सनातन धर्म संस्कृति में गया को मोक्षधाम कहा गया है ।पुरणों वेदों , स्मृतियों में गया जी, विष्णु नगरी , ब्रह्मा , विष्णु महेश , महाकाली , माहासरस्वती , माहलक्ष्मी , पितरों , धर्मराज , यमराज का निवास प्राच्य , ब्रात्य काल और स्वायम्भुव मनु काल से है । गया का विकास सातवें मनु वैवस्वत मनु के वंसजो में वैवस्वत मनु की आत्मजा इला , वृहस्पति तथा चंद्र के देव गुरु वृहस्पति की भार्या तारा के पुत्र बुध का प्रिय स्थल था । विष्णु - चरण की महत्ता में विष्णु - पद का चरण - तल- चिन्ह मूल अवस्था में दृष्यमान नहीं है , अत: प्रतिदिन शाम को चरण - चिन्ह का ऋंगार होता है, जिसमें चरण - प्रदेश पर चन्दन, कुमकुम वगैरह का लेप लगाकर , उन पर चरण - तल - चिन्ह अंकित किये जाते हैं ।तब तुलसी से अभिषेक किया जाता है । सामान्य जन में हिन्दू संस्कृति के प्रति आस्था बढ़ाने के लिए मैं विष्णु - चरण - तल में अंकित चिन्हों की तालिका, स्कन्द पुराण के आधार पर प्रस्तुत कर रहा हूँ । ख्याति प्राप्त इतिहासकार श्री राजेन्द्र लाल मित्रा जी की " बुद्ध - गया " पुस्तक के पृष्ठ न• 126 में चरण - चिन्हों का अंग्रेजी - अनुवाद है । गया में भगवान् विष्णु के दाहिने पैर के तलवे में चरण - चिन्ह - ( 1 ) स्वस्तिक ;( 2 ) छाता ( छत्री ) ;( 3 ) चक्र ;( 4 ) जौ का दाना ( बीज ) ;( 5 ) अंकुश ;( 6 ) ध्वज ( पताका या झंडा ) ;( 7 ) वज्र ( अशनि ) ;( 8 ) जम्बू फल ( जाम फल ) ;( 9 ) एक सीधी रेखा ( एक खड़ा स्तम्भ ) ;(10) कमल का फूल् और बायें चरण - तल चिन्ह - ( 1 ) अर्ध चन्द्र ( नवचन्द्राकार ) ;( 2 ) जल पात्र ( घड़ा ) ; ( 3 ) त्रिकोण ;( 4 ) धनुष ;( 5 ) आकाश ( व्योम ) ;( 6 ) मवेशी के पैरों के निशान ;( 7 ) मछली ; ( 8 ) शंख ;( 9 ) अष्टकोण है ।
फल्गु नदी - गया के पूर्वी हिस्से से फलगुनदी गुजरती है । श्वेत कल्प के पूर्व से फल्गु नदी प्रविहित है । झारखंड के छोटानागपुर पठार के चतरा जिले का उत्तरी ढलान पर इटखोरी से तीन मील उत्तर - पश्चिम गरही नामक स्थान पर मोहाना नदी प्राकृतिक झरने के रुप मे गिरती है । नदी तंग घाटी से गुजरती हुई महाखड्ड में 100' फीट की ऊंचाई से गिरती है । मोहन नदी 6 मील तक तंग कंदराओं को पार करते हुए मैदान में उतरती है । झरने के नजदीक नदी के द्वारा वहाँ बहुत हीं सुन्दर , प्राकृतिक रूप से नदी - धार द्वारा पत्थरों की कटाई हुई है । मोहाना झरना ठीक गया जिले के सीमान्त के स्थान पर काहुदाग है । मोहाना नदी के रास्ते में दो बड़े झरने हैं । पहला झरना तामसीन गहरे घाटी के सिर पर रहने से अचानक ढाल आने के कारण काला पत्थर पर गिरता है । काले पत्थर में ऐंठन बनाते हुए आगे निकलती है । दूसरी धार हरियाखाल में लाल पत्थर पर गिरती हुई गया जिले में प्रवेश करती है । मोहाने का गया जिला में आगमन गया नगर से 20 मील दक्षिण - पूर्व में हुआ, वहीं निलाजन की धारा गया नगर से 11 मील दक्षिण में गया जिला में प्रवेश करती है । दोनो धाराओं का मिलन मनकोसी स्थान पर गया नगर से 5 मील दक्षिण में प्रविहित है । महाना एवं निलाजन के संगम से फल्गु बनकर गया नगर के पूर्व में बहती है । गया के नजदीक फल्गु के दोनो ओर ऊंचे पथरीले किनारे पर ब्राह्मणी घाट , पितामहेश्वर घाट , विष्णुपद घाट , पक्के घाट पर लोग पिण्डदान करते हैं । फल्गु नदी गया नगर से करीब 17 मील उत्तर - पूर्व में जहाँ बराबर पहाड़ी है, पुन: दो हिस्सों में विभक्त हो जाती है । फल्गु नदी का एक भाग उत्तर की ओर पटना जिले में प्रवेश और दूसरी मोहाना नदी उत्तर - पूर्व की ओर से पटना जिला में प्रवेश करती है । पटना जिला में दोनो नदियाँ कुछ हीं मील आगे जाने पर अनेकों धाराओं में तथा नहर, पईन होते हुए विलीन हो जाती है । फल्गु की मात्र एक धार पटना जिले के धोरजा नामक स्थान पर पुनपुन नदी में गिरते हुए गंगा में मिल जाती है । भारत के बिहार राज्य के गया ज़िले का मुख्यालय गया में सनातन धर्म के शैव सम्प्रदाय , वैष्णव सम्प्रदाय , ब्रह्म सम्प्रदाय , सौर सम्प्रदाय , शाक्त सम्प्रदाय , हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों में ऐतिहासिक महत्व है। गया का उल्लेख भविष्यत पुराण , आध्यात्म रामायण , गरुड़ पुराण , पुरणों , उपनिषदों रामायण और महाभारत में है। गया स्थित ब्रह्मयोनि पर्वत समूह के विभिन्न श्रृंखला पर मंगला-गौरी, श्रृंग स्थान, रामशिला , ब्रह्मयोनि , प्रेतशिला , कटारी हिल , डुंगेश्वरी हिल तथा रामसागर , कठोत्तर सरोवर , वैतरणी सरोवर , सूर्यकुंड ब्रह्मसरोवर हैं । फल्गू नदी के किनारे स्थित गया निर्देशांक: 24°45′N 85°01′E / 24.75°N 85.01°E पर स्थित है । गया की जनसंख्या (2011) 4,70,839 हिंदी और मागही भाषी है । कीकट प्रदेश की राजधानी गया धर्मारण्य क्षेत्र मे है । गया में पितृपक्ष के अवसर पर सनातन धर्म के अनुयायी अपने पूर्वजों को मोक्ष प्राप्ति हेतु पिंडदान के लिये जुटते है । गया से 17 किलोमीटर की दूरी पर बोधगया स्थित बौद्ध तीर्थ स्थल है बोधि वृक्ष के नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु के पांव के निशान है। हिन्दू धर्म में विष्णु पद मंदिर को अहम स्थान प्राप्त है। फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृत व्यक्ति को बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है।कीकट प्रदेश का राजा असुरसंस्कृति के पोषक गयासुर की मुक्ति हेतु भगवान विष्णु के पद गयासुर के वक्ष स्थल पर रहने के कारण पद चिह्न विष्णुपद मंदिर में अवस्थित है। गया के फल्गु नदी के किनारे पितरों के देव मुक्तेश्वर अमर्त्य मुक्तिधाम के रूप और गदाधर है। ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित पितामहेश्वर , मार्कण्डेय द्वारा स्थापित मार्कण्डेश्वर , मंगलागौरी , ब्रह्मयोनि पर्वत पर ब्रह्मा जी , अक्षयवट , बांग्ला माता , बागेश्वरी माता , भगवान सूर्य की उत्तरायण , दक्षिणायण तथा मध्यान्ह रूप में स्थित है । प्रेतशिला पर्वत श्रंखला पर धर्मराज , यमराज , प्रेतराज की मूर्तियां , मंदिर , शीतल माता का मंदिर , काली मंदिर , रामशिला पर्वत की श्रंखला पर राम मंदिर , शिव लिंग , सीताकुंड , भगवान राम की भार्या सीता द्वारा अपने पूर्वजी को गयाश्राद्ध करने का मुक्ति स्थल है । अंग वंशीय राजा वेन के पुत्र राजा पृथु और राजा मागध द्वारा स्थापित मगध की राजधानी गया में रख कर गया का विकास किया गया था । मौर्य काल में एक महत्वपूर्ण गया नगर था। खुदाई के दौरान सम्राट अशोक से संबंधित आदेश पत्र पाया गया है। 1787 में होल्कर वंश की बुंदेलखंड की साम्राज्ञी महारानी अहिल्याबाई ने विष्णुपद मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। मेगास्थनीज़ की इण्डिका, फाह्यान तथा ह्वेनसांग के यात्रा वर्णन में गया का एक समृद्ध धर्म क्षेत्र के रूप मे वर्णन है।फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित विष्णुपद मंदिर का निर्माण भगवान विष्णु के पदचिन्हों पर किया गया है। विष्णुपद मंदिर 30 मीटर ऊंचा और आठ खंभे युक्त हैं । मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु के 40 सेंटीमीटर लंबे पांव के निशान हैं। विष्णुपद मंदिर का 1787 में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई द्वारा नवीकरण करवाया गया था ।गया से १० कि॰मी॰ दूर गया पटना मार्ग पर स्थित एक पवित्र धर्मिक स्थल है। यहाँ नवी सदी हिजरी में चिशती अशरफि सिलसिले के प्रख्यात सूफी सत हजरत मखदूम सयद दर्वेश अशरफ ने खानकाह अशरफिया की स्थापना की थी। आज भी पूरे भारत से श्रदालू यहाँ दर्शन के लिये आते है। हर साल इस्लामी मास शाबान की १० तारीख को हजरत मखदूम सयद दर्वेश अशरफ का उर्स गया जी मनाया जाताहै । सूर्य मंदिर, गया - सूर्य मंदिर प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर के समीप सांध्यकालीन भगवान सूर्य स्थापित और सूर्य कुंड है । गया क्षेत्र का गया में भगवान सूर्य की आराधना प्रातः काल का स्थान मानपुर में भगवान सूर्य एवं षडकोनिय सूर्य कुंड , फल्गु नदी के किनारे ब्रह्माणी घाट पर मध्याह्न भगवान सूर्य संध्या कालीन सूर्य विष्णुपद मंदिर और पितामहेश्वर के मध्य में स्थित है । विरंचि नारायण सूर्य मंदिर - गया के फल्गु नदी के किनारे ब्रामणी घाट पर विरंचि नारायण सूर्य मंदिर है । शास्त्रों और सूर्य पुराण , भागवत पुराण , भविषयतपुरण , गरुड़ पुराण , ब्रह्मवैवर्त पुराण में गया में ब्रह्मा जी द्वारा भगवान सूर्य की उपासना के लिये फल्गु नदी के किनारे सूर्येष्टि यज्ञ करा कर 07 फीट लंबाई 2 फिट 6 इंच चौड़ाई कसौटी शिला पर भगवान सूर्य अभय मुद्रा , भगवान सूर्य के दाएं न्याय देवता शनि , बै यमराज दोनों पैर के मध्य माता संज्ञा सारथी अरुण , भगवान सूर्य के मस्तक के बगल में उषा ,प्रत्युषा , मध्य में पार्षद एक चक्र में विराजमान स्थापित किया गया है । भगवान सूर्य की उपासना भगवान विष्णु , ब्रह्मा और शिव द्वारा की गई थी ।भगवान ब्रह्मा द्वारा स्थापित और भगवान विष्णु द्वारा उपासना के कारण भगवान सूर्य को विरंचि नारायण के नाम से ख्याति मिला था । ब्रह्मा जी का यज्ञ स्थल होने के कारण ब्रह्म घाट कालांतर ब्राह्मणी घाट से ख्याति मिला है ।15 फरवरी 1862 ई. में गया के जमींदार भुना दाई चौधराइन गयवालीन द्वारा विरंचि नारायण मंदिर में स्थित भगवान सूर्य की उपासना के लिये बकरौर का शाकद्वीपीय ब्राह्मण रामावत मिश्र को आधीकृत किया गया है । भगवान सूर्य मंदिर का निर्माण मानभूम झारखंड के राजा मानन सिंह द्वारा कराया गया वही बिहार का सुवेदार मान सिंह ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था । ब्रह्मयोनि पर्वत - इस पहाड़ी की चोटी पर चढ़ने के लिए ४४० सीढ़ियों को पार करना होता है। इसके शिखर पर भगवान शिव का मंदिर है। यह मंदिर विशाल बरगद के पेड़ के नीचे स्थित हैं जहां पिंडदान किया जाता है। इस स्थान का उल्लेख रामायण में भी किया गया है। दंतकथाओं पर विश्वास किया जाए तो पहले फल्गु नदी इस पहाड़ी के ऊपर से बहती थी। लेकिन देवी सीता के शाप के प्रभाव से अब यह नदी पहाड़ी के नीचे से बहती है। यह पहाड़ी हिन्दुओं के लिए काफी पवित्र तीर्थस्थानों में से एक है। यह मारनपुर के निकट है।पहाड पर स्थित यह मंदिर मां शक्ति को समर्पित है। यह स्थान १८ महाशक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि जो भी यहां पूजा कराते हैं उनकी मन की इच्छा पूरी होती है। इसी मन्दिर के परिवेश में मां काली, गणेश, हनुमान तथा भगवान शिव के भी मन्दिर स्थित हैं। प्रसिद्ध अक्षय वट विष्णु पाद मंदिर के पास के क्षेत्र में स्थित है। अक्षय वट को सीता देवी ने अमर होने का वरदान दिया था और कभी भी किसी भी मौसम में इसके पत्तों को नहीं बहाया जाता है।रामशिला पहाडी - गया के दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित रामशिला हिल को भगवान राम ने पहाड़ी पर ’पिंडा’ की पेशकश की । प्राचीन काल से संबंधित कई पत्थर की मूर्तियां पहाड़ी के आसपास और आसपास के स्थानों पर हैं। पहाड़ी की चोटी पर स्थित मरामेश्वरा या पातालेश्वर मंदिर है । मूल रूप से 1014 ई .में मंदिर बनाया गया था । मंदिर के सामने गया पिंड दात्रियों द्वारा अपने पूर्वजों के लिए पितृपक्ष के दौरान "पिंड" चढ़ाया जाता है।प्रेतशिला पहाडी- रामशिला पहाड़ी से लगभग 10 किलोमीटर पहाड़ी के नीचे ब्रह्म कुंड स्थित है। तालाब में स्नान करने के बाद लोग 'पिंड दान' के लिए जाते हैं।पहाड़ी की चोटी पर, इंदौर की रानी, अहिल्या बाई, ने 1787 में एक मंदिर बनाया था जिसे अहिल्या बाई मंदिर के नाम से जाना जाता था।यह मंदिर हमेशा अपनी अनूठी वास्तुकला और शानदार मूर्तियों के कारण पर्यटकों के लिए आकर्षण रहा है।सीताकुंड - विष्णु पद मंदिर के विपरीत तरफ, सीता कुंड फल्गु नदी के दूसरे किनारे पर स्थित है।उस स्थान को दर्शाते हुए माता सीता ने अपने ससुर के लिए पिंडदान किया था।डूंगेश्वरी मंदिर - गौतम सिद्धार्थ ने अंतिम आराधना के लिए बोधगया जाने से पहले 6 साल तक डुंगेश्वरी पर्वत श्रंखला पर ध्यान किया था। बुद्ध के चरण को मनाने के लिए दो छोटे मंदिर बनाए गए हैं।कठोर तपस्या को याद करते हुए एक स्वर्ण क्षीण बुद्ध मूर्तिकला गुफा मंदिरों में से एक में और 6 फीट'ऊंची बुद्ध की प्रतिमा है। गुफा मंदिर के अंदर देवी डुंगेश्वरी है। थाई मोनास्ट्री बोधगया में बौद्ध मठ सजावटी रीगल थाई स्थापत्य शैली में निर्मित है।बाहरी और साथ ही आंतरिक की भव्यता बेहद विस्मयकारी है। बुद्ध के जीवन को दर्शाती भित्ति चित्रों के साथ शानदार बुद्ध की मूर्ति और बौद्ध शैली में चित्रित पेड़ लगाने का महत्व पूरी तरह से अद्भुत है । 200 क्विंटल लोहे से बना धर्म चक्र को घुमाने पर पापो से मुक्ती मिल जाती है ।वर्ष १७६४ में बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों की जीत के परिणामस्वरूप बिहार का दीवानी और राजस्व अधिकार अंग्रेज कंपनी के हाथ चला गया। सन १८६४ तक गया बेहार तथा रामगढ जिलों का हिस्सा बना रहा ! सन १८६५ में गया को जिले के रूप में मान्यता प्राप्त हुआ ! गया जिला को बिभक्त कर 1976 में औरंगाबाद एवं नवादा 1986 में जहानाबाद को का सृजन और मई, १९८१ में बिहार राज्य सरकार द्वारा गया, नवादा, औरंगाबाद एवं जहानाबाद को सम्मिलित करते हुए मगध प्रमंडल का सृजन किया गया ! मगध प्रमंडल में गया , जहानाबाद , नवादा , औरंगाबाद , अरवल जिले है । गया जिले का बेलागंज प्रखंड के बराबर पर्वत समूह की श्रंखला कौवाडोल वैदिक धर्म का केंद्र था । कौवाडोल में भित्तिचित्र , कौवाडोल पर्वत श्रंखला पर धर्म चक्र , वाणासुर का विजयी पताका , भगवान बुद्ध की बहू स्पर्श मुद्रा , दिव्य ज्ञान विदुषी माया , नालंदा विश्वविद्यालय का कुलपति शीलभद्र की साधना स्थल है । बेला स्टेशन के समीप काली मंदिर में वाणासुर की कुलदेवी माता विभूक्षणी स्थापित है । शाक्त संप्रदाय का स्थल बेला कली मंदिर और तंत्र मंत्र साधना केंद्र था । बेल काली मंदिर में माता विभूक्षणी की चमत्कारी मूर्ति स्थापित है ।
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