,नेचुआ जलालपुर रामबृक्ष धाम, दुर्गा मंदिर, अमनौर वैष्णो धाम ,आमी अम्बिका दुर्गा मंदिर,माँ दुर्गा की मंदिर छपरा, सीता जी का जन्म स्थान, पादरी की हवेली, शेरशाह की मस्जिद, बेगू ह्ज्जाम की मस्जिद, पत्थर की मस्जिद, जामा मस्जिद, फुलवारीशरीफ में बड़ी खानकाह, मनेरशरीफ - सूफी संत हज़रत याहया खाँ मनेरी की दरगाह, जहानाबाद - बराबर पर्वत समूह की गुफाए , भिति चित्र , मूर्तिकला , गुहा लेखन , सिद्धेश्वर नाथ मंदिर , काको का भारत की प्रथम महिला सूफी संत हजरत बीबी कमाल  का मजार है । ज्ञान-विज्ञान के केंद्र: पटना तारामंडल, पटना विश्वविद्यालय, सच्चिदानंद सिन्हा लाइब्रेरी, संजय गाँधी जैविक उद्यान, श्रीकृष्ण सिन्हा विज्ञान केंद्र, खुदाबक़्श लाइब्रेरी एवं विज्ञान परिसर है । सारण - प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा से लगनेवाला सोनपुर मेला , सारण जिला का नवपाषाण कालीन चिरांद गाँव , कोनहारा घाट, नेपाली मंदिर, रामचौरा मंदिर, १५वीं सदी में बनी मस्जिद, दीघा-सोनपुर रेल-सह-सड़क पुल, महात्मा गाँधी सेतु, गुप्त एवं पालकालीन धरोहरों वाला चेचर गाँव है।
 वैशाली - छठी सदी इसापूर्व में वज्जिसंघ द्वारा स्थापित विश्व का प्रथम गणराज्य के अवशेष, अशोक स्तंभ, बसोकुंड में भगवान महावीर की जन्म स्थली, अभिषेक पुष्करणी, विश्व शांतिस्तूप, राजा विशाल का गढ, चौमुखी महादेव मंदिर, भगवान महावीर के जन्म सथल है ।  नालंदा  - राजगृह मगध साम्राज्य की पहली राजधानी तथा हिंदू, जैन एवं बौध धर्म का एक प्रमुख दार्शनिक स्थल है। भगवान बुद्ध तथा वर्धमान महावीर से जुडा कई स्थान अति पवित्र हैं। वेणुवन, सप्तपर्णी गुफा, गृद्धकूट पर्वत, जरासंध का अखाड़ा, गर्म पानी के कुंड, मख़दूम कुंड आदि राजगीर के महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं। नालंदा विश्वविद्यालय के भग्नावशेष, पावापुरी में भगवान महावीर का परिनिर्वाण स्थल एवं जलमंदिर, बिहारशरीफ में मध्यकालीन किले का अवशेष एवं १४वीं सदी के सूफी संत की दरगाह (बड़ी दरगाह एवं छोटी दरगाह), नवादा  -  ककोलत जलप्रपात , अपसढ का वराह मंदिर , रूपौ का चामुण्डा मंदिर , दरियापुर का पर्वत , दरियापुर पारवती ,  , कोहवर , बोलता पहाड , श्रींगी पर्वत प्राचीन धरोहर है ।गया एवं बोधगया - हिंदू धर्म के अलावे बौद्ध धर्म मानने वालों का यह सबसे प्रमुख दार्शनिक स्थल है। पितृपक्ष के अवसर पर यहाँ दुनिया भर से हिंदू आकर फल्गू नदी किनारे पितरों को तर्पण करते हैं। विष्णुपद मंदिर, बोधगया में भगवान बुद्ध से जुड़ा पीपल का वृक्ष तथा महाबोधि मंदिर के अलावे तिब्बती मंदिर, थाई मंदिर, जापानी मंदिर, बर्मा का मंदिर, बौधनी पहाड़ी { इमामगंज } पुरातात्विक स्थल है ।विक्रमशीला भागलपुर  - प्राचीन शिक्षा स्थल के अलावे यह बिहार में तसर सिल्क उद्योग केंद्र है। पाल शासकों द्वारा बनवाये गये प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय का अवशेष, वैद्यनाथधाम मंदिर, सुलतानगंज, मुंगेर में बनवाया मीरकासिम का किला, मंदार पर्वत बौंसी बाँका एक प्रमुख धार्मिक स्थल जो तीन धर्मो का संगम स्थल है। विष्णुपुराण के अनुसार समुद्र मंथन यही संपन्न हुआ था और यही पर्वत जिसका प्राचीन नाम मंद्राचल पर्वत( मंदार वर्तमान में) जो की मथनी के रूप में प्रयुक्त हुआ था।लौरिया चंपारण - सम्राट अशोक द्वारा लौरिया में स्थापित स्तंभ, लौरिया का नंदन गढ़, नरकटियागंज का चानकीगढ़, वाल्मीकिनगर जंगल, बापू द्वारा स्थापित भीतीहरवा आश्रम, तारकेश्वर नाथ तिवारी का बनवाया रामगढ़वा हाई स्कूल, स्वतंत्रता आन्दोलन के समय महात्मा गाँधी एवं अन्य सेनानियों की कर्मभूमि तथा अरेराज में भगवान शिव का मन्दिर, केसरिया में दुनिया का सबसे बड़ा बुद्ध स्तूप जो पूर्वी चंपारण में एक आदर्श पर्यटन स्थल है  । सीतामढी  -  पुनौरा में देवी सीता की जन्मस्थली, जानकी मंदिर एवं जानकी कुंड, हलेश्वर स्थान, पंथपाकड़, यहाँ से सटे नेपाल के जनकपुर जाकर भगवान राम का स्वयंवर स्थल भी देखा जा सकता है। देव सूर्य मंदिर -  देवार्क सूर्य मंदिर या केवल देवार्क के नाम से प्रसिद्ध, यह भारतीय राज्य बिहार के औरंगाबाद जिले में देव नामक स्थान पर स्थित एक हिंदू मंदिर है जो देवता सूर्य को समर्पित है। यह सूर्य मंदिर अन्य सूर्य मंदिरों की तरह पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है।देवार्क मंदिर अपनी अनूठी शिल्पकला के लिए भी जाना जाता है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए इस मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। इतिहासकार इस मंदिर के निर्माण का काल छठी - आठवीं सदी के मध्य होने का अनुमान लगाते हैं जबकि अलग-अलग पौराणिक विवरणों पर आधारित मान्यताएँ और जनश्रुतियाँ इसे त्रेता युगीन अथवा द्वापर युग के मध्यकाल में निर्मित बताती हैं।परंपरागत रूप से इसे हिंदू मिथकों में वर्णित, कृष्ण के पुत्र, साम्ब द्वारा निर्मित बारह सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर के साथ साम्ब की कथा के अतिरिक्त, यहां देव माता अदिति ने की थी पूजा मंदिर को लेकर एक कथा के अनुसार प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गये थे, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की आराधना की थी। तब प्रसन्न होकर छठी मैया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप आदित्य भगवान, जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उसी समय से देव सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन भी शुरू हो गया। अतिरिक्त पुरुरवा ऐल, और शिवभक्त राक्षसद्वय माली-सुमाली की अलग-अलग कथाएँ भी जुड़ी हुई हैं जो इसके निर्माण का अलग-अलग कारण और समय बताती हैं। एक अन्य विवरण के अनुसार देवार्क को तीन प्रमुख सूर्य मंदिरों में से एक माना जाता है, अन्य दो लोलार्क (वाराणसी) और कोणार्क है। अरवल जिले के करपी का जगदंबा मंदिर में शाक्त धरर्म की माता जगदंबा , चतुर्भुज  , भगवान शिव पार्वति विहार , कई शिवलिंग , सती स्थान , मदसरवां में महर्षि च्यवन द्वारा स्थापित च्यवनेश्वर शिवलिंग , वधुसरोवर , लारी में सती  स्थान , शिवलिंग , अरवल में सेन नद के किनारे 12 वीं शदी का सम्मन सहेब का मजार , कागजी महल्ला में गुप्त कालीन शिवलिंग, किंजर में पुनपुन नदी के किनारे शिवमंदिर , पंतीत मे द्वापर युगीन शिवलिंग , खटांगी में भगवान सूर्य की मूर्ति , जहानाबाद जिले के जहानाबाद  दरधा जमुना नदी के संगम ठाकुरवाडी मे स्थित पंचलिंगी  शिवलिंग , चित्रगुप्त , सूर्य तथा  ठाकुर जी की प्राचीन मूर्तयां , भेलावर एवं दछनी में राजा दछ द्वारा स्थापित सूर्यमूर्ति , शिवलिंग स्थापित  , राजा चेर द्वरा चरूई का काली , डाकनी ,शाकनी , भिछुनी  , पिशाचनी की मूर्तयां , प्राचीनकाल की है ।जहानाबाद जिले के अमथुआ  कादरी संप्रदाय का मजार , जहानाबाद में सूफी संत का मजार है । बिहार का प्रथम चर्च पादरी की हवेली पटना सीटी है। ब्रिटिश काल के दौर में बांकीपुर और दीघा में चर्च की स्थापना  हुई। 
वर्ष 1628 ई. में पटना सिटी मैं ईसाई समुदाय द्वारा बिहार के  पादरी की हवेली चर्च की स्थापना की गई थी। उस समय मुगल बादशाह जहांगीर का शासन हुआ करता था। हालांकि भारत में व्यापार के बहाने अंग्रेज भी आ चुके थे। इसी दौरान यहां प्रार्थना स्थल का निर्माण कराया। उस दौर से ही चर्च में क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता रहा है।बंगाल के गजेटियर के अनुसार  1713 ई. में कैपूचिन धर्मसंगियों द्वारा यहां विकसित पूजा घर का निर्माण कराया गया। 1763 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी के कमांडर एलिस और मीर कासिम के सिपाहियों के बीच युद्ध होने में इस इमारत को बहुत नुकसान पहुंचा। कई अंग्रेजों का कत्ल हुआ जिन्हें पटना सिटी के अस्पताल के समीप कब्रिस्तान में ही दफन कर दिया गया। युद्ध के समय पादरी की हवेली गिरिजाघर भी तहस-नहस कर दिया गया। हाालांकि यहां प्रार्थना अनवरत जारी है। 1857 के विद्रोह में भी चर्च को नुकसान पहुंचा था।1772 ई. में फादर कैपूचिन ने फिर से भव्य पादरी की हवेली का निर्माण कराया। यही इमारत अभी तक कायम है। कोलकाता से आए मशहूर वेनेटियन आर्किटेक्ट टेरेटो ने वर्तमान पादरी की हवेली का डिजाइन तैयार किया। बताया जाता है कि उस दौर में इसके निर्माण पर 700 रुपये की लागत आई थी। इसके दीवार में सुर्खी-चूने का इस्तेमाल हुआ है। अंदर लकड़ी की बेहतरीन कारीगरी की गई है। सबसे सुखद यह है कि पूरी इमारत के साथ लकड़ी के दरवाजे-खिड़कियां और अन्य कारीगरी भी सही सलामत है।पादरी की हवेली की पीले रंग की इमारत दूर से ही आकर्षक दिखती है। लंबे और मोटे पिलर पादरी की हवेली की पहचान हैं। यह पिलर और इमारत ब्रिटिश वास्तुकला का नमूना है। पादरी की हवेली को देखने पर सबसे आगे चार पिलर नजर आते हैं। इसके पीछे दो और पिलर भी हैं। इतिहासकार अरुण सिंह बताते हैं कि यह आयोनिक पिलर हैं। यह पिलर अंग्रेजी और डच के दौर की इमारतों की पहचान हैं। यह पिलर ऊपर छत के पास जाकर मुड़ जाता है, इसलिए इसे आयोनिक पिलर कहते हैं। पीछे के पिलर ऊपर से नीचे तक सपाट हैं, जिसे क्रॉसियन कहते हैं।पादरी की हवेली का बड़ा आकर्षण यहां का घंटा भी है। अष्टधातु से निर्मित विशाल घंटा नेपाल नरेश पृथ्वी नारायण के पुत्र बहादुर शाह द्वारा 1782 ई. में इस गिरिजाघर को भेंट स्वरूप दिया गया था। इस घंटे का नाम 'मारिया' है, जो घंटे पर आज भी अंकित है। वर्ष 2013 के नवंबर माह में पर्यटन विभाग के मानचित्र पर आने के बाद देश-विदेश के पर्यटक भी बड़ी संख्या में यहां आते हैं।पादरी की हवेली में समाजसेवी मदर टेरेसा भी लगभग तीन माह तक रहीं। वे वर्ष 1948 ई. में ट्रेनिंग के सिलसिले में पटना आई थीं। बताया जाता है कि मिशनरी द्वारा संचालित कुर्जी फैमिली हॉस्पिटल में उन्होंने मरीजों की सेवा की ट्रेनिंग ली थी। आज भी मदर टेरेसा का वह कमरा हूबहू वैसा ही है। छोटे से कमरे में लोहे का पलंग, कपड़े रखने के लिए लकड़ी का हैंगर, टेबल आदि मदर टेरेसा के उस दौर की याद दिलाते हैं।अशोक राज पथ स्थित का गोथिल शैली में निर्मित  कैथोलिक चर्च की स्थापना बिशप हार्टमैन के नेतृत्व में 1849-50 ई. में हुई थी। चर्च के ठीक बगल में ही प्रसिद्ध संत जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल भी है। इतिहास अध्येता अरुण सिंह की मानें तो चर्च की स्थापना में बिशप हार्टमैन और शहर के तत्कालीन जज आरएस लॉगमैन का प्रमुख योगदान रहा। लॉगमैन की मदद से पांच एकड़ जमीन चर्च के लिए प्रस्तावित की गई थी। इसके बाद 23 सितंबर 1849 को चर्च की नींव पड़ी थी। एक साल के बाद 1850 ई. में चर्च बनकर तैयार हुआ था। हालांकि कुछ समय बाद पुरानी बिल्डिंग गिर गई जिसके बाद नये सिरे से चर्च भवन का निर्माण किया गया। चर्च के लिए नए भवन का निर्माण गोथिक शैली में किया गया जो आज भी मौजूद है। बिशप हार्टमैन की मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शरीर का पादरी की हवेली दफनाया गया था। हार्टमैन की इच्छा थी कि मेरे मरने के बाद पार्थिव शरीर को इसी चर्च में दफनाये गए। यह ईसाई धर्मावलंबियों की आस्था का बड़ा केंद्र है। कुर्जी-दीघा रोड स्थित कैथोलिक चर्च भी काफी पुराना है। वर्ष 1977 में चर्च को स्कूल परिसर से हटा कर स्कूल के सामने बने चर्च में गया है ।
पटना के रोमन कैथोलिक आर्चडियोज़ (लैटिन: पट्टन पटना शहर में स्थित पुरातनकोश है। 1 9 17 में बेटी के अपोस्टोलिक प्रीफेक्चर से पटना के अपोस्टोलिक विक्रियेत के रूप में स्थापित  है । विश्वास के प्रचार के लिए मण्डली ने तिब्बत के प्रान्त का निर्माण किया - 1703 में हिंदुस्तान और एंकोककना के मार्च में पिकमेनम के इतालवी प्रांत के कैपचिन पिता को सौंप दिया। पिता का पहला समूह 1707 में ल्हासा (तिब्बत) पर पहुंच गया और वहां चर्च काम शुरू किया। लगभग 41 वर्षों तक कूचिन फादर ने लहासा में काम किया, जब तक कि एक धार्मिक उत्पीड़न उन्हें अपने मिशन को छोड़ने और 1745 में काठमांडू (नेपाल) के लिए जाने के लिए मजबूर कर दिया। काठमांडु विजेता, राजा प्रितवी नारायण अपने पिता के प्रति सहानुभूति नहीं रखते, नेपाल ने कपासुन्द में पिताजी को अलग-अलग काम करते हुए 1715 से काम किया था। मिशन के नेपाल को भी 1769 में छोड़ दिया गया था, और 62 नेपाली ईसाई और पांच कैटकुमंस वाले पिता भारत में चले गए। नेपाली ईसाई और कैटेक्यूमन्स बेटियाह के पास चुहारी में बस गए कैपचिन मिशन का दृश्य भारतीय मिट्टी में स्थानांतरित हो गया 1745 में बेटिया के राजा के बाद राजा ड्रुवा सिंह ने पोप बेनेडिक्ट XIV से अनुमति प्राप्त कर ली थी।1812 में रोम ने तिब्बत-हिंदुस्तान के प्रीफेक्चर को एक विक्टिएट में बनाया। 1827 में बेत्तिया, चुहारी, पटना सिटी, दीनापुर, भागलपुर, दार्जिलिंग, सिक्किम, नेपाल और आसन्न क्षेत्रों में एक स्वतंत्र पटना विक्टोरेट बनाया गया। संत  एनास्टसियस हर्टमन्न , केम कैप, अपने पहले विकार अपोस्टोलिक नियुक्त किया गया था। 1886 में पोप लियो तेरहवीं पटना विचारेयेट के एक आदेश के साथ इलाहाबाद सूबा का हिस्सा बन गया। उत्तर बिहार मिशन, इसके बेतेया, चुहारी, चखानी और लाटोंह के चार स्टेशनों के साथ 1886 में टायरलोसी कैपचिनों को सौंपा गया था। मई 18 9 2 में उत्तर बिहार मिशन को बेटीया बनाया गया था - नेपाल प्रान्त के साथ अबतेई के फादर हीलरियन, ओम कैप, के रूप में अपनी पहली प्रीफेक्ट। 1 9 1 9 में यह प्रान्त भंग कर दिया गया था और पटना के वर्तमान सूबा के गठन के लिए दक्षिण बिहार में शामिल हो गया था।10 सितंबर 1 9 1 9 को पोप बेनेडिक्ट XV ने एक आदेश द्वारा इलाहाबाद के सूबा को दो भागों में विभाजित किया। इस प्रकार पटना के सूबा को बनाया गया था। बेतिया - नेपाल के प्रान्त नई बिशप के लिए कब्जा कर लिया गया था होली को सोसाइटी ऑफ द सोसाइटी ऑफ इसाई के अमेरिकी मिसौरी प्रांत को पटना सूबा का सौंपा गया।  13 नवंबर 1 9 30 को, मिसौरी प्रांत के विभाजन के पश्चात, पटना सूबा की सोसाइटी ऑफ इसास के शिकागो प्रांत को सौंपा गया था। बेल्जियम के जेसुइट के लुई व्हान हॉक को 6 मार्च 1 9 21 को पटना के पहले बिशप को ठहराया गया था। पेंसिल्वेनिया, संयुक्त राज्य अमेरिका के तीसरे आदेश नियमित  फ्रांसिसन फादर्स ने 1 9 38 में जेसुइट की सहायता के लिए पटना सूबा के पास आया था। भागलपुर, गोखला, पोरेयाहट और गोदादा के मिशन स्टेशन उन्हें सौंपा गया था। 1 9 56 में भागलपुर को एक प्रीफ़ेक्चर बनाया गया था और 1 9 65 में इसे एमएसग्रीन अर्बन एम सी गैरी, टीओआरआर के साथ एक बिशक़ा बनाया निषिद्ध नेपाल की साम्राज्य 1 9 51में पिता  मार्शल ने विकाश की नींव डाला था । मोरन, एस.जे. नेपाल को 1 9 84 और फादर में एक स्वतंत्र संगठनात्मक इकाई बनाया गया था। एंटोनी शर्मा, एसजे। को प्रथम मिशन सुपीरियर के रूप में नियुक्त किया गया था 28 मार्च 1 9 80 को पोप जॉन पॉल द्वितीय ने बिशप अगस्टीन वाइल्डमूट एसजे के इस्तीफे को स्वीकार कर लिया और पटना सूबा के दो भागों में विभाजित किया: पटना और मुजफ्फरपुर फ्रेड बेनेडिक्ट जे ओस्ता एसजे। को पटना के बिशप की नियुक्त किया गया था। पटना के सूबा में बिहार राज्य, पटना के जिलों, नालंदा, नवादाह, गया, औरंगाबाद, रोहतस, जहानाबाद, भोजपुर, भाभुआ, बक्सर और मुंगेर  शामिल है। बिहार में महर्षियों में भ्टगु , च्यवन , लोमष , मार्कण्डेय, वधुश्रवा , वत्स  ,कौशिक , काकभषुण्डी , विश्वामित्र , वाल्मीकी , यागवल्क्य  , और्व , वहीं राजाओं में गयासुर ,जरासंध , वसु, जनक , करूष , शर्याति ,,विशाल , बली , विकुछी पुत्र बाणासुर , बुध , एल ,अंग, वेन , प्टथु , कर्ण  आदि राजा थे । मागध ने मगध देश की स्थापना की थी । बिहार मे किसान आंदोलन के जनक पंडित यदुनंदन शर्मा , स्वामी सहजानंद सरस्वती हुए । हिंदी के विकास के लिए बिहार हिंदी सहित्य सम्मेलन पटना की स्थापना हुई । बिहार के लेखकों ,कवियों में रामधारी सिंह दिनकर , विद्यापति , मयुर भट्ट , बाणभट्ट , मोहनलाल महतो वियोगी , रामदयाल पाण्डेय , शिवपूजन सहाय , ,छविनाथ पाण्डेय  , हरिनाथ पाठक आदि हुए 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें