सृष्टि को चतुर्दिक विकास के लिए भगवान शिव की अनुपम देंन है । पुरणों , वेदों , उपनिषदों में भगवान शिव की महिमा का उल्लेख है । भगवान शिव सत्यम शिवम सुंदरम का रूप है । विक्रम पञ्चाङ्ग के अनुसार वर्ष का पाँचवे माह सावन भगवान शिव को समर्पित है । भारतीय राष्ट्रीय पंचांग में सावन पाँचवाँ मास , ग्रेगोरियन कैलेंडर के 23 जुलाई 2021 , नेपाल कैलेंडर के साल के 4 थे महीना , बंगाली कैलेंडर में 4 थे महीना होता है । वर्षा ऋतु का दूसरे महीने सावन भारतीय उपमहादीप मे मानसून के आगमन से भारतीय जीवन में बहुत महत्व होता है । धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यो में सावन माह महत्वपूर्ण है ।नेपाल, बिहार और उत्तर प्रदेश , नागालैंड , झारखंड , बंगाल , उड़ीसा में श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को हरियाली तीज , पंचमी तिथि के नाग देवता को नागपंचमी , पूर्णिमा को रक्षाबंधन , सोमवारी पर्व मनाते है । सावन माह में भगवान शिव की आराधना और उपासना के लिए उपासक सक्रिय रहते है । महिलाएं कजरी गायन कर , झुलुआ डाल , झूलन करती है । ऋषि मरकंडू के पुत्र ऋषि मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज नतमस्तक हो गए थे। भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल जाने पर उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है। सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया था । विषपान करने के कारण 'नीलकंठ महादेव' पड़ा है । विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवी-देवताओं ने भगवान शिव को जल अर्पित किया था । शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है । शिवपुराण' में अनुसार भगवान शिव स्वयं जल हैं। जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है। शास्त्रों के अनुसार सावन महीने के कृष्ण पक्ष प्रतिपदा में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाने पर भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ 'चौमासा' है । सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। सावन के प्रधान देवता भगवान शिव है । भगवान शंकर की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। शिव पुराण , लिंग पुराण में भगवान शंकर की पूजा के लिए प्रत्येक सोमवार , त्रयोदशी , महाशिवरात्रि , प्रदोष ब्रत और सावन मास निर्धारित किया गया है। सावन के प्रारंभ से सृष्टि के पालन कर्ता भगवान विष्णु सारी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने दिव्य भवन पाताललोक में विश्राम करने के लिए निकलने के समय भगवान विष्णु जगत का सारा कार्यभार महादेव को सौंप देते है। भगवान शिव पार्वती के साथ पृथ्वी लोक पर विराजमान रहकर पृथ्वी वासियों के दुःख-दर्द को समझते एवं मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं । भगवान शंकर ने सनतकुमारों को सावन महीने की महिमा बताते हुए कहा कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांएं चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार श्रवणा नक्षत्र के आधार पर श्रावण व सावन रखा गया है। श्रवण नक्षत्र का स्वामी चन्द्र होता है। चन्द्र भगवान भोलेनाथ के मस्तक पर विराज मान है। सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करने पर सावन महीना प्रारम्भ होता है। सूर्य गर्म एवं चन्द्र ठण्डक प्रदान करता है । सूर्य के कर्क राशि में आने से बारिश होती है। वारिश होने के के फलस्वरूप लोक कल्याण के लिए विष को ग्रहण करने वाले देवों के देव महादेव को ठण्डक व सुकून मिलता है। सावन महीने में माता पार्वती ने शिव की घोर तपस्या करने के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को दर्शन दिए थे। सावन महीने में ऋषिगण क्षिप्रा नदी में स्नान कर उज्जैन के महाकाल शिव की अर्चना करने हेतु एकत्र हुए। अभिमानी वेश्या अपने कुत्सित विचारों से ऋषियों को धर्मभ्रष्ट करने चल पड़ी। गणिका के पहुंचने पर ऋषियों के तपबल के प्रभाव से उसके शरीर की सुगंध लुप्त हो गई। वह आश्चर्यचकित होकर अपने शरीर को देखने लगी। उसे लगा, उसका सौंदर्य भी नष्ट हो गया। उसकी बुद्धि परिवर्तित हो गई थी । गणिका का मन विषयों से हट गया और भक्ति मार्ग पर बढ़ने लगा। उसने अपने पापों के प्रायश्चित हेतु ऋषियों से उपाय पूछने पर ऋषिगण ने गणिका से कहा कि ‘तुमने सोलह श्रृंगारों के बल पर अनेक लोगों का धर्मभ्रष्ट किया, इस पाप से बचने के लिए तुम सोलह सोमवार व्रत करो और काशी में निवास करके भगवान शिव का पूजन करो।’ गणिका ने ऋषि गैन के बताए मार्ग पर चलने के लिए भगवान शिव की उपासना काशी में करने के बाद ने पापों का प्रायश्चित कर शिवलोक पहुंची। सोलह सोमवार के व्रत से कन्याओं को सुंदर पति मिलते तथा पुरुषों को सुंदर पत्नियां मिलती हैं। शिव आराधना से मनोवांक्षित फल की प्राप्ति होती है ।
सावन महीने में बिहार का औरंगाबाद जिले के गोद प्रखंडान्तर्गत देवकुंड स्थित बाबा दुग्धेश्वर नाथ , मुजफ्फरपुर जिले के मुजफ्फरपुर का गरीब नाथ , जहानाबाद जिले का बराबर पर्वत समूह की सूर्यान्क गिरि पर स्थित सिद्धों द्वारा स्थापित बाबा सिद्धेश्वर नाथ , झारखण्ड का देवघर में बाबा वैद्यनाथ रावणेश्वर शिवलिंग पर गंगा जल से श्रद्धालुओं द्वारा जलाभिषेक कर मानोकामना प्राप्त करते है । झारखण्ड के रांची स्थित पहाड़ी की चोटी पर भगवान शिव का पद चिह्न , शिवलिंग, नाग की उपासना , गया के मार्कण्डेश्वर , पितामहेश्वर , रमशीला पर भगवान राम द्वारा स्थापित स्फटिक रामेश्वर शिव लीन , बेलागंज प्रखंड के कोटेश्वर , अरवल जिले का कलेर प्रखंड के मदसर्वां में स्थित च्यावनेश्वर शिव लिंग , पुनपुन नदी के तट पंचतीर्थ में पांडवों द्वारा स्थापित शिवलिंग , तेरा में सहस्रलिंगी वैशाली जिले का विशालगढ़ के समीप चतुर्मुखी शिवलिंग की आराधना करते है । जहानाबाद जिले का जहानाबाद ठाकुरवाड़ी में स्थित पंचलिंगी शिवलिंग , भेलावर में एकमुखी शिवलिंग ,सिवान जिले के सोहगरा में हँसहनाथ शिव लिंग ,शिवहर जिले के देकुली में भुवनेश्वरनाथ ,बक्सर जिले के ब्रह्मपुर में ब्रह्मेश्वर शिवलिंग , सारण जिले के गंगा - गंडक के संगम पर अवस्थित सोनपुर में हरिहर नाथ ,लखीसराय जिले का अशोक धाम में इंद्रेश्वर शिव लिंग , रोहतास , भोजपुर , नालंदा , नवादा , औरंगाबाद , दरभंगा जिले का सिंहेश्वर में सिंहेश्वरनाथ जिलों में प्राचीन शिव लिंग की आराधना करते है ।
भारत में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग पूरब-पश्चिम-उत्तर और दक्षिण में भोले बाबा के जयकारे गूंजते हैं ।भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग सोमनाथ गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में , मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित , महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश का उज्जैन नगरी में स्थित है । ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश इंदौर के नर्मदा नदी के किनारे अवस्थित , उत्तराखंड का रुद्रप्रयाग जिले के केदार चट्टी पर मंदाकनी नदी के किनारे बाबा केदारनाथ ज्योतिर्लिङ्ग तथा केदारनाथका मंदिरके गर्भगृह में स्थित है । महाराष्ट्र के पुणे जिले मे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग पश्चिमी घाट के सह्याद्रि पर्वत के भीमा नदी के उद्गम स्थल पर स्थित है । मोटेश्वर महादेव काशीपुर में भगवान शिव का प्रसिद्ध स्थान है । उत्तर प्रदेश के काशी गंगा तट पर विश्वनाथ ज्योतिर्लिङ्ग स्थित है । नासिक जिले में त्रयंकेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग ब्रह्मगिरि पर्वत के गोदावरी नदी के उद्गम स्थल पर स्थित है । झारखंड के देवघर में लंका का राक्षेन्द्र रावण द्वारा स्थापित रावणेश्वर वैद्यनाथ ज्योतिर्लिङ्ग स्थित है । गुजरात के बड़ौदा क्षेत्र में गोमती द्वारका के दारूकावन में नागेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग है । तमिलनाडु के रामनाथम जनपद में भगवान राम द्वारा समुद्र के किनारे भगवान रामेश्वरम ज्योतिर्लिङ्ग स्थापित है । महाराष्ट्र के संभाजीनगर के दौलताबाद के पास घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग स्थित है ।
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