वेदों , पुरणों , स्मृतियों के अनुसार भूस्थल पर प्राणियों , मानवीय जीवन में समृद्धि तथा धर्म की स्थापना के लिये भगवान विष्णु का अवतरण सभी मन्वन्तर काल में विभिन्न रूपों में अवतरित हो कर दैत्यों , दानवों और राक्षसों को समाप्त किया है । जब जब अधर्मी , असुर , दैत्य , दानव , राक्षसों द्वारा अत्याचार , घमंड , अन्याय और प्रकृति के प्रति दुष्टता का फैलाव हुआ है तब तब भगवान विष्णु द्वारा विभिन्न रूप में अवतार लेकर धर्म की स्थापना की गई है । भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर अधर्म को समाप्त कर धर्म की स्थापना के लिये अवतार लिया है। भगवान विष्णु के 24 वें अवतार में 23 अवतार पृथ्वी पर हुए है ।
1- श्री सनकादि मुनि - नारद पुराण , ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सृष्टि के आरंभ करने के बाद सतयुग में ब्रह्मा जी द्वारा अयोनिज संतान सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार को अवतरण किया गया था । सनक ने पुरातन , सनातन ने जीवन , सनंदन ने हर्षित ,सनत कुमार ने चिरतरुन के रूप में प्राकट्य काल से मोक्ष मार्ग परायण, ध्यान में तल्लीन रहने वाले, नित्यसिद्ध एवं नित्य विरक्त थे। भगवान विष्णु के सर्वप्रथम सनकादि अवतार हैं। सनकादि की भूमि कीकट प्रदेश आधुनिक बिहार - छोटानागपुर पठार का झारखण्ड की सीमा पर झारखण्ड का पलामू जिले के टंडवा का रामगढ़ - लकड़ मनावां पर्वत के मध्य 984 फिट उचाई से स्थित कंदराओं के कुंड क्षेत्र में अवस्थित पुनपुन नदी के उद्गम स्थल पर सनकादि अवतरित हुए थे । है ।सनत्कुमार संहिता के अनुसार सनकादि द्वारा 24 तत्वों के अंड , जल और पुरुष ,तथा नारी , एवं वेद का निर्माण के साथ 14 भुवन की स्थापना की गयी । भगवान विष्णु के प्रथम अवतार सनातन द्वारा सनातन धर्म की स्थापना कर मानव जीवन का रूप दिया गया है । सनातन द्वारा सनातन धर्म की स्थापना कर मानव जीवन की सभ्यता और संस्कृति का उद्भव किया गया था ।
2- वराह अवतार - भागवत , विष्णु और वराह पुरणों पुरणों के अनुसार भगवान विष्णु ने वराह अवतार शुक्ल संबत्सर चैत्र कृष्ण त्रयोदशी रविवार , घनिष्ठा नक्षत्र , ब्रह्म योग अपराह्न काल सतयुग में हुआ था। वराह अवतार द्वारा दैत्यराज हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया तब ब्रह्मा जी की नासिका से भगवान विष्णु का वराह अवतार होने पर सभी देवताओं , ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की।भगवान वराह ने पृथ्वी को थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए।दैत्य राज हिरण्याक्ष और भगवान वराह में भीषण युद्ध हुआ। युद्ध मे में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया। भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर पृथ्वी को स्थापित कर दिया। भगवान वराह की भार्या वाराही ने धर्म और कर्म की स्थापना की । भगवान वराह की मूर्ति नवादा जिले के अपसढ़ में स्थित है ।
3- नारद अवतार - नारद पुराण तथा ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के नारद अवतार हैं। नारद पुराण , भागवत पुराण , मैत्रीय संहिता , शास्त्रों के अनुसार , ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में देवर्षि नारद का जन्म जेष्ट कृष्ण प्रतिपदा सतयुग में गंधमादन पर्वत पर गंधर्व राजा चित्ररथ के पुत्र उपबर्हण हुआ था । नारद ने कठिन तपस्या से देवर्षि पद प्राप्त किया है। नारद भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में हैं। देवर्षि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक-कल्याण के लिए हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं। शास्त्रों में देवर्षि नारद को भगवान का मन कहा गया है। श्रीमद्भागवतगीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार ऋषि कश्यप की प्रेरणा से गोप राजा द्रुमिल की पत्नी कलावती के गर्भ से उत्पन्न तथा गंधर्वराज चित्ररथ के पुत्र के रूप में अवतरित हुए थे ।
4- नर-नारायण - सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए दो रूपों में अवतार उत्तराखंड राज्य का चमोली जिले के बद्री स्थल लिया था ।। नर नारायण अवतार में अपने मस्तक पर जटा धारण किए हुए थे। उनके हाथों में हंस, चरणों में चक्र एवं वक्ष:स्थल में श्रीवत्स के चिन्ह थे। उनका संपूर्ण वेष तपस्वियों के समान था। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने नर-नारायण के रूप में उत्तराखंड राज्य का चमोली जिले के बद्रीनाथ में अवतार लिया था। बदरीनाथ में नारायण और नर पर्वत है । नारायण पर्वत के समीप अलकनंदा नदी के किनारे बद्रीनाथ धाम मंदिर में नारायण स्थित एवं मंदिर के समीप नारद कुंड , तप्त कुंड है ।
5- कपिल मुनि - भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार महर्षि कर्दम की भार्या देवहूति के गर्भ से कपिल मुनि अवतरित हुए थे । शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह के शरीर त्याग के समय वेदज्ञ व्यास आदि ऋषियों के साथ भगवान कपिल उपस्थित थे। भगवान कपिल के क्रोध से राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे। भगवान कपिल सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं। कपिल मुनि सनातन धर्म के भागवत सम्प्रदाय के प्रवर्तक हैं। बंगाल राज्य का बंगलकी खड़ी में गंगा नदी के संगम किनारे गंगा सागर तट पर भगवान कपिल का तपोस्थल था ।
6- दत्तात्रेय अवतार - शास्त्रों के अनुसार दत्तात्रेय भगवान विष्णु के अवतार हैं। माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती को अपने पातिव्रत्य पर अत्यंत गर्व हो गया। भगवान ने इनका अंहकार नष्ट करने के लिए लीला रची। नारदजी घूमते-घूमते देवलोक पहुंचे और तीनों देवियों को बारी-बारी जाकर कहा कि ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया के सामने आपका सतीत्व नहीं है । देवियों ने यह बात अपने स्वामियों को बताई और उनसे कहा कि वे अनुसूइया के पातिव्रत्य की परीक्षा लें।तब भगवान शंकर, विष्णु व ब्रह्मा साधु वेश बनाकर अत्रि मुनि के आश्रम आए। महर्षि अत्रि उस समय आश्रम में नहीं थे। भगवान ब्रह्मा , विष्णु और महेश द्वारा सती अनुसूइया से भिक्षा मांगी गयी परंतु शर्त में कहा कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी। अनुसूइया पहले तो यह सुनकर चौंक गई, लेकिन फिर साधुओं का अपमान नही होने के इस डर से उन्होंने अपने पति का स्मरण किया और बोला कि यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तब ये तीनों साधु छ:-छ: मास के शिशु हो जाएं।ऐसा बोलते ही त्रिदेव शिशु होकर रोने लगे। अनुसूइया ने माता बनकर उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया और पालने में झूलाने लगीं। जब तीनों देव अपने स्थान पर नहीं लौटे तब देवियां व्याकुल हो गईं। तब नारद ने वहां आकर सारी बात बताई। तीनों देवियां अनुसूइया के पास आईं और क्षमा मांगी। तब देवी अनुसूइया ने त्रिदेव को अपने पूर्व रूप में कर दिया। प्रसन्न होकर त्रिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेंगे। तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ था । पीपल बरगद और पकड़ वृक्ष एक साथ रहता है उसे दत्तात्रेय कहा गया है । दत्तात्रय का अवतरण उत्तराखंड का चमोली जिले के मण्डल अनसूया गढ़वाल पर्वत की 7201 फिट की उचाई श्रंखला पर अमृत गंगा के उद्गम स्थल पर मार्गशीर्ष पूर्णिमा सतयुग को महर्षि अत्रि की भार्या सती अनुसूया ने की थी ।
7- यज्ञ : - भगवान विष्णु के सातवें अवतार यज्ञ है । पुरणों के अनुसार भगवान यज्ञ का जन्म स्वायम्भुव मन्वन्तर में हुआ था। स्वायम्भुव मनु की पत्नी शतरूपा के गर्भ से आकूति का जन्म हुआ। वे रूचि प्रजापति की पत्नी आकूति के गर्भ से भगवान विष्णु यज्ञ अवतरित हुए थे। भगवान यज्ञ की धर्मपत्नी दक्षिणा से अत्यंत तेजस्वी बारह पुत्र उत्पन्न हुए। वे ही स्वायम्भुव मन्वन्तर में याम नामक बारह देवता कहलाए। रुचि प्रजापति की पत्नी आकूति के पुत्र भगवान यज्ञ द्वारा कीकट प्रदेश का राजा गयासुर के वक्ष स्थल पर गया में यज्ञ किया गया था ।
8- भगवान ऋषभदेव - भगवान विष्णु ने ऋषभदेव का आठवांं अवतार है । हरिवर्ष का राजा महाराज नाभि की धर्मपत्नी मेरुदेवी के साथ पुत्र की कामना के लिये पुत्रेष्ठि यज्ञ किया। यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने महाराज नाभि को वरदान दिया कि मैं तुम्हारे यहां पुत्र रूप में जन्म लूंगा। वरदान स्वरूप कुछ समय बाद भगवान विष्णु महाराज नाभि के पुत्र रूप में जन्मे। पुत्र के अत्यंत सुंदर सुगठित शरीर, कीर्ति, तेल, बल, ऐश्वर्य, यश, पराक्रम और शूरवीरता आदि गुणों को देखकर महाराज नाभि नेऋषभ (श्रेष्ठ) नामकरण किया था ।
9- पृथु - भगवान विष्णु के अवतार पृथु है। पुरणों के अनुसार स्वायम्भुव मनु के वंश में अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसिक पुत्री सुनीथा के गर्भ से वेन पुत्र हुआ। उसने भगवान को मानने से इंकार कर दिया और स्वयं की पूजा करने के लिए कहा। तब महर्षियों ने मंत्र पूत कुशों से उसका वध कर दिया। महर्षियों ने पुत्रहीन राजा वेन की भुजाओं का मंथन किया, जिससे पृथु नाम पुत्र उत्पन्न हुआ। पृथु के दाहिने हाथ में चक्र और चरणों में कमल का चिह्न देखकर ऋषियों ने बताया कि पृथु के वेष में स्वयं श्रीहरि का अंश अवतरित हुआ है।
10- मत्स्य अवतार - पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए प्रभाव संबत्सर चैत्र कृष्ण पंचमी बुधवार मूल नक्षत्र सिद्धि योग सायंकाल सतयुग में मत्स्यावतार हुआ था।कृतयुग के आदि में राजा सत्यव्रत हुए। राजा सत्यव्रत एक दिन नदी में स्नान कर जलांजलि दे रहे थे। अचानक उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आई। उन्होंने देखा तो सोचा वापस सागर में डाल दूं, लेकिन उस मछली ने बोला- आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी। राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया। मछली और बड़ी हो गई तब राजा ने उसे अपने सरोवर में रखा, तब देखते ही देखते मछली और बड़ी हो गई। राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है। राजा ने मछली से वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की। राजा की प्रार्थना सुन साक्षात चारभुजाधारी भगवान विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने कहा कि ये मेरा मत्स्यावतार है। भगवान ने सत्यव्रत से कहा- सुनो राजा सत्यव्रत! आज से सात दिन बाद प्रलय होगी। तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी। तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना, जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा।उस समय तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग से बांध देना। उस समय प्रश्न पूछने पर मैं तुम्हें उत्तर दूंगा, जिससे मेरी महिमा जो परब्रह्म नाम से विख्यात है, तुम्हारे ह्रदय में प्रकट हो जाएगी। तब समय आने पर भगवान मत्स्य ने राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान का उपदेश दिया है । मत्स्य अवतार में भगवान मत्स्य द्वारा दैत्यराज शंखासुर को वध कर वेदों का उद्धार किया गया था ।
11- कूर्म अवतार :- कूर्म पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने विभव संबत्सर जेष्ट कृष्ण दशमी रविवार , रोहाणी नक्षत्र ,धृति योग ,सायंकाल में कूर्म अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी । महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इंद्र को श्राप देकर श्रीहीन कर दिया। इंद्र भगवान विष्णु के अनुसार इंद्र और दैत्यों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए। समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया। देवताओं और दैत्यों ने अपना मतभेद भुलाकर मंदराचल को उखाड़ा और उसे समुद्र की ओर ले चले, लेकिन वे उसे अधिक दूर तक नहीं ले जा सके। तब भगवान विष्णु ने मंदराचल को समुद्र तट पर रख दिया। देवता और दैत्यों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर नागराज वासुकि को नेती बनाया।किंतु मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए। भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हुआ।
12- भगवान धन्वन्तरि - पुरणों के अनुसार जब देवताओं व दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया उसमें से सबसे पहले भयंकर विष निकला जिसे भगवान शिव ने पी लिया। समुद्र मंथन से उच्चैश्रवा घोड़ा, देवी लक्ष्मी, ऐरावत हाथी, कल्प वृक्ष, अप्सराएं और भी बहुत से रत्न निकले। कार्तिक मास कृष्ण पक्ष त्रयोदशी सतयुग में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। यही धन्वन्तरि भगवान विष्णु के अवतार माने गए हैं। भगवान धन्वंतरि औषधियों का स्वामी है। भगवान धन्वंतरि द्वारा प्रकृति की सुरक्षा , औषधियों का विकास , मानवीय जीवन को खुशहाल करने , चिकित्सा का बढ़ावा हेतु कार्य किया गया है ।
13- मोहिनी अवतार - ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान सबसे अंत में धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर निकले। जैसे ही अमृत मिला अनुशासन भंग हुआ। देवताओं ने कहा हम ले लें, दैत्यों ने कहा हम ले लें। इसी खींचातानी में इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कुंभ लेकर भाग गया। सारे दैत्य व देवता भी उसके पीछे भागे। असुरों व देवताओं में भयंकर मार-काट मच गई। देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया। भगवान ने मोहिनी रूप में सबको मोहित कर दिया किया। मोहिनी ने देवता व असुर की बात सुनी और कहा कि यह अमृत कलश मुझे दे दीजिए तो मैं बारी-बारी से देवता व असुर को अमृत का पान करा दूंगी। दोनों मान गए। देवता एक तरफ तथा असुर दूसरी तरफ बैठ गए। फिर मोहिनी रूप धरे भगवान विष्णु ने मधुर गान गाते हुए तथा नृत्य करते हुए देवता व असुरों को अमृत पान कराना प्रारंभ किया । वास्तविकता में मोहिनी अमृत पान तो सिर्फ देवताओं को ही करा रही थी, जबकि असुर समझ रहे थे कि देव अमृत पी रहे हैं। भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर देवताओं का भला किया।
14- भगवान नृसिंह - भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार अंगिरा संबत्सर वैशाख शुक्ल चतुर्दशी रविवार , विशाखा नक्षत्र ,वरियाँ योग सायं काल मे लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था। उसे मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था। उसके राज मे भगवान विष्णु की उपासना करने वालों को दंड दिया जाता था। उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। दैत्यराज हिरण्यकशिपु का पता चली तो वह बहुत क्रोधित हुआ और प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर जब प्रह्लाद नहीं माना तब हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया। हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से वह बच गया। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई। तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई। जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।
15- वामन अवतार - त्रेतायुग में भगवान वामनावतार सर्वजीत संबत्सर भाद्रपद शुक्ल द्वादशी शुक्रवार पूर्वाभाद्र , शोभन योग में हुआ था । प्रह्लाद के पौत्र दैत्य राज विरोचन के पुत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। सभी देवता विपत्ति से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। महर्षि कश्यप की पत्नी माता अदिति के गर्भ से भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। एक बार जब बलि महान यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया। लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी बना दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुन: लौटाया।
16- हयग्रीव अवतार - ग्रंथों के अनुसार एक बार मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिशाली राक्षस ब्रह्माजी से वेदों का हरण कर रसातल में पहुंच गए। वेदों का हरण हो जाने से ब्रह्माजी बहुत दु:खी हुए और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान ने हयग्रीव अवतार लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु की गर्दन और मुख घोड़े के समान थी। तब भगवान हयग्रीव रसातल में पहुंचे और मधु-कैटभ का वध कर वेद पुन: भगवान ब्रह्मा को दे दिए।
17- श्रीहरि अवतार - पुराणों के अनुसार गंगा और गंडक नदी के संगम स्थित बिहार का सरन जिले के सोनपुर स्थित गंडक नदी में गजराज गजेंद्र अपनी हथिनियों के साथ रहता था। एक बार वह अपनी हथिनियों के साथ गंडक नदी में स्नान करने गया। वहां मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और पानी के अंदर खींचने लगा। गजेंद्र और मगरमच्छ का संघर्ष एक हजार साल तक चलता रहा। अंत में गजेंद्र शिथिल पड़ गया और उसने भगवान श्रीहरि का ध्यान किया। गजेंद्र की स्तुति सुनकर भगवान श्रीहरि प्रकट हुए और उन्होंने अपने चक्र से मगरमच्छ का वध कर दिया। भगवान श्रीहरि ने गजेंद्र का उद्धार कर उसे अपना पार्षद बना लिया। गंडक नदी के किनारे स्थित सोनपुर में भगवान हरि और हर निवास करते है ।सोनपुर में स्थित हरिहर नाथ मंदिर में हरी और हर है ।
18- परशुराम अवतार - पुरणों के अनुसार भगवान परशुराम के जन्म का जन्म सर्वजीत संबत्सर वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि मंगलवार पूर्वभाद्र नक्षत्र वरियान योग त्रेतायुग में जमदग्नि ऋषि के 5वें पुत्र में अवतरित हुए थे ।
प्राचीन समय में महिष्मती नगरी पर शक्तिशाली हैययवंशी क्षत्रिय कार्तवीर्य अर्जुन(सहस्त्रबाहु) का शासन था। वह बहुत अभिमानी था और अत्याचारी भी। एक बार अग्निदेव ने उससे भोजन कराने का आग्रह किया। तब सहस्त्रबाहु ने घमंड में आकर कहा कि आप जहां से चाहें, भोजन प्राप्त कर सकते हैं, सभी ओर मेरा ही राज है। तब अग्निदेव ने वनों को जलाना शुरु किया। एक वन में ऋषि आपव तपस्या कर रहे थे। अग्नि ने उनके आश्रम को भी जला डाला। इससे क्रोधित होकर ऋषि ने सहस्त्रबाहु को श्राप दिया कि भगवान विष्णु, परशुराम के रूप में जन्म लेंगे और न सिर्फ सहस्त्रबाहु का नहीं बल्कि समस्त क्षत्रियों का सर्वनाश करेंगे। इस प्रकार भगवान विष्णु ने भार्गव कुल में महर्षि जमदग्रि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्म लिया।
19- महर्षि वेदव्यास :- पुराणों में महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का अवतार का उल्लेख है। आषाढ़ मास शुक्लपक्ष पूर्णिमा तिथि द्वापर युग में ऋषि परासर और कैवर्त राज पौष्य पुत्री सत्यवती के संपर्क से यमुना द्वीप पर महाज्ञानी महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यास प्रकट हुए थे। व्यास जी शरीर का रंग काला रहने के कारण कृष्णद्वैपायन था। मनुष्यों की आयु और शक्ति को देखते हुए वेदों के विभाग किए। महाभारत ग्रंथ की रचना की। कृष्ण द्वैपायन द्वारा उत्तराखंड का चमोली जिले के विष्णु प्रयाग के किनारे नर पर्वत स्थित माना की व्यास गुफा में वेदों , पुरणों की रचना भगवान शिव के पुत्र गणेश जी परामर्श से की गयी थी ।
20- हंस अवतार - भगवान ब्रह्मा जी की सभा में मानस पुत्र सनकादि पहुंचे और भगवान ब्रह्मा से मनुष्यों के मोक्ष के संबंध में चर्चा करने लगे। वहां भगवान विष्णु महाहंस के रूप में प्रकट होकर सनकादि मुनियों के संदेह का निवारण किया। भगवान हंस का अवतरण कार्तिक शुक्ल नवमी सतयुग में हुआ था । भागवत के एकादश स्कन्द अध्याय 13 , महाभारत शांति पर्व के अनुसार भगवान हंस द्वारा हंस गीता और निम्बार्क सम्प्रदाय के तहत देवर्षि नारद को ज्ञान दिया गया था ।
21- श्रीराम अवतार - भगवान राम का अवतरण अयोध्या का राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या के गर्भ से चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी तिथि गुरुवार ,पुनर्वसु नक्षत्र , सुकर्मा योग मध्याह्न काल त्रेतायुग में हुआ था ।लंका का राजा राक्षसराज रावण का आतंक से देव , मानव भयभीत थे। राक्षस राज रावण का वध के लिए भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया। भगवान राम ने राक्षसों का वध किया और मर्यादा का पालन करते हुए अपना जीवन यापन किया है । भगवान राम वनवास समय राक्षसराज रावण उनकी पत्नी सीता का हरण कर ले गया। भगवान श्रीराम और रावण का घोर युद्ध जिसमें रावण मारा गया। भगवान राम द्वारा देवताओं , मानवों , ऋषियों को भय मुक्त कर धर्म की स्थापना की थी ।
22- श्रीकृष्ण अवतार - भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि , बुधवार रोहाणी नक्षत्र मध्य रात्रि द्वापरयुग में श्रीकृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया। वासुदेव की भार्या देवकी के गर्भ से मथुरा उत्तरप्रदेश में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था। गोकुल उत्तरप्रदेश के राजा नंद जी की भार्या यशोदा द्वारा भगवान कृष्ण को मातृत्व प्रदान कर वात्सल्य से परिपूर्ण की गई । भगवान कृष्ण यशोदा मैं के पुत्र कहा गया है ।भगवान श्रीकृष्ण ने अनेक चमत्कार किए और दुष्टों का सर्वनाश किया। कंस का वध भगवान श्रीकृष्ण ने किया। महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथि बने और दुनिया को गीता का ज्ञान दिया। धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बना कर धर्म की स्थापना की। भगवान कृष्ण द्वारा करुणा , प्रेम और मानवीय मूल्यों का ज्ञान दिया गया है ।
23- बुद्ध अवतार - पुराणों के अनुसार भगवान बुद्ध का अवतरण आश्विन शुक्ल दशमी गुरुवार वैवस्वत मन्वन्तर में कीकट प्रदेश के गया में ऋषि अजान के पुत्र के रूप में अवतरित है । दानवो ,दैत्यों , राक्षसों द्वारा देवो और मानव पर कहर तथा अत्याचार करने से भयभीत थे । राज्य की कामना से दैत्यों ने देवराज इंद्र से पूछा कि हमारा साम्राज्य स्थिर रहे, इसका उपाय क्या है। तब इंद्र ने शुद्ध भाव से बताया कि सुस्थिर शासन के लिए यज्ञ एवं वेदविहित आचरण आवश्यक है। तब दैत्य वैदिक आचरण एवं महायज्ञ करने लगे, जिससे उनकी शक्ति और बढऩे लगी। तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने देवताओं के हित के लिए बुद्ध का रूप धारण किया। उनके हाथ में मार्जनी थी और वे मार्ग को बुहारते हुए चलते थे। इस प्रकार भगवान बुद्ध दैत्यों के पास पहुंचे और उन्हें उपदेश दिया कि यज्ञ करना पाप है। यज्ञ से जीव हिंसा होती है। यज्ञ की अग्नि से कितने ही प्राणी भस्म हो जाते हैं। भगवान बुद्ध के उपदेश से दैत्य प्रभावित हुए। उन्होंने यज्ञ व वैदिक आचरण करना छोड़ दिया। इसके कारण उनकी शक्ति कम हो गई और देवताओं ने उन पर हमला कर अपना राज्य पुन: प्राप्त कर लिया था । शास्त्रों और पुरणों के अनुसार देव गुरु वृहस्पति की भार्या माता तारा और औषधि के देव चंद्रमा के संसर्ग से बुध का जन्म हुआ था । बुध का पालन पोषण चन्द्रमा की भर्या रोहाणी और कृतिका द्वारा की गई थी । बुध ने हिमालय के श्रवण वैन पर्वत पर तपस्या करने के पश्चात ज्ञान प्राप्त हुआ था । बुध को ग्रहों का राजकुमार कहा गया है । बुध का विवाह वैवस्वतमनु की पुत्री इला के साथ हुआ था । तारा पुत्र बुध मगध प्रदेश का राजा बने ।तारा पुत्र बुध और वैवस्वतमनु की पुत्री इला के संसर्ग से उत्पन्न गय ने गया नगर की स्थापना किया था । मगध राज बुध द्वारा सनातन धर्म का बुध सम्प्रदाय का संचालन किया गया था । बौद्ध सम्प्रदाय के प्रवर्त्तक इक्ष्वाकु वंशीय कपिल वस्तु का राजा सुयोद्धन की भर्या माया के गर्भ से सिद्धार्थ का जन्म नेपाल का लुम्बनी में वैशाख शुक्ल पूर्णिमा 563 ई. पू. में हुआ , मगध के उरुवेला वन का निरंजना नदी के किनारे पीपल के वृक्ष की छाया में ज्ञान प्राप्ति तथा 483 ई. पू. कुशीनगर में माह निर्वाण हुआ था । भगवान बुद्ध का जन्म , ज्ञान और महानिर्वाण वैशाख शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को हुआ था ।
24- कल्कि अवतार - पुरणों के अनुसार कलयुग और सतयुग संधि काल में भगवान विष्णु कल्कि रूप में अवतार लेंगे। कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। पुराणों के अनुसार उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक स्थान पर विष्णुयशा तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान कल्कि पुत्र रूप में जन्म लेंगे।
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