शनिवार, जुलाई 24, 2021

मगध : बुध , जरासंध , बुद्ध और महावीर...



            पुरणों , उपनिषदों , स्मृतियों और सौर , शाक्त , शैव ,वैष्णव सम्प्रदाय , बौद्ध, जैन ग्रंथों में मगध साम्राज्य का उल्लेख किया गया है । महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ में मगध के  महारथी व बलशाली राजाओं का वर्णन है। ऐसा ही एक महारथी राजा था जरासंध। उसके जन्म व मृत्यु की कथा भी बहुत ही रोचक है। जरासंध मगध  का राजा जरासंध द्वारा राजाओं को हराकर मगध की राजधानी राजगीर की  पहाड़ी किले में बंदी बना लेता था। जरासन्ध बंदी राजाओं का वध कर चक्रवर्ती राजा बनना चाहता था। भीम ने द्वापर युग में  13 दिन तक कुश्ती लड़ने के बाद जरासंध को पराजित कर उसका वध किया था। मथुरा के राजा कंस का ससुर एवं परम मित्र जरासंध था। मगध सम्राट जरासंध की  पुत्रियों में  आसित एव प्रापित का विवाह कंस से हुआ था। भगवान कृष्ण द्वारा कंस वध किये जाने के कारण  प्रतिशोध लेने के लिए जरासंध ने 17 बार मथुरा पर चढ़ाई की परंतु जरासंधअसफल होना पड़ा था । जरासंध के भय से अनेक राजा अपने राज्य छोड़ कर भाग गए थे। मगध साम्राज्य का राजा जरासंध का सेनापति शिशुपाल  था। भगवान शंकर का परम भक्त जरासंध  ने अपने पराक्रम से 86 राजाओं को बंदी बना कर  पहाड़ी किले में कैद कर लिया था। जरासंध ने चक्रवर्ती सम्राट बनाने के लिए 100 राजाओं  को बंदी बनाकर बलि देना चाहता था । मगध देश का राजा  बृहद्रथ के   दो पत्नियों की  संतान नहीं थी।  राजा बृहद्रथ ने संतान के लिए ऋषि  चण्ड कौशिक के पास गए और सेवा कर उन्हें संतुष्ट किया। महात्मा चण्डकौशिक ने राजा वृहद्रथ को एक फल दे कर कहा कि फल अपनी पत्नी को खिला देना, इससे तुम्हें संतान की प्राप्ति होगी। राजा ने  फल काटकर अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया। समय आने पर दोनों रानियों के गर्भ से शिशु के शरीर का एक-एक टुकड़ा पैदा हुआ। रानियों ने घबराकर शिशु के दोनों जीवित टुकड़ों को बाहर फेंक दिया था । उसी समय वहां से  राक्षसी जरा ने जीवित शिशु के दो टुकड़ों को देखा तब जरा  अपनी माया से उन दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया और वह शिशु एक हो गया। एक शरीर होते ही वह शिशु जोर-जोर से रोने लगा। बालक की रोने की आवाज सुनकर दोनों रानियां बाहर निकली और उन्होंने उस बालक को गोद में ले लिया। राजा बृहद्रथ  वहां आ गए और उन्होंने जरा  राक्षसी से उसका परिचय पूछा। राक्षसी जरा  ने राजा वृहद्रथ को सारी बात सच-सच बता दी। राजा बहुत खुश हुए और उन्होंने उस बालक का नाम जरासंध रख दिया था । मगध साम्राज्य का राजा जरासंध का वध करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने योजन  के अनुसार श्रीकृष्ण, भीम व अर्जुन ब्राह्मण का वेष बनाकर जरासंध के पास गए और उसे कुश्ती के लिए ललकारा था । जरासंध के कहने पर श्रीकृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया । राजा जरासंध और भीम का युद्ध कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से त्रयोदशी  तक लगातार चलता रहा। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी द्वापरयुग को  भीम ने श्रीकृष्ण का इशारा समझ कर जरासंध के शरीर के दो टुकड़े कर दिए।जरासंध का वध कर भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी कैद में बंदी  राजा को आजाद कर दिया और कहा कि धर्मराज युधिष्ठिर चक्रवर्ती पद प्राप्त करने के लिए राजसूय यज्ञ करना चाहते हैं। आप लोग उनकी सहायता कीजिए। राजाओं ने श्रीकृष्ण का यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और धर्मराज युधिष्ठिर को अपना राजा मान लिया। भगवान श्रीकृष्ण ने जरासंध के पुत्र सहदेव को अभयदान देकर मगध का राजा बना दिया।
विष्णु पुराण चतुर्थ अंश तेइसवां अध्याय और चौविसवां अध्याय के अनुसार मगध देशीय वृहद्रथ वंशीय जरासंध , सहदेव ,सोमपी , श्रुतश्रवा ,आयुतायु ,निरमित्र ,सुनेत्र , वृहतकर्मा ,सेनजीत ,श्रुतुंजय ,विप्र ,शुचि , क्षेम्य ,सुब्रत ,धर्म , सुश्रवा , दृढ़ सेन , सुबल ,सुनीत ,सत्यजीत ,विश्वजीत और रिपुंजय द्वारा मगध पर एक हजार वर्ष तक शासन किया था । मगध का राजा रिपुंजय का मंत्री सुनिक द्वारा हत्या कर सुनीत का पुत्र प्रद्योत मगध का राजा बना था ।मगध का राजा प्रद्योत ने प्रद्योत वंश की स्थापना की थी । प्रद्योत वंश के बालक ,विशाखयूप ,जनक ,नंदिवर्धन और नंदी 148 वर्ष , मगध  राजा नंदी के पुत्र शिशुनाभ , ककवर्ण , क्षेमशर्मा ,क्षतौजा ,विधिसार ,आजातशत्रु ,अर्भक  ने मगध की राजधानी राजगीर तथा पाटलिपुत्र में अर्भक का पुत्र उदयन द्वारा मगध की रही थी । राजा उदयन , नंदिवर्धन ,महानन्दी द्वारा 362 वर्ष तक मगध शासन किया गया था । मगध का राजा महानन्दी के शुद्रा के गर्भ से उत्पन्न महापद्मनंद के पुत्रों द्वारा मगध पर 100 वर्षो तक शासन किया था । महापद्मनंद वंशीय राजा घनानंद को मुरा के पुत्र चंद्रगुप्त ने चाणक्य की सहायता से मगध का राजा बना था । चंद्रगुप्त द्वारा मौर्य वंश की स्थापना की थी । मौर्यवंशीय विन्दुसार ,अशोकवर्धन ,सुयशा, दशरथ ,संयुत, शालिशुक, सोमशर्मा ,शतधन्वा, वृहद्रथ द्वारा मगध पर 173 वर्षो तक शासन किया गया था । मगध का मौर्यवंशीय राजा वृहद्रथ को मार कर मगध सेनापति पुष्यमित्र मगध का राजा बना था । पुष्यमित्र का शुंगवंशीय अग्निमित्र , सुज्येष्ट ,वसुमित्र ,उदकं ,पुलिंदक ,घोषवसु , वज्रमित्र ,भागवत और देवभूत मगध पर 112 वर्ष तक शासक रहा था ।
 वैवस्वत मन्वन्तर सतयुग में ब्रह्मा जी के पौत्र अत्रि प्रजापति की भर्या अनुसूया का पुत्र चंद्रमा ने राजसूय यज्ञ में मडोमस्त होने के कारण देव गुरु वृहस्पति की भर्या तारा को अपहरण कर सहवास किया था । जिससे वृहस्पति की पत्नी तारा  से बुध का जन्म हुआ था । चंद्रमा और वृहस्पति द्वारा तारा के  पुत्र बुध को ज्ञान  दिया गया । तारा पुत्र बुध का विवाह वैवस्वतमनु की पुत्री इला से हुई थी । इला से पुरुरवा हुए थे । पुरुरवा की पत्नी उर्वशी के पुत्र आयु का विवाह राहु की पुत्री से हुआ था । तारा के पुत्र बुध मगध का राजा थे ।वैवस्वत मन्वन्तर में मगध का राजा बुध का मगध ईशान कोण , वनाकार मंडल 4 अंगुल अर्थात 400  वर्ग मिल क्षेत्र में फैला था ।अत्रि गोत्र में उत्पन्न बुध पीतवस्त्रधारी , मिथुन कन्या के स्वामी , वाहन सिंह  है । इनका प्रिय हरा वस्त्र , पत्र, सोना ,कांसा ,मूंगा ,घी ,सफेद फूल , कपूर ,शटर फल ,तथा समिध अपामार्ग है । बुध ग्रहों का राजकुमार तथा ज्ञान समृद्धि का स्वामी है । बुध द्वारा मगध की राजधानी गया में रखा गया था । बुध के पुत्रों में  गय , उत्कल और विशाल द्वारा विभिन्न नगरों को वसया था । गय द्वारा गया ,, विशाल द्वार वैशाली और उत्कल द्वारा ओडिशा नगर की स्थापना की गई थी । राजा गय द्वारा सूर्य , शिव के उपासक तथा असुरसंस्कृति , नाग संस्कृति , गंधर्व संस्कृति के संचालक थे । असुर संस्कृति के प्रणेता रहने के कारण राजा गय को गयासुर कहा गया था । चंद्रमा के गुरु  देवगुरु बृहस्पति थे ।देव गुरु  बृहस्पति की पत्नी तारा चंद्रमा की सुंंदरता पर मोहित होकर चद्रमा से प्रेम करने लगी थी । तदोपरांत वह चंद्रमा के संग सहवास कर गई एवं बृहस्पति को छोड़ ही दिया। बृहस्पति के वापस बुलाने पर उसने वापस आने से मना कर दिया, जिससे बृहस्पति क्रोधित हो उठे तब बृहस्पति एवं उनके शिष्य चंद्र के बीच युद्ध आरंभ हो गया। युद्ध में दैत्य गुरु शुक्राचार्य चंद्रमा की ओर  और अन्य देवता बृहस्पति के साथ होने से युद्ध बड़े स्तर पर होने लगा। युद्ध तारा की कामना के कारण तारकाम्यम कहा गया था।  युद्ध से सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा को भय हुआ कि यह कहीं पूरी सृष्टि को  लील न जाए, तब ब्रह्मा जी द्वारा   बीच बचाव कर युद्ध को रुकवाने का प्रयोजन करने लगे। उन्होंने तारा को समझा-बुझा कर चंद्र से वापस लिया और बृहस्पति को सौंपा। इस बीच तारा के एक सुंदर पुत्र  बुध कहलाया। चंद्र और बृहस्पति बुध को  अपना बताने लगे और स्वयं को इसका पिता बताने लगे यद्यपि तारा चुप रही। माता तारा  की चुप्पी से अशांत व क्रोधित होकर स्वयं बुध ने माता से सत्य बताने को कहा। तब तारा ने बुध का पिता चंद्र को बताया।  बुध के पिता चन्द्रमा और मां तारा हैं। इनकी बुद्धि बड़ी गम्भीर एवं तेज होने के कारण  ब्रह्माजी ने इनका नाम बुध रखा था । बृहस्‍पति की इच्‍छा हुई कि वे स्‍त्री बनने की इच्छा हेतु ब्रह्मा के पास पहुंचे थे । सर्वज्ञाता  ब्रह्मा ने कहा कि तुम समस्‍या में पड़ जाओगे लेकिन बृह‍स्‍पति ने जिद पकड़ लिए तभी ब्रह्मा ने बृहस्पति को  स्‍त्री बना दिया । रूपमती स्‍त्री बने घूम रहे गुरु पर चंद्रमा की नजर पड़ी और चंद्रमा ने गुरु का बलात्‍कार कर दिया। गुरु हैरान कि अब क्‍या किया जाए। वे ब्रह्मा के पास गए तो उन्‍होंने कहा कि अब तो तुम्‍हे नौ महीने तक स्‍त्री के ही रूप में रहना पड़ेगा। नौ महीने बीते और बुध पैदा हुए। बुध के पैदा होते गुरु ने स्‍त्री का रूप त्‍यागा और फिर से पुरुष बन गए। बुध  को वृहस्पति ने नहीं संभाला।ऐसे में बुध बिना मां और बिना बाप के अनाथ हो गए। प्रकृति ने बुध को अपनाया और धीरे-धीरे बुध बड़े होने लगे। बुध को अकेला पाकर बुध के साथ राहु और शनि  मित्र जुड गए। बुध का सम्‍पर्क शुक्र से हुआ। शुक्र ने बुध को समझाया कि तुम जगत के पालक सूर्य के पास चले जाओ तुम्‍हे अपना लेंगे। बुध सूर्य की शरण में चले गए और सुधर गए।बुध अपनी संतान को त्‍यागने वाले गुरु और नीच के चंद्रमा से नैसर्गिक शत्रुता रखते हैं। राहु और शनि के साथ बुरे परिणाम देते और शुक्र और सूर्य के साथ बेहतर बनाते है। सौर मण्‍डल में गति करते हुए जब  सूर्य से आगे निकलते हैं बुध के परिणामों में कमी आ जाती है और सूर्य से पीछे रहने पर उत्‍तम परिणाम देते हैं। अपनी माता की तरह बुध के अधिपत्‍य में दो राशियां है।  बुध के पास कन्‍या और मिथुन राशियों का स्‍वामित्‍व है। बुद्धावतार भगवान् विष्णु के दश अवतारों में ९वाँ अवतार और चौबीस अवतारों में से तेईसवें अवतार माने गए हैं। भागवत स्कन्ध १ अध्याय ६ के श्लोक २४ में  भगवान विष्णु के 23वें अवतार बुद्ध का जन्म कीकट प्रदेश की राजधानी गया के ऋषि अजन के पुत्र का अवतरण आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी तिथि गुरुवार द्वापर युग इन हुआ था । ततः कलौ सम्प्रवृत्ते सम्मोहाय सुरद्विषाम्। बुद्धोनाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति॥ अर्थात्, कलयुग में देवद्वेषियों को मोहित करने नारायण कीकट प्रदेश में अजन के पुत्र के रूप में प्रकट हुए थे । भगवान बुद्ध  ईश्वरवादी ब्रह्मा विष्णु महेश सरस्वती गणेश इंद्र आदि देवी देवतावादी  और एशिया के प्रकाश कहलाए थे । 
नेपाल का कपिलवस्तु के राजा सुद्धोदन की भर्या मायादेवी  के पुत्र सिद्धार्थ का जन्म लुम्बिनी  में वैशाख शुक्ल पूर्णिमा 563 ई.पू.  हुआ था । सिद्धार्थ ने सांसारिक जीवन से मोह भंग करने के बाद 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग  कर बिहार का गया जिला स्थित बोधगया स्थित निरंजना नदी के तट पर पीपल वृक्ष की छाया में 6 वर्षों तक कठिन तपस्या के बाद वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को 35 वर्ष की आयु में  ज्ञान प्राप्त किया  था । गौतम गोत्र में रहने के कारण सिद्धार्थ को गौतम बुद्ध कहे गए थे । महात्मा बुद्ध ने 80 वर्ष की उम्र में वैशाख शुक्ल पूर्णिमा 483 ई. पू. उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले का कुशीनगर  में महानिर्वाण किया था । गौतम बुद्ध द्वारा ज्ञान प्राप्त करने के बाद प्रथम उपदेश उत्तरप्रदेश के वाराणसी के ऋषिपत्तनम सारनाथ में दिया गया था । सिद्धार्थ की पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल थे ।जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म 540 ई.पू.में बिहार का वैशाली जिले के कुंडग्राम में ज्ञातृक कुल के सरदार सिद्धार्थ की पत्नी लिच्छवी नरेश चेटक की बहन त्रिशला के गर्भ से अवतरण हुआ था ।  महावीर का बचपन का नाम वर्द्धमान था। 42 वर्षीय वर्द्धमान ने ऋजुपालिका नदी के तट पर स्थित जुम्बिक ग्राम का शाल वृक्ष की छया में 12 वर्ष की तपस्या करने के बाद ज्ञान प्राप्त किया था ।बिहार के नालंदा जिले के पावापुरी में 72 वर्षीय महावीर ने कार्तिक कृष्ण अमावस्या 468 ई.पू. निर्वाण प्राप्त किया था । महावीर की पत्नी यशोदा और पुत्री अनोनज्जाप्रियदर्शनी थी । 





राजा वेन के पुत्र पृथु द्वारा मागध को कीकट प्रदेश का राजा घोषित किया गया था । कीकट प्रदेश का राजा मागध ने मगध प्रदेश की स्थापना कर गया में राजधानी बनाया था । मगध देश का राजा  विश्वसफटिक ने गया में कैवर्त , वटु ,पुलिंद ,ब्राह्मण, नाग गणों की नियुक्ति की थी । राजा वईश्वसफटिक द्वारा मगध  साम्राज्य का विस्तार और विकास किया गया था ।पद्मवतीपुर छोटानागपुर का राजा नागवंशियों द्वारा विकास किया गया था ।

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