मंगलवार, जून 02, 2020

घंटी और शंख ध्वनि संक्रमण से मुक्ति का मार्ग...


        विश्व में प्राचीन काल से भारतीय वेदों पुराणों उपनिषदों और ऋषियों द्वारा विभिन्न मानव जीवन की रक्षा के लिए शंख और घंटी की ध्वनि तथा करताल की आवाज संक्रमण से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त कराया गया है । भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्राचीन काल से चली आरही धार्मिक परंपराएं जीवित है। पुरातन संस्कृति और वैज्ञानिक पद्धति में ध्वनि का विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति और शांति का संदेश बताया है। किसी अपने आराध्य देव की पूजा करने के दौरान घंटी और शंख की ध्वनि होना आवश्यक होना चाहिए क्योंकि  क्यूंकि  इससे संक्रमण से मुक्ति और ईश्वरीय शक्ति ज्ञान  का जागृत एवं भगवान प्रसन्न होकर प्रार्थना सुनते हैं। मंदिरों में घंटी का कनेक्शन केवल भगवान से नहीं है बल्कि इसका वैज्ञानिक कारण भी है। मंदिर के प्रवेश और निकास के स्थान घंटी बजाने से संक्रमण दूर हो जाता है और शांति का वातावरण कायम होता है।मंदिर या घर  तथा धार्मिक स्थल का वहां घंटी तो होती ही है। इसका धार्मिक कारण होने के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। घंटी कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणुए विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं, और आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है।जहां घंटी बजने की आवाज नियमित आती रहती है वहां का वातावरण शुद्ध और पवित्र और संक्रमण मुक्त बना रहता है ।इंसान दरवाजों और खि‍ड़कियों पर भी विंड चाइम्स लगवाते हैं,  ताकि उसकी ध्वनि से नकारात्मक शक्तियां हटती रहें और वहां का वातावरण शुद्ध रहें। 
 शास्त्रों के अनुसार घंटी बजाने से मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों में चेतना जागृत होती है जिसके बाद उनकी पूजा और आराधना अधिक फलदायक और प्रभावशाली बन जाती है। घंटी की मनमोहक एवं कर्णप्रिय ध्वनि मन-मस्तिष्क को अध्यात्म भाव की ओर ले जाने का सामर्थ्य रखती है। मन भी घंटी की लय से जुड़कर शांति का अनुभव करता है।  मंदिर में घंटी बजाने से मानव के कई जन्मों के पाप तक नष्ट हो जाते हैं। सुबह और शाम जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है तो एक लय और विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है। जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ, तब जो नाद (आवाज) गूंजी थी। वही आवाज घंटी बजाने पर भी आती है। घंटी उसी नाद का प्रतीक है. यही नाद 'ओंकार' केhi उच्चारण से भी जागृत होता है। कहीं-कहीं यह भी लिखित है कि जब प्रलय आएगा उस समय भी ऐसा ही नाद गूंजेगा। मंदिर के बाहर लगी घंटी या घंटे को संक्रमण से मुक्ति और शांति का प्रतीक भी माना गया है। मंदिरों में घंटा, घंटी, शंख बजाने की परंपरा कायम है और  पूजा स्थलों में घंटी और शंख ध्वनि गूंजते है।



1 टिप्पणी:

  1. निश्चित रूप से एक ज्ञान वर्धक लेख शंख, घंटे की ध्वनि पर एक ल

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