मंगलवार, जुलाई 20, 2021

सृष्टि का पालक भगवान शिव...


  



    पुरणों और स्मृतियों  अनुसार भगवान शिव को समर्पित सोमवार को  शिवजी की उपासना से  लाभदायक होता है । सोमवार व्रत को सोमेश्वर व्रत , सोमारी , चंद्रेश्वर ब्रत कहा गया  है । शिवपुराण तथा लिंगपुराण के अनुसार राजा दक्षप्रजापति के 27 पुत्रियों के पति  सोम ने भगवान शिव की आराधना से  दक्षप्रजापति द्वारा शापित सोमदेव निरोगी होकर  अपने सौंदर्य प्राप्त किया था तथा भगवान शंकर ने  प्रसन्न होकर सावन मास  कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि में चन्द्रमा को अपनी जटाओं  में मुकुट की तरह धारण किया था । माता पार्वती भगवान शिव की उपासना के लिये सोमवार से उपासना करने के बाद सावन शुक्ल पक्ष तृतीय तिथि को भगवान प्रकट हो कर मनोकामनाएं प्राप्त की थी । भगवान शिव द्वारा भू भाग में औषधियों की उत्पत्ति , औषधि के स्वामी चंद्रमा , सोम द्वारा स्थापित सोमनाथ ज्योतिर्लिङ्ग की स्थापना , महामृत्युंजय की उत्पत्ति , मता पर्वती को मनोकामनाएं पूर्ण  , 12 ज्योतिर्लिङ्ग के रूप में प्रकट हो कर ब्रह्मांड का चतुर्दिक विकास किया गया था । सतयुग का  वराह काल में  देवी-देवताओं ने भूस्थल  हिमयुग की चपेट मे रहने के दौरान भगवान शंकर ने भू स्थल का केंद्र कैलाश को  निवास स्थान बनाया था । भगवान विष्णु    ने समुद्र और ब्रह्मा ने नदी के किनारे और  शिव ने  पर्वत की श्रंखला पर स्थान रखा है। वैज्ञानिकों एवं भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार   विन्ध्यपर्वतमाला की धरती की प्राचीन भूमि पुरातनकाल में चारों ओर समुद्र हुआ करता था।  समुद्र के परिवर्तनों के कारण  धरती का प्राकट्य होने के बाद जन , जंतु , वनस्पति , वृक्ष  जीवन फैलव हुआ था । भगवान शिव ने  धरती पर जीवन की नींव डाल कर सृष्टि की रचना की थी । भगवान शिव को आदिदेव  , आदिनाथ  ,  आदिश और ‘आदेश’ कहा गया है। नाथ सम्प्रदाय एक–दूसरे से मिलते पर  आदेश कहते है । भगवान शिव , विष्णु और ब्रह्मा  द्वारा  द्वारा भूस्थल पर जीवन की उत्पत्ति और पालन का कार्य किया। देवता, दैत्य, दानव, गंधर्व, यक्ष , मनुष्य , ऋक्ष , मारुत , नाग , जीव जंतु , पौधे , वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी ।वैदिक काल में रुद्र और उनके अन्य स्वरूप तथा जीवन दर्शन मिला है । भगवान शिव को वेद में रुद्र ,  पुराण में  शंकर और महेश कहते हैं। वराह काल के पूर्व  में  शिव थे। देवो , नागों , मानव ,  दैत्यों, दानवों असुरों  और भूतों के प्रिय भगवान शिव  हैं।सन् २००७ में नेशनल जिओग्राफी की टीम ने भारत और अन्य जगह पर २० से २२ फिट मानव के कंकाल ढूंढ निकाले हैं। भारत में मिले कंकाल को भीम पुत्र घटोत्कच और बकासुर का कंकाल मानते हैं। सतयुग में इस तरह के विशालकाय मानव हुआ करते थे। बाद में त्रेतायुग में इनकी प्रजाति नष्ट हो गई। पुराणों के अनुसार भूस्थल पर  दैत्य, दानव, राक्षस और असुरों की जाति का अस्तित्व था ।  भारत में मिले कंकाल के साथ एक शिलालेख में  ब्राह्मी लिपि का शिलालेख में लिखा है कि ब्रह्मा ने मनुष्यों में शांति स्थापित करने के लिए विशेष आकार के मनुष्यों की रचना की थी। विशेष आकार के मनुष्यों की रचना एक ही बार हुई थी। ये लोग काफी शक्तिशाली  होते थे और पेड़  तक को अपनी भुजाओं से उखाड़ सकते थे। लेकिन इन लोगों ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और आपस में लड़ने के बाद देवताओं को ही चुनौती देने लगे। अंत में भगवान शंकर ने सभी को मार डालने के बाद विशाल के  लोगों की रचना नहीं की गयी है ।शिव ने पिनाक धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते और पिनाक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त  कर दिया गया था।देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद पिनाक धनुष को देवरात को सौंप दिया गया था। राजा दक्ष के यज्ञ में यज्ञ का भाग शिव को नहीं देने के कारण भगवान शंकर बहुत क्रोधित हो गए थे और उन्होंने  देवताओं को अपने पिनाक धनुष से नष्ट करने की ठानी। एक टंकार से धरती का वातावरण भयानक हो गया। बड़ी मुश्किल से उनका क्रोध शांत किया गया, तब उन्होंने यह धनुष देवताओं को दे दिया। देवताओं ने मिथिला के राजा निमि के पुत्र देवरात को दे दिया। शिव-धनुष  धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। पिनाक  धनुष को भगवान शंकर ने स्वयं अपने हाथों से बनाया था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था। लेकिन भगवान राम ने धनुष  उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और एक झटके में तोड़ दिया। देवी-देवताओं के पास अपने-अपने अलग-अलग चक्र होते थे। भगवान शंकर के चक्र का नाम भवरेंदु, विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था। सुदर्शन चक्र  भगवान कृष्ण  के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा है। सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्रों के अनुसार इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। सुदर्शन चक्र का निर्माण के बाद भगवान शिव ने श्रीविष्णु को सौंप दिया था।  श्रीविष्णु ने सुदर्शन चक्र को देवी पार्वती को प्रदान कर दिया। पार्वती ने परशुराम को दे दिया और भगवान कृष्ण को  सुदर्शन चक्र परशुराम से प्राप्त हुआ था । भगवान शिव के  त्रिशूल ३ प्रकार के कष्टों दैनिक, दैविक, भौतिक के विनाश का सूचक है। इसमें ३ तरह की शक्तियां हैं- सत, रज और तम। प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन और  पाशुपतास्त्र भगवान् शिव का अस्त्र है।शिव को नागवंशियों से घनिष्ठ लगाव था। नाग कुल के सभी लोग शिव के क्षेत्र हिमालय में  रहते थे। कश्मीर का अनंतनाग नागवंशियों का गढ़ था। नागकुल के लोग शैव धर्म का पालन करते थे। नागों के प्रारंभ में ५ कुलों में शेषनाग (अनंत), वासुकी, तक्षक, पिंगला और कर्कोटक है । नाग वंशावलियों में *‘शेषनाग’* को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेषनाग को ही *‘अनंत’* नाम से भी जाना जाता है। ये भगवान विष्णु के सेवक थे। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए, जो शिव के सेवक बने। फिर तक्षक और पिंगला ने राज्य संभाला। वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला (तक्षशिला) बसाकर अपने नाम से *‘तक्षक’* वंशीय प्रारम्भ हुआ है । कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना  नागों के वंशीय भूस्थल के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में राज्य था। शिव द्वारा मां पार्वती को अमरनाथ में  ज्ञान दिया गया । ‘विज्ञान भैरव तंत्र’ एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए ११२ ध्यान सूत्र है। योगशास्त्र के प्रवर्तक भगवान शिव के विज्ञान भैरव तंत्र’ और शिव संहिता के अनुसार  र में  संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा  समाविष्ट  है। भगवान शिव ने कहा है कि  ‘वामो मार्ग: परमगहनो योगितामप्यगम्य:’ अर्थात वाम मार्ग अत्यंत गहन है और योगियों के लिए  अगम्य है। -मेरुतंत्र । भगवान शिव द्वारा सप्त ऋषियों को ज्ञान दिया गया था। सप्त ऋषियों ने शिव से ज्ञान प्राप्त कर विभिन्न दिशाओं में फैलाया और विश्व  में शैव धर्म, योग और ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया। सप्तऋषियों द्वारा  शिव कर्म, परंपरा आदि का ज्ञान का प्रसार किया गया है । भगवान शिव के शिष्यों में  शनि , परशुराम और रावण  थे।शिव की  गुरु  और शिष्य परंपरा में सौर ,शाक्त , शैव ,  नाथ आदि है । आदि गुरु शंकराचार्य और गुरु गोरखनाथ ने परंपरा और आगे बढ़ाया है ।भगवान शिव की सुरक्षा  और  आदेश को पालन के लिए शिव गण  तत्पर रहते हैं। भगवान शिव के  गणों में काल भैरव , बटुक भैरव ,  नंदी और  वीरभ्रद्र है ।भगवान  शिव के आदेश पर वीरभद्र द्वारा  दक्ष प्रजापति का सर धड़ से अलग कर दिया गया था । देव संहिता और स्कंद पुराण के अनुसार शिव ने अपनी जटा से ‘वीरभद्र’ गण उत्पन्न किए थे ।भगवान शिव के  गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय , पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशु द्वारा धरती और ब्रह्मांड में विचरण करते हुए जीव , जंतु , मनुष्य, आत्मा  आदि पर सुख समृद्धि देते  हैं।
कैलाश पर्वत के क्षेत्र में शिव के द्वारपाल की आज्ञा के बगैर अंदर नहीं जा सकता है । द्वारपाल संपूर्ण दिशाओं में तैनात थे। शिव के द्वारपालों में  नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल है । शिव के गण और द्वारपाल नंदी ने कामशास्त्र की रचना की थी। शिव की पंचायत में ५ देवता में १. सूर्य, २. गणपति, ३. देवी, ४. रुद्र और ५. विष्णु हैं।बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि ‍शिव के पार्षद हैं। रुद्राक्ष और त्रिशूल , डमरू और अर्ध चंद्र और  शिवलिंग भगवान शिव के चिह्न है । भगवान शिव की  जटाओं में अर्द्ध चंद्र चिह्न ,  मस्तष्क पर तीसरी आंख ,  गले में सर्प और रुद्राक्ष की माला , एक हाथ में डमरू ,  दूसरे में त्रिशूल है। वे संपूर्ण देह पर भस्म लगाए रहते हैं। उनके शरीर के निचले हिस्से को वे व्याघ्र चर्म से लपेटे रहते हैं। वे वृषभ की सवारी करते हैं और कैलाश पर्वत पर ध्यान लगाए बैठे रहते हैं। केदारनाथ और अमरनाथ में भगवान शिव विश्राम करते हैं। शिव ने भष्मासुर को वरदान दिया कि तू जिसके  सिर पर हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा।  वरदान के कारण भष्मासुर ने  शिव को भस्म करने की प्रयास किया था ।भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शंकर वहां से भाग गए। उनके पीछे भस्मासुर भी भागने लगा। भागते-भागते शिवजी द्वारा पर्वत  को  त्रिशूल से  गुफा बना कर  गुफा में छिप गए थे ।बाद में विष्णुजी ने आकर उनकी जान बचाई। भगवान शिव द्वारा निर्मित  गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। इन खूबसूरत पहाड़ियों को देखने से ही मन शांत हो जाता है ।भगवान  राम के आराध्यदेव शिव हैं । पुराणों  के अनुसार यह युद्ध श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के दौरान लड़ा गया।  यज्ञ का अश्व  राजा वीरमणि का राज्य में प्रवेश करने पर राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने अश्वमेघ का अश्व को बंदी बना लिया। महादेव ने अपने भक्त को मुसीबत में जानकर वीरभद्र के नेतृत्व में नंदी, भृंगी सहित अपने सारे गणों को भेज दिया। राम की सेना और  शिव की सेना थी। वीरभद्र ने  त्रिशूल से राम की सेना के पुष्कल का मस्तक काट दिया।  भृंगी आदि गणों ने भी राम के भाई शत्रुघ्न को बंदी बना लिया। हनुमान  जब नंदी के शिवास्त्र से पराभूत होने लगे तब सभी ने राम को याद किया। अपने भक्तों की पुकार सुनकर श्रीराम तत्काल ही लक्ष्मण और भरत के साथ वहां आ गए। श्रीराम ने सबसे पहले शत्रुघ्न को मुक्त कराया और उधर लक्ष्मण ने हनुमान को मुक्त करा दिया। फिर श्रीराम ने सारी सेना के साथ शिव गणों पर धावा बोल दिया। जब नंदी और अन्य शिव के गण परास्त होने लगे तब महादेव ने देखा कि उनकी सेना बड़े कष्ट में है तो वे स्वयं युद्ध क्षेत्र में प्रकट हुए, तब श्रीराम और शिव में युद्ध छिड़ गया। भयंकर युद्ध के बाद अंत में श्रीराम ने पाशुपतास्त्र निकालकर कर शिव से कहा, ‘हे प्रभु, आपने ही मुझे ये वरदान दिया है कि आपके द्वारा प्रदत्त इस अस्त्र से त्रिलोक में कोई पराजित हुए बिना नहीं रह सकता इसलिए हे महादेव, आपकी ही आज्ञा और इच्छा से मैं इसका प्रयोग आप पर ही करता हूं’, ये कहते हुए श्रीराम ने वो महान दिव्यास्त्र भगवान शिव पर चला दिया। अस्त्र सीधा महादेव के ह्वदयस्थल में समा गया और भगवान रुद्र इससे संतुष्ट हो गए। शिव ने प्रसन्नतापूर्वक श्रीराम से कहा कि आपने युद्ध में मुझे संतुष्ट किया है इसलिए जो इच्छा हो वर मांग लें। इस पर श्रीराम ने कहा कि ‘हे भगवन्, यहां मेरे भाई भरत के पुत्र पुष्कल सहित असंख्य योद्धा वीरगति को प्राप्त हो गए है, कृपया कर उन्हें जीवनदान दीजिए।’ महादेव ने कहा कि ‘तथास्तु।’ इसके बाद शिव की आज्ञा से राजा वीरमणि ने यज्ञ का अश्व श्रीराम को लौटा दिया और श्रीराम भी वीरमणि को उनका राज्य सौंपकर शत्रुघ्न के साथ अयोध्या की ओर चल दिए। शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को स्वयंभू है । शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव अपने टखने पर अमृत मल रहे थे तब उससे भगवान विष्णु पैदा हुए जबकि विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि कमल से पैदा हुए जबकि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं। विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं। श्रीमद् भागवत के अनुसार भगवान विष्णु और ब्रह्मा अहंकार से अभिभूत हो स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए लड़ रहे थे, तब एक जलते हुए खंभे से जिसका कोई ओर-छोर ब्रह्मा या विष्णु नहीं समझ पाए, भगवान शिव प्रकट हुए। विष्णु पुराण में के अनुसार ब्रह्मा को एक बच्चे की जरूरत थी। उन्होंने इसके लिए तपस्या करने पर ब्रह्मा जी के  गोद में रोते हुए बालक शिव प्रकट हुए। ब्रह्मा ने बच्चे से रोने का कारण पूछा तब उसने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया कि उसका नाम *‘ब्रह्मा’* नहीं  रो  है। ब्रह्मा ने शिव का नाम *‘रुद्र’* रखा था । शिव तब  चुप नहीं हुए टैब  ब्रह्मा ने  शिव को चुप कराने के लिए ब्रह्मा ने शिव को  रुद्र, शर्व, भाव, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव कह कर स्मरण किया है ।भगवान सृष्टिकर्ता , पालनकर्ता और विनास करता है । शिव में ब्रह्मांड है । सत्यम शिवम सुंदरम के प्रणेता और रचियता है ।भगवान कालों के काल महाकाल है । शिव की आराधना और उपासना से सर्वार्थसिद्धि की प्राप्ति और मृत्यु पर विजय प्राप्त की जा सकती है । शिव परम सत्य , सुंदर और शक्ति है ।




           

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