बुधवार, जुलाई 07, 2021

ऋषि : मानव संस्कृति और सभ्यता का द्योतक...

       
         सनातन धर्म की सांस्कृतिक और सभ्यता का भारतीय परंपरा का उल्लेख वेदों, पुरणों और उपनिषदों में किया गया है । ऋषि शब्द की व्युत्पत्ति 'ऋष' से होने के करण देखना होता है। ऋषि के  कृतियों को आर्ष  मूल को दृष्टि  , नज़र  शब्द कहा गया  हैं। सप्तर्षि आकाश  और मानव जीवन के  मस्तिष्क  में है । वेदों , पुरणों,  उपनिषदों तथा प्राचीन इतिहास के पन्नों और भौगोलिकता के अनुसार  विन्ध्यपर्वत समूह  तथा मैदानी भागों में ऋषियों , देवो का अवतरण की गाथा है । सप्त द्वीपों में सप्तऋषियों द्वारा  शाकद्वीप द्वीप  में मग , मागध , मानस , मंदग् वर्ण ; प्लक्ष द्वीप में आर्यक, कुरु ,विविश्व तथा भावी वर्ण  ; क्रौंच द्वीप में पुष्कल ,पुष्कर ,धन्य तथा ख्यात वर्ण ;   , शाल्मल द्वीप में कपिल , अरुण ,पिट और कृष्ण वर्ण ;  जम्बूद्वीप  और  पुष्कर द्वीप में ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र वर्ण   एवं  कुश द्वीप में डमी , शुष्मी ,स्नेह ,मंडन वर्ण   में प्रकृति, मानव संस्कृति की पहचान दिलाई गई है ।है । सभी द्वीपों में ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र निवास करते थे । द्वीपों में 49 देशों में सप्तर्षि , नदियाँ , पर्वत  विभिन्न राजाओं द्वारा अपनी प्रजा की भलाई में तल्लीन रहते थे । कीकट प्रदेश बाद में मगध प्रदेश में ऋषियों में च्यवन , भृगु , और्व , वत्स , लोमश , दाधीच , पिप्पलाद , कपिल  का संरक्षण सभी मन्वन्तर में मिलता रहा है ।  अंगिरा ऋषि - ब्रह्मा जी के पुत्र  ऋग्वेद के प्रसिद्ध ऋषि अंगिरा थे। अंगिरा ऋषि के  पुत्र और देव गुरु बृहस्पति थे। ऋग्वेद के अनुसार, ऋषि अंगिरा द्वारा  अग्नि उत्पन्न की गयी थी।. विश्वामित्र ऋषि -* गायत्री मंत्र का ज्ञान देने वाले विश्वामित्र वेदमंत्रों के सर्वप्रथम द्रष्टा माने जाते हैं। आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत इनके पुत्र थे। विश्वामित्र की परंपरा पर चलने वाले ऋषियों ने उनके नाम को धारण किया। यह परंपरा अन्य ऋषियों के साथ भी चलती रही।वशिष्ठ ऋषि -ऋग्वेद के मंत्रद्रष्टा और गायत्री मंत्र के महान साधक वशिष्ठ सप्तऋषियों में से एक थे। उनकी पत्नी अरुंधती वैदिक कर्मो में उनकी सहभागी थीं। कश्यप ऋषि : - मारीच ऋषि के पुत्र और आर्य नरेश दक्ष की १३ कन्याओं के पुत्र थे। स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार, इनसे देव, असुर और नागों की उत्पत्ति हुई। जमदग्नि ऋषि - भृगुपुत्र यमदग्नि ने गोवंश की रक्षा पर ऋग्वेद के १६ मंत्रों की रचना की है। केदारखंड के अनुसार, वे आयुर्वेद और चिकित्साशास्त्र के भी विद्वान थे। अत्रि ऋषि -* सप्तर्षियों में एक ऋषि अत्रि ऋग्वेद के पांचवें मंडल के अधिकांश सूत्रों के ऋषि थे। वे चंद्रवंश के प्रवर्तक थे। महर्षि अत्रि आयुर्वेद के आचार्य भी थे। अपाला ऋषि -अत्रि एवं अनुसुइया के द्वारा अपाला एवं पुनर्वसु का जन्म हुआ। अपाला द्वारा ऋग्वेद के सूक्त की रचना की गई। पुनर्वसु भी आयुर्वेद के प्रसिद्ध आचार्य हुए। नर  और नारायण ऋषि - ऋग्वेद के मंत्र द्रष्टा ये ऋषि धर्म और मातामूर्ति देवी के पुत्र थे। नर और नारायण दोनों भागवत धर्म तथा नारायण धर्म के मूल प्रवर्तक थे।पराशर ऋषि - ऋषि वशिष्ठ के पुत्र पराशर कहलाए, जो पिता के साथ हिमालय में वेदमंत्रों के द्रष्टा बने। ये महर्षि व्यास के पिता थे। भारद्वाज ऋषि -*बृहस्पति के पुत्र भारद्वाज ने 'यंत्र सर्वस्व' नामक ग्रंथ की रचना की थी, जिसमें विमानों के निर्माण, प्रयोग एवं संचालन के संबंध में विस्तारपूर्वक वर्णन है। ये आयुर्वेद के ऋषि थे तथा धन्वंतरि इनके शिष्य थे।आकाश में सात तारों का एक मंडल नजर आता है उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है। उक्त मंडल के तारों के नाम भारत के महान सात संतों के आधार पर ही रखे गए हैं। वेदों में उक्त मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है। प्रत्येक मनवंतर में सात सात ऋषि हुए हैं। यहां प्रस्तुत है वैवस्तवत मनु के काल में जन्में सात महान ‍ऋषियों का संक्षिप्त परिचय। वेदों के रचयिता ऋषि - ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं, लगभग दस हजार मन्त्र हैं। चारों वेदों में करीब बीस हजार हैं और इन मन्त्रों के रचयिता कवियों को हम ऋषि कहते हैं। बाकी तीन वेदों के मन्त्रों की तरह ऋग्वेद के मन्त्रों की रचना में भी अनेकानेक ऋषियों का योगदान रहा है। पर इनमें भी सात ऋषि ऐसे हैं जिनके कुलों में मन्त्र रचयिता ऋषियों की एक लम्बी परम्परा रही। ये कुल परंपरा ऋग्वेद के सूक्त दस मंडलों में संग्रहित हैं और इनमें दो से सात यानी छह मंडल है । वशिष्ठ - राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में  दशरथ के चारों पुत्रों के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था। वशिष्ठ ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया टैब  उन्हीं के कुल के मैत्रावरूण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त  रचकर ज्ञान फैलाया था । विश्वामित्र -*ऋषि होने के पूर्व विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था, लेकिन वे हार गए। इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा शकुंतला का जन्म हुआ था । विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था । विश्वामित्र ने इस देश को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मन्त्र की रचना की जो भारत के हृदय में और जिह्ना पर हजारों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है। कण्व -*माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। कण्व  आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था।भारद्वाज -देव गुरु  बृहस्पति के पुत्र वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का उच्च स्थान है। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं। भारद्वज वंशीय भारद्वाज विदथ ने दुष्यन्त पुत्र भरत का उत्तराधिकारी बन राजकाज करते हुए मन्त्र रचना जारी रखी थी । ऋषि भारद्वाज के पुत्रों में १० ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हैं । भारद्वाज की पुत्री  'रात्रि' द्वारा  रात्रि सूक्त की मन्त्रदृष्टा  हैं। ॠग्वेद के छठे मंडल  में भारद्वाज के ७६५ मन्त्र हैं। अथर्ववेद में  भारद्वाज के २३ मन्त्र  हैं। 'भारद्वाज-स्मृति' एवं 'भारद्वाज-संहिता' के रचनाकार ऋषि भारद्वाज  थे। ऋषि भारद्वाज ने 'यन्त्र-सर्वस्व' और  स्वामी ब्रह्ममुनि ने 'विमान-शास्त्र' के माध्यम से  उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण है।अत्रि - ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा ब्रह्मा जी का पुत्र महर्षि अत्रि और  कर्दम प्रजापति की भर्या  देवहूति की पुत्री अनुसूया के साथ विवाह हुए थे। अत्रि जब बाहर गए थे तब त्रिदेव अनसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा मांगने लगे और अनुसूया से कहा कि जब आप अपने संपूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे, तब अनुसूया ने अपने सतित्व के बल पर उक्त तीनों देवों को अबोध बालक बनाकर उन्हें भिक्षा दी। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत का उपदेश दिया था। अत्रि ऋषि ने इस देश में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभ की तरह योगदान दिया था। अत्रि लोग ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे, जहां उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया। अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ। अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था। मान्यता है कि अत्रि-दम्पति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चन्द्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे। ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी।वामदेव - ऋषि गौतम के पुत्र वामदेव ने  संगीत दिया। वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्तद्रष्टा, गौतम ऋषि के  जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता माने जाते हैं।ऋषि शुनक के पुत्र शौनक ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल है ।वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भरद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक,  अगस्त्य, कष्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम आदि  मन्वन्तर ऋषि है । सृष्टि के बाद भू मंडल पर देव , मानव , दैत्य , दानव, असुर , राक्षस , ऋक्ष , वानर , नाग , गंधर्व , किन्नर  आदि संस्कृति का उदय हुआ है । स्वायम्भुव मनु द्वारा मन्वन्तर प्रारम्भ किया गया है । स्वायम्भुव मनु की भर्या शतरूपा  से उत्पन्न वंशजो द्वारा बहु मंडल के विभिन्न क्षेत्रों में शासन कर जान कल्याण किया गया । स्वायम्भुव मनु के मन्वन्तर में महर्षि मरीचि , अत्रि ,अंगिरा ,पुलह , क्रतु ,पुलस्त्य और वशिष्ट तथा स्वारोचिष मन्वन्तर में प्राण , वृहस्पति , दत्तात्रय , अत्रि ,  च्यवन ,व्युप्रोक्त तथा महाब्रत सप्तऋषि हुए थे । उत्तम मन्वन्तर के ऋषियों में वाशिष्ठ तथा ऊर्ज और तामस मन्वन्तर के काव्य , पृथु ,अग्नि , जह्नु , धत , कपिवान , अकपिवान  एवं रैवत मन्वन्तर में देववाहु , यदुघ्र , वेदशिरा , हिरण्यरोमा , पर्जन्य ,सोमनन्दन ,उर्ध्वबाहु सत्यनेत्र तथा चाक्षुस मन्वन्तर में भृगु , नभ , विवस्वान , सुधमा ,विरजा , अतिनामा , सहिष्णु सप्तर्षि थे । सातवें मनु वैवस्वत मनु के मन्वन्तर में अत्रि , वशिष्ट , कश्यप , गौतम , भारद्वाज , विश्वामित्र और जमदग्नि सप्तऋषि द्वारा धर्म की व्यवस्था तथा लोकरक्षा कार्य किया गया है ।सावर्णि मन्वन्तर के ऋषियों में परशुराम ,व्यास ,आत्रेय , द्रोणकुमार , अश्वस्थामा ,शरद्वान , गालव और और्व  सप्तऋषि थे । वैवस्वत मन्वन्तर के देवों में  साध्य ,रुद्र ,विश्वेदेव , वसु , मरुद्गण ,आदित्य और अश्विनी कुमार है ।ऋग्वेद के अनुसार अत्रि वंशीय अत्रि भौम तथा आर्चनाना आत्रेय , अवस्यु आत्रेय ,उरुचक्री आत्रेय , गतु आत्रेय कुमार आत्रेय, गय आत्रेय  , कश्यप वंशीय अवत्सर कश्यप  आदि है । विश्वामित्र ऋषि के पुत्र ऋषभ वैश्वामित्र द्वारा गायत्री मंत्र के द्रष्टा थे । आचार्य शयन द्वारा ऐतरेय ब्राह्मण में ऋषभ का उल्लेख किया गया है । मगध में गय आत्रेय का ऋषिटवृग्वेद के 5 वें मंडल का 9 वें और दशवे शुक्त में अग्नि देव की है । त्वमग्ने हाविष्मन्त: इति सप्तर्च नवम सूक्तं आत्रेयस्य गयस्यार्षम । 


           

            

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें