गुरुवार, जून 18, 2020

वर्णाकार की शक्ति प्रकृति का द्योतक...


भारतीय ग्रंथों और जीवन को संरक्षित करने के लिए शक्ति की प्रधानता दी गई है। शक्ति सृष्टि की नाडी और चेतना का प्रवाह है। शक्ति ही देवित्य है। ऋग्वेद,देव्यूपनिषद, पुराणों, उपनिषद् में देवों की कारण भूता,भुक्ति , मुक्ति और सत्व- रज- तम शक्ति की सुंदर उल्लेख किया गया है। पुराणों के अनुसार दक्ष प्रजापति की कन्या सती ने अपने पिता द्वारा उत्तराखंड राज्य के मायानगरी हरिद्वार की भूमि पर ब्रमेश्ठी यज्ञ करने में भगवान् शिव का निमंत्रण नहीं देने तथा उनका अपमान नहीं देने पर सती ने अपने आप को योग बल से यज्ञ में आहुति दे दी थी। माता सती द्वारा किए गए अपने शरीर को ब्रह्मेश्ठी यज्ञ में आहुति देने संबंधी जानकारी भगवान् शिव को बड़ा क्रोध, क्षोभ और मोह हुए थे। भगवान् शिव ने यज्ञ तथा यक्ष को नष्ट कर माता सती के शव को भू पर घूमने पर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड भयाक्रांत हो गया था। भगवान् शिव के मोह, क्रोध को समाप्त और शांति के लिए सर्वदेव भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से भगवान् शिव के कंधे पर माता सती के शव के विभिन्न अंगों को भिन्न भिन्न स्थलों पर गिरने पर वह शक्ति पीठ  बना । माता सती के शरीर के  ऊर्ध्वभाग का अंग गिरे वहां दक्षिण मार्ग एवं हृदय से निम्न भाग के अंगों को गिरने वाम मार्ग और अन्य अंगों के विभिन्न स्थलों पर पतन होने के कारण 51 शक्ति पीठ बने है।51 शक्ति पीठ वर्ण मालाएं का रूप है। असम के कामरूप जिला का ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे नीलांचल पर्वत पर सती का योनि पात होने के कारण वह स्थान कामाख्या पीठ हुआ। कामाख्या अ कार का उत्पति स्थान एवं श्री विद्या अधिष्ठित है जहां  अनिमादि सिद्धियां प्राप्ति होती है। लोमसे उत्पन्न इसके वंश नमक उप पीठ है जहां साबर मंत्रो की सिद्धि होती है। यहां भैरव के रूप में उमानंद शिव है। उत्तरप्रदेश के वाराणसी जिले का काशी में माता सती के स्तनों का पतन होने के कारण आ कार उत्पन्न हुआ जिसे कशिका पीठ कहा गया है।सती के स्तन से असी और वरणा नदी की धाराएं निकली है। असी के तट पर दक्षिण सारनाथ तथा वरणा से उतर उतर सारनाथ उप शक्ति पीठ है। गंगा के किनारे सती का कर्ण मणि का पतन स्थल को श्री विशालाक्षी शक्ति पीठ कहा गया है तथा विशालक्षिश्वर शिव लिंग स्थापित है। यहां दक्षिण एवं उतर मार्ग की सिद्धियां प्राप्त होती है। यहां काल भैरव है। वहां पर देह त्याग करने से मुक्ति मिलती है और शिव लोक जाता है।
 माता सती का गुह्य भाग का पतन हुए ेवहां इ कार की उत्पति हुई थी जिसे वाम मार्ग का मूल स्थान कहा जाता है। यहां 56 लाख भैरव और भैरवी,2 हजार शक्तियां,300 पीठ एवं 14 श्मशान है। यह स्थान कालांतर में नेपाल पीठ के नाम से ख्याति मिली है।: यहां का चार पीठ वैदिक मंत्र होते है। नेपाल पीठ के पूर्व भाग में मल का पतन हुआ वहां किरात का निवास हो गया और 30 हजार देव योनियों का निवास है। यही पर चंद्रघंटा योगनी रहने लगी। नेपाल के काठमांडू का पशुपति नाथ नेपाल के प्राचीन काल का बागमती नदी के किनारे शलेमांतक वन में शक्ति पीठ गुहेश्वरी माता तथा सिद्धेश्वर शिव लिंग ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित है। माता सती का दोनों जानू के पतन होने के कारण महामाया शक्ति पीठ और भैरव के रूप में कपाल विराजमान है। रौद्र पर्वत पर माता सती का वाम नेत्र का पतन होने के कारण ई कार की उत्पति से महत पीठ हुए जहां पर वामचार से मंत्र सिद्धि की जाती है। उ कार का उत्पति स्थान माता सती के वाम कर्ण का पतन कश्मीर में होने के कारण कश्मीर शक्ति पीठ हुआ है। यहां सर्व विध मंत्रों की सिद्धि होती हैं। ॐ कार की उत्पति माता सती के दक्षिण कर्ण का पतन स्थल गंगा जमुना नदी के मध्य अंतरवेदी कान्यकुब्ज शक्ति पीठ में हुआ है। यहां ब्रह्मा आदि देवों द्वारा अतंर्वेदी तीर्थो का निर्माण किया गया है। यहां वेद मंत्रों की सिद्धि होती है। कर्ण के मल पतन यमुना नदी के किनारे होने के कारण इंद्रप्रस्थ उपशक्ति पीठ हुआ। वर्तमान में यमुना नदी के किनारे इंद्रप्रस्थ में पांडवों की राजधानी बनी कालांतर दिल्ली कहा गया है। इंद्रप्रस्थ पीठ के प्रभाव से ब्रह्मा जी को वेद पून: उपलब्ध हुए थे। ऋ कार की उत्पति नासिका के पतन पूर्ण गिरि पर होने के कारण पूर्ण गिरि शक्ति पीठ हुए। यह स्थल नासिक के नाम से विख्यात है। पूर्ण गिरि शक्ति पीठ से योग सिद्धि एवं मंत्रधिष्ठातृदेव प्रत्यक्ष दर्शन एवं मनोकामना पूर्ण होती है।ऋट् कार का प्रादुर्भाव वाम गंड स्थल का पतन अर्बुदाचल पर्वत पर होनें के कारण आर्बुदाचल शक्ति पीठ का निर्माण हुआ। इस पीठ को अंबिका शक्ति पीठ नाम से ख्याति है। यहां वाम मार्ग की सिद्धि मिलती है। लृ कार की उत्पत्ति दक्षिण गंड स्थल का पतन अम्रत में होने के कारण आम्रात केश्वर शक्ति पीठ का निर्माण हुआ । यहां यक्ष, यक्षणियों का निवास तथा धनादियों का निवास है। लृट् कार की उत्पति नखों के पतन स्थान एकाम्र में होने के कारण एकाम्र शक्ति पीठ का निर्माण हुआ है। यहां विद्या प्रदाई स्थल है। ए कार की उत्पति त्रयवली पतन के कारण अर्थात माता सती के पूर्व, पछिम, दक्षिण के वस्त्र तीन खंड में गिरने से वह स्थल तीन उप पीठ हुए थे जिसे त्रय स्त्रोत्र पीठ बने है। यहां पौष्टिक मंत्रों की सिद्धि मिलती है। ऐ कार का प्रादुर्भाव नाभि के पतन कामकोटि पीठ से हुआ है। यहां अप्सरा का निवास है। सभी मनोकामनाएं प्राप्ति स्थल है। यहां चार उप पीठ है। ओ कार की उत्पति माता सती के उंगुलिया का पतनं हिमालय पर्वत पर होने के कारण हुई थी जिसे कैलाश शक्ति पीठ के नाम से ख्याति प्राप्त है। यहां अंगुलियां लिंग रूप में स्थापित है। यहां कर मला से मंत्र करने पर तत्कक्षण सिद्धि मिलती है।माता सती के दांतों के पतन भृगु क्षेत्र में गिरने से औ कार का उत्पति हुई। यह स्थल भृगु शक्ति पीठ की स्थापना हुई। यहां वैदिक आदि मंत्र सिद्ध होते है। अं कार की उत्पति दक्षिण करतल का पतन केदार खंड में होने से हुई थी। वह स्थल केदार शक्तिपीठ की स्थापना और उसके दक्षिण में कंगन के पतन स्थान में अगस्त आश्रम के समीप सिद्ध उप शक्ति पीठ तथा उसके पश्चिम में मुंद्रिका के पतन स्थल को इन्द्राक्षी शक्ति उप पीठ रेवती नदी के तट पर वलय के पतन स्थान में राजराजेश्वरी शक्ति उप पीठ की स्थापना हुई थी। अ:  कार की उत्पति वाम गन्ड की निपत भूमि चन्द्र पुर पतन होने के कारण चंद्रपुर शक्ति पीठ हुआ। यहां सभी मंत्र सिद्ध होते है। क  कार की उत्पति माता सती के मस्तक का पतन श्री पीठ में होने से हुआ था। श्री पीठ के पूर्व में कर्ण भरण के पतन से उप शक्ति पीठ जहां ब्रह्मविद्या प्रकाशिका ब्राह्मी शक्ति का निवास, अग्नि कोण में कर्णार्धाभरन के पतन से माहेश्वरी उप शक्ति पीठ, दक्षिण में पत्रवल्ली की पतन भूमि कुमारी शक्ति उप पीठ,नईऋत्य कोण में कंठ माल के पतन स्थल को इंद्रजाल विद्या शक्ति उप पीठ, वैष्णवी शक्ति उप पीठ, पश्चिम में नशाभौमिक पतन से वाराही शक्ति उप पीठ, वायु कोण में मस्तका भरण के पतन स्थान में चामुंडा शक्ति युक्त क्षुद्रदेवता सिद्धिका शक्ति उप पीठ और ईशान कोण में केशाभरण पतन से महालक्ष्मी द्वारा स्थापित शक्ति उप पीठ की स्थापना की गई। ख कार की उत्पति कंचुकी की पतन भूमि ज्योतिष्मती द्वारा की गई। यहां नर्मदा शक्ति पीठ और महर्षि जीवनमुक्त की जन्म भूमि है। वक्ष स्थल के पतन से ग कार की उत्पति हुई थी। वह स्थल ज्वालामुखी शक्ति पीठ हुए। ज्वालामुखी शक्ति पीठ में अग्नि ने तपस्या कर देवामुख प्राप्त किए थे। बाम स्कंध के पतन स्थान मालव शक्ति पीठ से घ कार की उत्पति हुई थी जिसे मालव शक्ति पीठ कहा जाता है। यहां गंधर्वो के राग ज्ञान के सिद्धि स्थल के रूप में स्थापित है। ड्. कार की उत्पति दक्षिण कक्ष का पतन होने पर हुआ था। वह स्थल कुलांतक शक्ति पीठ स्थापित कर मारण, मोहन तथा उच्चाटन मंत्र की सिद्धि प्राप्त करते है।

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