गुरुवार, जुलाई 15, 2021

बुज़ुर्ग : ज्ञान की कसौटी...


                     

         विश्व और भारतीय संस्कृतियों में पुरातन परंपरा समृद्धि का रूप है । इंसान  ६०  पार करने पर  विश्व की धरातल में ‌बदलाव पीढ़ी ने देखा  "शायद  " आने वाली पीढियों को  बदलाव देख पाना संभव है । बैलगाड़ी , नाव से हवाई महज ,  जेट देखे हैं। बैरंग ख़त से लेकर लाइव चैटिंग और "वर्चुअल मीटिंग जैसी" असंभव लगने वाली  बातों को सम्भव होते हुए देखा है। बुजुर्गों ने  मिटटी के घरों में बैठ कर, परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं हैं। जमीन पर बैठकर खाना खाया है। प्लेट में डाल  कर चाय की चुस्की लिया  है । दादी नानी से ज्ञान वर्द्धक कहानी  सुनी है । बचपन में मोहल्ले के मैदानों में  दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे , गुली डंडा , लुक छुप , डोलपत्ता  खेले हैं। चांदनी रात , डीबली , लालटेन, या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क  और दिन के उजाले में चादर के अंदर छिपा कर नावेल , कहानी पढ़े हैं।  जज़्बात, खतों में आदान प्रदान और उन ख़तो के पहुंचने और जवाब के वापस आने में महीनों तक इंतजार किया है। कूलर, एसी ,  हीटर , पंखा बिजली  के बिना बचपन गुज़ारा  है। छोटे बालों में, सरसों का ज्यादा तेल लगा कर, स्कूल और शादियों में जाया करते थे। स्याही वाली दावात , सरकंडे की कलम , स्याही पेन से कॉपी,  किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये है। तख़्ती पर सेठे की क़लम से लिखा है और तख़्ती धोई है। पढ़ाई , होम वर्क नही करने पर  टीचर्स से मार खाई और घर में शिकायत करने पर पिता से  मार खाई है। गली और मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर, नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया  और समाज के बड़े बूढों की इज़्ज़त  करते थे। अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर, खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया , पाठशाला में पढ़ने के समय शांति तथा साथियो के साथ हमजोली काटे थे । गुरुजी द्वारा शिक्षार्थियों को पुत्र मने जाते है । गणेश चतुर्दशी को चौकचन्दा खेलते थे । गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर शेव ,  गुड़  की चाय और सर्वत पी है।  सुबह काला या लाल दंत मंजन ,  सफेद टूथ पाउडर , कैसैली का चूर्ण , काली मिट्टी इस्तेमाल किया और नमक , लकड़ी के कोयले से और नीम , करंज के दतुवां से  दांत साफ किए हैं।  चांदनी रातों में, रेडियो पर बी बी सी की ख़बरें, विविध भारती, ऑल इंडिया रेडियो, बिनाका गीत माला और हवा महल  प्रोग्राम पूरी शिद्दत से सुने हैं।शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करने के  बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे। तार के पत्ते से बना और बास से बने  पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था। सुबह सूरज निकलने के पूर्व मित्रो के साथ घूमते , गाय को चारा देते  थे। गाय और भैस का दूध , दही , मक्खन खाते , दोस्त के साथ खेतो में लगी चने और मटर का होरहा लगा कर खाते थे । गांवों में भाईचारे और सत्यनेत्र कायम था । गांवों में कथा , सत्यनारायण कथा , देवी पूजन , अखंड में शामिल होकर भक्ति और आपसी सद्भाव है । दादी , मां स्कूल जाने के पहले चने , चावल की भूंजा पोटली या जेब मे देती थी । स्लेट पर पेंसिल , खल्ली से लिखते थे । सुख दुख में सभी साथ थे । पेड़ पौधे लगाते और फूल पत्तियां लगा कर आंनदित होते थे । अब  सब दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछा करतीं , कमरों में कूलर, एसी के सामने रात - दिन गुज़रते हैं। प्राकृतिक हवा से दूर होते रहे है । शिक्षा का ह्रास हो रहा है , गुरु का वास्तविक रूप में ह्रास , अधिकारियों  का ह्रास  हो गए है । सात्विक प्रवृतियों का ह्रास के कारण शिक्षा का ह्रास हो गया है । खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग  लगातार कम होते चले गए। अब  लोग जितना पढ़ लिख रहे  उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलेपन तथा  निराशा में खोते जा रहे हैं।  खुशनसीब लोग  रिश्तों की मिठास महसूस की है । "अविश्वसनीय सा" लगने वाला  नज़ारा  देखा है । करोना काल में परिवारिक रिश्तेदारों  पति-पत्नी, बाप - बेटा, भाई - बहन को एक दूसरे को छूने से डरते हुए  देखा है । पारिवारिक रिश्तेदारों की तबात ही क्या करे, खुद आदमी को अपने ही  हाथ से, अपनी ही नाक और मुंह को, छूने से डरते हुए देखा है।"अर्थि" को बिना चार कंधों के, श्मशान घाट पर जाते हुए  देखा है। "पार्थिव शरीर" को दूर से   "अग्नि संस्कार " लगाते हुए देखा है। जिसने अपने "माँ-बाप" की बात  मानी, और "बच्चों" की मान रहे है। शादी के अवसर पर  पंगत में खाते भोजन करते थे । सब्जी , दाल  देने वाले को गाइड करना, हिला के देना या तरी तरी देना आनन्द दायक माहौल था परंतु अब वफर प्रणाली सब को छू दिया है ।उँगलियों के इशारे से  लड्डू और गुलाब जामुन, काजू कतली लेना , पूडी छाँट छाँट केऔर गरम गरम लेना !पीछे वाली पंगत में झांक के देखना क्या क्या आ गया !अपने इधर और क्या बाकी है। उसके लिए आवाज लगाना , पास वाले रिश्तेदार के पत्तल में जबरदस्ती पूड़ी रखवाना , रायते वाले को दूर से आता देखकर फटाफट रायते का दोना पीना ,  पहले वाली पंगत कितनी देर में उठेगी उसके हिसाब से बैठने की पोजीशन बनाना और आखिर में पानी वाले को खोजना परंपरा कायम थी । यह कार्य में युवा , बच्चे और परिवार की मीठास , सहिष्णुता और प्रेम का समन्वय था । प्राकृतिक और सामाजिक परंपरा में पलने वाले आधुनिकता की पगडंडी पर चलने के लिये प्रवास बन गया है ।  वृद्धावस्था घरों का धरोहर था परंतु आधुनिकता में वृद्धों के लिए वृद्धाश्रम बन गया । वास्विक रूप में बृद्ध परिवार और गाँव में धरोहर और सीख के लिए केंद्र तथा अनुभव एवं ज्ञान के कसौटी थे ।

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