बुधवार, जुलाई 14, 2021

बाण भट्ट : संस्कृत गद्य साहित्य के प्रणेता...

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            बाण भट्ट सातवीं शताब्दी के संस्कृत गद्य लेखक और कवि और राजा हर्षवर्धन के आस्थान कवि थे। बाण भट्ट के  ग्रंथों में  हर्षचरितम् तथा कादम्बरी है । हर्षचरितम् में राजा हर्षवर्धन का जीवन-चरित्र और कादंबरी दुनिया का प्रथम संस्कृत  उपन्यास था। कादंबरी पूर्ण होने से पहले ही बाण भट्ट का देहांत होने के पश्चात कादंबरी  उपन्यास को पूर्ण करने का कार्य  उनके पुत्र भूषण भट्ट द्वारा किया गया है । बिहार राज्य का औरंगाबाद जिले के  हसपुरा प्रखंड   वैदिक नदी हिरण्यबाहु के अप्लावन धारा के तट पर स्थित प्रीतिकूट को मुगल काल में प्रितिकुट  परिवर्तित हो कर पीरू ग्राम में शाकद्वीपीय ब्राह्मण संस्कृत साहित्य के विद्वान कुवेर वंशीय अछूत , ईशान , हर और पक्षपात पुत्रों में पक्षपात के प्रपौत्र एवं अर्थपति के पौत्र और  चित्रभानु की पत्नी राज्यदेवी के गर्भ से बाणने जन्म हुआ था । बाण के शैशवकाल मे उनकी माता राज्यदेवी तथा 14 वर्ष की आयु में पिता चित्रभानु की मृत्यु हो गई थी । यौवन का प्रारम्भ एवं सम्पत्ति होने के कारण, बाण संसार को स्वयं देखने के लिए घर से चल पड़े। बाण भट्ट ने समवयस्क मित्रों में बाण ने प्राकृत के कवि ईशान भट्ट, नाटककार ,  चिकित्सक का पुत्र, एक पाठक, एक सुवर्णकार, एक रत्नाकर, एक लेखक, एक पुस्तकावरक, एक मार्दगिक, दो गायक, एक प्रतिहारी, दो वंशीवादक, एक गान के अध्यापक, एक नर्तक, एक आक्षिक, एक नट, एक नर्तकी, एक तांत्रिक, एक धातुविद्या में निष्णात और एक ऐन्द्रजालिक आदि की गणना की है। देशों का भ्रमण करने के बाद बाण भट्ट  अपने स्थान प्रीतिकूट लौटे थे । प्रितिकुट में रहते हुए बाण भट्ट को राजा  हर्षवर्धन के चचेरे भाई कृष्ण का एक सन्देश मिला कि कुछ चुगलखोरों ने राजा से बाण की निन्दा की है । बाण ने  तुरन्त  राजा से मिलने गए और दो दिन की यात्रा के पश्चात् अजिरावती के तट पर राजा से मिले थे । साक्षात्कार में बाण को बहुत निराशा हुई क्योंकि सम्राट के साथी मालवा के राजा ने कहा अयमसौभुजंग : पर  बाण ने अपनी स्थिति का स्पष्टीकरण किया और सम्राट् उनसे प्रसन्न हुए। सम्राट के साथ रहकर बाण वापिस लौटे और बाण ने प्रस्तुत हर्षचरित में हर्ष की जीवन गाथा है । बाण को राजसंरक्षण मिला और उन्होंने भी हर्ष चरित लिखकर उसका मूल्य चुका दिया। बाण का भूषणभट्ट ,  भट्टपुलिन्द ने बाण की मृत्यु के पश्चात कादम्बरी को सम्पूर्ण किया।
हर्ष चरित में हर्ष के वंश का वर्णन में   बाण कन्नौज के सम्राट हर्षवर्धन (606-646) के राजकवि थे। अलंकार शास्त्र के ज्ञाता आनंदवर्द्धन द्वारा 9 वी शताब्दी और वामन ने 750 ई. और गढ़वाहो के रचयिता वकपतिराज ने 734 ई. में बाण का उल्लेख किया है।  बाण आनन्दवर्धन से बहुत पहले हो चुके थे। कादम्बरी और हर्षचरितम् , मार्कण्डेय पुराण के देवी महात्म्य पर आधारित दुर्गा का स्तोत्र चंडीशतक  नाटक ‘पार्वती परिणय’ बाण द्वारा रचित  है।  विशेषणबहुल वाक्य रचना में, श्लेषमय अर्थों में तथा शब्दों के अप्रयुक्त अर्थों के प्रयोग में  बाण का वैशिष्ट्य है। बाण भट्ट के गद्य में लालित्य है और लम्बे समासों में बल प्रदान करने की शक्ति है। वे श्लेष, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, सहोक्ति, परिसंख्या और विशेषतः विरोधाभास का बहुलता से प्रयोग करते है।कादम्बरी में शुकनास तथा हर्षचरितम् के प्रभाकरवर्धन की शिक्षाओं से बाण का मानव प्रकृति का गहन सुस्पष्ट है। बाण ने ‘ध्वनि’ के लिए 19 शब्दों का प्रयोग किया है। इसी प्रकार विशेषणों के प्रयोग में बाण निष्णात हैं । बाणभट्ट का मानव प्रकृति का ज्ञान  है। "'बाणोच्छिष्टं जगत सर्वम्।'" बाण ने किसी कथनीय बात को छोड़ा नहीं जिसके कारण कोई पश्चाद्वर्ती लेखक बाण को अतिक्रांत न कर सका। कवि की सर्वतोमुखी प्रतिभा, व्यापक ज्ञान, अद्भुत वर्णन शैली और प्रत्येक वर्ण्य-विषय के सूक्ष्मातिसूक्ष्म वर्णन के आधार पर यह सुभाषित प्रचलित है कि बाण ने किसी वर्णन को अछूता नहीं छोड़ा है और उन्होंने जो कुछ कह दिया, उससे आगे कहने को बहुत कुछ शेष नहीं रह जाता। बाण ने जितनी सुन्दरता, सहृदयता और सूक्ष्मदृष्टि से बाह्य प्रकृति का वर्णन किया है । प्रातः काल वर्णन, सन्ध्यावर्णन, शूद्रकवर्णन, शुकवर्णन, चाण्डालकन्या वर्णन आदि में बाण ने वर्णन ही नहीं किया है, अपितु प्रत्येक वस्तु का सजीव चित्र उपस्थित कर दिया है। चन्द्रापीड को दिये गये शुकनासोपदेश में तो कवि की प्रतिभा का चरमोत्कर्ष परिलक्षित होता है। कवि की लेखनी भावोद्रेक में बहती हुई सी प्रतीत होती है। शुकनासोपदेश में ऐसा प्रतीत होता है मानो सरस्वती साक्षात मूर्तिमती होकर बोल रही हैं।बाण के वर्णनों में भाव और भाषा का सामंजस्य, भावानुकूल भाषा का प्रयोग, अलंकारों का सुसंयत प्रयोग, भाषा में आरोह और अवरोह तथा लम्बी समासयुक्त पदावली के पश्चात् लघु पदावली आदि गुण विशेष रूप से प्राप्त होते हैं। प्रत्येक वर्णन में पहले विषय का सांगोपांग वर्णन मिलता है, बहुत समस्तपद मिलते हैं, तत्पश्चात् श्लेषमूलक उपमायें और उत्प्रेक्षाएँ, तदनन्तर विरोधाभास या परिसंख्या से समाप्ति। श्लेषमूलक उपमा प्रयोग, विरोधाभास और परिसंख्या के प्रयोगों में क्लिष्टता, दुर्बोधता और बौद्धिक परिश्रम अधिक है।महाश्वेता-दर्शन में एक वाक्य 67 पंक्तियों और कादम्बरी दर्शन में  एक वाक्य 72 पंक्तियों का है। वाणी वाणी बभूव। बाण की रचनाओं में हर्षचरितम् कादम्बरी है ।महाकवि बाणभट्ट ने हर्षचरित के प्रारंभ में अपने वंश आदि के संबंध में जानकारी दी है। कादंबरी के प्रारंभिक श्लोकों में भी वंश क्रम के विषय में प्रकाश डाला है। महाकवि वत्स वंशीय  कुबेर के यहां रहने वाले तोता मैना अशुद्ध पाठ करने वाले विद्यार्थियों को टोक दिया करते थे। कुबेर  के 4 पुत्रों में  अछूत,  ईशान ,  हर और पक्षपात थे । पक्षपात के पुत्र अर्थपति के 11 पुत्रों में  चित्रभानु बाण के पिता थे।  बाण भट्ट के बाल्यावस्था में माता पिता की मृत्यु हो जाने से स्वतंत्र बुद्धि बाल बाल सुलभ चपलताओं सेशन ग्रसित हो गए और देश देशांतर भ्रमण के लिए निकल पड़े। उन्होंने अपने प्रवास काल में विविध प्रकार के अनुभव प्राप्त किए। विभिन्न देशों के पर्यटन के पश्चात वे अपने ग्राम प्रीतिकोट वापस आ गए थे ।बाण को  ज्ञात हुआ कि किसी व्यक्ति ने सम्राट हर्षवर्धन से उनकी शिकायत कर दी है टैब बाण ने अपनी स्थिति को स्पष्ट करने के लिए राज दरबार में उपस्थित हुए। उनके विकृत वेश को देखकर सम्राट हर्षवर्धन ने उन्हें महादुष्ट कह दिया।  उन्होंने विनम्रता पूर्वक अपनी स्थिति स्पष्ट करने  के पश्चात राजा के कृपा पात्र बन गए। बाण भट्ट ने अपने कनिष्ठ चचेरे भाई श्यामल के परामर्श  से सम्राट हर्षवर्धन के चरित्र पर   हर्षचरित की रचना की है ।सुभाषितावली और शार्डग्धर पद्धति में राजशेखर द्वारा   बाण भट्ट ,  मयूर भट्ट और मार्तंड , दिवाकर हर्ष की सभा में प्रतिष्ठित होने का उल्लेख किया गया है ।  प्रातः काल में मयूर भट्ट ने  बाण भट्ट  से मिलने गए थे । बाण भट्ट के संस्कृत साहित्य में संस्कृत उपन्यास कादंबरी गद्यम कविनाम निकसं वदन्ति का द्योतक है । गद्य कवियों की कसौटी है ।



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