पुरणों , स्मृतियों और शैव धर्म ग्रंथों स्मृतियों में भगवान शिव के उपासक तथा भगवान सूर्य आराधक 'नाग वंशीय अत्यंत समृद्ध और शक्तिशाली थे । विश्व मे नागों द्वारा विश्व में नाग सभ्यता एवं संस्कृति का विकास हुआ है। नाग सभ्यता में भगवान शिव , नंदी नागों का आराध्यदेव है । सूर्यपुराण के अनुसार भगवान सूर्य के अवतार देव माता अदिति के पुत्र धत आदित्य के साथ कद्रू के पुत्र वासुकी नाग , अर्यमा आदित्य के साथ कच्छवीर नाग , मित्र आदित्य के साथ तक्षक नाग , वरुण आदित्य के साथ नाग , इंद्र आदित्य के साथ एलापत्र नाग , विविस्वान आदित्य के साथ शंखपाल नाग , पूषा आदित्य के साथ धनन्जय नाग पर्जन्य आदित्य के साथ ऐरावत नाग , अंश आदित्य के साथ महापद्म नाग , भग आदित्य के साथ कर्कोटक नाग , त्वष्टा आदित्य के साथ कंबल सर्प , विष्णु आदित्य के साथ अश्वतर सर्प रहते है । नागों द्वारा भगवान शिव के प्रिय और भगवान सूर्य के अवतार विभिन्न आदित्यों के साथ रह कर भगवान सूर्य के उपासना निरंतर करते है । कद्रू के पुत्र कर्कोटक नाग की आराधना रांची स्थित पहाड़ी की श्रृंखला पर नाग गुफा में कई जाती है तथा भगवान शिव का चरण और शिव लिंग की स्थापना की उपासना की जाती है । रांची स्थित पर्वत को पहाड़ी बाबा के नाम से ख्याति प्राप्त है ।फणि मुकुट द्वारा छोटानागपुर में नागवंशी साम्राज्य की स्थापना संवत 121 यानी 64 ई. . में की गई थी। नागवंशी साम्राज्य की राजधानी सुताम्बे स्थापित कर सूतीआंबे में सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था । नागवंशी शासन व्यवस्था में फनीमुकुट राय के बाद मुकुट राय, मदन राय ,प्रताप राय शासक बने । नागवंशीय प्रतापराय ने छोटानागपुर की राजधानी सूतीअंबे से हटाकर चुटिया को बनाया था । नागवंश शासक भीमकर्ण द्वारा छोटानागपुर राज्य का विस्तार किया था । सरगुजा के राजा रक्सौल राजा के साथ बरवा का युद्ध हुआ था । इन्होंने अपनी राजधानी चुटिया से हटाकर खुखरा कर लिया था । नागवंश शिवदास कर्ण शासक ने गुमला को अपना साम्राज्य विस्तार किया था इन्होंने गुमला के पास घाघरा में हापामुनि मंदिर बनवाया था । प्रतापगढ़ और छत्र कर्ण शासक हुए क्षत्रकर्ण ने कोराआंबे में विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया था । नागवंश में प्रताप उदय नाथ शाहदेव शासक द्वारा रांची के नजदीक रातू में रातूगढ़ का निर्माण करवाया और अपनी राजधानी रातूगढ़ को बनाया और वहीं से अपने शासन व्यवस्था का संचालन किया नागवंशी शासन व्यवस्था अत्यंत सरल व्यवस्था थी इस व्यवस्था में शासन का प्रमुख राजा होता था जबकि गांव के प्रमुख को महतो कहा जाता था राजा का जो खेती बाड़ी करता है और अनाज को जमा करके रखता था उसे भंडारी कहा जाता था इसके अलावा अमीन ओहदार, तोपची, साहनी आदि रहते थे जो नागवंशी शासन व्यवस्था के अंग थे ।प्रत्येक वर्ष सावन माह शुक्ल पंचमी को अष्टनागों की पूजा की जाती है। वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥ (भविष्योत्तरपुराण – ३२-२-७) अर्थात : वासुकि, तक्षक, कालिया, मणिभद्रक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कार्कोटक और धनंजय - ये प्राणियों को अभय प्रदान करते हैं। तक्षक गरूड़ जी के भय से तक्षक ने काशी में शिक्षा लेने हेतु आये, परन्तु गरूड़ जी को इसकी जानकारी हो गयी थी ।,गरुड़ द्वारा तक्षक पर हमला करने पर गुरू जी के प्रभाव से गरूड़ जी ने तक्षक नाग को अभय दान कर दिया था । काशी में स्थित कूप में तक्षक का निवास रहने के कारण नाग पंचमी को नाग पूजा कर नाग पंचमी के दिन नाग कुआँ का दर्शन करने पर जन्मकुन्डली के सर्प दोष का निवारण हो जाता है। देव-दानवों द्वारा किए गए समुद्र मंथन में साधन रूप बनकर वासुकी नाग ने दुर्जनों के लिए भी प्रभु कार्य में निमित्त बनने का मार्ग खुला कर दिया है। भगवान विष्णु की सेवा शेषनाग निरंतर करते है ।
ॐ कुरुकुल्ये हुं फट् स्वाहा का जाप करने से सर्पविष दूर होता है।प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था।एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- 'मत मारो , यह बेचारा निरपराध है।' यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा-'हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ कामकाज में फँसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई।उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहाँ पहुँची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- 'तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा माँगती हूं, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई हुआ। तुझे जो मांगना हो, माँग ले। वह बोली- भैया! मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि 'मेरी बहिन को भेज दो।' सबने कहा कि 'इसके तो कोई भाई नहीं था, तो वह बोला- मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि 'मैं वहीं सर्प हूँ, इसलिए तू डरना नहीं और जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुंच गई। वहाँ के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई। एक दिन सर्प की माता ने उससे कहा- 'मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे यह बात ध्यान न रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हुई। परंतु सर्प के समझाने पर चुप हो गई। तब सर्प ने कहा कि बहिन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चाँदी, जवाहरात, वस्त्र-भूषण आदि देकर उसके घर पहुँचा दिया।इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा से कहा- भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएँ सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा- 'इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए'। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी।सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और वह राजा से बोली कि- सेठ की छोटी बहू का हार यहाँ आना चाहिए।' राजा ने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर शीघ्र उपस्थित हो मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि 'महारानीजी छोटी बहू का हार पहनेंगी, वह उससे लेकर मुझे दे दो'। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मंगाकर दे दिया। छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी, उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की- भैया ! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब वह हार उसके गले में रहे, तब तक के लिए सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना, वैसे ही वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी। यह देख कर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी कि छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा न जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा- तुने क्या जादू किया है, मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली- राजन ! धृष्टता क्षमा कीजिए, यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देकर कहा- अभी पहिनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया। यह देखकर राजा को उसकी बात का विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दीं। छोटी वह अपने हार और इन सहित घर लौट आई। उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा के कारण उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा- ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह सर्प को याद करने लगी।तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा- यदि मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूँगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है और स्त्रियाँ सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती हैं ।
नागवंशी का विश्व के भूभाग पर लंबे समय तक शासन रहा है |प्राचीन काल में नागवंशियों का राज्य भारत तथा सिंहल में था। पुराणों में उलेख है कि सात नागवंशी राजा मथुरा भोग करेंगे, उसके पीछे गुप्त राजाओं का राज्य होगा। नौ नाग राजाओं के जो पुराने सिक्के में बृहस्पति नाग', 'देवनाग', 'गणपति नाग' इत्यादि नाम हैं। नागगण विक्रम संवत 150 और 250 के बीच राज्य करते थे। इन नव नागों की राजधानी कहाँ थी, इसका ठीक पता नहीं है, पर अधिकांश विद्वानों का मत यही है कि उनकी राजधानी 'नरवर' थी। मथुरा और भरतपुर से लेकर ग्वालियर और उज्जैन तक का भू-भाग नागवंशियों के अधिकार में था।कृष्ण काल में नाग जाति ब्रज में आकर बस गई थी। इस जाति की अपनी एक पृथक संस्कृति थी। कालिया नाग को संघर्ष में पराजित करके श्रीकृष्ण ने उसे ब्रज से निर्वासित कर दिया था, किंतु नाग जाति यहाँ प्रमुख रूप से बसी रही। मथुरा पर उन्होंने काफ़ी समय तक शासन भी किया। महाप्रतापी गुप्तवंशी राजाओं ने शक या नागवंशियों को परास्त किया था। प्रयाग के क़िले के भीतर स्तंभलेख के अनुसार महाराज समुद्रगुप्त ने गणपति नाग को पराजित किया था। गणपति नाग के सिक्के बहुत मिलते हैं। महाभारत के अनुसार पांडवों ने नागों से मगध राज्य छीना था। खांडव वन जलाते समय बहुत से नाग नष्ट हुए थे। मगध ,खांडवप्रस्थ ,तक्षशीला तक्षक नाग द्वारा बसाई गई तक्षशिला का राजा "तक्षक नाग " था । तक्षक नागवंशी का शासन मथुरा थे | शिशुनाग के नाम पर शिशुनाग वंश मगध साम्राज्य पर लंबे समय तक राज्य करने के लिए जाना जाता है |महाभारत में ऐरावत नाग के वंश में उत्त्पन कौरव्या नाग की बेटी का विवाह अर्जुन से हुआ था । लंकाधिपति रावण का पुत्र मेघनाथ की पत्नी नागवंशीय सुलोचना थी । नागवंशियों का शासन बिहार के नालंदा जिले के राजगीर में राजा वसु , झारखंड के रांची में , देवघर में वासुकी , नागालैंड , उत्तरप्रदेश , उत्तराखंड , जम्बू कश्मीर , राजस्थान , मध्यप्रदेश , उड़ीसा , महाराष्ट्र ,
तमिलनाडु , आंध्रप्रदेश , असम , नेपाल , पाकिस्तान , बंगाल , बंगाल देश के विभिन्न क्षेत्रों में नागों का साम्राज्य था ।पुरणों , उपनिषदों और महाभारत के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री तथा ऋषि कश्यप की तेरह पत्नियों में कद्रू ने अपने पति महर्षि कश्यप की सेवा की थी । प्रसन्न होकर महर्षि कश्यप ने कद्रू को वरदाने मांगने के लिए कहा। कद्रू ने कहा कि मुझसे एक हजार तेजस्वी नाग पुत्र हों। महर्षि कश्यप ने वरदान प्राप्त कर कद्रू द्वारा नाग वंश की उत्पत्ति की गई थी । महर्षि कश्यप की पत्नी विनता से पक्षीराज गरुड़ पुत्र हुए हैं। एक बार कद्रू और विनता ने एक सफेद घोड़ा देखा। उसे देखकर कद्रू ने कहा कि इस घोड़े की पूंछ काली है और विनता ने कहा कि सफेद। इस बात पर दोनों में शर्त लग गई। तब कद्रू ने अपने नाग पुत्रों से कहा कि वे अपना आकार छोटा कर घोड़े की पूंछ से लिपट जाएं, जिससे उसकी पूंछ काली नजर आए और वह शर्त जीत जाए। कुछ सर्पों ने ऐसा करने से मना कर दिया। तब कद्रू ने अपने पुत्रों को श्राप दे दिया कि तुम राजा जनमेजय के यज्ञ में भस्म हो जाओगो। श्राप की बात सुनकर सांप अपनी माता के कहे अनुसार उस सफेद घोड़े की पूंछ से लिपट गए जिससे उस घोड़े की पूंछ काली दिखाई देने लगी। शर्त हारने के कारण विनता कद्रू की दासी बन गई। गरुड़ को पता चला कि उनकी मां दासी बन गई है । उन्होंने कद्रू और उनके सर्प पुत्रों से पूछा कि तुम्हें मैं ऐसी कौन सी वस्तु लाकर दूं जिससे कि मेरी माता तुम्हारे दासत्व से मुक्त हो जाए। सर्पों ने कहा कि तुम हमें स्वर्ग से अमृत लाकर दोगे तभी तुम्हारी माता दासत्व से मुक्त हो जाएगी । गरुड़ स्वर्ग से अमृत कलश ले आए और उसे कुशा पर रख दिया। अमृत पीने से पहले जब सर्प स्नान करने गए तभी देवराज इंद्र अमृत कलश लेकर उठाकर पुन: स्वर्ग ले गए। यह देखकर सांपों ने उस घास को चाटना शुरू कर दिया जिस पर अमृत कलश रखा था ।नागों को लगा कि इस स्थान पर थोड़ा अमृत का अंश अवश्य होगा। ऐसा करने से ही उनकी जीभ के दो टुकड़े हो गए।कद्रू के पुत्रों में शेषनाग ने ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त कर शेषनाग बुद्धि धर्म, तपस्या और शांति तथा पृथ्वी पर्वत, वन, सागर स्थिरत्वमग्न हो गए साथ ही ब्रह्माजी के कहने पर शेषनाग पृथ्वी को अपने सिर पर धारण कर लिया।नागराज वासुकि को जब माता कद्रू के श्राप के बारे में पता लगा तो वे बहुत चिंतित हो गए। तब उन्हें एलापत्र नामक नाग ने बताया कि इस सर्प यज्ञ में केवल दुष्ट सर्पों का ही नाश होगा और जरत्कारू नामक ऋषि का पुत्र आस्तिक इस सर्प यज्ञ को संपूर्ण होने से रोक देगा। जरत्कारू ऋषि से नागों की बहन मनसादेवी का विवाह सम्पन्न हो गयी थी ।जरत्कारु ऋषि की पत्नी मनसादेवी के गर्भ से आस्तिक का जन्म हुआ था । च्यवन ऋषि ने मनशा के पुत्र आस्तिक को वेदों का ज्ञान दिया। द्वापर युग और कलियुग के प्रारंभ में इन्द्रप्रस्त का राजा जनमेजय को यह पता चला कि उनके पिता परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग द्वारा काटने से हुई है । राजा जनमेजय ने नागदाह यज्ञ करने का निर्णय लिया। जब जनमेजय ने नागदाह यज्ञ प्रारंभ किया तब सर्पेष्टि यज्ञ में बड़े-छोटे, वृद्ध, युवा सर्प आ-आकर गिरने लगे। ऋषि द्वारा नागों का नाम ले लेकर आहुति देते और भयानक सर्प आकर अग्नि कुंड में गिर जाते। यज्ञ के डर से तक्षक देवराज इंद्र के यहां जाकर छिप गया। मनशा पुत्र आस्तिक को नागदाह यज्ञ के बारे में पता चला टैब आस्तिक यज्ञ स्थल पर आए और यज्ञ की स्तुति करने लगे। आस्तिक ऋषि ने राजा जनमेजय से सर्पेष्टि यज्ञ बंद करने का निवेदन किया। जनमेजय ने सर्पेष्टि यज्ञ रोके के लिये इंकार किया परंतु ऋषियों द्वारा समझाने पर राजा जनमेजय सर्पेष्टि यज्ञ रोकवा दी थी । आस्तिक मुनि ने धर्मात्मा सर्पों को भस्म होने से बचा लिया। धर्म ग्रंथों के अनुसार, सर्प भय की मुक्ति के लिए आस्तिक ऋषि की उपासना की जाती है ।
नाग दिवस , विश्व सर्प दिवस ,वर्ल्ड स्नैक डे को विश्व में लोगों को सांपों और उनके बारे में भ्रातिंया दूर कर उनके प्रति जागरुकता जगाने के लिए मनाया जाता है । भारत में नागों को समर्पित सावन शुक्ल पंचमी व नागपंचमी है । सांप विश्व के पुरातन जीवों में सर्प को माना जाता है । विश्व की नाग सभ्यता और संस्कृति की चर्चा अन्य सभ्यता में मिल जाती है । विश्व में सांपों की 3458 प्रजातियां हैं । उत्तरी कनाडा के बर्फीले टुंड्रा से लेकर अमेजन के हरे जंगलों , रेगिस्तान और महासागर में पाया जाता है । नाग बहुत चुस्त शिकारी जीव तथा प्रकृति में संतुलन बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं. खेतों में सांप का पाया जाना एक अच्छा संकेत माना जाता है ।किसान तो सांपों को पालते हैं जिससे की उनकी फसल बचत है । सांपों के पूर्वज डायनासोर के पूर्वज सर्प हैं । जंगलों के विनाश के साथ सांपों की प्रजातियों के कम होने से खतरा बढ़ता जा रहा है ।
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