रविवार, जुलाई 18, 2021

औरंगाबाद की सांस्कृतिक विरासत...

    
    औरंगाबाद की सांस्कृतिक और सभ्यता विरासत भारी पड़ी है । मगध मण्डल का औरंगाबाद जिला की स्थापना  1972 ई. में हुआ था।  गया जिले के अंतर्गत 1865 ई. में औरंगाबाद अनुमंडल की स्थापना हुई थी । जिले में 2 अनुमंडल ,  11 तहसीलें , 2624 गांव, १ लोक सभा और 6 विधान सभा क्षेत्र है। 3305 वर्ग कि. मि .क्षेत्रफल  में  २०11 की जनगणना के अनुसार औरंगाबाद जिले  की जनसँख्या 25,11,243 और जनसँख्या घनत्व 760 व्यक्ति प्रति वर्ग कि. मि .,  साक्षरता 72.77 % , महिला पुरुष अनुपात 916 महिलाये प्रति 1000 पुरुषो पर है । औरंगाबाद जिला की सीमाएं दक्षिण पश्चिम में झारखण्ड है । औरंगाबाद के अक्षांस और देशांतर क्रमशः 24 डिग्री 75  उत्तर से 84 डिग्री 37  पूर्व , औरंगाबाद की समुद्रतल से ऊंचाई 108 मीटर है, औरंगाबाद पटना से 143 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम की तरफ है। औरंगाबाद का पश्चिमोत्तर  रोहतास जिले , उत्तर पूर्वी किनारा अरवल जिले , दक्षिण पूर्वी भाग गया जिले , दक्षिण पश्चिम में झारखण्ड के जिले पलामू  सीमा से जुड़ा है। औरंगाबाद जिले में कितनी तहसील है?औरंगाबाद जिले के प्रखंडों में  1. औरंगाबाद।  2. बारुन, 3. दाउदनगर, 4. देव,  5. गोह,  6. हँसपुरा, 7. कुटुम्बा,  8. मदनपुर , 9. नबीनगर , 10. ओबरा, 11. रफिगंज है । 1883 गाँव वाले औरंगाबाद जिले के  विधान सभा क्षेत्रो में  गोह, ओबरा, नबीनगर, कुटुम्बा , औरंगाबाद, रफीगंज तथा औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र है । औरंगाबाद जिले के ऐतिहासिक और पर्यटन स्थलों में देव का सूर्यमंदिर , उमंग का सूर्य मंदिर , देवकुंड का दुधेश्वरनाथ मंदिर , भृगुरारी मंदिर ,  गोह का शिवमंदिर , दाउदनगर का दाऊद खां का मकबरा , शमशेरनगर में समशेर खां का मकबरा  है । गुलाम हुसैन ने 1762 ई. में सम्पति को थॉमस लॉ द्वारा 1784 ई. में राजस्व वसूली के लिए परगना की स्थापना 1763 ई. में सिरिस और कुटुंबा की गई थी । 1801 ई. में माली , पवई परगना बने । 1792 ई. में चारकवां परगना के तहत हवेली चारकवां , दुग्गल , देव और उमगा की स्थापना हुई थी । देव और उमगा परगना के राजा छत्रपति सिंह और उनके पुत्र फतेह नारायण सिंह  तथा हवेली चारकवां और डुगुल परगना को पैठान परिवार के अधीन था ।1819 ई. में  मनौरा , अनछुआ और गोह परगना को 1819 ई. में चौधरी डाल सिंह के अधीन जागीरदारी थी । 1911 ई. में औरंगाबाद जिले में औरंगाबाद के 991 गाँव  ओबरा ,मदनपुर , बारुण ,रफीगंज ,नवीनगर में 580 गाँव में नवीनगर , कुटुंबाऔर दाउदनगर में 313 गाँव शामिल कर  दाउदनगर , गोह राजस्व एवं  थाना  बने थे । 1855 ई. में दाउदनगर नगरपालिका की स्थापना हुई है । उमगा - औरंगाबाद से  30 किलोमीटर दूरी पर  उमगा पहाड़ पर  सूर्य मंदिर, मां उमंगेश्वरी मंदिर, शंकर ,  पार्वती, गणेश सहित 52 मंदिर  है। देव राजा भैरवेंद्र द्वारा अपने संरक्षण में उमगा पर्वत के सौ फीट की ऊंचाई स्थित श्रंखला पर  स्थापित सूर्य मंदिर  60 फीट की लंबा कला एवं कला ग्रेनाइट पाषाण में निर्मित  है। अरब सौदागरों द्वारा प्रवेश द्वार पर स्तम्भ निर्माण कर अल्लाह का दरवाजा का निर्माण किया था । 1439 ई. में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण भैरवेंद्र द्वारा कराया गया था ।उमगा में स्थित मंदिरों का भ्रमण करने के दौरान कैप्टन कीटो और राजा लक्ष्मण देव का संघर्ष हुआ था । 1847 ई. का  जर्नल ऑफ द एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के लेखक कैप्टन कीटो एवं  1906 ई. में बाबू परमेश्वर दयाल की पुस्तक जर्नल ऑफ थे एशियाटिक सोइफय ऑफ बंगाल  में उमगा पर्वत पर निर्मित मंदिरों का उल्लेख है । पहाड़ी पर मां उमंगेश्वरी मंदिर , मां  सरस्वती तथा  इक्ष्वाकु  देवी महिषासुर मर्दनी अष्टभुजी ,  मार्तंड भैरव ,  उमंगेश्वरी मां की प्रतिमा हजारों टन वाले विशाल भार वाले पत्थर से बने मंदिर में  हैं।  पहाड़ की ऊपरी चोटी पर भगवान शिव और गौरी मौजूद हैं। उमगा पहाड़ी पर  अमर कुंड  हैं। मदनपुर का उमगा पहाड़ पर 200 से अधिक औषधीय पौधों की  विभिन्न रोगों के लिए कारगर है। ङ्क्षपकटोरिया पौधा पहाड़ पर मुसलीकंद, बिदारीकंद, गुड़मार, अष्टगंध, श्रृंगारहार, सतावर, गोखुल, कोरैया समेत विभिन्न प्रजाति के पौधे उगे हैं।  देव -  सूर्य पुराण के अनुसार राजा एल द्वारा देवार्क मंदिर निर्मित  है। औरंगाबाद से 6 की.मि. की दूरी पर मगध का राजा आएल को कुष्ट व्याधि से त्रस्त होने के बाद देव स्थित तलाव में स्नान करने के पश्चात भगवान सूर्य की परत: कालीन , मध्य कालीन और सांध्यकालीन , उत्तरायण एवं दक्षिणायन भगवान सूर्य की आराधना करने के बाद राजा आएल कुष्ट व्याधि से मुक्ति मिली थी । राजा आएल द्वारा भगवान सूर्य का मंदिर और ब्रह्मकुंड का निर्माण कराया गया था । सूर्य मंदिर का निर्माण लौह अयस्क , ग्रेनाइट पत्थरो से किया गया है । मंदिर के मंडप में गणेश की मूर्ति स्थापित है ।उदयपुर के महाराणा राय भान सिंह द्वारा उमगा पहाड़ी पर किले का निर्माण किया था । राजा  बहन सिंह की मृत्यु होने के बाद उनकी पत्नी और पुत्र राजा छत्तरपति सिंह काल में ब्रिटिश साम्राज्य का वारेन हास्टिंग और बनारस के राजा चैत सिंह  द्वारा सहायता देव राजा छत्तरपति सिंह को करने के बाद देव इस्टेट घोषित कर पलामू के राजा मित्र भान  सिंह  को भर दिया गया । देव राजा जयप्रकाश सिंह को महाराजा बहादुर और नाइटहुड ऑफ थे स्टार ऑफ इंडिया की उपाधि से अलंगकृत 1857 ई. में किया गया था । देव राजा जयप्रकाश सिंह का निधन 16 अप्रैल 19 34 ई. में हो गयी थी ।देव इस्टेट 92 वर्गमील में फैला था । सूर्य  मंदिर  पश्चिमाभिमुख अनूठी शिल्पकला के लिए प्रख्यात है। पत्थरों को तराश कर बनाए गए सूर्य मंदिर की नक्काशी उत्कृष्ट शिल्प कला का नमूना है। सतयुग में इक्ष्वाकु वंशीय राजा ऐल एक बार देवारण्य में शिकार खेलने गए थे। वे कुष्ठ रोग से पीड़ित थे। शिकार खेलने पहुंचे राजा ने जब यहां के एक पुराने पोखर के जल से प्यास बुझायी और स्नान करने के बाद  उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया। एल  ने स्वप्न देखा कि त्रिदेव रूप आदित्य पुराने पोखरे में हैं, जिसके पानी से उनका कुष्ठ रोग ठीक हुआ था। राजा ऐल ने देव में एक सूर्य मंदिर का निर्माण कराया। सूर्य कुंड  में ब्रह्मा, विष्णु व शिव की मूर्तियां मिलीं, जिन्हें राजा ने मंदिर में स्थान देते हुए त्रिदेव स्वरूप आदित्य भगवान को स्थापित कर दिया था ।कीकट प्रदेश का राजा  वृषपर्वा के पुरोहित शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी सूर्य उपासिका थी । शुक्राचार्य ने अपनी पुत्री के नाम पर देवयान कालांतर देव नगर की स्थापना किया था ।  देवयानी द्वारा भगवान सूर्य की प्रातः काल, मध्यकाल और संध्या काल की मूर्ति स्थापित कर  सूर्येष्टि यज्ञ ब्रह्मा जी के परामर्श से कराई गई थी । देव Cशाकद्वीप के मग ब्राह्मण द्वारा सौर सम्प्रदाय का केंद्र बना तथा सूर्योपासक सूर्य की आराधना स्थल बने थे । पुष्यभूति वर्द्धन वंशीय राजा प्रभार वर्द्धन और उनकी पत्नी यशोमति भगवान सूर्य की उपासिका थी ।प्रभाकर वर्द्धन की पुत्री कनौज का राजा ग्रह वर्मा से व्याही गयी थी । पुष्पभूति वर्द्धन की पत्नी मगध के राजा दामोदर गुप्त की राज कुमारी सूर्योपासक थी । 606 ई . सातवीं शताब्दी में राजा हर्षवर्द्धन के दरबार मे प्रकांड विद्वान सूर्योपासक मयूर भट्ट द्वारा सूर्य शतक रचना कर देव सूर्य मंदिर में स्थित भगवान सूर्य के समक्ष समर्पित किया गया जिससे मयूर कुष्टव्याधि से मुक्त हुए थे । देवकुंड -  औरंगाबाद जिले का गोह प्रखंड के देवकुंड में भगवान दुग्धेश्वरनाथ  मंदिर तथा डिवॉन द्वारा निर्मित सहस्त्रधारा कुंड है । देवकुंड में वैदिक ऋषि च्यवन का साधना स्थल तथा वैवस्वत मनु के पुत्र राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या  कर्म भूमि रही थी । ऋषि च्यवन का जर्जर शरीर तथा सुकन्या की मनोकामना सिद्धि के लिए देव चिकित्सक अश्विनी कुमारों की आराधना की गाय थी । देव वैद्य अश्विनी कुमारों द्वारा वैदिक ऋषि च्यवन का जर्जर शरीर को युवा और सुकन्या की मनोकामनाएं पूरी की गई थी । औरंगाबाद जिले के गोह प्रखंड तथा अरवल जिले के करपी प्रखंड की सीमा पर देवकुंड शैव धर्म का स्थल है । नवीनगर -  दिव्य पुरुष अशोक बाबा नाग वंश के गुरु थे । नवीनगर में नाग वंश के नवी के रूप में जाने जाते है यहां अशोक बाबा का मंदिर है । मेवाड़ के राजा चौहान राजपूत  वंश के तीन लोग में राय बहादुर द्वारा 1664 ई. में नवीनगर में किले का निर्माण कार्य  किया गया था । ब्रिटिश सरकार ने 1857 ई. में  रे बहादुर को सम्मानित किया था ।  नवीनगर में सौर धर्म की ओर से सूर्य मंदिर तथा तलाव का निर्माण किया गया था । ।गजना धाम मंदिर - नवीनगर का टंडवा थाने के कर्रवार नदी के तट पर  गजनाधाम  में भगवती गजानन माता का मंदिर स्थित है । बिहार-झारखंड के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। कर्रवार शक्ति पीठ के रुप में विख्यात है। गजानन माता  मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 1965 में जगन्नाथ सिंह उर्फ त्यागी जी ने करवाया था।  खरवारों की कुलदेवी चेड़ीमाई की पूजा होती है। चेरों के आगमन के  800 साल पूर्व  जपला में खरवार राजाओं की राजधानी थी। आशुतोष भट्टाचार्य ने 'बंगाला, लोक साहित्य और संस्कृति'' में सूर्य का पर्व गाजन की चर्चा की है। बंगाल में लोकप्रिय शैव संप्रदाय से जुड़ा है। गाजन पर्व बंगाल में चैत्र महीने में मनाया जाता है। बारहवीं शताब्दी के मध्य तक गजानन  क्षेत्र बंगाल के शासक रामपाल सेन के अधीनस्थ था। गजानन वैन देवी के रूप में पूजे जाते थे । गोह -   गोह में प्राचीन भगवान शिव मंदिर , शैव धर्म का मठ  और माता काली मंदिर है । दाउदनगर -  औरंगजेब द्वारा  1660 ई. में बिहार का गवर्नर अहमद खां का पौत्र दाऊद खां को नियुक्त किया गया था । दाऊद खां द्वारा सोन नद के किनारे दाउदनगर का निर्माण तथा गौसपुर  किला , अहमदगंज मस्जिद , तथा अहमदगंज में दाऊद खान का मकबरा  निर्मित है । 1871 ई. में कॉलोलें डाल्टन द्वारा दाउदनगर में पलामू फोर्ट या सिंह दरवाजा का निर्माण कराया गया था । दाउदनगर में ब्रिटिश सरकार द्वारा कमर्शियल सेंटर  के तहत क्लॉथ फैक्ट्री का उत्पादन दाउदनगर ट्रेड के तहत तसर कॉलोथ , ब्रास ,उटेंसिल ,कारपेट , ब्लैंकेट ,लिनसीड , मोलास्सेस  का निर्माण होता था । शमशेर खां ने मायर में राह कर बिहार का सूबेदार बना था । मायर में संस्कृत साहित्य के विद्वान मयूर भट्ट की जन्म भूमि थी । हर्षवर्द्धन काल में हसपुरा प्रखंड के प्रितिकुट ( पीरू )  में कुवेर वंशीय संस्कृत साहित्य हर्षचरित एवं कादंबरी तथा चांदी शतक के रचयिता  बाण भट्ट  , दाउदनगर प्रखंड के मायर में संस्कृत साहित्य के रचनाकार सूर्य शतक के रचयिता मयूर भट्ट की जन्म स्थली और और्व ऋषि की कर्म स्थल औरव में रही है ।



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